बिलकुल सही कह रहे हैं साहब जी यदि में जाने से भगवान मिले तो पुजारी लोगों को हि क्यों न मिल जाते। क्यों वो पैसे के लिए इतना बड़ा पाखंड करते हैं। यह केवल भ्रम है और कुछ नहीं है। मन्दिर का अर्थ है सद भावना रखना। मनुष्य ने मान लिया कि मन्दिर जाने से मन कि केवल संतुष्टि हो जाती है और कुछ नहीं है। अगर सही मायने में मनुष्य में जरा सी भी समझदारी हो तो वह अपने मन कि संतुष्टि अपनो के बीच रहकर भी कर सकता है लेकिन नहीं कर सकता है क्योंकि मन न ऐसा कभी मानी हि नहीं है। मन माने तब तो। मन ने तो केवल मन्दिर माना हुआ है। समझने में समय लगेगा। क्योंकि यदि राजा को गद्दी से हटाया जाए तो वह नहीं हटेगा।
गोविन्द जी। कबीर साहेब की वाणी है। 1. कबीरा, गर्व ना कीजिए काल गहे कर केश । ना जाने कित मारी है चाहे घर रहो या प्रदेश।। 2. एके साधे सब सधे सब साधे सब जाय। माली सींचे मूल को फलें फुले आगया।। 3. कस्तूरी कुंडल मृग ढूंढे बन माही। ऐसे घट घट राम हैं दुनिया जाने नाही ।। गोविंद जी अर्थ क्या होगा। कृपया बताएं।
भगत की वाणी तो साहब की बहुत है लेकिन भक्त आत्मा के कोई एक बड़ी समझ में आती है तो वह भक्ति पर चल देता है और चलना ही चाहिए सदगुरु कबीर साहेब ने यह भी कहा है की मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जान इस 10 द्वारा के महल में परमात्मा की ज्योत पहचान सबसे ऊपर कीअवस्था का ज्ञान सदगुरु ने यह बताया है जहां तक मुझदास की बुद्धि काम कर रही है बाकी परमात्मा जाने 🌺सत साहेब सतनाम 🌺🙏
@@rampaldassatlokbhgti5447 यानि परमात्मा आपके अनुसार आपके चाहे हुए रूप में आते हैं ? फिर उसे अनुसार तो दुनिया में हजारों लोग हजारों अलग अलग रूपों में पूजते हैं कोई कृष्ण रूप में कोई राम रूप में कोई वामन रूप में कोई जगन्नाथरूप में और कहीं तो वराह रूप में पूजते हैं तो वह इन सब रूपों में दर्शन देने आते होंगे अब आपको इसमें तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए
भाई साहब जी कण कण में भगवान व्याप्त का मतलब है प्रत्येक जीव आत्मा में अर्थात् जो जिंदा है उसमें भगवान निवास करते हैं न कि निर्जीव में अर्थात् जिसमें जान न हो ।
Kabir is good
Kabir Ji kahtai hai Mai parmatma hu
बिलकुल सही कह रहे हैं साहब जी यदि में जाने से भगवान मिले तो पुजारी लोगों को हि क्यों न मिल जाते। क्यों वो पैसे के लिए इतना बड़ा पाखंड करते हैं। यह केवल भ्रम है और कुछ नहीं है। मन्दिर का अर्थ है सद भावना रखना। मनुष्य ने मान लिया कि मन्दिर जाने से मन कि केवल संतुष्टि हो जाती है और कुछ नहीं है। अगर सही मायने में मनुष्य में जरा सी भी समझदारी हो तो वह अपने मन कि संतुष्टि अपनो के बीच रहकर भी कर सकता है लेकिन नहीं कर सकता है क्योंकि मन न ऐसा कभी मानी हि नहीं है। मन माने तब तो। मन ने तो केवल मन्दिर माना हुआ है। समझने में समय लगेगा। क्योंकि यदि राजा को गद्दी से हटाया जाए तो वह नहीं हटेगा।
Param Tatvdarahi Madhav ji ko koti koti parnaam🙏
Govind. Ji. Ka. Gyan. Sahi. Hai
@@RajputRajputsingh-w1w पागल है सब
जय जय श्रीराम ❤🎉🚩🙏🕉💐👏
Jay Shri Ram Jay Shri Hanuman
जय श्री राम 🚩
Murkhta ki bhi had hoti hai
Sat sahib
गोविन्द जी। कबीर साहेब की वाणी है।
1. कबीरा, गर्व ना कीजिए काल गहे कर केश ।
ना जाने कित मारी है चाहे घर रहो या प्रदेश।।
2. एके साधे सब सधे सब साधे सब जाय।
माली सींचे मूल को फलें फुले आगया।।
