तिल तुष मात्र परिग्रह रखनेवाले मुनि निगोद जाएंगे यह आगम वाक्य है इसे अप्रमाणिक बतानेवाला स्वयं अप्रमाणिक है जैसे मुनिराज चश्मे का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि किसी जिनागम में चश्मा मुनि का उपकरण नहीं माना है ,वैसे ही अन्य परिग्रह रखनेवाले मुनि निगोद जाएंगे यह आगम वाक्य है
अगर छोटे पद वाला बड़ा काम करे, तो स्वर्ग अवश्य जाएगा। और परमेष्टि पद वाला, तुच्छ काम करे, मंदिर तुड़वाए, बनवाए, बोली लगवाए, जगह जगह घर पर जाए, परिग्रह रखे, पांच कल्याणक कराए इत्यादि और जिसकारण से मुनि बने थे, वही बात भूल जाए तो। अवश्य ही, नरक निगोड़ का पात्र है। आज कितने साधु हैं?, जो श्रावकों की भीड़ जुटने में नहीं लगे रहते, मंदिर का पैसा इक्ट्ठा करने में नहीं लगे रहते, अपना प्रवचन अच्छे से देने में नहीं लगे रहते, नील बाटे सन्नाटा😢😢
पंचमकाल में जितने भी मुनि निगोद जाएंगे वे सब तिल तुष् मात्र परिग्रह वृत्ति के निमित्त से निगोद जाएंगे न वंदना हो देह की , कुल की नही , न जाति की कोई करें क्यों वंदना गुण हीन श्रावक साधु की
भाई तू जाके अपने कांजी फॉलोअर्स को सीखा ना ये सब; क्यों फालतू का मुनियों की वीडियोज या प्रवचन मेन आके अपनी कषाय की पुष्टि के लिए कुछ भी प्रलाप करता रहता है??? अपने गुरु की तरह जाके श्वेतांबरों को ज्ञान दे और कन्वर्ट कर - बेस्ट है वो, तू भी खुश और पूरा दिगंबर समाज भी खुश।
आगम का एक एक अक्षर जिनेन्द्र प्रभु की वाणी है और सौ पर्सेंट सत्य है कि इसमें किसी हेर फेर की गुंजाइश नहीं है,ऐसे हज़ारों उदाहरण वर्तमान युग में प्रथमानुयोग की कहानियों में आए हैं, आचार्य सूर्य सागर क्रत संयम प्रकाश ग्रंथ मैं बिलकुल ठीक लिखा है क्योंकि वह शुरू से निश्चय व्यवहार का तालमेल बिठाकर चल रहे है न कि एकांतबाद से
महाराज श्रीआचार्य सूरसागर जी आप से ज्यादा प्रमाणित हैं। एक आचार्य को आपप्रमाणिक कहना आपके और आपके गुरु के ही आप्रमाणिक होने का प्रमाण देता है। कृपया स्वाध्याय करें और सीखें फिर आगे कोई बात कहें।
किंचित परिग्रह साथ हो तो श्रमण जाएं निगोद में....
