बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' भारतेंदु युग आधुनिक काल Badrinarayan chaudhary 'premghan' Bharatendu Yug

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  • เผยแพร่เมื่อ 29 ส.ค. 2024
  • बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' भारतेंदु युग आधुनिक काल Badrinarayan chaudhary 'premghan' Bharatendu Adhunik Kal
    भारतेंदु युग के लेखक
    बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' का जन्म
    आनन्द कादम्बिनी के सम्पादक
    आनन्द कादम्बिनी पत्रिका के सम्पादक
    रसिक समाज
    सद्धर्म सभा
    बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' की रचनाएं
    Bhartendu yug ke lekhak
    Badrinarayan chaudhary 'premghan' ka janma
    Aanand kadambini Patra Ke Sampadak
    Aanand kadambini Patrika Ke Sampadak
    Aanand kadambini Patra kahan se prakashit hoti thi
    Aanand kadambini Patrika kahan se prakashit hoti hai
    Aanand kadambini Patra kahan se nikalta tha
    Aanand kadambini Patrika kahan se nikalti hai
    Rasik samaj
    Saddharma sabha
    Nagari neerad
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    ‎@hindikiduniyase
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    ABOUT THIS VIDEO-
    इस वीडियो में आपको बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी।
    भारतेंदु युग के सुपरिचित लेखक
    भारतेन्दु मण्डल
    बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय "प्रेमघन" का जन्म 1 सितम्बर 1855 ई० को मिर्जापुर का दात्तापुर गाँव में।
    पिता -पं॰ गुरुचरणलाल उपाध्याय। प्रेमघन जी इनके ज्येष्ठ पुत्र थे ।
    शिक्षा- अंग्रेजी, हिंदी और फारसी के साथ ही साथ संस्कृत की शिक्षा की व्यवस्था तथा पं॰ रामानन्द पाठक को अभिभावक शिक्षक नियुक्त किया।
    बद्रीनारायण चौधरी की पं॰ इन्द्र नारायण सांगलू से मैत्री हुई। "अब्र" (तखल्लुस) उपनाम रखकर गजल, नज्म और शेरों की रचना। सांगलू के माध्यम से दोस्ती भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से हो गयी। भारतेंदु जी के निधन पर 'शोकाश्रुबिन्दु' रचना लिखी।
    1873 ई. (वि. सं. 1930) में प्रेमधन जी ने "सद्धर्म सभा" तथा 1874 ई.(1931 वि. सं.) में "रसिक समाज" की मीरजापुर में स्थापना।
    1867ई. में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के सम्पादन में बनारस से मासिक पत्रिका "कवि-वचन-सुधा" प्रकाशित होना शुरू हुई।
    आनन्दकादंबिनी मुद्रणालय।
    पत्रिकाएँ -
    आनंद कादंबिनी (जुलाई 1881ई.) - मिर्जापुर से मासिक
    नागरी नीरद (1892 ई.) - मिर्जापुर से साप्ताहिक
    हिन्दी पुस्तकीय आलोचना की शुरुआत:-
    बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' ने 'आनंद कदंबिनी' में लाला श्रीनिवास दास कृत 'संयोगिता स्वयंवर' की विस्तृत समीक्षा प्रकाशित की थी। यहीं से हिंदी आलोचना की शुरुआत हुई । रामचंद्र शुक्ल जी ने ’आनंद कादंबिनी’ से और बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' से हिन्दी पुस्तकीय आलोचना का सूत्रपात माना।
