Aatma ka mool niwas kaha hai ? - Ashok Raaj | Vani Charcha | Jagni Yatra 2023 | Ahmedabad
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- เผยแพร่เมื่อ 19 พ.ย. 2024
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श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ के मुख्य उद्देश्य -
ज्ञान, शिक्षा, उच्च आदर्श, पावन चरित्र व भारतीय संस्कृति का समाज में प्रचार करना तथा वैज्ञानिक सिद्धांतो पर आधारित आध्यात्मिक मूल्य द्वारा मानव को महामानव बनाना और श्री प्राणनाथ जी की ब्रम्हवाणी के द्वारा समाज में फ़ैल रही अंध-परम्पराओं को समाप्त करके सबको एक अक्षरातीत की पहचान कराना।
अति महत्वपूर्ण नोट :-
यह पंचभौतिक शरीर हमेशा रहने वाला नहीं है।
प्रियतम परब्रह्म को पाने के लिये यह सुनहरा अवसर है।
अतः बिना समय गवाएं उस अक्षरातीत पाने के लिये प्रयास करना चाहिये।
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1. परिकरमा + सागर + सिनगार + खिलवत टीका
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2. NIJANAND YOG (निजानन्द योग) - Collection of 60 Invaluable FAQs
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3. CHITWANI MARGDARSHAN (चितवनि मार्गदर्शन) - Smallest and Best ever Pocket Guide to Meditation
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4. DHYAN KI PUSHPANJALI (ध्यान की पुष्पाञ्जलि) - Detailed Question-Answer Sessions transcribed in this unique pearl of spiritual wisdom
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आत्मिक दृष्टि से परमधाम, युगल स्वरुप तथा अपनी परआत्म को देखना ही चितवनि (ध्यान) है। चितवनि के बिना आत्म जागृति संभव नहीं है। संसार की अब तक की प्रचलित सभी ध्यान पद्धतियाँ निराकार-बेहद से आगे नहीं जाती हैं। तारतम ज्ञान के प्रकाश में मात्र निजानन्द योग ही परमधाम ले जा सकता है।
प्रियतम अक्षरातीत की चितवनि में इतना आनन्द है कि उसके सामने संसार के सभी सुख मिलकर भी कहीं नहीं ठहरते। यही कारण है कि ध्यान का आनन्द पाने के लिये ही राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, भर्तृहरि आदि ने अपने राज-पाट को छोड़ दिया और वनों में ध्यानमग्न रहे।
बेहद मण्डल - इस प्राकृतिक जगत् से परे वह बेहद मण्डल है, जिसे योगमाया का ब्रह्माण्ड कहते हैं। चारों वेदों में इसे चतुष्पाद विभूति के रूप में वर्णित किया गया है। इस मण्डल में अक्षर ब्रह्म के चारों अन्तःकरण (मन, चित, बुद्धि तथा अहंकार) की लीला होती है, जिन्हें क्रमशः अव्याकृत, सबलिक, केवल और सत्स्वरूप कहते हैं।
परमधाम - बेहद मण्डल से परे वह स्वलीला अद्वैत परमधाम है, जिसके कण-कण में सच्चिदानन्द परब्रह्म की लीला होती है। यह अनादि है, अनन्त है और सच्चिदानन्दमय है। जिस प्रकार सागर अपनी लहरों से तथा चन्द्रमा अपनी किरणों लीला करता है, उसी प्रकार अक्षरातीत भी अपनी अभिन्न स्वरूपा अंगरूपा आत्माओं के साथ अद्वैत लीला करते हैं, जो अनादि है और इसमें कभी अलगाव नहीं होता है।
वेदों ने इसी परमधाम के सम्बन्ध में “त्रिपादुर्ध्व उदैत्पुरुष” अर्थात् परब्रह्म योगमाया से परे है, कहकर मौन धारण कर लिया। मुण्डकोपनिषद् ने भी 'दिव्य ब्रह्मपुर' शब्द का प्रयोग तो किया, किन्तु उसे बेहद मण्डल (केवल ब्रह्म) में मान लिया। कुरआन में मेयराज के वर्णन के द्वारा संकेत किये जाने पर भी मुस्लिम जगत अभी इसकी वास्तविकता से बहुत दूर है।
श्री प्राणनाथजी की अलौकिक तारतम वाणी में इस परमधाम की शोभा, लीला एवं आनन्द का विशद रूप में वर्णन किया गया है, जिसका सुख किसी सौभाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
प्रेम प्रणाम जी।🚩🙏🙏🚩🌱🙏🙏🌱🌹🙏🙏🌹🌳🙏🙏🌳🍀🌼🙏🙏🌼💐🙏🙏💐🍇🙏🙏🍇
Prem pranam ji 🥀🙏🙏🥀🏵️🪔🙏🏵️🌿🙏🙏🌿🍂🙏🙏🍂🌺🙏🙏🌺🌱🙏🙏🌱🍇🙏🙏🍇💐🙏🙏🌼🌼🙏🙏🌼🍀🙏🙏🍀🌳🙏🙏🌳
Prem pranam ji Ashok mahatmaj.ko koti koti pranam ji 🌹🌹🙏🏻🌹🌹
Prnam ji 🙏🙏
Pranamji
Parnamji
Pranathji ki jai
Prem pranamji
Prem Pranamji 🙏🙏🙏
Ati sundar koti koti Prem pranamji
Prem pranamji 🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
પ્રેમ પ્રણામ
Very very lovely and useful charcha 🙏🙏👌👌🌹🌹🙏🙏🙏
Gujrati agr gujrati ko dekhkar khush ho raha hai to ye prantvad hi agyanta hai.
AAP prantvad ka samarthan kar rahe ho.JAI PRANNATH
सप्रेम प्रणाम जी श्री आचार्य जी।
Shri Dhamdhani ki ladali angnaon ke dham dil me virajmaan Dham dulha ke noori charno me koti koti sperm pranam ji🙏🙏 👣🙏🙏❤❤🙏🌹🙏🙏
Prem parnam ji🙏🙏🙏🙏
Parnam ji
Pranam guru ji🙏🙏
Prem pranam ji🙏
Prem pranam ji
Pranam ji
Pranam 🙏