वाणी के प्रति दृढ़ ईमान By Ashok Raaj | Jagni Yatra 2022 | SPJIN Ashok Raaj
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- เผยแพร่เมื่อ 5 ก.ย. 2024
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वाणी के प्रति दृढ़ ईमान By Ashok Raaj | Jagni Yatra 2022 | SPJIN Ashok Raaj
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श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ के मुख्य उद्देश्य -
ज्ञान, शिक्षा, उच्च आदर्श, पावन चरित्र व भारतीय संस्कृति का समाज में प्रचार करना तथा वैज्ञानिक सिद्धांतो पर आधारित आध्यात्मिक मूल्य द्वारा मानव को महामानव बनाना और श्री प्राणनाथ जी की ब्रम्हवाणी के द्वारा समाज में फ़ैल रही अंध-परम्पराओं को समाप्त करके सबको एक अक्षरातीत की पहचान कराना।
अति महत्वपूर्ण नोट :-
यह पंचभौतिक शरीर हमेशा रहने वाला नहीं है।
प्रियतम परब्रह्म को पाने के लिये यह सुनहरा अवसर है।
अतः बिना समय गवाएं उस अक्षरातीत पाने के लिये प्रयास करना चाहिये।
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1. परिकरमा + सागर + सिनगार + खिलवत टीका
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2. NIJANAND YOG (निजानन्द योग) - Collection of 60 Invaluable FAQs
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आत्मिक दृष्टि से परमधाम, युगल स्वरुप तथा अपनी परआत्म को देखना ही चितवनि (ध्यान) है। चितवनि के बिना आत्म जागृति संभव नहीं है। संसार की अब तक की प्रचलित सभी ध्यान पद्धतियाँ निराकार-बेहद से आगे नहीं जाती हैं। तारतम ज्ञान के प्रकाश में मात्र निजानन्द योग ही परमधाम ले जा सकता है।
प्रियतम अक्षरातीत की चितवनि में इतना आनन्द है कि उसके सामने संसार के सभी सुख मिलकर भी कहीं नहीं ठहरते। यही कारण है कि ध्यान का आनन्द पाने के लिये ही राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, भर्तृहरि आदि ने अपने राज-पाट को छोड़ दिया और वनों में ध्यानमग्न रहे।
बेहद मण्डल - इस प्राकृतिक जगत् से परे वह बेहद मण्डल है, जिसे योगमाया का ब्रह्माण्ड कहते हैं। चारों वेदों में इसे चतुष्पाद विभूति के रूप में वर्णित किया गया है। इस मण्डल में अक्षर ब्रह्म के चारों अन्तःकरण (मन, चित, बुद्धि तथा अहंकार) की लीला होती है, जिन्हें क्रमशः अव्याकृत, सबलिक, केवल और सत्स्वरूप कहते हैं।
परमधाम - बेहद मण्डल से परे वह स्वलीला अद्वैत परमधाम है, जिसके कण-कण में सच्चिदानन्द परब्रह्म की लीला होती है। यह अनादि है, अनन्त है और सच्चिदानन्दमय है। जिस प्रकार सागर अपनी लहरों से तथा चन्द्रमा अपनी किरणों लीला करता है, उसी प्रकार अक्षरातीत भी अपनी अभिन्न स्वरूपा अंगरूपा आत्माओं के साथ अद्वैत लीला करते हैं, जो अनादि है और इसमें कभी अलगाव नहीं होता है।
वेदों ने इसी परमधाम के सम्बन्ध में “त्रिपादुर्ध्व उदैत्पुरुष” अर्थात् परब्रह्म योगमाया से परे है, कहकर मौन धारण कर लिया। मुण्डकोपनिषद् ने भी 'दिव्य ब्रह्मपुर' शब्द का प्रयोग तो किया, किन्तु उसे बेहद मण्डल (केवल ब्रह्म) में मान लिया। कुरआन में मेयराज के वर्णन के द्वारा संकेत किये जाने पर भी मुस्लिम जगत अभी इसकी वास्तविकता से बहुत दूर है।
श्री प्राणनाथजी की अलौकिक तारतम वाणी में इस परमधाम की शोभा, लीला एवं आनन्द का विशद रूप में वर्णन किया गया है, जिसका सुख किसी सौभाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
PremPranamji
Pranam ji
Koti koti prem parnam ji 🙏🌹🙏💐🙏❤️🙏🙏
Pranam 🙏
Prem pranam ji 🙏🌹🙏
Pranamji Ashokji.
Parnam ji 🌹 🙏 Ashok saky ji 🌹 🙏
Prem parnam ji🙏🙏🙏🙏
प्रणाम जी
प्रणाम छ गुरुजी ब्याबहारिक प्रवचनकाे लागि पुनः काेटानकाेट प्रणाम। 2:27
Aacharya Ashok bhaiya ji ke hraday singhasan me virajmaan Dhamdhani ke charno me koti sperm pranam ji 🙏🙏🌹🌹🙏❤🙏🌹🙏
Pranam ji 🙏🌹🙏🌻🌻🙏
🙏 Prem pranam ji 🙏
Pranam ji baccha
Ashok jeesprem pranam
Prnm ji
सप्रेम प्रणाम जी।
प्रेम प्रणाम जी ❤️❤️🙏
जत्ती सुनेनि सुनी रहु जस्तो चर्चा 🙏🙏🌺
Perm pranamji
Prem pranam ji aacharya Ji.🌹💐🙏🏻🙏🏻💐🌹
❤ Prem Pranam ❤
Parnam ji
પ્રેમ પ્રણામ
🙏
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પ્રેમ પ્રણામ જી 🙏🙏🌷
Prem parnam 🙏
🙏🌹 PARAM PUJYA SAD GURU SHREE SWAMIJI KE CHARNO ME KOTI KOTI PRANAMJI 🌹🙏
Pranamji🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹
3:58 😊
A
Pranamji ❤️✨
Pranam ji
प्रणाम जी
Pranam ji🙏🙏
Prem pranam 🙏💐💕
Prnam ji 🙏🙏
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Parnam ji
Perm parnam ji🌹🌹🙏🏻
Pranam ji
Pranam ji
Pranamji 🙏
Pranamji🙏🙏
Pranam ji 🙏