Class 8.31। कर्म बन्ध विज्ञान - जीवों के शरीर की आकृति मुख्यता कितने प्रकार की होती है ? सूत्र 11
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- เผยแพร่เมื่อ 9 มิ.ย. 2024
- Class 8.31 summary
सूत्र ग्यारह में हमने जाना कि शरीर बनने की प्रक्रिया में संघात नामकर्म के बाद
संस्थान नामकर्म शरीर को आकृति देता है
जिसके अनुसार उसकी और उसके अंगोपांग आदि की रचना होती है
इसके छह भेद होते हैं
पहले समचतुरस्र संस्थान में ‘चतुरस्र’ मतलब चारों कोने या चौतरफा design
‘सम’ अर्थात् समान होती है
और चौकोन भी होती है
इसमें शरीर की रचना हर जगह सम आकार और अंग-उपांग नाप के अनुसार होते हैं
यह संस्थान सर्वश्रेष्ठ और प्रशस्त होता है
जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमाएँ इसी संस्थान में होती हैं
सभी बड़े-बड़े तीर्थंकर आदि महापुरुषों में,
सभी देवताओं में
और भोगभूमि के जीवों में यह नियामकता से होता है
यह मनुष्य और तिर्यंच में भी होता है
लेकिन कर्मभूमि में यह नियामक नहीं है
दूसरे न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान में शरीर
न्यग्रोध अर्थात वट के वृक्ष के
परिमण्डल यानि उसके ऊपर के घेराव के समान होता है
इसमें नाभि से नीचे के अवयव पैर, जंघा आदि अनुपात से छोटे होते है
और ऊपर के फैले होते हैं
इसके विपरीत, स्वाति संस्थान में एक वामी type की आकृति होती है
नीचे का स्थान भारी और ज्यादा फैलाव वाला
और ऊपर का स्थान हल्का और कम फैलाव वाला होता है
वामन संस्थान में शरीर के अनुपात से
उसके सभी अवयव जैसे हाथ-पैर, उँगलियाँ आदि छोटे-छोटे होते हैं
जैसे बहुत बड़े वृक्ष की शाखाएँ छोटी-छोटी हों
कुब्जक संस्थान में शरीर पर एक कुब्ज जैसा कुबड़ा होता है
छोटे-मोटे कुबडे को तो डॉक्टर operation करके ठीक कर सकते हैं
लेकिन बड़ों में यह संभव नहीं
क्योंकि operation शरीर की विकृतियाँ का किया जाता है
इसकी रचना से जुड़ी चीजों का नहीं
ये सबसे बड़ा operation है
operation of Karma अर्थात् कर्म का operation यानि कार्य
हुण्डक संस्थान में कोई आकार-प्रकार नहीं होता
बिना symmetry की, बिल्कुल imbalance, बेकार से बेकार imaginary shape भी इसमें आ जाती है
जैसे किसी कंकड़ भरे बोरे में कोई इधर से निकलता है, कोई उधर से
नारकी के नियम से हुण्डक संस्थान होता है
और सभी देवों के समचतुरस्र संस्थान होता हैं
बीच में सबके अपने-अपने कर्म के फल के अनुसार mix संस्थान होते है
हमने समझा कि नामकर्म की इन रचनाओं को
हम सिर्फ maintain कर सकते हैं
बना और बिगाड़ नहीं सकते
जैसे थोड़ी सी कमी होने पर भी चीज valid लगती है
और उसी कमी से उसके बहुत सारे भेद हो जाते हैं
ऐसे ही समचतुरस्र संस्थान आदि एक-एक कर्म के असंख्यात प्रमाण भेद हो जाते हैं
और सब जीवों की अलग-अलग आकृति बनती हैं
किन्हीं भी जीव के शरीरों की नापतोल बिल्कुल एक जैसी नहीं होती
इन्हीं कर्मों के operation के कारण उनमें difference आ जाता है
संहनन नामकर्म छह प्रकार का होता है
संहनन मतलब बल शक्ति, सामर्थ्य और सहन करने की क्षमता
यह व्यक्ति के healthy दिखने पर नहीं
अपितु हड्डियों की शक्ति, उनकी बनावट और आपस में जुड़ने की रचनाओं पर निर्भर करती है
पहला वज्र वृषभ नाराच संहनन तीर्थंकर, नारायण आदि के होता है
वज्र एक बहुत ही solid, dense, कठोर धातु होती है
इसे हीरा भी कहते हैं
दो चीजों के joint के ऊपर के वाइसल या वेष्टन को वृषभ
और joint में प्रयुक्त कीली को नाराच कहते हैं
इस संहनन में हड्डियाँ, उनके वृषभ और नाराच सभी वज्र के होते हैं
नवजात हनुमान जी के दृष्टान्त से हमने जाना कि
वज्रमयी हड्डियों की ताकत शिला से कई गुना होती है
क्योंकि जब वह पुष्पक विमान से खेलते-खेलते नीचे गिर गए
तो वह शिला चूर-चूर हो गयी लेकिन उनको कुछ नहीं हुआ
इसलिए उन्हें वज्र-अंग-बली या बजरंगबली कहते हैं
Tattwarthsutra Website: ttv.arham.yoga/
Namostu guruver bhagwan. Ji ho shree tatwarth sutra ji ki .. jai ho muniver 108 shree parnamye sagar ji ki
अर्हं योग प्रणेता गुरूदेव श्री प्रणम्यसागरजी महाराज की जय जय जय 🙏💖🙏💖🙏💖
Namostu Guruvar🙏🙏🙏
नमोस्तु गुरूदेव आचार्य श्री जी की जय हो 🙏🙏🙏🙏🙏
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Namostu Guruvar ji
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Nomostu gurudev.
Samchtursansthan
Answer 1 samchursratra sansthan
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Nomostu gurudev.