Bhai the rajputs had migrated to Rajasthan and Central India after the lost of our Samrat Prithviraj Chauhan in 1192 mainly the Chauhans and the Tanwars now Tomars in order to protect their clan....
And secondly during the Mughal Period the gujjar started living there and as their habit they in 20 century started calling themselves as the real tanwars etc.but the history reveals all the truth how the chauhans and the tanwars the real rajputs migrated to different parts of Hindustan in order to save their clan.....I'm also a Chauhan Rajput of MP and still many tomars live with us and the others chauhans and tomars living in other parts know the reality we still worship the same kuldevi and in our vanshawali it is clear that the chauhan and tomar have migrated and same the history says and rest of the chauhan n tomar all knew that fact and it was almost 800 yrs old history so how can v prove it
And it's a common sense that the muslims want the rajput to accept islam so definitely after the war Ghori want all the chauhan and tomar to accept islam so that's why we migrated to protect clan and our religion in those who didn't migrated were either slained or converted into muslim so it's a common sense how the muslim left the gujjar if they were the chuhans or tomar....
@@Aghori_Tantrik208 yaaa bro true...i m tanwar rajput living in kurukshetra haryana and by the blessings of our great ancestors living a very blissful lyf...tanwar rajput of kurukshetra haryana donated 250 acres land for a university without taking a single rupee from govt..jai rajputana
Dhokhe se hi haraya tha...usne bola tha maine haar maan li main waapis jaara hun Inhone sena waapis bhej di Ajmer Uske baad usne pith pe waar kiya dhokhe se bina btaye hamla krdiya aur yha sab log jashan mnare the talwar shoad kar Tabhi wo le gaya Prithviraj Chauhan ji ko...par acha huya ghar main ghus ke maara usko uski puri sena ke saamne
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे। गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था। स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है। डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं। डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं। नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है। जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे। Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI shilalekha se bada koi proof nh 💪 नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है। गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे। मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था। मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।................. इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं। ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
