क्या ईश्वर मल में भी रहता है? \आचार्य वरुणदेव जी \BY VARUNDEV JI \ ARYA SAMAJ MISSION
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- เผยแพร่เมื่อ 12 พ.ค. 2023
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सुन्दर व्याख्यान धन्यवाद 🎉🎉🎉🎉
अति सुंदर प्रवचन है बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी सादर प्रणाम
"ओ३म् भूर्भुवःस्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ।"
Om ji namaste Acharya Shri
अति सुन्दर आचार्य जी, आदर सहित नमन,
नमस्ते स्वामी जी बहुत बहुत धन्यवाद
bahut achha ji
ओ३म नमस्ते भ्राता जी धन्यवाद। सर्व एभ्यो नमः
परमात्मा पांच तत्व और तीन गुण प्रकृति और जड़ जगत सबसे परे है।
Bhut sundr aap ko nmn
❤❤❤
वाह गुरु जी अति सुन्दर चरण स्पर्श, शरीर चलता है इन्द्रियों से इन्द्रियां चलती है बुद्धि से बुद्धि चलती है मन से मन चलता है आत्मा से आत्मा चलता है प्राण से प्राण चलता है ईश्वर से और जीवन चलता है प्राणों से ईश्वर के माध्यम से
यह व्याख्यान आज तक मेरे द्वारा सुने गए सभी व्याख्यानों में सबसे उत्तम था, आचार्य जी को बहुत बहुत धन्यवाद
Namaste ji
Sadar Namaste ji
Acharya ji sadar namaste ji bhut bhut danyabad ji sabhi aayujeko ko sadar namaste ji bhut bhut abhar
अति उत्तम व्याख्या के लिए सादर नमन।
जिनका मन मलिन होता है उन्हीं को मल दिखाई देता है
एक का परित्यक्त किया गया दूसरे का पूरक पदार्थ होता है
सत्य वचन सुनकर मन हर्षित हुआ परमात्मा सर्व व्यापक, है
Sarv byapak hai sab me samaya hai par sabse nyara bhee hai love ke Gole me agni bala udaharan swamiji ne satyarth prakash me diya hai Jo uchit hee hai swami ji apko aur swami Dayanand ji Maharaj ko koti koti naman
Bahut sunder message
निराकार जगह नहीं घेरता , आत्मा ओर प्रमात्मा निराकार है
बहुत ही सुन्दर आचार्य श्री
Wah
Swamiji, aapka khub khub dhanyavaad 🙏
Namasteji🙏
🙏🙏
अद्भुत व्याख्यान
सादर अभिवादन
जिस प्रकार सूर्य की किरणें हर वस्तु में व्याप्त होकर अपने स्वरूप में अलिप्त रहती है उसी प्रकार परमात्मा हर वस्तु चाहे जड़ हो चाहे चेतन। व्याप्त होकर अपने स्वरूप में अलिप्त रहता है।
Nahi sab chijo me nahi woh unke sashan me hai khud samhilit nahi ..n
Swami Ji aapane humko udaharan de de kar bahut acchi tarah samjha aap kab Marwar dhanyvad namaste
मल में नहीं वह मल के प्रत्येक परमाणु के प्रत्येक अंश में मौजूद होगा तब ही तो वह संसार की रचना कर सकता है,, सर्वव्यापित का अर्थ तो यही होता है,,
क्या हम यह कह सकते हैं कि यह संसार ईश्वर में डूबा हुआ हैं ?
बिल्कुल
namste g torach ki roshni nerjev h kaya ishawr be nijeev h
ईश्वर भौतिक प्रकाश की तरह जड़ नहीं, चेतन है; परंतु समझने के लिए कई बार भौतिक वस्तुओं के उदाहरणों के माध्यम से अभौतिक परमात्मा का स्वरूप बताया है। यह तब किया जाता है, जब भौतिक वस्तुओं के कुछ गुण ईश्वर के समान होते हैं। जैसे आकाश (खाली स्थान) व्यापक है, इसीलिए ईश्वर को आकाशवत् व्यापक कहा जाता है। भौतिक प्रकाश की तरह ईश्वर भी प्रकाशवान् है, इसलिए ईश्वर को अग्नि अथवा सूर्यवत् प्रकाशित कहा जाता है। परंतु इन सबका यह अर्थ नहीं कि परमात्मा प्रकृति की तरह जड़ है अथवा वह प्रकृतिरूप है। दो वस्तु तभी सामान कहे जा सकते हैं, जब सारे गुण मिलें। जीवात्मा परमात्मा की तरह अभौतिक है, परंतु सर्वव्यापी नहीं है, एकदेशी है। इसी प्रकार जीवात्मा के कुछ गुण परमात्मा से भिन्न हैं, इसलिए जीवात्मा भी परमात्मा नहीं है।
@anandot
7 months ago
" क्या ईश्वर मल में भी रहता है? \आचार्य वरुणदेव जी \BY VARUNDEV JI \ ARYA SAMAJ MISSION " प्रतीत होता है आर्य-समाज के वक्ताओं ने निर्लज्जता की हदों का ठेका ले लिया है । Thanks . Anando.
