शरणानन्द जी की क्रांतिकारी विचारधारा में साधक को किसी के पदचिन्हों पर नहीं चलना है, अपितु निज विवेक के प्रकाश में रहना है अर्थात स्वाधीनता से अपनी आँखों देखना हैं, अपने पैरों चलना हैं।
वस्तु, व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति आदि का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है, इनकी ममता व कामना बनाये रखना सबसे भारी भूल है। इन्हीं से सम्बन्ध जोड़ने का अर्थ है-”है“ से विमुख होना।
Guru kripa.
Satya darsan❤.
Sitaramhanuman 🙏👏 Ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram ram 🙏🙏
In uch koti ke mahan sant ko mera koti koti naman
Pranam
Thanks
शरणानन्द जी की क्रांतिकारी विचारधारा में साधक को किसी के पदचिन्हों पर नहीं चलना है, अपितु निज विवेक के प्रकाश में रहना है अर्थात स्वाधीनता से अपनी आँखों देखना हैं, अपने पैरों चलना हैं।
Om
🙏हरि शरणम् 🙏
Dandvat pranam Maharaj ji.
Aapko koti koti pranam 🙏.
वस्तु, व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति आदि का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है, इनकी ममता व कामना बनाये रखना सबसे भारी भूल है। इन्हीं से सम्बन्ध जोड़ने का अर्थ है-”है“ से विमुख होना।
Om
Om
ॐ