श्री चैतन्य चरितामृत भाग#71🧡शचीमाता को संन्यासी-पुत्र के दर्शन। Shri Chetanya mahaprabhu.

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  • เผยแพร่เมื่อ 24 พ.ย. 2024

ความคิดเห็น • 33

  • @yashchauhan296
    @yashchauhan296 2 ปีที่แล้ว +1

    Hare Krishna hare Krishna Krishna Krishna hare hare hare ram hare ram ram ram hare hare....

  • @purushotammadaan6830
    @purushotammadaan6830 11 หลายเดือนก่อน +1

    Jaisiyaramradhekrishna

  • @sharathisharma4071
    @sharathisharma4071 2 ปีที่แล้ว +1

    Jay Shri.Radheyshyamji.

  • @ankushkale9957
    @ankushkale9957 2 ปีที่แล้ว

    Jay Shree Radhakrushna Sitaram

  • @kajalgorai5658
    @kajalgorai5658 2 ปีที่แล้ว +2

    🙏🙏🙏🙏🙏👌

  • @dipanshuvermaa5618
    @dipanshuvermaa5618 2 ปีที่แล้ว

    Hry Krishna hry Krishna Krishna Krishna hry hry hry ram hry ram ram ram hry hry 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌷🌷

  • @rekhatilokani5458
    @rekhatilokani5458 2 ปีที่แล้ว +3

    Achha Prasang 🙏

  • @jaishreeradhekrishnajaishr8636
    @jaishreeradhekrishnajaishr8636 2 ปีที่แล้ว

    Jai shree Radhe Radhe

  • @SatpalSingh-lk8ol
    @SatpalSingh-lk8ol 2 ปีที่แล้ว +1

    जय श्री राधे कृष्णा जय चेतन्य महा प्रभु जी कि जय श्री राधे कृष्णा

  • @academy2255
    @academy2255 2 ปีที่แล้ว

    🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹

  • @chandarkumar591
    @chandarkumar591 2 ปีที่แล้ว +2

    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
    🙏🙏🙏🙏

  • @neelamsharma1228
    @neelamsharma1228 2 ปีที่แล้ว +1

    Radhe Radhe Jai Shri Radhe 🌷 🙏
    Jai Shri Radha Krishan 🌷 🙏

  • @mihir7535
    @mihir7535 2 ปีที่แล้ว +1

    जय श्रीकृष्ण💟🙏🙏🙏

  • @xd5ayonavachattopadhyay677
    @xd5ayonavachattopadhyay677 2 ปีที่แล้ว +1

    Hare Krishna

  • @rekhatilokani5458
    @rekhatilokani5458 2 ปีที่แล้ว +3

    HARE Krishna hare Ram 🙏

  • @arghyadipganguly6627
    @arghyadipganguly6627 2 ปีที่แล้ว +3

    Wow..... Itna accha itna accha... Kya hi batauu... Maja aa gya... Hare krishna 🙏

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    Faith, more faith ! Faith in your possibilities, faith in the Power at work behind the veil . At every moment all the unforeseen , the unexpected , the unknown is before us and what happens to us depends upon mostly on the intensity and purity of our faith .
    Sri Aurobindo