@@Jainaagam-1008 तू फिर आ गया, भाई be ready जिस दिन माथा संकेगा तेरी भी fir करूंगा ek to line pr aa gya h
महाराज आप तो साधू है और सूर्य सागर आचार्य है। चर्चा सन्ग्रह मे भी आज से तीन सो साल पहले लिखा है।
तिल तुष मात्र परिग्रह रखनेवाले मुनि निगोद जाएंगे यह आगम वाक्य है इसे अप्रमाणिक बतानेवाला स्वयं अप्रमाणिक है जैसे मुनिराज चश्मे का प्रयोग नहीं कर सकते क्योंकि किसी जिनागम में चश्मा मुनि का उपकरण नहीं माना है ,वैसे ही अन्य परिग्रह रखनेवाले मुनि निगोद जाएंगे यह आगम वाक्य है
अगर छोटे पद वाला बड़ा काम करे, तो स्वर्ग अवश्य जाएगा।
और परमेष्टि पद वाला, तुच्छ काम करे, मंदिर तुड़वाए, बनवाए, बोली लगवाए, जगह जगह घर पर जाए, परिग्रह रखे, पांच कल्याणक कराए इत्यादि और जिसकारण से मुनि बने थे, वही बात भूल जाए तो।
अवश्य ही, नरक निगोड़ का पात्र है।
आज कितने साधु हैं?, जो श्रावकों की भीड़ जुटने में नहीं लगे रहते, मंदिर का पैसा इक्ट्ठा करने में नहीं लगे रहते, अपना प्रवचन अच्छे से देने में नहीं लगे रहते, नील बाटे सन्नाटा😢😢
Namostu maharajji👏🏼👏🏼👏🏼Bohot bohot badhiya 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼
नमोस्तु महाराज जी
ये तो आपने शिथिलाचारी साधुओ का samarthan कर दिया
पंचमकाल में जितने भी मुनि निगोद जाएंगे वे सब तिल तुष् मात्र परिग्रह वृत्ति के निमित्त से निगोद जाएंगे
न वंदना हो देह की , कुल की नही , न जाति की
कोई करें क्यों वंदना गुण हीन श्रावक साधु की
भाई तू जाके अपने कांजी फॉलोअर्स को सीखा ना ये सब; क्यों फालतू का मुनियों की वीडियोज या प्रवचन मेन आके अपनी कषाय की पुष्टि के लिए कुछ भी प्रलाप करता रहता है??? अपने गुरु की तरह जाके श्वेतांबरों को ज्ञान दे और कन्वर्ट कर - बेस्ट है वो, तू भी खुश और पूरा दिगंबर समाज भी खुश।
अलग-अलग मुनि अलग-अलग विचार। समाधान की जगह confusion ज्यादा।
आगम का एक एक अक्षर जिनेन्द्र प्रभु की वाणी है और सौ पर्सेंट सत्य है कि इसमें किसी हेर फेर की गुंजाइश नहीं है,ऐसे हज़ारों उदाहरण वर्तमान युग में प्रथमानुयोग की कहानियों में आए हैं,
आचार्य सूर्य सागर क्रत संयम प्रकाश ग्रंथ मैं बिलकुल ठीक लिखा है क्योंकि वह शुरू से निश्चय व्यवहार का तालमेल बिठाकर चल रहे है न कि एकांतबाद से
आगम प्रमाण दीजिए
मूल आगम का
दूसरी बात सूर्य प्रकाश और संयम प्रकाश अलग अलग है, और संयम प्रकाश में भी सूर्यप्रकाश से लिखा है
Dharm ko khatam karne ki drasti se kiya gaya akshep hai. Thoda logic lagao.
@@jain_mokshस्वाध्याय करो भाई अष्टापाहुड ही पढ़ लो।
महाराज श्रीआचार्य सूरसागर जी आप से ज्यादा प्रमाणित हैं। एक आचार्य को आपप्रमाणिक कहना आपके और आपके गुरु के ही आप्रमाणिक होने का प्रमाण देता है। कृपया स्वाध्याय करें और सीखें फिर आगे कोई बात कहें।
मूल आगम का प्रमाण दीजिए
दूसरी बात सूर्य प्रकाश और संयम प्रकाश अलग अलग है, और संयम प्रकाश में भी सूर्यप्रकाश से लिखा है
मुझे समझ नहीं आया मुनिराज स्वर्ग जाये या नरक आप क्यों चिंता कर रहें है?
पहले स्वयं की चिंता करो?
आचार्य सूर्य सागर जी ने कहा बताया?
स्वाध्याय करो अष्टपाहुड , द्वादानुपरेक्खा आदि। सूर्य सागर जी सिथिलाचार के कट्टर विरोधी थे।@@jain_moksh
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किं ?
ज़ब मै खुद परिग्रह रखता हूं या ज़ब मै खुद गलत हूं तो मै मेरे जैसे अपने संगी साथी को गलत कैसे कह सकता हूं
शिथिल साधु ही शिथिलता का पोषण करेगा ना। जैसे गुरु वैसे चेला।
कोटि कोटि नमोस्तु