श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 226 से 230। पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 5 ก.ค. 2024
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    जय श्री राम 🙏
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    श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 226 से 230। श्री सीता जी का पार्वती पूजन। पं. राहुल पाण्डेय
    निसि प्रबेस मुनि आयसु दीन्हा। सबहीं संध्याबंदनु कीन्हा॥
    कहत कथा इतिहास पुरानी। रुचिर रजनि जुग जाम सिरानी॥
    मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई॥
    जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत बिबिध जप जोग बिरागी॥
    तेइ दोउ बंधु प्रेम जनु जीते। गुर पद कमल पलोटत प्रीते॥
    बारबार मुनि अग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही॥
    चापत चरन लखनु उर लाएँ। सभय सप्रेम परम सचु पाएँ॥
    पुनि पुनि प्रभु कह सोवहु ताता। पौढ़े धरि उर पद जलजाता॥
    दोहा- उठे लखन निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान॥
    गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥२२६॥
    सकल सौच करि जाइ नहाए। नित्य निबाहि मुनिहि सिर नाए॥
    समय जानि गुर आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई॥
    भूप बागु बर देखेउ जाई। जहँ बसंत रितु रही लोभाई॥
    लागे बिटप मनोहर नाना। बरन बरन बर बेलि बिताना॥
    नव पल्लव फल सुमान सुहाए। निज संपति सुर रूख लजाए॥
    चातक कोकिल कीर चकोरा। कूजत बिहग नटत कल मोरा॥
    मध्य बाग सरु सोह सुहावा। मनि सोपान बिचित्र बनावा॥
    बिमल सलिलु सरसिज बहुरंगा। जलखग कूजत गुंजत भृंगा॥
    दोहा- बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे बंधु समेत।
    परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत॥२२७॥
    चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालिगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
    तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई॥
    संग सखीं सब सुभग सयानी। गावहिं गीत मनोहर बानी॥
    सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा॥
    मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता। गई मुदित मन गौरि निकेता॥
    पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा। निज अनुरूप सुभग बरु मागा॥
    एक सखी सिय संगु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई॥
    तेहि दोउ बंधु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई॥
    दोहा- तासु दसा देखि सखिन्ह पुलक गात जलु नैन।
    कहु कारनु निज हरष कर पूछहि सब मृदु बैन॥२२८॥
    देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥
    स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥
    सुनि हरषीँ सब सखीं सयानी। सिय हियँ अति उतकंठा जानी॥
    एक कहइ नृपसुत तेइ आली। सुने जे मुनि सँग आए काली॥
    जिन्ह निज रूप मोहनी डारी। कीन्ह स्वबस नगर नर नारी॥
    बरनत छबि जहँ तहँ सब लोगू। अवसि देखिअहिं देखन जोगू॥
    तासु वचन अति सियहि सुहाने। दरस लागि लोचन अकुलाने॥
    चली अग्र करि प्रिय सखि सोई। प्रीति पुरातन लखइ न कोई॥
    दोहा- सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत॥
    चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत॥२२९॥
    कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन रामु हृदयँ गुनि॥
    मानहुँ मदन दुंदुभी दीन्ही॥मनसा बिस्व बिजय कहँ कीन्ही॥
    अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥
    भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल॥
    देखि सीय सोभा सुखु पावा। हृदयँ सराहत बचनु न आवा॥
    जनु बिरंचि सब निज निपुनाई। बिरचि बिस्व कहँ प्रगटि देखाई॥
    सुंदरता कहुँ सुंदर करई। छबिगृहँ दीपसिखा जनु बरई॥
    सब उपमा कबि रहे जुठारी। केहिं पटतरौं बिदेहकुमारी॥
    दोहा- सिय सोभा हियँ बरनि प्रभु आपनि दसा बिचारि।
    बोले सुचि मन अनुज सन बचन समय अनुहारि॥२३०॥
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