  • @Ashok.kumar.135
    @Ashok.kumar.135 2 ปีที่แล้ว +2

    Jai jai shree radhe 🙏🙏🙏💐

  • @indumundra335
    @indumundra335 2 ปีที่แล้ว +1

    Bahut sundar. Ram Ram pranam 🙏🏼🙏🏼🙏🏼

  • @rekhaagrawal1365
    @rekhaagrawal1365 2 ปีที่แล้ว

    Radhe Radhe Swamiji 17,1,22

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    *. "श्रीकृष्ण और कुम्हार"
    एक बार की बात है कि यशोदा मैया प्रभु श्री कृष्ण के उलाहनों से तंग आ गयीं और छड़ी लेकर श्री कृष्ण की ओर दौड़ीं। जब प्रभु ने अपनी मैया को क्रोध में देखा तो वह अपना बचाव करने के लिए भागने लगे। भागते-भागते श्री कृष्ण एक कुम्हार के पास पहुँचे । कुम्हार तो अपने मिट्टी के घड़े बनाने में व्यस्त था। लेकिन जैसे ही कुम्हार ने श्री कृष्ण को देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। कुम्हार जानता था कि श्री कृष्ण साक्षात् परमेश्वर हैं। तब प्रभु ने कुम्हार से कहा कि 'कुम्हारजी, आज मेरी मैया मुझ पर बहुत क्रोधित हैं। मैया छड़ी लेकर मेरे पीछे आ रही हैं। भैया, मुझे कहीं छुपा लो।' तब कुम्हार ने श्री कृष्ण को एक बड़े से मटके के नीचे छिपा दिया। कुछ ही क्षणों में मैया यशोदा भी वहाँ आ गयीं और कुम्हार से पूछने लगीं- 'क्यूँ रे, कुम्हार ! तूने मेरे कन्हैया को कहीं देखा है, क्या ?' कुम्भार ने कह दिया- 'नहीं, मैया ! मैंने कन्हैया को नहीं देखा।' श्री कृष्ण ये सब बातें बड़े से घड़े के नीचे छुपकर सुन रहे थे। मैया तो वहाँ से चली गयीं। अब प्रभु श्री कृष्ण कुम्हार से कहते हैं- 'कुम्हारजी, यदि मैया चली गयी हो तो मुझे इस घड़े से बाहर निकालो।'
    कुम्भार बोला- 'ऐसे नहीं, प्रभु जी ! पहले मुझे चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।' भगवान मुस्कुराये और कहा- 'ठीक है, मैं तुम्हें चौरासी लाख योनियों से मुक्त करने का वचन देता हूँ। अब तो मुझे बाहर निकाल दो।' कुम्हार कहने लगा- 'मुझे अकेले नहीं, प्रभु जी ! मेरे परिवार के सभी लोगों को भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दोगे तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूँगा।' प्रभु जी कहते हैं- 'चलो ठीक है, उनको भी चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त होने का मैं वचन देता हूँ। अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।' अब कुम्हार कहता है- 'बस, प्रभु जी ! एक विनती और है। उसे भी पूरा करने का वचन दे दो तो मैं आपको घड़े से बाहर निकाल दूँगा।' भगवान बोले- 'वो भी बता दे, क्या कहना चाहते हो ?' कुम्भार कहने लगा- 'प्रभु जी ! जिस घड़े के नीचे आप छुपे हो, उसकी मिट्टी मेरे बैलों के ऊपर लाद के लायी गयी है। मेरे इन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त करने का वचन दो।' भगवान ने कुम्हार के प्रेम पर प्रसन्न होकर उन बैलों को भी चौरासी के बन्धन से मुक्त होने का वचन दिया।' प्रभु बोले- 'अब तो तुम्हारी सब इच्छा पूरी हो गयीं, अब तो मुझे घड़े से बाहर निकाल दो।' तब कुम्हार कहता है- 'अभी नहीं, भगवन ! बस, एक अन्तिम इच्छा और है। उसे भी पूरा कर दीजिये और वो ये है- जो भी प्राणी हम दोनों के बीच के इस संवाद को सुनेगा, उसे भी आप चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त