    प्रेमघन के गद्य शैली की सबसे प्रमुख विशेषता है कलात्मकता। ये कलम की कारीगरी दिखाने में विश्वास करते थे ।'गुप्त गोष्ठी गाथा' और 'दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार' जैसी प्रौढ़ रचनाएं इसका प्रमाण है।
    प्रेमघन की गद्यशैली की समीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे "खड़ी बोली गद्य के प्रथम आचार्य" थे।
    प्रेमघन जी ब्रजभाषा को कविता की भाषा मानते थे ।
    काव्य-
    जीर्ण जनपद
    अलौकिक लीला
    हार्दिक हर्षादर्श
    लालित्य लहरी
    युगल स्रोत
    होली की नकल
    प्रेम पीयूष वर्षा
    हास्य बिंदु
    स्वागत सभा
    सूर्यस्त्रोत
    आनंद अरुणोदय
    मंयक महिमा
    वर्षाबिंदु
    कलिकाल तर्पण
    बृजचंद पंचक
    पितर प्रताप
    मन की मौज
    मंगलाशा
    भारत बधाई
    आर्याभिनंदन
    भारत भाग्योदय
    संगीत काव्य
    कजली कादंबिनी
    नाटक -
    भारत सौभाग्य (1888)
    प्रयाग रामागमन
    वृद्ध विलाप
    वीरांगना रहस्यमहानाटक (वेश्या विनोद महानाटक)
    निबंध -
    1.बनारस का बुढ़वा मंगल
    2.दिल्ली दरबार में मित्र मंडली के यार
    आलोचना -
    1.संयोगिता स्वयंवर एवं
    2.बंगविजेता की आलोचना
    3. 'बेसुरी तान'
    कजली कादंबिनी
    प्रेमघन, हिंदी साहित्य सम्मेलन के तृतीय कलकत्ता अधिवेशन के सभापति (सं. 1912) मनोनीत ।
    भारतेंदु मंडल में बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, बद्री नारायण चौधरी 'प्रेमघन', राधा चरण गोस्वामी, राय कृष्ण दास, पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित सुधाकर द्विवेदी, पंडित गोविंद नारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, पंडित किशोरी लाल गोस्वामी और रामकृष्ण वर्मा थे।
    भारतेंदु युग या नवजागरण काल- (1868ई. से 1900 ई. तक)
    दादाभाई नौरोजी को लंदन में काला कहने पर इन्होंने लिखा -
    अचरज होत तुमहुँ राम गोरे बाजत कारे,
    तासों कारे ’कारे’ शब्द हुँ पर हैं वारे।
    कारे कृष्ण, राम जलधर जल बरसनवारे,
    कारे लागत ताहीं सों कारन कौं प्यारे।
    प्रेमधन जी की 68 वर्ष की अवस्था में फाल्गुन शुक्ल 14, संवत् 1980 को मृत्यु हो गई।
    प्रेमघन की कृतियों का संकलन दिनेशनारायण उपाध्याय ने किया जिसका "प्रेमघन सर्वस्व" नाम से हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा दो भागों में प्रकाशन ।
    1. किय सनाथ भोली-भारत की प्रजा अनाथन धन्य भूमि भारत सब।
    2. धन्य भूमि भारत सब रतननि की उपजावनि।
    3. बगियान बसंत बसेरो कियो, बसिए तेहि त्यागि तपाइयेना।
    4. निरधन दिन-दिन होत है, भारत भुव सब भाँति।
    5. भयो भूमि भारत में, महा भयंकर भारत ।
    शुक्ला जी ने इन्हें विलक्षण गद्य शैली का गद्य लेखक कहा है ।
    भारतेंदु युग की विशेषताएं
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ความคิดเห็น • 4

  • @ChhotoKuamr-nv8jg
    @ChhotoKuamr-nv8jg 2 หลายเดือนก่อน +2

    Thanku sir

  • @ChhotoKuamr-nv8jg
    @ChhotoKuamr-nv8jg 2 หลายเดือนก่อน +1

    Thanku sir ❤❤❤❤❤

  • @RupaTamsoy
    @RupaTamsoy 8 วันที่ผ่านมา

    Thank you sir

  • @RupaTamsoy
    @RupaTamsoy 8 วันที่ผ่านมา

    Question ka answer mayank mhima