" आपको पता है - इस संसार में सब [=आर्य-स(न)माजी, वक्ता, श्रोता , समर्थक , ]-लोग एक दूसरे का गोबर ही खाते हैं "(वक्तव्य 7-50 से 7-56 ) । यदि आर्य -समाज में यही सब कृत-कारिता-अनुमोदिता चलता-चलाया जाता हो तो , क्या इस प्रकार के आर्य-समाज दूर नही रहना चाहिये ? Thanks. Anando.
Aj k time aise kutrak ho sakte h.satyarth Parkash Swami Dayanand sarsvati dwara likha h Eshwar ko Janniye.. en bekar ki bato se bach jayge
ਇਸ ਤੇ ਉੱਪਰ ਨਹੀਂ ਵਿਚਾਰ ਜਿਸ ਕੇ ਮਨ ਵਸਿਆ ਨਿਰੰਕਾਰ
Dharti ki paapi gandi aur ashlil chijo me rahu raheta hai ishwar nahi ye future ka baba ramdev lagta hai....
" क्या ईश्वर मल में भी रहता है? \आचार्य वरुणदेव जी \BY VARUNDEV JI \ ARYA SAMAJ MISSION " प्रतीत होता है आर्य-समाज के वक्ताओं ने निर्लज्जता की हदों का ठेका ले लिया है । Thanks . Anando.
आपको अजीब लग रहा है लेकिन बात सही कह रहे है आचार्य जी
@@manish4798 धन्यवाद, आर्य-समाज के ऐसे वक्ताों और श्रोताओं और समर्थकों जो आर्य-समाज का वर्तमान दर्शा रहे हैं । Thanks . Anando.
@@anandot
यह प्रवचन विशेष कर ब्रह्माकुमारी आदि उन संस्थाओं के लिए है, जो ईश्वर को सर्वव्यापक नहीं मानती हैं और इसके लिए तर्क देती हैं कि ईश्वर मल जैसी गन्दगी में विद्यमान नहीं हो सकता है, इसलिए वह सर्वव्यापक नहीं है। क्या आप भी यही मानते हो कि ईश्वर सर्वव्यापक नहीं है? क्या इसलिए आपको यह प्रवचन अच्छा नहीं लग रहा है? 😊
श्रीमान जी श्रीमती जी , सुश्रीजी @@veda-vaani_aacharya-vijay जी, ईश्वर की चर्चा को तो छोडो , ये महोदय तो दयानन्दी-आर्य-समाज मे प्रचलित प्रथा का सगर्व गुणगान करते प्रतीति करवा रहे हैं -- - " आपको पता है - इस संसार में सब [=आर्य-स(न)माजी, वक्ता, श्रोता , समर्थक , ]-लोग एक दूसरे का गोबर ही खाते हैं "(वक्तव्य 7-50 से 7-56 ) - का गुणगान । यदि आर्य -समाज में यही सब कृत-कारिता-अनुमोदिता चलता-चलाया जाता हो तो , क्या इस प्रकार के आर्य-समाज दूर नही रहना चाहिये ? Thanks. Anando.
Are murkh har jagah parmeshwar nahi hota khaskar bhu lok me gandi jagaho par rahu hota hai ...kyu shastro ka satyanash karne betha hai pehle sare ved padh le vedic parmeshwar ke vishay me pata chal jayega....
