का कहीं, केसे कहीं, को पतिआई - सन्त कबीर

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 พ.ค. 2018
  • का कहीं, केसे कहीं, को पतिआई।। फुलवा को छुवत भँवर मरि जाई।। - वह परमात्मा कहने में नहीं आता, अनुभवगम्य है। वह परमात्मा एक ऐसा पुष्प हैं जिसका स्पर्श करते ही मनरूपी भ्रमर उसी में विलीन हो जाता है। परमात्मा ही शेष बचता है। प्राप्तिकाल का चित्रण प्रस्तुत भजन में देखें।
    Dated: 03-01-2017
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