करोगे। बस, यह वचन दे दो तो मैं आपको इस घड़े से बाहर निकाल दूँगा।' कुम्भार की प्रेम भरी बातों को सुन कर प्रभु श्री कृष्ण बहुत खुश हुए और कुम्हार की इस इच्छा को भी पूरा करने का वचन दिया। फिर कुम्हार ने बाल श्री कृष्ण को घड़े से बाहर निकाल दिया। उनके चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। प्रभु जी के चरण धोये और चरणामृत पीया। अपनी पूरी झोंपड़ी में चरणामृत का छिड़काव किया और प्रभु जी के गले लगाकर इतना रोये कि प्रभु में ही विलीन हो गये।
    जरा सोच करके देखिये, जो बाल श्री कृष्ण सात कोस लम्बे-चौड़े गोवर्धन पर्वत को अपनी इक्क्नी अंगुली पर उठा सकते हैं, तो क्या वो एक घड़ा नहीं उठा सकते थे। लेकिन बिना प्रेम रीझे नहीं नटवर नन्द किशोर। कोई कितने भी यज्ञ करे, अनुष्ठान करे, कितना भी दान करे, चाहे कितनी भी भक्ति करे, लेकिन जब तक मन में प्राणी मात्र के लिए प्रेम नहीं होगा, प्रभु श्री कृष्ण मिल नहीं सकते❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    *धर्म की परिभाषा बहुत कठिन है, गीता में वर्णाश्रम धर्म के कर्तव्य पालन को ही धर्म कहा गया है। देश की रक्षा के लिए धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हमारा जो कर्तव्य है, शास्त्रों का जो विधान है, उसके अनुसार हम कर्म में प्रवृत्त हो, मन के अनुसार नहीं चले, मनमाना आचरण नहीं करें। यही मानवता है, यही विवेक जाग्रत होने का प्रमाण है।
    महाभारत की कथा में दुर्योधन मनमाने आचरण का प्रतीक है। दुर्योधन कहता है -
    जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्तर्जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः।
    केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि।।
    ( गर्ग संहिता अश्वमेध.50.36)
    "मैं धर्म को जानता हूंँ, पर उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्म को भी जानता हूंँ, पर उस से मेरी निवृत्ति नहीं होती। मेरे हृदय में स्थिति कोई देव है जो मुझसे जैसा करवाता है, वैसा ही मैं करता हूंँ।"
    दुर्योधन ह्रदय में स्थित जिस देव की बात कह देता है, वह वास्तव में कामना ही है। पांँडव मन के अनुसार नहीं चलते थे, बल्कि धर्म के तथा भगवान् की आज्ञा के अनुसार चलते थे।
    आज राजनीतिक पार्टियां अपनी स्वार्थ लोलुपता के कारण जिस तरह से देश की आन बान और शान को दांव पर लगा रही हैं, एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं, देश के स्वाभिमान की रक्षा करने वाले महानायको को बेबुनियाद आरोपों के घेरे में लेकर समय खराब कर रहे हैं, देश की छवि को अंतरास्ट्रीय स्तर पर खराब कर रहे हैं, उनके लिए महाभारत में एक प्रेरणादायक प्रसंग है।
    जब गन्धर्वों ने दुर्योधन को बन्दी बना लिया था, तब युधिष्ठिर ने उसे छुड़वाया। वहांँ युधिष्ठिर के वचन हैं-
    परैः परिभवे प्राप्ते वयं पञ्चोत्तरं शतम्।
    परस्परविरोधे तु वयं पञ्च शतं तु ते।।
    (महाभारत, वन. 243)
    "दूसरों के द्वारा पराभव प्राप्त होने पर उसका सामना करने के लिए हम लोग एक सौ पांँच भाई हैं। आपस में विरोध होने पर ही हम पांँच भाई अलग हैं और वे सौ भाई अलग हैं।"❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @dipanshuvermaa5618
    @dipanshuvermaa5618 2 ปีที่แล้ว

