संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 106 से 110, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 มิ.ย. 2024
  • जय श्रीराम 🙏 मैं राहुल पाण्डेय आप लोगों के बीच रामचरितमानस की चौपाइयों का गान करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूं और इस आशा से कि ये चौपाइयां जो महामंत्र स्वरूप हैं और जिनका गान बाबा विश्वनाथ भी करते हैं "महामंत्र सोई जपत महेसू" इनकी गूंज विश्व के कोने-कोने में सुनाई दे जिससे नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास हो और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
    मैं सोशल मीडिया के माध्यम से रामचरितमानस को जन-जन तक पहुंचाना चाहता हूं। यदि मेरा यह प्रयास सार्थक लगता है तो आशीर्वाद दीजीए । आप लोगों से करबद्ध निवेदन है कि इन चौपाइयों को यदि संभव हो सके तो साथ में बैठकर रामचरितमानस को लेकर मेरे साथ गान करें। यदि गान नहीं कर पा रहे तो इस वीडियो के माध्यम से इन चौपाइयों को बजाएं और अपने घर तथा आस पास के वातावरण में गुंजायमान होने दें। और अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें जिससे सभी का कल्याण हो।
    गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है "कहहि सुनहि अनुमोदन करहीं। ते गोपद ईव भव निधि तरहीं।।"
    जय श्रीराम🙏
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस बालकाण्ड दोहा 106 से 110, ramcharitmanas। पं. राहुल पाण्डेय
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    हरि हर बिमुख धर्म रति नाहीं। ते नर तहँ सपनेहुँ नहिं जाहीं॥
    तेहि गिरि पर बट बिटप बिसाला। नित नूतन सुंदर सब काला॥
    त्रिबिध समीर सुसीतलि छाया। सिव बिश्राम बिटप श्रुति गाया॥
    एक बार तेहि तर प्रभु गयऊ। तरु बिलोकि उर अति सुखु भयऊ॥
    निज कर डासि नागरिपु छाला। बैठै सहजहिं संभु कृपाला॥
    कुंद इंदु दर गौर सरीरा। भुज प्रलंब परिधन मुनिचीरा॥
    तरुन अरुन अंबुज सम चरना। नख दुति भगत हृदय तम हरना॥
    भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी। आननु सरद चंद छबि हारी॥
    दोहा- जटा मुकुट सुरसरित सिर लोचन नलिन बिसाल।
    नीलकंठ लावन्यनिधि सोह बालबिधु भाल॥१०६॥
    बैठे सोह कामरिपु कैसें। धरें सरीरु सांतरसु जैसें॥
    पारबती भल अवसरु जानी। गई संभु पहिं मातु भवानी॥
    जानि प्रिया आदरु अति कीन्हा। बाम भाग आसनु हर दीन्हा॥
    बैठीं सिव समीप हरषाई। पूरुब जन्म कथा चित आई॥
    पति हियँ हेतु अधिक अनुमानी। बिहसि उमा बोलीं प्रिय बानी॥
    कथा जो सकल लोक हितकारी। सोइ पूछन चह सैलकुमारी॥
    बिस्वनाथ मम नाथ पुरारी। त्रिभुवन महिमा बिदित तुम्हारी॥
    चर अरु अचर नाग नर देवा। सकल करहिं पद पंकज सेवा॥
    दोहा- प्रभु समरथ सर्बग्य सिव सकल कला गुन धाम॥
    जोग ग्यान बैराग्य निधि प्रनत कलपतरु नाम॥१०७॥
    जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी॥
    तौं प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना॥
    जासु भवनु सुरतरु तर होई। सहि कि दरिद्र जनित दुखु सोई॥
    ससिभूषन अस हृदयँ बिचारी। हरहु नाथ मम मति भ्रम भारी॥
    प्रभु जे मुनि परमारथबादी। कहहिं राम कहुँ ब्रह्म अनादी॥
    सेस सारदा बेद पुराना। सकल करहिं रघुपति गुन गाना॥
    तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥
    रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई॥
    दोहा- जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।
    देख चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥१०८॥
    जौं अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कबहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ॥
    अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू॥
    मै बन दीखि राम प्रभुताई। अति भय बिकल न तुम्हहि सुनाई॥
    तदपि मलिन मन बोधु न आवा। सो फलु भली भाँति हम पावा॥
    अजहूँ कछु संसउ मन मोरे। करहु कृपा बिनवउँ कर जोरें॥
    प्रभु तब मोहि बहु भाँति प्रबोधा। नाथ सो समुझि करहु जनि क्रोधा॥
    तब कर अस बिमोह अब नाहीं। रामकथा पर रुचि मन माहीं॥
    कहहु पुनीत राम गुन गाथा। भुजगराज भूषन सुरनाथा॥
    दोहा- बंदउ पद धरि धरनि सिरु बिनय करउँ कर जोरि।
    बरनहु रघुबर बिसद जसु श्रुति सिद्धांत निचोरि॥१०९॥
    जदपि जोषिता नहिं अधिकारी। दासी मन क्रम बचन तुम्हारी॥
    गूढ़उ तत्व न साधु दुरावहिं। आरत अधिकारी जहँ पावहिं॥
    अति आरति पूछउँ सुरराया। रघुपति कथा कहहु करि दाया॥
    प्रथम सो कारन कहहु बिचारी। निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी॥
    पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा। बालचरित पुनि कहहु उदारा॥
    कहहु जथा जानकी बिबाहीं। राज तजा सो दूषन काहीं॥
    बन बसि कीन्हे चरित अपारा। कहहु नाथ जिमि रावन मारा॥
    राज बैठि कीन्हीं बहु लीला। सकल कहहु संकर सुखलीला॥
    दोहा- बहुरि कहहु करुनायतन कीन्ह जो अचरज राम।
    प्रजा सहित रघुबंसमनि किमि गवने निज धाम॥११०॥
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