सतगुरु तो सतभाव है | जो अस भेद बताय | श्री कबीरदास जी वाणी |
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- เผยแพร่เมื่อ 29 ต.ค. 2024
- कबीर दास जी का जीवन परिचय
कबीर दास 15वीं सदी के एक महान भारतीय संत, कवि और रहस्यवादी थे। वे हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के खिलाफ सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों के विरुद्ध खड़े हुए। कबीर दास जी ने जाति-पाति, धर्म और रीति-रिवाजों के बंधनों को तोड़कर सभी को एक समान माना।
प्रमुख बिंदु
* जीवनकाल: लगभग 1398 से 1518 तक
* जन्म: कबीर दास जी का जन्म वाराणसी के निकट हुआ था।
* शिक्षाएं: उन्होंने भक्ति मार्ग का अनुसरण किया और ईश्वर को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान माना।
* काव्य: उन्होंने सामाजिक बुराइयों, पाखंड और ढोंग के खिलाफ कई दोहे और पद लिखे।
* प्रभाव: कबीर दास जी के विचारों ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने भक्ति आंदोलन को नई ऊर्जा दी।
कबीर दास जी के विचार
* सर्वसमावेशिता: सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एक समान माना।
* ईश्वर भक्ति: ईश्वर को हृदय में ढूंढने की बात कही।
* सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध: उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और पाखंड जैसी सामाजिक बुराइयों की निंदा की।
* कर्मकांडों का विरोध: उन्होंने निष्क्रिय कर्मकांडों और बाहरी दिखावे को खारिज किया।
कबीर दास जी का साहित्य
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में सरल भाषा का प्रयोग किया और आम लोगों की भाषा में अपने विचार व्यक्त किए। उनकी रचनाओं में दोहे, पद और साखियां प्रमुख हैं।
यहां कुछ प्रसिद्ध दोहे दिए गए हैं:
*पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
*माया तजे तो क्या हुआ, मान तज़ा ना जाए।
इस वीडियो में हम चर्चा करने वाले हैं, इस दोहावली पर:
सतगुरु तो सतभाव है, जो अस भेद बताय।
धन्य शिष धन भाग तिहि, जो ऐसी सुधि पाय।
Song: Bobby Astro
Artist: Kia
Music by: CreatorMix.com
निष्कर्ष
कबीर दास जी एक महान संत और कवि थे जिन्होंने समाज में समानता और भाईचारे का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें मानवता के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं।
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