Naitwar village beautiful !! vivek bhatt vlogs !!

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  • เผยแพร่เมื่อ 13 ต.ค. 2024
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    पोखु देवता मंदिर , उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के क्षेत्र नैटवाड़ गांव में यमुना नदी की सहायक टोंस नदी के किनारे स्थित है | पोखू देवता को लोग न्याय के रूप में भी पूजा करते हैं | नैटवाड़ गांव चारों ओर सुंदर देवदार और चीड़ के पेड़ है। नैटवाड गांव पहुंचने के लिए पर्यटकों को चकराता से चकराता-शिमला मार्ग पर स्थित ट्यूनी जाना होता है। इस घाटी से एक संकीर्ण रास्ता एक लोहे का पुल पर निकलता है, जो यात्रियों को पोखू देवता मंदिर ले जाता है। उत्तरकाशी के नैटवाड़ में स्थित पोखू देवता का मंदिर भी न्याय के लिए प्रसिद्ध है। सदियों से ऐसी मान्यता है कि यहां हाजिरी लगाने वाले को हमेशा अविलंब न्याय मिलता है। यहां रोजाना दर्जनों की संख्या में श्रद्धालु फरियाद लेकर आते हैं। पोखू देवता मंदिर में शीघ्र न्याय पाने की आस में आने वाले लोगों को मंदिर के नियम कायदों का सख्ती से पालन करना होता है। स्थानीय लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने की बजाए, सीधे यहीं आते हैं। उनका विश्वास है कि यहां उन्हें तुरंत न्यान मिलता है। पोखू देवता मंदिर के प्रति गांव सहित क्षेत्र के लोगों की अटूट श्रद्धा है | इन्हें इस क्षेत्र का राजा माना जाता है। क्षेत्र के प्रत्येक गांव में दरांतियों और चाकुओं के रूप में देवता की पूजा की जाती है।
    पोखु देवता मंदिर के बारे में कहा जाता है कि पोखु देवता का मुंह पाताल में और कमर का ऊपर का हिस्सा धरती पर है। ये उल्टे हैं और नग्नावस्था मे हैं । इस हालत में पोखु देवता को देखना अशिष्टता है इसलिए मंदिर के पूजारी और भक्तगण भी देवता की ओर पीठ करके पूजा करता है । पोखु देवता मंदिर की मान्यता है कि पोखू देवता को कर्ण का प्रतिनिधि और भगवान शिव का सेवक माना गया है। जिनका स्वरूप डरावना और अपने अनुयायिओं के प्रति कठोर स्वभाव का था । इसी कारण क्षेत्र में चोरी व अपराध करने से लोग आज भी डरते हैं एवम् क्षेत्र में यदि किसी भी प्रकार की विपत्ति या संकट आये तो पोखू देवता गांव के लोगों की मदद करते हैं | इसी विशेषताओं के साथ पोखू देवता का मंदिर एक तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है जो सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है । जून व अगस्त के माह में क्षेत्र के लोगों की ओर से भव्य मेले का आयोजन किया जाता है |
    पोखु देवता मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि बहुत प्राचीन समय पहले क्षेत्र में किरिमर नामक राक्षस आतंक मचाया करता था तो जनता की रक्षा के लिए दुर्योधन ने उससे युद्ध किया और युद्ध में किरिमर राक्षस हार गया और दुर्योधन ने उसकी गर्दन काटकर टोंस नदी में फेंक दी | किरिमर राक्षस का सिर नदी की बहने वालो वाले दिशा के बजाय विपरीत दिशा में बहने लगा और उसका सिर रुपिन और सुपिन नदी के संगम में रुक गया | राजा दुर्योधन ने जब किरिमर राक्षस के सिर को रुका देखा तो उन्होंने उसे उसी स्थान में स्थापित कर दिया और उसका मंदिर बना दिया , जो कि वर्तमान समय में पोखुवीर के नाम से जाना जाता है | मंदिर से जुड़ी एक और अन्य कथा है कहते हैं कि किरिमर राक्षस नहीं बल्कि वर्भुवाहन था | कृष्ण ने महाभारत के युद्ध से पहले ही उसका सिर काट दिया था | इस क्षेत्र की खासियत यह है कि यहां कई स्थानों पर कौरवों की पूजा की जाती है और इसी क्षेत्र में दुर्योधन का मंदिर भी स्थापित है एवम् अन्य मंदिर में कर्ण की पूजा की जाती है
    thank you🙏🙏🙏
    video acha lage to like subscribe nd share jarur kare apne dosto ke sath

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