@@Raghukulvasi2003 bekoof phele jaker shilalekha to pad le wha Rajput ka to word tk nh milta Or Gurjar likha h Par reality tmhe bhi pta h Ki Gurjar Rajao ki Aulaad Rajput bni😆😆😆😆😆 अरबी लेखक अलबिलादूरी ने लिखा है कि खलीफा हासम के सेनापति ने अनेक प्रदेशों की विजय कर ली थी परंतु वे उज्जैन के गुर्जरों पर विजय प्राप्त नहीं कर सका और और सिंध के गवर्नर जुनैद के उत्तराधिकारी निर्बल शासक र्सिद्ध हुए जिनके शासन काल में गुर्जरों के कारण अरबो को अनेक जीते हुए भाग छोड़ने पड़े सुलेमान नामक अरब यात्री ने गुर्जरों के बारे में साफ-साफ लिखा है कि गुर्जर इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु है और जोधपुर अभिलेख में लिखा हुआ है कि दक्षिणी का चाहमान वंश गुर्जरों के अधीन था कहला अभिलेख में लिखा हुआ है की कलचुरी वंश गुर्जरों के अधीन था चाटसू अभिलेख में लिखा हुआ है की गूहिल वंश जोकि महाराणा प्रताप का मूल वंस है वह गुर्जरों के अधीन था पिहोवा अभिलेख में लिखा हुआ है कि हरियाणा का शासन गुर्जरों के अधीन था खुमाण रासो के अनुसार राजा खुमाण गुर्जरों के अधीन था और इसके अलावा अगर आप इतिहास में गुर्जरों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको भी भिलमलक्काचार्य का ब्रह्मा स्फूट सिद्धांत उद्योतनसुरी की कुवलयमाला कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी प्रबन्ध कोष ग्रन्थ व खुमान रासो ग्रंथ के अनुसार गुर्जरों ने मुसलमानों को हराया और खुमान रासो राम गया अभिलेख बकुला अभिलेख दौलतपुर अभिलेख गुनेरिया अभिलेख इटखोरी अभिलेख पहाड़पुर अभिलेख घटियाला अभिलेख हड्डल अभिलेख रखेत्र अभिलेख राधनपुर और वनी डिंडोरी अभिलेख राजशेखर का कर्पूर मंजरी ग्रंथ, काव्यमीमांसा ग्रंथ ,विध्दशालभंजिका ग्रंथ कवि पंपा , जैन आचार्य जिनसेन की हरिवंश पुराण आदि के द्वारा दिया गया विवरण पढ़ सकते हैं आपको वास्तविक सच्चाई मालूम हो जाएगी Pad lena or ho sake to kisi historian ko bula lena Ya court mai case kr do ki kn Gurjar tha kn Rajput pta chal jayga reality😆😆😆😆😆😆😆😆😆😆
@@Raghukulvasi2003 ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड में एक श्लोक है - क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह” अर्थात् क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं। वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ व संस्कृत के विद्वान् पं० चिन्तामणि विनायक वैद्य के मतानुसार ई० सन् 800 से 1100 के बीच राजपुत्र बने हैं। प्राचीन ग्रन्थों में न तो राजपूत जाति का उल्लेख है और न राजपूताने* का। Bhosdi gand mai bhar lena isko ab😆
Kai ese gujjar bhi hay Jinne chauhan name churaliya or khud ko Raj put aur maharaj sri prithviraj ka vansh mante hay. Per yhe ek bohot bada jhut hay take inko Raj put mana Jay per rahe y gujjar hi. 👳 Jay rajputana 👳👑💪.kyuki ek ya do jagao ko chodh k baki sare CHAUHAN. Raj put HAY NA K gujjar. Inka chauhan vansh se koi nata Nhi hay. Chauhan sirf Raj put hay 💪👑. Koi gujjar pujjar nhi 😂.
Excusme Karan shab gujjaro ka etihaas 425 esvi se h or rajputu ka 1200 esvi se h gujjaro ka etihaas bhut Purana h samjhe .or prithviraj raso me BHI prithviraj ko gujjar he btaya gya h or unka gotra kalsyaan tha okkk mere Bhai tum log gujjaro se mat jla karo
Karan ji aapas me ladane se kuch nahi hoga.....aap prathviraj raso padiye....us se aapko puri history pata lagegi....aapase ek dusre se ladne ka koi fayada nahi....rajput aur gurjar ek hi h....Lekin ise vo hi samjh payega.....jo itihas ko acche se samjhega.....Verna aapas me ladte rahiye.......
@@avinashkhatana9285 sare gujjar rajputo se connect nahi he bas 40% gujjar rajputo se nikal k bane he ...jisme tere kalsya kulyan chauhan basoya baisla bhati chandel tomar katariya chhoker chavda khatana ...aur bhi kai clan... same jato me tomar bhati chauhan parmar solanki rathoro jadauno dahiya katariya chhokar khhokar in rajao ki clan he ....
