प्राणायाम से स्वामी विवेकानंद की अद्भुत शक्ति || VIJAY KRISHNA || HINDI
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- เผยแพร่เมื่อ 8 พ.ค. 2019
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स्वामी विवेकानंद भारत के एक महान संत और समाज सुधारक थे। वह भारत के प्रथम संत थे जिन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेकर के भारत का मान सम्मान और गौरव बढ़ाया था। स्वामी विवेकानंद के पूर्व पाश्चात्य जगत में भारतीय संस्कृति सभ्यता और अध्यात्म के प्रति लोगों के मन में सम्मान की भावना नहीं थी। विश्व धर्म सम्मेलन में अपने तेजस्वी संभाषण द्वारा स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका के अनेकों अनेक लोगों को अपना भक्त बना लिया था । अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद की अद्भुत बौद्धिक शक्ति का रहस्य उनके नियमित ध्यान और प्राणायाम के अभ्यास में छिपा था । स्वामी विवेकानंद जी अपने भक्तों को 3 तरीके के प्राणायाम बताया करते थे। एक प्राणायाम भस्त्रिका प्राणायाम से मिलता जुलता प्राणायाम था। जिसमें वह गहरी सांस लेना और उसे छोड़ने का निर्देश दिया करते थे । स्वामी विवेकानंद जी का दूसरा प्राणायाम नाड़ी शोधन प्राणायाम से मिलता जुलता था वह अपने साधकों को बताते थे एक नासा छिद्र से सांस लेते हुए दूसरी नासा छिद्र से सांस को छोड़ दो जिस नासा छिद्र से सांस को छोड़ा उसी से भरते हुए दूसरे नासा छिद्र से सांस को छोड़ दो । इस प्रकार से इसी क्रिया का निरंतर अभ्यास करो । इस क्रिया के निरंतर अभ्यास से तुम्हारे शरीर की समस्त नाडीया जिनमें प्राण का प्रवाह होता है वह शुद्ध हो जाएंगे और और धीरे-धीरे तुम प्राण पर संयम करना सीख लोगे।
स्वामी विवेकानंद जी तीसरे प्राणायाम का जिक्र करते थे वह नाड़ी शोधन प्राणायाम का हीउच्चतम रूप है। स्वामी विवेकानंद जी ने इन समस्त प्राणायाम की विस्तृत विवेचना अपनी पुस्तक राजयोग में की हैl