संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 166 से 170, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

แชร์
ฝัง
  • เผยแพร่เมื่อ 23 มิ.ย. 2024
  • #ramayan #shriram #ram #doha #indianhistory #choupai #hanuman #bhakti #ayodhya #achhevicharinhindi
    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 166 से 170, राजा प्रताप भानु की कथा जारी...
    sri ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
    तातें मै तोहि बरजउँ राजा। कहें कथा तव परम अकाजा॥
    छठें श्रवन यह परत कहानी। नास तुम्हार सत्य मम बानी॥
    यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा। नास तोर सुनु भानुप्रतापा॥
    आन उपायँ निधन तव नाहीं। जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं॥
    सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा। द्विज गुर कोप कहहु को राखा॥
    राखइ गुर जौं कोप बिधाता। गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता॥
    जौं न चलब हम कहे तुम्हारें। होउ नास नहिं सोच हमारें॥
    एकहिं डर डरपत मन मोरा। प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा॥
    दोहा- होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ।
    तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ॥१६६॥
    सुनु नृप बिबिध जतन जग माहीं। कष्टसाध्य पुनि होहिं कि नाहीं॥
    अहइ एक अति सुगम उपाई। तहाँ परंतु एक कठिनाई॥
    मम आधीन जुगुति नृप सोई। मोर जाब तव नगर न होई॥
    आजु लगें अरु जब तें भयऊँ। काहू के गृह ग्राम न गयऊँ॥
    जौं न जाउँ तव होइ अकाजू। बना आइ असमंजस आजू॥
    सुनि महीस बोलेउ मृदु बानी। नाथ निगम असि नीति बखानी॥
    बड़े सनेह लघुन्ह पर करहीं। गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं॥
    जलधि अगाध मौलि बह फेनू। संतत धरनि धरत सिर रेनू॥
    दोहा- अस कहि गहे नरेस पद स्वामी होहु कृपाल।
    मोहि लागि दुख सहिअ प्रभु सज्जन दीनदयाल॥१६७॥
    जानि नृपहि आपन आधीना। बोला तापस कपट प्रबीना॥
    सत्य कहउँ भूपति सुनु तोही। जग नाहिन दुर्लभ कछु मोही॥
    अवसि काज मैं करिहउँ तोरा। मन तन बचन भगत तैं मोरा॥
    जोग जुगुति तप मंत्र प्रभाऊ। फलइ तबहिं जब करिअ दुराऊ॥
    जौं नरेस मैं करौं रसोई। तुम्ह परुसहु मोहि जान न कोई॥
    अन्न सो जोइ जोइ भोजन करई। सोइ सोइ तव आयसु अनुसरई॥
    पुनि तिन्ह के गृह जेवँइ जोऊ। तव बस होइ भूप सुनु सोऊ॥
    जाइ उपाय रचहु नृप एहू। संबत भरि संकलप करेहू॥
    दोहा- नित नूतन द्विज सहस सत बरेहु सहित परिवार।
    मैं तुम्हरे संकलप लगि दिनहिंûकरिब जेवनार॥१६८॥
    एहि बिधि भूप कष्ट अति थोरें। होइहहिं सकल बिप्र बस तोरें॥
    करिहहिं बिप्र होम मख सेवा। तेहिं प्रसंग सहजेहिं बस देवा॥
    और एक तोहि कहऊँ लखाऊ। मैं एहि बेष न आउब काऊ॥
    तुम्हरे उपरोहित कहुँ राया। हरि आनब मैं करि निज माया॥
    तपबल तेहि करि आपु समाना। रखिहउँ इहाँ बरष परवाना॥
    मैं धरि तासु बेषु सुनु राजा। सब बिधि तोर सँवारब काजा॥
    गै निसि बहुत सयन अब कीजे। मोहि तोहि भूप भेंट दिन तीजे॥
    मैं तपबल तोहि तुरग समेता। पहुँचेहउँ सोवतहि निकेता॥
    दोहा- मैं आउब सोइ बेषु धरि पहिचानेहु तब मोहि।
    जब एकांत बोलाइ सब कथा सुनावौं तोहि॥१६९॥
    सयन कीन्ह नृप आयसु मानी। आसन जाइ बैठ छलग्यानी॥
    श्रमित भूप निद्रा अति आई। सो किमि सोव सोच अधिकाई॥
    कालकेतु निसिचर तहँ आवा। जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा॥
    परम मित्र तापस नृप केरा। जानइ सो अति कपट घनेरा॥
    तेहि के सत सुत अरु दस भाई। खल अति अजय देव दुखदाई॥
    प्रथमहि भूप समर सब मारे। बिप्र संत सुर देखि दुखारे॥
    तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा। तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा॥
    जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ। भावी बस न जान कछु राऊ॥
    दोहा- रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु।
    अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु॥१७०॥
    जय श्री राम 🙏
    श्रीरामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाने का मेरा यह प्रयास पसंद आ रहा हो तो कृपया लाइक करें और शेयर करें। सुबह नित्य पांच दोहा श्रीरामचरितमानस श्रवण करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें और फेसबुक पेज को फॉलो करें
    Facebook : profile.php?...
  • เพลง

ความคิดเห็น •