    He Maha prbhu hmko bhi Apne Prem se virakt na krna nath 🫂🙏

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    *ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः 🙏🌷
    जय श्री लक्ष्मी नारायण की 🙏
    (( घमंड नहीं करना चाहिए )))) .
    एक राज्य के राजा ने अपनी बढ़ती उम्र को देखकर, यह फैसला किया की वह राज-पाठ से सन्यास ले लेगा। . परन्तु उसका कोई पुत्र नहीं था जिसे वह राज्य सौप कर जिम्मेदारी से मुक्त होता। . राजा की एक पुत्री थी जिसकी विवाह की योजना भी राजा को बनानी थी। . इसलिए उसने मंत्रियों को बुलवाया और कहा की कल प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले इस नगर में प्रवेश करेगा.. . उसे यहाँ का राजा नियुक्त किया जाएगा, और मेरी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया जायेगा। . फिर अगले दिन राज्य के सैनिकों ने फटेहाल कपड़े पहने एक युवक को ले आये और उसका राज्य अभिषेक किया गया। . राजा अपनी पुत्री का विवाह उस युवक के साथ करके, जिम्मेदारियों को सौंप कर स्वयं वन प्रस्थान कर गए। . धीरे-धीरे समय बीतता गया और उस युवक ने राज्य की बागडोर संभाल ली और एक अच्छे राजा की तरह राज्य की सेवा में लग गया। . उस महल में एक छोटी सी कोठरी थी, जिसकी चाबी राजा हमेशा अपने कमर में लटकाये रहता था। . सप्ताह में एक बार वह उस कोठरी में जाता.. आधा एक घंटा अंदर रहता और बाहर निकल कर बड़ा सा ताला उस कोठरी में लगा देता था, और अपने अन्य कार्यो में लग जाता। . इस तरह राजा के बार-बार उस कमरे में जाने से सेनापति को अचम्भा होता कि राज्य का सारा खजाना, सारे रत्न, मणि, हीरे, जवाहरात तो खजांची के पास है। . सेना की शस्त्रा गार की चाबी मेरे पास है और अन्य बहुमूल्य कागजातों की चाबी मंत्री के पास है। . फ़िर इस छोटे से कोठरी में ऐसा क्या है, जो राजा यहां हर सप्ताह अंदर जाता है। और थोड़ी देर बाद बाहर निकल आता है। सेनापति से रहा नहीं गया उसने हिम्मत करके राजा से पूछा की राजन, यदि आप क्षमा करें तो यह बताइये कि उस कमरे में ऐसी कौन सी वस्तु है, जिसकी सुरक्षा की आपको इतनी फ़िक्र है। . राजा गुस्से से बोले सेनापति, यह तुम्हारे पूछने का विषय नहीं है, यह प्रश्न दोबारा कभी मत करना। . अब तो सेनापति का शक और भी बढ़ गया, धीरे-धीरे मंत्री और सभासदों ने भी राजा से पूछने का प्रयास किया परन्तु राजा ने किसी को भी उस कमरे का रहस्य नहीं बताया। . बात महारानी तक पहुंच गयी और आप तो जानते है की स्त्री हठ के आगे किसी की भी नहीं चलती, रानी ने खाना-पीना त्याग दिया और उस कोठरी की सच्चाई जानने की जिद करने लगी। . आख़िरकार विवश होकर राजा सेनापति व अन्य सभासदों को लेकर कोठरी के पास गया और दरवाजा खोला... . जब कमरे का दरवाजा खुला तो अंदर कुछ भी नहीं था सिवाय एक फटे हुए कपड़े के जो दीवार की खुटी पे लटका था। . मंत्री ने पूछा की महाराज यहा तो कुछ भी नहीं है। . राजा ने उस फटे कपड़े को अपने हाँथ मे लेते हुए उदास स्वर में कहा कि यही तो है मेरा सब कुछ.. . जब भी मुझे थोड़ा सा भी अहंकार आता है, तो मै यहाँ आकर इन कपड़ों को देख लिया करता हूँ। . मुझे याद आ जाता है की जब मै इस राज्य में आया था तो इस फटे कपड़े के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं था। तब मेरा मन शांत हो जाता है और मेरा घमण्ड समाप्त हो जाता है, तब मै वापस बाहर आ जाता हूँ। . अहंकार अग्नि के समान होता है, जो मनुष्य को अपने ताप से भस्म कर देता है। साथ ही जो व्यक्ति वास्तव में बड़ा होता है, वह अहंकार जैसे दोषों को अपने से दूर ही रखता है। . हमें भी अपनी उपलब्धियों, अपने पद एवं प्रतिष्ठा पर घमंड नहीं करना चाहिए एवं सदैव शील एवं परोपकारी बनना चाहिए।❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    द्रौपदी का कर्ज"।।
    अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, "पुत्री भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।" उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली, "आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता ?"
    द्रौपदी बोली, "क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया। मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आँखें झुकाए आँसू बहाते रहे। सबसे निराशा होकर मैंने श्रीकृष्ण को पुकारा, "आपके सिवाय मेरा और कोई भी नहीं है, तब श्रीकृष्ण तुरंत आए और मेरी रक्षा की।"
    जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था। रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएँ और उसकी मदद करें।" श्री कृष्ण बोले, "जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूँ। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूँगा। तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई थी। उस समय "मेरी सभी पत्नियाँ वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई। मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बाँध दिया। आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है, लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं जा नहीं सकता।" अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए।❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @jagannathduckfarm
    @jagannathduckfarm 2 ปีที่แล้ว +3

