निराला और नायाब कार्यक्रम देखा।कितने कलाकारों की प्रज्ञा प्रतिभा और परिश्रम की देन है यह।किशोर कुमार को दी गयी यह एकल प्रस्तुति साहित्य जगत की ओर से संभव हुई।बांसुरी यहां शब्द बन गयी और शब्द बांसुरी।इस कला का फिल्मीकरण,ऑडियो रिकॉर्डिंग और छविकरण अत्युत्तम है ।सुदीप सोहनी यों ही नही विख्यात हुए हैं।अनिरुद्ध उमट का यथार्थ से फंतासी और फंतासी से यथार्थ में सफर करवाना प्रेक्षक को हॉल से उठा ले जाना है।किसे पता था की खंडवा कस्बे के एक कलाकार को बीकानेर की गलियों में इतना अनुराग मिलेगा।अद्भुत कला यात्रा है यह
निराला और नायाब कार्यक्रम देखा।कितने कलाकारों की प्रज्ञा प्रतिभा और परिश्रम की देन है यह।किशोर कुमार को दी गयी यह एकल प्रस्तुति साहित्य जगत की ओर से संभव हुई।बांसुरी यहां शब्द बन गयी और शब्द बांसुरी।इस कला का फिल्मीकरण,ऑडियो रिकॉर्डिंग और छविकरण अत्युत्तम है ।सुदीप सोहनी यों ही नही विख्यात हुए हैं।अनिरुद्ध उमट का यथार्थ से फंतासी और फंतासी से यथार्थ में सफर करवाना प्रेक्षक को हॉल से उठा ले जाना है।किसे पता था की खंडवा कस्बे के एक कलाकार को बीकानेर की गलियों में इतना अनुराग मिलेगा।अद्भुत कला यात्रा है यह
@@mamta-kalia प्रणाम मैम, आभार. आपका स्नेह आशीर्वाद के रूप में सहेज रहे हम सब.