प्राचीन संस्कृत ग्रंथों पर इस प्रकार की चर्चा हेतु, आपको साधूवाद. संस्कृत जो पढ़ - समझ नहीं सकते उनके लिए लाभकारी है. मेघदूत में वर्णित मूल्य, आदर्श आज भी कैसे प्रासंगिक हैं ... इसकी अभिव्यक्ति 👌
धन्यवाद तथा आभार नीलम जी। आपने अपने 'मन के मौसम ' में संस्कृत साहित्य विषयक चर्चा को रूपाकार दिया। इस प्रकार की चर्चाओं से साहित्य चिन्तन के बहुत से आलोचित पक्षों का स्मरण तथा अनालोचित पक्षों का उद्घाटन होता है।
नीलम जी को सादर प्रणाम। आपके द्वारा संस्कृत साहित्य के अमूल्य ग्रंथ 'मेघदूतम' की प्रस्तुति ने मुझे १९७९ में किए गए एम.ए. की स्मृतियों में पहुंचा दिया। सच में कमाल की संकल्पना है कविकुल गुरु कालिदास की। उस पर नवलता जी की विद्वत टिप्पणी ने चार चांद लगा दिए। बहुत प्रशंसनीय कार्य किया है आपने। बधाई की पात्र हैं आप और नवलता जी।
प्राचीन संस्कृत ग्रंथों पर इस प्रकार की चर्चा हेतु, आपको साधूवाद.
संस्कृत जो पढ़ - समझ नहीं सकते उनके लिए लाभकारी है. मेघदूत में वर्णित मूल्य, आदर्श आज भी कैसे प्रासंगिक हैं ... इसकी अभिव्यक्ति 👌
धन्यवाद तथा आभार नीलम जी। आपने अपने 'मन के मौसम ' में संस्कृत साहित्य विषयक चर्चा को रूपाकार दिया। इस प्रकार की चर्चाओं से साहित्य चिन्तन के बहुत से आलोचित पक्षों का स्मरण तथा अनालोचित पक्षों का उद्घाटन होता है।
Sanskrit sahitya ko protsahit karne k liye saadhuwaad
नीलम जी को सादर प्रणाम। आपके द्वारा संस्कृत साहित्य के अमूल्य ग्रंथ 'मेघदूतम' की प्रस्तुति ने मुझे १९७९ में किए गए एम.ए. की स्मृतियों में पहुंचा दिया। सच में कमाल की संकल्पना है कविकुल गुरु कालिदास की। उस पर नवलता जी की विद्वत टिप्पणी ने चार चांद लगा दिए। बहुत प्रशंसनीय कार्य किया है आपने। बधाई की पात्र हैं आप और नवलता जी।