जीवन का मूल्यवान तत्व: स्वकीय व्रत रति (लगाव, रुचि)। व्रती, विरति, आरती, प्रगति। धर्मात्मा की मूल्यवान निधि उसके व्रत, संकल्प ही होते है सो उनके प्रति उसको गाढ़ प्रगाढ रति याने लगाव होता है। अन्य जीवों की पाप में रति, खान-पान में रति , विषयों में, भोगों में आदि भिन्न प्रकार की रति होती है। धर्म, त्याग, संयम, व्रत से बहुतों की अरति होती है। पाप काम में जैसे watching movie, picnic, hoteling, shopping etc में अपनेआप रति होती है अपितु धर्म के लिये जैसे doing Pujan, Swadyay, Tap etc में रति जगानी पडती है। पाप में रति दुर्गति है और पाप से विरति कल्याण है। पाप से रति से अरति नहीं होती विरति होती है। धर्म से अरति नहीं अपितु रति। विरति अर्थात त्याग। पाप से अरति नहीं होती, विरति की जाती है। पाप से विरति और धर्म से रति से होती है प्रगति। धर्म से अरति भी दुर्गति का कारण है। स्वकीय व्रत रति: रूचि पूर्वक व्रत निभाना। व्रत जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि, निधि है उनका आदर, उत्साह, जागृतता, दृढता से पालन करना। अनेकों जीवन और इस जीवन का बहुतांश काल भी पाप में ही व्यर्थ हुआ अब कुछ पुण्य से और गुरु कृपा से कुछ व्रत मीले है जो इस और भविष्य के भव सुधार सकते है, कल्याणकारी है उनका मुझे हमेशा उत्साह और ततपरता से पालन करना है। छोटे से छोटा व्रत अच्छे से निभाओ। व्रत लेने के लिये व्रत मत लो निभाने के लिये व्रत लो। आ. समन्तभद्र स्वामी जी ने व्रत की रति के उदाहरण में यमपाल चांडाल (मातंक) का कथन-वर्णन किया है। जिसने चतुर्दशी के दिन हिंसा नहीं करने के छोटेसे अहिंसा व्रत के रतिपूर्वक पालन से पूज्यता को प्राप्त किया। निष्ठा पूर्वक लिया और निभाया छोटासा नियम भी अतिशय फलदायी होता है और निष्ठा के अभाव में निभाए व्रत, नियम अर्थपूर्ण, कल्याणकारी नहीं होते। कोई व्रत, नियम छोटा, बडा नहीं होता। व्रत के प्रति निष्ठा छोटी, बडी होती है। प्राण जाय पर प्रण न जाय। NO Compromise with व्रत, नियम, संयम पालन। सियार का मुनिराज की प्रवचन सभा में रात्रि-भोजन त्याग व्रत और व्रत का निष्ठा से पालन कऱ प्रीतिंकर देव बनने की कथा। @24: तिर्यंच भी सल्लेखना कर सकते है, करते है। तीर्थंकर पत्रिका: हाथी की 27 दिनों की सल्लेखना। तिर्यंचों के लिये प्रासुक परित्याग अर्थात सल्लेखना की स्थिति। तिर्यंचों में भी आत्म-जागरूकता संभव है, जिसके होने पर वे भी व्रत, संयम धारण-पालन करते है। जीवों की देह रुचि , पाप रुचि, भोग रुचि होती है अपितु धर्म, व्रत, संयम, नियम की रुचि नहीं सो उनकी प्रगति नहीं अपितु दुर्गति ही होती है। Like Cricket जीवन के खेल का मजा नियमों का पालनकर खेलने से है। दुर्गुण, दुर्बलता, दुःखों और दोषों को नष्ट, खत्म, दूर करने के लिये नियम आवश्यक है। For example संकल्प हिंसा त्याग नियम से अंदर के आवेग, आवेश शांत हो जाते है बच्चे या किसी को भी चांटा मारना भी संकल्पी हिंसा है यह नहीं होगी। व्रत: प्रतिज्ञा पूर्वक गलत, अयोग्य, अहितकर का, विषयों का, दुर्गुण, दोषों आदि का त्याग। त्याग के बाद निष्ठा पूर्वक व्रत पालन। बिना व्रतों के जीवन उद्धार संभव नहीं। प्रतिज्ञापूर्वक पाप के परित्याग का नाम व्रत है। छोटे, छोटे नियम, व्रत लेकर आगे बढते रहो। जो अणुव्रत या महाव्रत अंगीकार करनेवालों की नियम से देवगति ही होती है। जिनके व्रत धारण करने के भाव नहीं होते उनकी दुर्गति निश्चित है। पाप से विरति और धर्म में, व्रतों में रति। 🙏🏻 णमो लोए सव्वसाहूणं। 🙏🏻 🙏🏻 Helpful! ... Thank U! So Very Much for Sharing!🙏🏻 ~~~ Jai Jinendra n Uttam Kshama! ~~~ Jai Bharat. (2021 May 23 Sun)
Thank you thankyou thankyou global prayers bless all Happy all beautiful souls journey wise wisdoms souls from Kenya wise words teaching world children thankyou thankyou thankyou hidden secrets deeper outside world controls temple is you shining lights be humanity be human
श्री गुरु जी के श्री चरणों में प्रणाम करता हूं
Maharaj shree ke charno mein koti koti pranam.🌹🌹🙏🙏
Namostu Gurudev namostu gurudev namostu Gurudev 🙏🙏🙏
Namostu namostu namostu acharya bhagwan
आप सबसे महान है,,,
Namostu gurdev ji ..