वेद, उपनिषद और गीता में तो ईश्वर को सर्वव्यापक ही कहा है। लगता है आपने ही शास्त्र नहीं पढ़े। देखो प्रमाण -
👉 *ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।* - यजर्वेद ४०.१, ईशोपनिषद १
- इस जगती में जो कुछ भी जगत् है, यह सब ईश अर्थात् सबके स्वामी परमात्मा से आच्छादित-व्याप्त है।
👉 *तद् दूरे तद्वन्तिके, तदन्तरस्य सर्वस्य, तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः॥* - यजुर्वेद ४०.५
- वह ईश्वर दूर में है, वह समीप में भी है, वह इस सब जगत् और जीवों के अन्दर भी है और बाहर भी है।
👉 *स ओतश्च प्रोतश्च विभूः प्रजासु।* - यजुर्वेद ३२.८
- वह विभूः वा व्यापक परमेश्वर प्रजाओं में ओतप्रोत हो रहा है।
👉 *सर्वा दिशः पुरुष आबभूव।* - अथर्ववेद १०.२.२८
- ब्रह्म-पुरुष सब दिशाओं में व्यापक है ।
👉 *व्याप पूरुषः* - अथर्ववेद २०.१३१.१७
- प्रभु सर्वव्यापक है।
👉 *अनन्तं विततं पुरुत्रा* - अथर्ववेद १०.८.१२
- अनन्त-अन्तरहित ब्रह्म सर्वत्र फैला हुआ है।
*🌷उपनिषदों में सर्वव्यापक परमात्मा🌷*
👉 *सर्वव्यापिनमात्मानं क्षीरे सर्पिरिवार्पितम्। आत्मविद्यातपोमूलं तद्ब्रह्मोपनिषत् परम् ॥* - श्वेताश्वतरोपनिषद् - १.१६
*अर्थ* - *(सर्वव्यापिनम् आत्मानं)* वह सर्वव्यापी परमात्मा (क्षीरे सर्पिः इव अर्पितम्) दूध में घी की भाँति सबमें विद्यमान है, और (आत्मविद्यातपोमूलं) आत्मविद्या एवं तप उसकी प्राप्ति का मूल है। (तद्ब्रह्मोपनिषत् परम्) वह उपनिषत् में कहा गया परम् ब्रह्म है ॥
👉 *एको देवः सर्वभूतेषु गूढः, सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा। कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः, साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च॥* - श्वेताश्वतरोपनिषद् ६.११
- (एको देवः सर्वभूतेषु गूढः) एक ही देव है, जो सब प्राणियों में छिपा हुआ है, *(सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा)* वह सर्वव्यापी और सब प्राणियों के अन्तर में विद्यमान [परम] आत्मा है। (कर्माध्यक्षः) वही कर्माध्यक्ष अर्थात् जीवों के कर्मफलों का प्रदाता, (सर्वभूताधिवासः) सब प्राणियों और पृथिव्यादि में बसा हुआ, (साक्षी) सबके शुभाशुभ कर्मों का द्रष्टा, (चेता) ज्ञानस्वरूप, (केवल) अद्वितीय और (निर्गुण) अर्थात् भौतिक पदार्थों के समान रूप-रसादि गुणों का आधार नहीं है, किन्तु सच्चिदानन्द स्वरूप है।
*🌷गीता में सर्वव्यापक परमात्मा🌷*
👉 *सर्वमावृत्य तिष्ठति॥* - गीता १३.१३
- वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है।
@@veda-vaani_aacharya-vijay mujhe ye ved mantra do ki ishwar srushti ke har kan kan me samahit hai baki sab to me bhi janta hu srimaan...vyapt aur sarvavyapak matlab aprochable and omnipresent not live in all particles ....and atma me vyapt matlab gyan se voh har ek prani o ki activities ko gyan se jante hai..aur baki gun jo apne kahe woh to hai hj usme koi do raay nahi...namaste
@@Ankitpatel-ei6it
सर्वव्यापी का अर्थ ही यही है कि सब जगह वा सब जगत् में व्यापक वा सत्ता से विद्यमान, तो क्या परमाणु वा कण सब जगह वा जगत् से बाहर हैं?? यह जगत् प्रकृति के परमाणुओं से ही बना है और ईश्वर इस जगती के सब जगत् वा परमाणुओं में व्यापक है। देखो वेद मंत्र -
👉 *ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।* - यजर्वेद ४०.१
- इस जगती में जो कुछ भी जगत् है, यह सब ईश अर्थात् सबके स्वामी परमात्मा से आच्छादित-व्याप्त है।
पुनः जब निम्न वेद मंत्र में कह दिया कि ईश्वर सब के अन्दर और बाहर है, तो परमाणु भी *सब* में आ गये -
*तदन्तरस्य सर्वस्य, तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः॥* - यजुर्वेद ४०.५
- वह इस सबके (सब जगत् और सब जीवों के) अन्दर भी है और बाहर भी है।
इसलिये लोगों को मूर्ख न बनायें। सर्व व्यापी का सीधा अर्थ है संसार की *सर्व* वा प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक कण में, सब जीवों में। क्या सर्व का अर्थ नहीं पता?? सब का अर्थ ही संसार की प्रत्येक चेतन और जड़ वस्तु है। संस्कृत और हिंदी नहीं आती, तो अंग्रेजी में वेद मंत्रों का अर्थ समझ लो - God is present everywhere and everywhere includes all things present in this universe, whether living or non-living i.e. the atoms or particles from which the world is made.
गीता का एक ओर प्रमाण भी यही कहता है -
👉 *बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।* - गीता १३.१५
- वह परमेश्वर अचर और चर अथवा जड़ और चेतन, सब ही भूतों वा पदार्थों के बाहर और अन्दर व्यापा हुआ है।
जड़ और चेतन का अन्तर तो समझते होगे या वह भी समझाना पड़ेगा??