😂😂😂😂😂 Chutiye phele thang se padha hota to pta chalta tm Khud Gurjaro ko apna papa khete ho👇 रानी लक्ष्मी कुमारी, चुडावत, (राजपूत ) ने राजस्थान का एक लंबा इतिहास लगभग 800 पृष्ठों पर लिखा है। 10 वीं शताब्दी ईस्वी की एक सत्य घटना पर वह लिखती हैं, देव नारायण गुर्जर ने अपने बिखरे परिवार के सदस्यों को एकत्र किया । उसके चचेरे भाइयों में से एक फर्श कालीन पर बैठा था, देवा नारायण ने उसे बुलाया, हे भाई, वह राजपूतों के बैठने की जगह है, तुम यहाँ सिंहासन के पास आओ। उन्हें लगता है कि गुर्जर वर्ग सभी राजपूतों के लिए एक श्रेष्ठ वर्ग है. गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)
सोमनाथ मंदिर को करने नष्ट प्रभास पहन को करने नष्ट चलदिया गजनी से महमूद संग ले गोले और बारूद विश्व विजय था उसका लक्स लट खसोट मे वह था दकस राह मे आई अनेको बाधा सैन्य बल भी खप गया आधा थे मनसूबे उसके मजबूत रोक ना सके उसको कोई पूत राह मे पड़ता था मुल्तान जा पहुचा वहा पर सुल्तान मुल्तान का शासक था अजयपाल बन गया महमूद की ठाल हो गया अजयपाल बैइमान नाम डूबा बैठा चौहान सुन अजयपाल की करतूत आपा खो बैठा गुर्जर का पूत था वो बापा रणवीर बुठा सेर गजब का वीर चौहान खानदान की आन सम्राट गुर्जरेष्वर की शान पर आगे दाग ना लगने दूगा सोमनाथ को ना जलने दुगा मिट गया वीर देशधर्म पर कर आधात महमूद मरम पर भूला ना ऊनको हम पाऐगे तुझे घोघो बापा हम गायेगे दी खूब मार था लिया घेर महमूद जब पहूचा अजमेर हिन्दू धर्म का है भाग्य मन्द यहा हर युग मे जन्मे जयचंद देकर कपट व देकर धोखा महमूद भी पा गया था मौका करके सुलह सान्ती का नाटक जा पहुचा पुष्कर के फाटक सतरान ध्यान मे था गुर्जर चौहान पिठ पे वार कराया सुल्तान था लडता जाता बठता जाता उसका सैन्य बल घटताजाता उसको ना रोक सकी कोई उसका लक्स ही था गुजरात महमूद की परतिसा मे अधीर था गुर्जर भू का गुर्जर वीर बडा ही पराक्रमी ओर बलवीर जिसकी थी रतक प्याशी शमसीर ।।।महमूद की खत्म करने नौटंकी गुर्जरेष्वर वीर भीमदेव सोलंकी लेकर अपनी सैना एक लाख महमूद के सपने करने खाक जा पहुचा महालय सोमनाथ मानो वहा खुद पशुपतिनाथ कर रहे हो सन्य संचालन करके धर्म और मर्यादा पालन था तत्पर गुर्जर कुल गौरव रण सेतर मे मचाने रौरव दोनो पकस के सैनिक बठ गये अस्वरोही अश्वो पर चठ गये थी चमकी ऊटो पर तलवार थे हाथियो पर हाथो असवार बड़ी भयंकर हुई लड़ाई महमूद ने उसदिन पार ना पाई खाकर अच्छा खासा जन नुकसान पिछे हट गया था सुल्तान दूसरे दिन युध्द हुआ घनघोर चारो और मच गया शौर या मेरे मौला हमै बचाओ गठ गजनी की राह दिखाओ दे हर हर महादेव का नारा अरिदल को था खूब ही मारा गुर्जर काछी और भील शत्रु दल के सिर मे ठोक रहे थे किल करके शत्रु मार्ग अवरुद्ध भीमदेव गुर्जरेष्वर कर रहा था युध्द उसकी खडग थी जशन मनाती बार बार वह खून मे नहाती
+CHANDAN CHAUHAN अबे बेटे चौहान से पहले वो वीर गुर्जर है ।।।बेटे गूगल सर्च कर ले ।।।गुर्जरो का ही पग पुजो राजपुतो ।।।जय पन्ना धाय माता गुर्जरी मा ।।।।।।।हम तो सम्राटो के सम्राट पण हे हम वीर गुर्जर दहाडते तो फिर फाडते है ।।।।।।।।।।।।ये मत सोचो कि सेर के पेर मै काटा लगने से अब कुत्ते राज करगे ।।।।।लेकिन राजपुतो तुम्हारे ईतिहास खंगाल के देखले तुम्हारे नाम के पीछे दास लगाते थे और वीर गुर्जरो के साथ राज लगता है बेटे ।।।।।और सुन तू म सभी ।।।।वीर गुर्जरो और बडगुर्जरो की ही संतान हो आज तुम्हारे बाप से बात करने लगे हो ।।सुन बेटे ।।।।अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर ।।।।।।जय गुर्जरेश्वर जय गुर्जरेन्दर दरबार जय वीर गुर्जर दरबार ।।।।।जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल प्रतिहार मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। 👑जय गुर्जर दरबारो 👑जय गौ कु ल 👑