    राधे राधे प्रभू जी 🌷🙏 😭 अति उत्तम आप की बानी ❤️

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    प्रश्न: आपके हाल के उत्तरों से अब मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि मैं "निचली ताकतों" और "शत्रुतापूर्ण ताकतों" शब्दों का दुरुपयोग कर रहा हूं। वास्तव में दोनों में क्या अंतर है?
    भौतिक चेतना में सामान्य मानव प्रकृति की प्राकृतिक हलचलें होती हैं जिनसे छुटकारा पाने में समय लगता है। निःसंदेह हम उन्हें निम्नतर प्रकृति की शक्तियां कहते हैं, लेकिन उन्हें शत्रुतापूर्ण नहीं, बल्कि साधारण ही मानना ​​चाहिए। उन्हें बदलना पड़ता है लेकिन इसमें आमतौर पर समय लगता है और इसे चुपचाप किया जा सकता है। व्यक्ति को साधना के सकारात्मक पक्ष से अधिक व्यस्त रहना चाहिए। यदि कोई हमेशा उन्हें शत्रुतापूर्ण बातें समझता है, उनके आने पर परेशान होता है, उन्हें शत्रुतापूर्ण संपत्ति मानता है, तो यह अच्छा नहीं है। जो चीजें वास्तव में शत्रुतापूर्ण हैं, वे कम हैं और उन्हें प्रकृति की सामान्य गतिविधियों से अलग किया जाना चाहिए। पहले को खदेड़ दिया जाना चाहिए, दूसरे को चुपचाप और उनके दिखावे से परेशान या निराश हुए बिना निपटाया जाना चाहिए।
    - श्री अरबिंदो

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    अंधा अनुकरण"
    🔶🔹🔶🔹🔶
    आज में एक अत्यंत बोधप्रद कहानी आपके साथ शेयर कर रहा हू जो मेने बचपन में सुनी थी। एक बार की बात है जब एक गाव में एक महाराज सत्यनारायण देव की कथा कर रहे थे... गाव के सभी भक्त कथा का रसपान करने वहा आये हुए थे। सभी ने मन लगाकर कथा सुनी कथा जब पूर्ण हो गई तब कथा करने वाले महाराज को नियम अनुसार दक्षिणा और अनाज देने के लिए भक्त कतार में खड़े हो गए।
    अनाज/दक्षिणा देते समय कतार में सबसे आगे एक स्त्री खड़ी थी, उसने अनाज व दक्षिणा तो दिया साथ में महाराज के ललाट पर कुमकुम तिलक भी किया। तिलक करने के बाद वह स्त्री नीचे एक पीपल के वृक्ष का पत्ता पड़ा था, उस पर कुमकुम लगा के चली गई।
    कतार में सब खड़े थे सबने यह देखा, और एक के बाद एक सभी वही करने लगे. सब महाराज को तिलक लगाते और नीचे पड़े पत्ते पर भी तिलक करते। ऐसा उन सभी लोगो ने किया जो कतार में खड़े थे। महाराज अपनी दक्षिणा बटोरने में व्यस्त थे।
    लेकिन वहा एक सज्जन युवक यह सब देख रहा था... उसके मन प्रश्न हुआ की "सब महाराज को तिलक कर रहे हे वहां तक तो ठीक है, लेकिन नीचे पड़े पत्ते पर सब तिलक क्यों कर रहे है?" उसने यह प्रश्न सभी से पूछा सब का एक ही उत्तर था "आगे वाला कर रहा हे इस लिए" तब वह युवक सबसे पहले जो स्त्री खड़ी थी उसके घर गया क्योकि अब तक वो घर जा चुकी थी। वहा पहुँचने के बाद उस युवक ने उस स्त्री से पूछा "आपने उस पीपल के पत्ते पर तिलक क्यों किया?" स्त्री ने कहा... "केसा तिलक? मेने तो वहा मेरा जो कुमकुम वाला हाथ था उसको पोछने के लिए उस पत्ते का उपयोग किया..." वह युवक जोर-जोर से हसने लगा लोगो की मूर्खता पर और अपने घर चल दिया...
    मित्रों इसे कहा जाता है अंधानुकरण.... आज यह सार्वत्रिक देखने को मिल रहा है। चाहे वह सामजिक क्षेत्र हो, राजनीति, अर्थकारण, शिक्षण या आध्यात्म. हर जगह पर मात्र अंधानुकरण।
    सबसे ज्यादा यह आध्यात्म और धर्म में आज छुपा हुआ है। हमारा वैदिक धर्म सत्य और विज्ञान की नीव पर खड़ा है प्रत्येक कृति के पीछे तर्क और विज्ञान आवश्यक हे।
    🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹

