Yeh composition is one of the hardest in ghazal segment and I swear to god I have listen to this ghazal in many voice but only two legends ustaad mehdi hassan and jagjit ji are the ones who did justice to this ghazal ❤
जगजीत जी ने इस ग़ज़ल को सही मतले के साथ बहुत बार गाया है सही मतले के साथ उन versions को सुन लो मियाँ ये version प्राइवेट महफ़िल में live गाया है Singers को हज़ारों ग़ज़ल मुँह ज़बानी याद नहीं होती.. कई बार असावधानी से कुछ इधर उधर हो जाता है इसलिए गायकी को enjoy कीजिए जनाब -ए -मोहतरम
Original Ghazal आए कुछ अब्र कुछ शराब आए इस के बा'द आए जो अज़ाब आए बाम-ए-मीना से माहताब उतरे दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो सामने फिर वो बे-नक़ाब आए उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब आज तुम याद बे-हिसाब आए न गई तेरे ग़म की सरदारी दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी गोया हर सम्त से जवाब आए 'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए Nuskha Hai Wafa (Pg. 173)
Yeh composition is one of the hardest in ghazal segment and I swear to god I have listen to this ghazal in many voice but only two legends ustaad mehdi hassan and jagjit ji are the ones who did justice to this ghazal ❤
Matla ghalt kar diya jagjit sahib ne.
Aaye kuch abr kuch sharab aaye
Iss ke ba'd aaye jo azaab aaye
Yahan the maestro has erred as the matla is “aye kuchh abr kucch sharab aye uske baad aaye jo azaab aye”
He has sung that as well in other version.
जगजीत जी ने इस ग़ज़ल को सही मतले के साथ बहुत बार गाया है
सही मतले के साथ उन versions को सुन लो मियाँ
ये version प्राइवेट महफ़िल में live गाया है
Singers को हज़ारों ग़ज़ल मुँह ज़बानी याद नहीं होती.. कई बार असावधानी से कुछ इधर उधर हो जाता है
इसलिए गायकी को enjoy कीजिए जनाब -ए -मोहतरम
Subhanallah❤
Thank you so much Raja ji for this gem
Wonderful 👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽👏🏽
Thank you
Thanks Raja Bhai ye recording bahut bhahut buri conditions me thi . 🤝❤
🙏🙏🙏🙏
❤❤❤❤
Original Ghazal
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए
बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बे-नक़ाब आए
उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
Nuskha Hai Wafa (Pg. 173)
tar-ba-tar???!! it is sar-ba-sar
Umdaa 👌🏼
❤ nice
💎
مطلع غلَط گایا۔۔
First verse is wrong. Regards. Khalid Asghar.
matla hi galat ho gaya