आपने नामवर जी पर अच्छी चर्चा की .खुलकर बात की है. कई जगह इन्हें देखा सुना और चर्चा भी की है. बहुत रोचक और नाटकीय ढंग से व्याख्यान देते थे.यह भी एक अनुभव होता था.उनकी विशिष्ट विचारधारा थी. उसी आधार को लेकर उनकी आलोचना-दृष्टि भी गतिशील होती थी.मेरे पास उनके सम्पादन में निकलने वाली 'आलोचना 'की वह प्रति थी जिसमें 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ ' की पहली बैठक की अध्यक्षता मुंशी प्रेमचंद ने की थी और कहा था की अब साहित्यकारों को अपने दायित्व का निर्वाह करके समाज के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. उसमें उनके फटे जूतों की भी चर्चा थी. 'दिनमान ' में ठाकुर प्रसाद सिंह ने लिखा था कि फटे जूतों में दिखती अंगूठे और उँगलियाँ मणियों की तरह दमक रही थीं.नामवरजी ने यह वर्णन जुटाया था .कुर्सी और बेंच भी साबुत नहीं थे.बड़ी सादगी से यह महान घटना सम्पन्न हुई थी.यह प्रति विद्यार्थियों ने लौटाकर नहीं दी. आपने उनपर सार्थक वक्तव्य दिया. हार्दिक बधाई .👍🙏🏻 प्रो. मीरा गौतम पंजाब विश्वविद्यालय
नामवर से सहमत भी हुआ जा सकता है और असहमत भी लेकिन को उनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नामवर जी को समझने के लिए आपका प्रस्तुति सुनने योग्य है..💐🙏 शुभकामनाएँ सर
सटीक व सार्थक विश्लेषण, नामवर सिंह हिंदी आलोचना के शिखर पुरूष हैं जिन्होंने आलोचना को नयी ऊँचाई दी,आलोचना जैसे कठिन कार्य को सरल व आकर्षक बनाने का कार्य नामवर सिंह ने किया, उनका जाना हिंदी साहित्य से एक युग का जाना है
Bahut shaandaar
Dr. Giri is great scholar of our times. Enlightenment huaa sunkar.
Rajiv giri IS great scholar
great sir ji
बहुत बढ़िया
Great
Great professor
bahut sunder
बहुत गम्भीर विचार
Bahut sundar
Ati utam
Very nice
Kafi sundar
आपने नामवर जी पर अच्छी चर्चा की .खुलकर बात की है. कई जगह इन्हें देखा सुना और चर्चा भी की है. बहुत रोचक और नाटकीय ढंग से व्याख्यान देते थे.यह भी एक अनुभव होता था.उनकी विशिष्ट विचारधारा थी. उसी आधार को लेकर उनकी आलोचना-दृष्टि भी गतिशील होती थी.मेरे पास उनके सम्पादन में निकलने वाली 'आलोचना 'की वह प्रति थी जिसमें 'अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ ' की पहली बैठक की अध्यक्षता मुंशी प्रेमचंद ने की थी और कहा था की अब साहित्यकारों को अपने दायित्व का निर्वाह करके समाज के प्रति जवाबदेह होना चाहिए. उसमें उनके फटे जूतों की भी चर्चा थी. 'दिनमान ' में ठाकुर प्रसाद सिंह ने लिखा था कि फटे जूतों में दिखती अंगूठे और उँगलियाँ मणियों की तरह दमक रही थीं.नामवरजी ने यह वर्णन जुटाया था .कुर्सी और बेंच भी साबुत नहीं थे.बड़ी सादगी से यह महान घटना सम्पन्न हुई थी.यह प्रति विद्यार्थियों ने लौटाकर नहीं दी. आपने उनपर सार्थक वक्तव्य दिया. हार्दिक बधाई .👍🙏🏻
प्रो. मीरा गौतम
पंजाब विश्वविद्यालय
सुंदर
Bahut achhi byakhya
Namvarsinh ki alochana drishty ka itna sundar vishleshan anyatra kahin padne ko nahin mila.dhanyavad
धन्यवाद गुरुजी पहली बार किसी लेक्चर को आंखें बंद करके सुना सुनकर अच्छा लगा बहुत-बहुत धन्यवाद
sundar lecture. Namwar Singh Ko samajhane me sahayak......
Sundar
Very nice lecture bhaiya.........
सारगर्भित और विचारोतेजक
Namwar Singh ji pr Apne kafi achha samjhaya hai
sundar bhashan
Very thoughtful
नामवर से सहमत भी हुआ जा सकता है और असहमत भी लेकिन को उनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नामवर जी को समझने के लिए आपका प्रस्तुति सुनने योग्य है..💐🙏 शुभकामनाएँ सर
Thoughtful
नामवर सिंह जैसे जटिल आलोचक की सुचिंतित व्याख्या के लिए बधाइयाँ
सटीक व सार्थक विश्लेषण,
नामवर सिंह हिंदी आलोचना के शिखर पुरूष हैं जिन्होंने आलोचना को नयी ऊँचाई दी,आलोचना जैसे कठिन कार्य को सरल व आकर्षक बनाने का कार्य नामवर सिंह ने किया, उनका जाना हिंदी साहित्य से एक युग का जाना है
Nice lecture bhaiya.........
very very marvellous
very nice interpretation
सुचिंतित एवं विचारोतेजक
संक्षेप में बीज विचार की अभिव्यक्ति का नमूना है यह व्याख्यान।
Very Good ...... Keep it up
Good to hear this lecture
Yes dear
very nice lecture
Nice
#very nice...keep it up #
Ya
very thoughtful lecture
Good
Aawaj nhi aa rhi h...
Professor Rajiv Sir
Thanks for this lecture
Now my concept is crystal clear...
Key thought of Namwar Singh....
great sir ji
Very nice
Sundar bhashan
very good lecture
Very thoughtful lecture
great sir ji
Very nice
Very nice lecture
very good lecture
Very nice lecture
Very good lecture
Very good lecture
Very nice lecture