कुंडली के दशम भाव में राहु के सटीक फल - आचार्य वासुदेव जी
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- เผยแพร่เมื่อ 26 พ.ย. 2024
- वैदिक ज्योतिष में दशम भाव का अत्यधिक महत्व है क्योकि यह भाव आपका आपके पुण्य कर्मों का है। कालपुरुष के दशम भाव में मकर राशि आती है अतः इस भाव के स्वामी शनिदेव है। इस भाव के कारक ग्रह मंगल देव, सूर्य देव, और बुध देव है। यह एक केंद्र स्थान है और इस भाव का प्रमुख कार्य किसी भी रूप में आपकी सेवा भाव है। इस भाव से हम यह देख सकतें है कि आपको जीवन में कितना सम्मान मिलेगा। इस भाव का मुख्य वाक्यांश है आपका सम्मान और आपका सामाजिक दायरा। इस भाव का मुख्य कार्य है कि आप जनलोक में कितना प्रसिद्ध है और उनके बीच आपका क्या अस्तित्व है। इस भाव से हम अपने माता-पिता, नियुक्त किये गए लोग, उच्चपद पर आसीन लोग होतें है। इस भाव से हम घुटनों के जोड़, दांत, कंकाल की संरचना को देखतें है। इस भाव की शब्द शक्ति है आपका व्यवसाय, कैरियर, नियुक्ति, स्वतंत्र व्यवसाय, महत्वकांशा, प्रसिद्धि, जनलोक में आपकी पहचान, सामाजिक स्तर पर आपकी प्रसिद्धि, विदेश यात्रा, राजनैतिक शक्ति, सफलता, माता-पिता का प्रभाव, जीवन की वस्तुएं, जीवन में सफलताएं, शक्ति, प्राधिकरण, ज़िम्मेदारी, वो सभी चीज़ें जो जीवनकाल में तेज़ी से महत्वपूर्ण हो जाती है। इस भाव के प्रमुख कार्य है कि आपका कार्य कैसा होगा, आपकी प्रसिद्धि, जीवन की समस्त गतिविधियां जो व्यक्तिगत पूर्ति करती है और हमारा समुदाय आपको कैसे वर्गीकृत करता है। आपको कर्मों का तोहफा इस भाव से हम पता लगता है। इस भाव का मुख्य कार्य है कि बाहरी दुनियां में स्वयं की अभिव्यक्ति और जीवन में उसकी प्राप्ति। दशम भाव से व्यक्ति समाज द्वारा नियुक्त किया जाता है और उसे समाज उसके कार्य के द्वारा स्थान देता है। यह जनता का भाव है अतः यहां कुछ भी छिपा नहीं होता है क्योकि यह अष्टम से तीसरा भाव है और तृतीय भाव मीडिया है जहां सब कुछ जनता के समक्ष आ जाता है। यह भाव आपकी स्वंय की अभिव्यक्ति भी है। यह वह घर है जहां मूल निवासी की शारीरिक और सांसारिक गतिविधियां उनके शिखर तक पहुंचती है यही मानव अनुभव का केंद्र है। यह भाव धर्म की चरम सीमा को दर्शता है। दशम भाव से हम अर्थ और एकादश भाव से हम काम सुख और द्वादश भाव से हम मोक्ष की चरम सीमा पर पहुंचतें है। चतुर्थ भाव से हम सामाजिक और आर्थिक स्तिथि देखतें है किंतु दशम भाव उसके विपरीत होने से क्या व्यक्ति उस सामाजिक और आर्थिक स्तिथि से ऊपर उठता है या उससे नीचे गिरता है यह स्तिथि दशम भाव पर ही निर्भर करती है। व्यवसाय और नौकरी के लिए द्वितीय भाव, षष्टम भाव और दशम भाव हो सही से जाँचना बहुत अनिवार्य है क्योंकि यह तीनों राशियां पृथ्वी तत्व राशियां है जो भौतिक सुख को दर्शाती है। दशम भाव से हम गतिचाल भी देखतें है क्योंकि यह भाव आपके घुटने और घुटनों के जोड़ और टांगों की स्तिथि भी बताता है। शनि का घर होने से यह भाव आपकी रीढ़ की हड्डी को भी दर्शाता है और पितरों का श्राद्ध भी हम इस भाव से देखतें है क्योंकि यह चतुर्थ से सप्तम है और नवम से द्वितीय भाव है। अतः मारक भी है। दुर्भाग्य वश कभी कभी ऐसा होता है कि अभिभावकों की मृत्यु का दोनो में से एक कि मृत्यु के पश्चात आपका भाग्य आपका साथ देने लगता है। क्योंकि यह भाव अभिभावकों का मृत्यु का भाव है। राहु दशम भाव मेंअत्यधिक मज़बूत स्तिथि है क्योंकि यह एक शानदार स्तिथि है अपने आपको साबित करने की और समाज में अपनी पहचान बनाने की। राहु इस भाव में आपको एक बड़ा संगठन चलाने की ताकत देता है और एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करवाता है। यहां वैदिक ज्योतिष और पाश्चात्य देशों में भी राहु को बहुत शक्तिशाली माना जाता हैं। राजनीति के लिए राहु इस भाव में सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव देता है। यहां स्तिथि राहु व्यक्ति को बहुत बुद्धिमान बनाता है और भाग्यशाली भी बनाता है यदि पत्रिका में अन्य स्तिथि प्रबल है। दशम स्थान स्वर्ग स्थान है और राहु जितना इस भाव से सम्बंधित है व्यक्ति उतनी की प्रगति प्राप्त करता है। दशम का राहु जीवन के दूसरे पड़ाव में आपको अत्यधिक प्रगति देता है। जीवन का प्रथम चरण कष्टकारी भी होता है किंतु यह कष्ट निरंतर अपने आप को स्थापित करने के लिए होता है। राहु इस भाव में निरंतर आपको प्रेरित करता है अपने उद्देश्य के प्रति आपको सचेत करता है और भाग्य में वृद्धि करता है। राहु इस भाव में अत्यंत सकारात्मक बदलाव लाता है यह आपकी आयु के 19वें वर्ष,38वें वर्ष,42वें वर्ष में अत्यधिक शुभ प्रभाव देता है। राहु इस भाव में हो तो आपको अपने निजी जीवन की बलि देनी ही पड़ती है यहाँ राहु न तो अपने लिए और न ही परिवार के साथ समय बिताने का समय देता है क्योकि यहां बैठा राहु आपको समाज के लिए प्रेरित करता है और समाज में आपका वर्चस्व बढ़ता चला जाता है। इस भाव में राहु अंतरराष्ट्रीय ख्याति देता है। इस भाव का राहु सम्मानित होने के बावजूद भी आंतरिक शांति कभी नहीं दे सकता हैं क्योकि यह चतुर्थ भाव को भी प्रभावित करता है।