बहुत सुन्दर साहबजी. कल ही मैंने राफ्ता राफ्ता वाला केहरवा सुना. मुझे बहुत पसन्द आया. आपका तबला बजानेका एक अलग, मॅच्युअर और मुझे जैसे बुजूर्गोंके लिये बहुत आसानिसे गायनमें सहायक होनेवाला तरीका है. अब हमारे उम्र के बुजुर्गोंको उॅंची स्केलमें गानेमे तकलिफ होती है. ईसलिये प्रार्थना है की, सी स्केल यानेके सफेद एक में हमारे लिये कुछ लूप्स तैयार करें. जैसे के, दादरा, केहरवा, रूपक, धुमाली (भजनी अलग है) या अद्धा-त्रिताल इ. धन्यवाद (श्रीपाद कुलकर्णी, कराड, महाराष्ट्र)
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़ तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा और तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़ हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़ वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़ अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है देखना मुझ को जो बरगश्ता तो सौ सौ नाज़ से जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तिरा और मिरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझे आज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
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Bahut badhiya kwality ke loops hai sir
Apse request hai sir iske
Dusre variation bhi banaiye....
Navi g bohat acche loop banaye hai aapne Headphone se quality pata chalti hai shukriya janab
बहुत सुन्दर साहबजी. कल ही मैंने राफ्ता राफ्ता वाला केहरवा सुना. मुझे बहुत पसन्द आया. आपका तबला बजानेका एक अलग, मॅच्युअर और मुझे जैसे बुजूर्गोंके लिये बहुत आसानिसे गायनमें सहायक होनेवाला तरीका है. अब हमारे उम्र के बुजुर्गोंको उॅंची स्केलमें गानेमे तकलिफ होती है. ईसलिये प्रार्थना है की, सी स्केल यानेके सफेद एक में हमारे लिये कुछ लूप्स तैयार करें. जैसे के, दादरा, केहरवा, रूपक, धुमाली (भजनी अलग है) या अद्धा-त्रिताल इ. धन्यवाद (श्रीपाद कुलकर्णी, कराड, महाराष्ट्र)
Definitely Sir
Maine Already C Scale Pe Banaya Hua Hai..Please Check My Playlist
th-cam.com/video/omrbsDxV2Jw/w-d-xo.html
Or v ghazalo ke loops upload krte rhiye sir thank You sir Once again
Wah wah
क्या बात 👌
Thank you so much sir for giving these Ghazal loops
So nice to amature singers also to sing at home
Thanks nice
thank you sir very much
Welcome Ji
जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा वो भारत देश है मेरा... देशभक्ति गीत पर ढोलक लूप
👌👌👌👌❤❤❤❤👌👌👌
❤❤❤
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का
और तिरा ग़ुर्फ़े से वो आँखें लड़ाना याद है
तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिरा
और तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
खींच लेना वो मिरा पर्दे का कोना दफ़अ'तन
और दुपट्टे से तिरा वो मुँह छुपाना याद है
जान कर सोता तुझे वो क़स्द-ए-पा-बोसी मिरा
और तिरा ठुकरा के सर वो मुस्कुराना याद है
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
जब सिवा मेरे तुम्हारा कोई दीवाना न था
सच कहो कुछ तुम को भी वो कार-ख़ाना याद है
ग़ैर की नज़रों से बच कर सब की मर्ज़ी के ख़िलाफ़
वो तिरा चोरी-छुपे रातों को आना याद है
आ गया गर वस्ल की शब भी कहीं ज़िक्र-ए-फ़िराक़
वो तिरा रो रो के मुझ को भी रुलाना याद है
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़
अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है
मीठी मीठी छेड़ कर बातें निराली प्यार की
ज़िक्र दुश्मन का वो बातों में उड़ाना याद है
देखना मुझ को जो बरगश्ता तो सौ सौ नाज़ से
जब मना लेना तो फिर ख़ुद रूठ जाना याद है
चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह
मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है
शौक़ में मेहंदी के वो बे-दस्त-ओ-पा होना तिरा
और मिरा वो छेड़ना वो गुदगुदाना याद है
बावजूद-ए-इद्दिया-ए-इत्तिक़ा 'हसरत' मुझे
आज तक अहद-ए-हवस का वो फ़साना याद है
Isko agar video men use kare. To copyright aaega?
Thank you for this 🙏 Can you please allow me to use this for my cover with due credits .. 🙏
Go ahead!Bhai
Thanks ! Is this track available in D scale?
Rupak taal h kyaaa
Haa
🙏🙂
Sarsawti vandana ka loop banaeye
Can someone tell me the bhol
Possibly rupak
Somebody tell me the bols