  • @shantikaam3795
    @shantikaam3795 2 ปีที่แล้ว

    एक आदमी ने भगवान कृष्ण से पुछा : इस जीवन में मेरा मूल्य क्या है?
    श्रीकृष्ण ने उसे एक Stone दिया और कहा; जाओ और इस stone का मूल्य पता करके आओ,लेकिन ध्यान रखना stone को बेचना नही है।
    वह आदमी stone को बाजार मे एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला; इसकी कीमत क्या है?
    संतरे वाला चमकीले stone को देखकर बोला, "12 संतरे लेजा और इसे मुझे दे जा"
    आगे एक सब्जी वाले ने उस चमकीले stone को देखा और कहा "एक बोरी आलू ले जा और इस stone को मेरे पास छोड़ जा"
    आगे एक सोना बेचने वाले के
    पास गया उसे stone दिखाया सुनार उस चमकीले stone को देखकर बोला, "50 लाख मे बेच दे"
    उसने मना कर दिया तो सुनार बोला "2 करोड़ मे दे दे या बता इसकी कीमत जो माँगेगा वह दूँगा तुझे....
    उस आदमी ने सुनार से कहा मेरे गुरू ने इसे बेचने से मना किया है।
    आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया उसे stone दिखाया।
    जौहरी ने जब उस बेसकीमती रुबी को देखा , तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपडा बिछाया फिर उस बेसकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई, माथा टेका।
    फिर जौहरी बोला , "कहा से लाया है ये बेसकीमती रुबी? सारी कायनात , सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नही लगाई जा सकती। ये तो बेसकीमती है।"
    वह आदमी हैरान परेशान होकर सीधे श्रीकृष्ण के पास आया, अपनी आप बीती बताई और बोला "अब बताओ भगवान , मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
    श्रीकृष्ण बोले :
    संतरे वाले को दिखाया उसने इसकी कीमत "12 संतरे" की बताई,,,
    सब्जी वाले के पास गया उसने इसकी कीमत "1 बोरी आलू" बताई,,,
    आगे सुनार ने "2 करोड़" बताई और जौहरी ने इसे "बेसकीमती" बताया,,,
    अब ऐसा ही मानवीय मूल्य का भी है !!!!
    तू बेशक हीरा है..!!लेकिन, सामने वाला तेरी कीमत, अपनी औकात - अपनी जानकारी - अपनी हैसियत से लगाएगा।
    घबराओ मत दुनिया में.. तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे।
    अपने आप को कम मत आंको, खुद पर विश्वास करो, खुद से प्यार करो !!!!❤️❤️❤️❤️❤️❤️

  • @parveengupta5698
    @parveengupta5698 2 ปีที่แล้ว

    Hare krishna