जय गुरुदेव जी 🎊
जीवन का मूल्यवान तत्व: स्वकीय व्रत रति (लगाव, रुचि)।
व्रती, विरति, आरती, प्रगति।
धर्मात्मा की मूल्यवान निधि उसके व्रत, संकल्प ही होते है सो उनके प्रति उसको गाढ़ प्रगाढ रति याने लगाव होता है। अन्य जीवों की पाप में रति, खान-पान में रति , विषयों में, भोगों में आदि भिन्न प्रकार की रति होती है। धर्म, त्याग, संयम, व्रत से बहुतों की अरति होती है।
पाप काम में जैसे watching movie, picnic, hoteling, shopping etc में अपनेआप रति होती है अपितु धर्म के लिये जैसे doing Pujan, Swadyay, Tap etc में रति जगानी पडती है।
पाप में रति दुर्गति है और पाप से विरति कल्याण है। पाप से रति से अरति नहीं होती विरति होती है। धर्म से अरति नहीं अपितु रति।
विरति अर्थात त्याग। पाप से अरति नहीं होती, विरति की जाती है।
पाप से विरति और धर्म से रति से होती है प्रगति। धर्म से अरति भी दुर्गति का कारण है।
स्वकीय व्रत रति: रूचि पूर्वक व्रत निभाना। व्रत जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि, निधि है उनका आदर, उत्साह, जागृतता, दृढता से पालन करना।
अनेकों जीवन और इस जीवन का बहुतांश काल भी पाप में ही व्यर्थ हुआ अब कुछ पुण्य से और गुरु कृपा से कुछ व्रत मीले है जो इस और भविष्य के भव सुधार सकते है, कल्याणकारी है उनका मुझे हमेशा उत्साह और ततपरता से पालन करना है।
छोटे से छोटा व्रत अच्छे से निभाओ। व्रत लेने के लिये व्रत मत लो निभाने के लिये व्रत लो।
आ. समन्तभद्र स्वामी जी ने व्रत की रति के उदाहरण में यमपाल चांडाल (मातंक) का कथन-वर्णन किया है। जिसने चतुर्दशी के दिन हिंसा नहीं करने के छोटेसे अहिंसा व्रत के रतिपूर्वक पालन से पूज्यता को प्राप्त किया।
निष्ठा पूर्वक लिया और निभाया छोटासा नियम भी अतिशय फलदायी होता है और निष्ठा के अभाव में निभाए व्रत, नियम अर्थपूर्ण, कल्याणकारी नहीं होते। कोई व्रत, नियम छोटा, बडा नहीं होता। व्रत के प्रति निष्ठा छोटी, बडी होती है।
प्राण जाय पर प्रण न जाय। NO Compromise with व्रत, नियम, संयम पालन।
सियार का मुनिराज की प्रवचन सभा में रात्रि-भोजन त्याग व्रत और व्रत का निष्ठा से पालन कऱ प्रीतिंकर देव बनने की कथा।
@24: तिर्यंच भी सल्लेखना कर सकते है, करते है। तीर्थंकर पत्रिका: हाथी की 27 दिनों की सल्लेखना। तिर्यंचों के लिये प्रासुक परित्याग अर्थात सल्लेखना की स्थिति।
तिर्यंचों में भी आत्म-जागरूकता संभव है, जिसके होने पर वे भी व्रत, संयम धारण-पालन करते है।
जीवों की देह रुचि , पाप रुचि, भोग रुचि होती है अपितु धर्म, व्रत, संयम, नियम की रुचि नहीं सो उनकी प्रगति नहीं अपितु दुर्गति ही होती है।
Like Cricket जीवन के खेल का मजा नियमों का पालनकर खेलने से है।
दुर्गुण, दुर्बलता, दुःखों और दोषों को नष्ट, खत्म, दूर करने के लिये नियम आवश्यक है। For example संकल्प हिंसा त्याग नियम से अंदर के आवेग, आवेश शांत हो जाते है बच्चे या किसी को भी चांटा मारना भी संकल्पी हिंसा है यह नहीं होगी।
