*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹 अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है। *महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है। बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए। आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ। बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया। अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती। अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने। अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी.. Etc❤
*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹 अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है। *महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है। बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए। आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ। बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया। अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती। अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने। अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी..
*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹 अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है। *महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है। बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए। आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ। बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया। अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती। अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने। अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी.. Etc
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*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹
अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है।
*महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है।
बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए।
आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ।
बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया।
अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती।
अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने।
अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी..
Etc❤
Kede din gye c mera mtlb sonwar mangalwar budhwar ya kise hor war ya koi special day v hunda e ethe lyi
Sunday nu hi Milde hai
👌👌
Kathuria parivar ke jathere yeha per hai
Hum malhotra Khatri hai humare jhathery bhi yahi honge
Yes
*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹
अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है।
*महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है।
बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए।
आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ।
बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया।
अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती।
अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने।
अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी..
Paji chabra goot de jathere vi ehi ne te menu daseyo mela kado hunda
Mela August Month cha Hunda Hai
Kiss date nu Hunda ji
11 Aug
*अरोड़ वंश का इतिहास* 🏹
अरोड़ा, महाराजा अरूट के वंशज हैं, जो एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। अरूट वंशी क्षत्रियों का उल्लेख *भविष्य पुराण* में किया गया है।
*महाभारत* में इन्हें *आरट्ट क्षत्रिय* बताया है जिनका राज्य का नाम *शिवि* था और उस राज्य की राजधानी *अरूटपूरा* थी। ये राज्य उत्तरी सिंध और पंजाब की सीमा के आस पास था। आज के समय अरूटपूरा को सिंध में *अरोड़ कोट* या अरोड़ के नाम से जाना जाता है।
बाद के इतिहास में ये भी ज़िक्र मिलता है कि आरट्ट क्षत्रियों ने चंद्रगुप्त मौर्य की मदद की थी नंद वंश के ताकतवर सम्राज्य को गिराने में। बाद में कुछ आरट्ट क्षत्रिय, मध्य एशिया से घोड़ो के व्यापार में चले गए।
आरट्ट क्षत्रियों को बाद के समय मे अरोड़ा कहा जाने लगा। सिंध का *राय राजवंश* जिसका शासन 5 से 7 शताब्दी में था, वो अरोडो की *लोहाना* शाखा के थे। ऐतेहासिक दस्तावेज *चचनामा* में बताया है कि सिन्ध के राजा दाहिर के पिता चच (यश) अरोडो के राय राजा के यहां मंत्री था और राय राजा की धोखे से हत्या करके उसके राज्य पे कब्जा कर लिया। चच और उसके पुत्र दाहिर ने बाद में अरोडो को दबाया और उनपे प्रतिबंध लगाए क्योंकि वो अरोडो को अपने राज्य के लिए खतरा समझते थे। इसी वजह से जब सिंध पे *मुहहमद बिन कासिम* का हमला हुआ *712 AD* में तब अरोडो ने राजा दाहिर की मदद नही की जिसकी वजह से उनकी हार हुई और भारत मे पहली बार मुसलमानो का शासन हुआ।
बाद में लगातार मुसलमानो के सिंध और पंजाब पे हमलों की वजह से अरोड़ा दुबारा अपना राज्य स्थापित नही कर पाए और अरोड़ा वंश बिखर गया।
अरोड़ा khatri अलग अलग प्रान्तों में बस गए जैसे सिन्ध, पंजाब, अफगानिस्तान और जीविका के लिए अलग अलग व्यवसायों को अपनाया जैसे कि व्यापार, खेती।
अरोड़ा khatri बाद में पंजाब के खत्रीयों और भाटियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध बने।
अरोडो का *मूल गोत्र कश्यप* है क्योंकि वो सूर्यवंशी है। अरोडो में कई उपनाम है जैसे कि - गुलाटी, चावला, बत्रा, तनेजा, जुनेजा, डुडेजा, टुटेजा, रहेजा, मेहता, मिगलानी, खन्ना,सरदाना ,आहूजा, राजपाल, कुकरेजा, सलुजा, छाबड़ा, कालड़ा, वाधवा, सचदेवा, गेडा, मनचंदा, खट्टर, मेहंदीरत्ता, दुआ, गंभीर, मदान, ढींगरा, नरूला, पाहवा, नारंग, गांधी..
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Yes
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