3. कस्तूरी कुंडल मृग ढूंढे बन माही।
ऐसे घट घट राम हैं दुनिया जाने नाही ।।
गोविंद जी अर्थ क्या होगा। कृपया बताएं।
भगत की वाणी तो साहब की बहुत है लेकिन भक्त आत्मा के कोई एक बड़ी समझ में आती है तो वह भक्ति पर चल देता है और चलना ही चाहिए सदगुरु कबीर साहेब ने यह भी कहा है की मन मथुरा दिल द्वारिका काया काशी जान इस 10 द्वारा के महल में परमात्मा की ज्योत पहचान सबसे ऊपर कीअवस्था का ज्ञान सदगुरु ने यह बताया है जहां तक मुझदास की बुद्धि
काम कर रही है बाकी परमात्मा जाने
🌺सत साहेब सतनाम 🌺🙏
@@rampaldassatlokbhgti5447 कोई बात नहीं हम भी यही बात कह रहे हैं और बाकी जो आगे की बात है वह हम आपको समय आने पर बताएंगे
परमात्मा तो है सब जगह लेकिन रूप अवस्था तो बदले हुए हैंना जिस अवस्था में परमात्मा को हम देखना चाहते हैं उस अवस्था की भक्ति करनी होती है
सत साहेब 👏
@@rampaldassatlokbhgti5447 यानि परमात्मा आपके अनुसार आपके चाहे हुए रूप में आते हैं ? फिर उसे अनुसार तो दुनिया में हजारों लोग हजारों अलग अलग रूपों में पूजते हैं कोई कृष्ण रूप में कोई राम रूप में कोई वामन रूप में कोई जगन्नाथरूप में और कहीं तो वराह रूप में पूजते हैं तो वह इन सब रूपों में दर्शन देने आते होंगे अब आपको इसमें तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए
Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva Shiva
ईश्वर की "प्राण प्रतिष्ठा"
मनुष्य करने लगा, इसका
मतलब "ईश्वर" का निर्माण मनुष्य द्वारा किया जाता है?
पाखंड छोड़ो कबीर ज्ञान अपनाओ
Gurukul Govind Ji Jay Shri Ram
Kabir pura guru mila nahi suni adhuri sikh bhagwa bastra pahenkar ghar ghar mange bhikh
Kabira jee ne bola hai ki pathar main bhagwan ko poojan hai na ki pathar ko poojan hai jee keunki is ko samajhne ki zarurat hai jee
भाई साहब जी कण कण में भगवान व्याप्त का मतलब है प्रत्येक जीव आत्मा में अर्थात् जो जिंदा है उसमें भगवान निवास करते हैं न कि निर्जीव में अर्थात् जिसमें जान न हो ।
@@Rkkhatak ye baat aapne kis granth me padhi hain aapne ? Granth ka naam khand skand adhyay aur shlok number bataiye
@@Govindvedicgurukul आप कौन सा ग्रन्थ में पढ़े हैं कि मूर्ति में भगवान रहता है। प्रमाण दीजिए।
@@baburamyadavbhagatbhagat8100 maine kan kan me bhagwan hai ye padha hai prmaan shiv puran padm puran aadi
@@baburamyadavbhagatbhagat8100 maine kan kan me bhagwan hai ye padha hai prmaan shiv puran padm puran aadi
सभी हिंदू समाज मूर्ति को भगवान समझ कर ही पूजता है पहले हम भी यही करते थे ,, *एक बात प्राण प्रतिष्ठा किसकी करते हैं पंडित लोग* ❓
मूर्ति का काम है 0% है पहचान के लिए ठीक है मूर्ति में प्राण डालना और पाखंडी गुरु दुवार मूर्ति की पूजा करना वह गलत है
भगत जी जब कण कण में परमात्मा है तो मंदिर में जानेकी क्या जरूरत है घर बैठ कर करो भजन
सत साहेब
@@rampaldassatlokbhgti5447 जब परमात्मा सब जगह है तो मंदिर में से कहीं चला जाता है क्या ?
तुम लोग आश्रम क्यों जाते हो घर पर ही मौज करो
बात को घुमाकर अनुवाद करने से अर्थ से अनर्थ हो जायेगा
Govind तुम्हारा गुरु कौन है।
कोई गुरु नहीं है। ये ख़ुद गुरु बन बैठे हैं।
Bandi chhod satguru Rampal Ji Maharaj ke jai ho 👏👏👏👏👏👏👏👏
Guru Bina Gyan Nahin Milta