व्रत: प्रतिज्ञा पूर्वक गलत, अयोग्य, अहितकर का, विषयों का, दुर्गुण, दोषों आदि का त्याग। त्याग के बाद निष्ठा पूर्वक व्रत पालन।
बिना व्रतों के जीवन उद्धार संभव नहीं। प्रतिज्ञापूर्वक पाप के परित्याग का नाम व्रत है।
छोटे, छोटे नियम, व्रत लेकर आगे बढते रहो।
जो अणुव्रत या महाव्रत अंगीकार करनेवालों की नियम से देवगति ही होती है। जिनके व्रत धारण करने के भाव नहीं होते उनकी दुर्गति निश्चित है।
पाप से विरति और धर्म में, व्रतों में रति।
🙏🏻 णमो लोए सव्वसाहूणं। 🙏🏻
🙏🏻 Helpful! ... Thank U! So Very Much for Sharing!🙏🏻
~~~ Jai Jinendra n Uttam Kshama!
~~~ Jai Bharat.
(2021 May 23 Sun)
Namastu Namastu Namastu 🙏🙏🙏 kaya Mai atma ke sakshi me angikar le sakta hoon❤❤❤❤
मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी के चरणों में कोटि कोटि नमन 🙏😅🌹🙏
Namste gurudev
Namosthu maharaj ji
Jai jai
नमो स्ते गुरुदेव
गुरु जी आप का प्रवचन सुनकर जीवन धन्य हो गया
गुरु चरणों में बारंबार नमोस्तु
🙏🙏🙏
Jai Gurudev Ji Maharaj ki jai
Jai jai gurudev
Hi by
@@shivangijain4660 i
Jinvani,jínshashan,jjndharn,jinagna,,judev,,vitragdev-guru-shashtra kí jayhó jay ho jayhó🙏🙏🙏🙏🙏🙏
परम पूज्य महाराज श्री के पावन चरणों में सादर पंचासन प्रणाम 🙏
👍🙏🙏जय हो
Jay jiten Maharaj ji
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Thank you VERY..........MUCH for beautiful pravachan. We are proud of you
Thank you thankyou thankyou global prayers bless all Happy all beautiful souls journey wise wisdoms souls from Kenya wise words teaching world children thankyou thankyou thankyou hidden secrets deeper outside world controls temple is you shining lights be humanity be human
Namostu gurudev.
Namostu Gurudev
Namostu gurudev ji
Dhanya Dhanya
. Bhagwan. Mahaveer. Ka. Samosharan to. Nahi. Dekha. Lakin. Aaj. Dekh. Liya
Om Arham om shanti
🙏
Hayato
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Ad
Namostu namostu namostu Gurudev 🙏🙏🙏
Namostu namostu namostu gurudev
Jai guru dev
Jain muni jo ki jay
Namostu Maharaj ji 🙏
Namostu gurudev ji 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Om Arham om shanti
Namostu Namostu gurudev
Namostu gurudev
Namostu gurudev🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌹🌹🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹🌹
🙏🙏🙏🙏🙏
Namostu gurudev
🙏🙏🙏🙏
Namostu Gurudevji🙏🙏🙏
Namostu gurudev ji 🙏🙏🙏
Namostu gurudev
🙏🙏🙏
Namostu gurudev 🙏🙏
Namostu gurudev
🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
Namostu Gurudev
🙏🙏🙏
🙏🙏