राष्ट्रीय बाल साहित्यकार सम्मेलन 2023 द्वितीय सत्र

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  • เผยแพร่เมื่อ 26 ส.ค. 2024
  • द्वितीय सत्र
    जीवनी विधा पर पैनल चर्चा
    राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नई दिल्ली द्वारा ‘बाल साहित्य में जीवनी विधा लेखन’ पर पैनल चर्चा आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संजीव कुमार ने की। न्यास की ओर से उपस्थित संयोजक द्विजेन्द्र कुमार ने पैनल चर्चा का संचालन किया। उन्होंने विषय प्रवेश करते हुए प्रौढ़ साहित्य में लिखी जानेवाली और बाल साहित्य में लिखी जानेवाली जीवनियों में अंतर बताते हुए उनकी उपयोगिताओं को रेखांकित किया और लेखन के विभिन्न कौशलों से अवगत कराया। विषय विशेषज्ञ डाॅ. सतीश कुमार ने जीवनी लेखन विधा की विशेषताओं को इंगित करते हुए बताया कि लेखन ऐसा हो जो बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत करे। उनकी उत्सुकता बढ़ानेवाला तथा उनके भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध हो। लेखन में संवाद की अधिकता रहे तथा भाषा सरल, सटीक और आयु वर्ग के स्तर को देखते हुए हो। प्रकाश तातेड़ ने जीवनी विधा का विस्तार से विश्लेषण करते हुए कहा कि जीवनी लेखन में पाॅपुलर व्यक्ति का चयन किया जाना चाहिए। एक से अधिक जीवनी पुस्तकों का स्वाध्याय कर फिर सृजन करें। स्त्रोत चयन का उचित रूप से उपयोग किया जाना चाहिए। प्रस्तुतीकरण में प्रारंभ व अंत सही ढंग से हो। बाल जीवनी अधिक बड़ी ना हो। इसमें अनावश्यक बातों, जिनका वर्तमान समय में कोई औचित्य नहीं हों, का समावेश नहीं होना चाहिए। शब्द सीमा और वर्तनी शुद्धि पर भी ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि बाल जीवनी का पहला पैराग्राफ जिज्ञासा बढ़ानेवाला हो। वह दृष्टांत आधारित हो। वह ऐतिहासिक तथ्यों पर अवलम्बित हो। कॉपीराइट का उल्लंघन ना हो इसका अवश्य ध्यान रखा जाए। बालिका पाखी जैन ने अपनी स्वरचित कविता को बड़े ही आत्मविश्वास के साथ सुनाई। इस प्रकार से वरिष्ठ साहित्यकारों के बीच बाल साहित्यकार को प्रोत्साहन दिया गया और डॉ. विमला भंडारी ने पाखी को श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए टॉफी पैकेट और पुस्तक उपहारस्वरूप प्रदान की। डॉ. विमला भंडारी ने जीवनी विधा में लेखन के नवीन आयामों के रूप प्रस्तुत करते हुए कहा कि इसमें विविधता हो जो जोड़ने में सक्षम हो। लेखन ऐसा हो कि बच्चों को बांधे रखे। इसमें नाटकीयता, रहस्यमयता, गोपनीयता हो। जीवनी लेखन में सार्थकता का होना भी आवश्यक है।
    शक्तिराज कौशिक और रेखा लोढ़ा ने जीवनी में अनछुए पहलुओं के चयन पर जोर दिया। लता अग्रवाल ने जीवनी में व्यक्ति के संपूर्ण जीवन के संघर्षों और उपलब्धियों को समाहित करने पर बल दिया। गंगाधर शर्मा ने कहा कि जीवनी सत्य घटनाओं पर आधारित होती है। यह बहुत कठिन विधा है। अतः इसकी सावधानीपूर्वक रचना की जानी चाहिए। कुसुम अग्रवाल ने जीवनी में रोचकता की महत्ता बताते हुए कहा कि इसकी शुरुआत किसी घटना से हो।

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