सप्तम भाव और राहु का संशय- आचार्य वासुदेव (ज्योतिषाचार्य, हस्तरेखा विशेषज्ञ, राहु केतु-विशेषज्ञ).
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- เผยแพร่เมื่อ 25 ม.ค. 2025
- हरे कृष्ण, मैं पहले भी कई बार सप्तम भाव से संबंधित विषय पर जानकारी दे चुका हूं बहुत से भाई बहनों का यह प्रश्न होता है कि सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का क्या प्रभाव होता है क्योंकि उनके वैवाहिक जीवन में अत्यधिक तनाव देखा जा सकता है इस श्रृंखला में मैंने सप्तम भाव से संबंधित कुछ और विशेष जानकारी देने का प्रयास किया है सप्तम भाव का संबंध यदि राहु केतु शनि मंगल और सूर्य जैसे ग्रहों से हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन तनावमय रहता है क्योंकि राहु केतु शनि मंगल और सूर्य सभी पृथकतावादी ग्रह हैं। अधिकतर पत्रिकाओं का विश्लेषण करने के पश्चात मैंने पाया है कि सप्तम भाव में राहु का फल सबसे ज्यादा खराब होता है यदि आपकी पत्रिका में राहु सप्तम या अष्टम भाव में है तो यह आपको सबसे ज्यादा अशुभ फल प्रदान करने की योग्यता रखता है सप्तम भाव में राहु बैठा होने से व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में तनाव रहता है और ऐसी अवस्था में राहु आपको अधिक अनैतिक कार्य करने के लिए उकसाता है। यदि पत्रिका में सप्तम भाव का स्वामी अशुभ भाव में है और सप्तम भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव है पर सप्तम भाव का स्वामी नीच राशि में है या अशुभ ग्रहों के नक्षत्र में है तो यह वैवाहिक जीवन को खराब करता है ऐसी स्थिति में राहु का एक विशेष योगदान होता है राहु एक स्वतंत्र ग्रह है जो अपनी स्वतंत्रता को दर्शाने का प्रयास करता है। राहु स्वेच्छाचारी ग्रह है और स्वतंत्र होने के साथ साथ छल और कपट को भी दर्शता है ऐसी स्तिथि में सप्तम और अष्टम भाव का राहु अन्य लोगों से संबंध दर्शता है और संबंध खराब करता है। यह एक सामान्य जानकारी है और यह इस बात की पुष्टि नहीं करता की यह योग ही फलित होंगे इस योग के साथ अन्य योग भी पत्रिका में देख लेना उचित रहेगा। अधिक जानकारी ले लिए संपर्क करें👇
आचार्य वासुदेव (ज्योतिषाचार्य, हस्तरेखा विशेषज्ञ, राहु-केतु विशेषज्ञ)
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E-mail - neerajnagar427381@gmail.com
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