धन्य है आपकी बुद्धि को!!
जब सब भौतिक वा जड़ जगत् में ईश्वर है, तो यह जगत् जिस कणों वा प्रकृति के परमाणुओं से बना है, तो क्या ईश्वर उनमें नहीं होगा?? और जब सर्व वा सब कह दिया, तो कोई मन्दबुद्धि ही कहेगा की कण सबमें नहीं आते।
ईश्वर को सारे संसार की जानकारी भी तभी होगी, जब वह सत्ता से सर्वत्र विद्यमान होगा, क्योकि एकदेशी को सारे संसार की जानकारी नहीं हो सकती। जैसे तुम और हम सब एकदेशी जीवात्मा संसार की सभी बातों और स्थानों को नहीं जानते। परन्तु मैं इतना अवश्य अनुमान से जान गया हूं कि तुम बह्माकुमारियों से हो अथवा कुकर्मों के कारण जेल में बन्द रामपाल के चेले हो, जो स्वयं को कबीर का अवतार कहता है और ईश्वर को सर्वव्यापक नहीं मानता, जबकि कबीर ने स्वयं निराकार ईश्वर को अपने दोहों में घट-घट व्यापी कहा है -
👉 रूपेश ठाकुर प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी द्वारा प्रकाशित और संत विवेकदास आचार्य द्वारा संपादित पुस्तक *सद्गुरु कबीर की साखी* के "निजकर्त्ता अंग" में स्वयं कबीर ने निराकार ईश्वर को घट-घट व्यापी कहा है -
अथ निजकर्त्ता को अंग ।। ५४
*आकार राम दशरथ घर डोलै, निराकार घट-घट में बोलै ।। २५ ।।*
- आकार राम दशरत के घर में डोलते हैं और निराकार राम घट घट में बोलते हैं। (घट घट में तभी बोला और सुनाया जा सकता है, जब घट घट में व्यापी हो, जैसे दूर बैठे व्यक्ति के बोल सुनाई नहीं देते, परंतु समीपस्थ व्यक्ति के बोल हम सुन सकते हैं।)
👉 यह भी नहीं समझे, तो एक दोहा और देख लो, जिसमें कहा कि ईश्वर हृदय रूपी घट में मिलता हैं, क्योंकि वह हृदय में विद्यमान है -
*अथ सुमिरन को अंग ॥१३॥*
*सुमिरन तू घट में करै, घट ही में करतार। घट ही भीतर पाइये, सुरति सब्द भण्डार ।। ८५ ।।*
- तेरे प्रभु तेरे हृदय में निवास करते हैं। तुम अपने मन में ही प्रभु का स्मरण करो। वे तुझे तेरे हृदय में ही मिलेंगे और उस अनाहदनाद का सुख भी भीतर ही मिलेगा।
👉 यदि ईश्वर हृदय में नहीं होता, वहां निवास नहीं करता, तो वहांँ मिलता भी कैसे?? गीता में भी ईश्वर को हृदय में बैठा हुआ कहा है -
👉 *ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशे ऽर्जुन तिष्ठति।* - गीता १८.६१
- हे अर्जून! ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय देश में स्थित है।
👉 परमात्मा सर्वव्यापक होने से ही सर्वज्ञ है, एकदेशी जैसे जीवात्मा सर्वज्ञ नहीं होता।
👉 पुनः निम्न वेद मंत्र और गीता अनुसार परमेश्वर के भीतर ही सब लोक हैं, परंतु तुम्हारे अनुसार ईश्वर किसी अन्य वा एक लोक में बैठा है! -
*स्कम्भे लोकाः।* - अथर्ववेद १०.७.२९
- स्कम्भ वा धारण करनेवाले सर्वाधार परमेश्वर में सब लोक हैं।
👉 *यस्यान्तःस्थानि भूतानि॥* - गीता ८.२२
- सब भूत, सब भौतिक जगत् जिसके अन्दर स्थित हैं।
👉 पुनः ईश्वर को दूर ही नहीं, समीप भी कहा है, इसलिये ईश्वर केवल दूर ही नहीं, समीप में भी होकर सर्वत्र है -
*तद् दूरे तद्वन्तिके।* - यजुर्वेद ४०.५
- वह ईश्वर दूर में है, वह समीप में भी है।
*दूरस्थं चान्तिके च तत्॥* - गीता १३.१५
- वह समीप में और दूर भी स्थित है।
👉 अब आप अपना वेद और शास्त्र ज्ञान प्रमाण सहित बताये कि ईश्वर कहाँ सत्ता से विद्यमान है? यह किस मंत्र में लिखा है कि गन्दे स्थानों पर राहु होता है?