@CHANDAN CHAUHAN गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे। गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था। स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है। डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं। डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं। नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है। जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे। Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI shilalekha se bada koi proof nh 💪 नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है। गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे। मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था। मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।................. इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं। ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
@CHANDAN CHAUHAN shi tere barbari krni nh jb tk gurjar raja rhe tb tk koi muslim india mai nh aasaka or ye khud muslim writer suleman ne khi hai 10th century or jb tm rajput word aya to india par muslimo ka gulam bn gya tm muslim ke gulam bn gye or fir unke sth sadi or angrejo ki gulami ki tune tm hamari ek percnt barbari nh kar sakte samjha
गुर्जर (तोमर)बाबाजी आपके बारे में हम जानते है ,लेकिन आपको पूरी बात बतानी चाहिए थी , की दिल्ली में व आस - पास के क्षेत्र में गुर्जर (तोमर , तँवर) रहते है ! और राजस्थान में (चौहान) गुर्जर रहते है ,( यू.पी.)में चौहान राजपूत मैनपुरी व आस - पास के क्षेत्र में ! धन्यवाद ! " जय हिन्द " "जय भारत "
bewkoof rajsthan haryana me sbhie chauhan rajput ha..kota,bundi pe raj krne wale hada makrana jalore pe raj krne wale songira chauhan rajput ha pure desh me ha chauhan aur tomar rajput
Beta tomer rajput sadiyo we chle aa rhe hai jammu main abhi bhi tum gujjar gochar ke naam se hi jaane jaate ho kyunki waha reservation nhi paas ho rha itehass choro 😂
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर गुर्जर बनिया गुर्जर लोहाणा गुर्जर जैन गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
th-cam.com/video/x8EGwh90Tds/w-d-xo.html 👆लाल कोट (राय पिथोरा) किले (दक्षिण दिल्ली) भाई जो प्रूफ करना है सिर्फ शिलालेख और अभिलेखों पर करो वो क्या कहते है उन्हीं राजाओं के तुंगध्वज राजा जो पांडवो के 84 पीढ़ी में हुए और तुंगध्वज के वंशज तुंगड़ कहलाये तो पहले तूंगड़ गोतर था फिर आगे चलकर ये तंवर कहलाये और आगे चलकर राजा तोम हुए जिनके वंशज तोमर कहलाये और आपको नहीं पता जब दिल्ली से तंवरो का राज उसके बाद भद्रवती में रियासत बनाई थी 12वी सतबादी में और वहीं से उनके कुछ वंसज ने भद्रावती से निकलकर ग्वालियर में जा बसे और ग्वालियर में रियासत बनाई पर भद्रावती रियासत को 17वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया और ग्वालियर की रियासत को 16वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया तुंगध्वज( तुंगपाल) ( कर्नाटक में तुंग भद्र नदी के किनारे तुंगभद्र नामक राज्य बसाया वहाँ आदि गद्दी स्थापित की ) तुंगध्वज के वंशज तूंगड़ कहलाए और तूंगड़ से तंवर बने - > अभंग - > ज्वालपाल ( जवलपाल ) - > गवाल ( गवल ) ( इनके नाम पर बाद में गोपाचल पर्वत पर गवालियर राज्य बसाया गया ) - > लोरपिण्ड - > अडंगल ( अदंगल ) - > गणमेल - > नभंग - > चुक्कर ( चुक्कार ) - > तोम (राजा तोम के वंशज तोमर कहलाये और फिर आगे चलकर ग्वालियर पर राज किया) - > द्रव्यदान - > द्रुज्ञ > मनभा ( मनभ ) - > कारवाल ( करवल ) > कलंग - > कंध - > अनंगपाल ( इन्द्रप्रस्थ - महाभारत सम्राट - पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 - 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ' जयानक ' ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है । Inscrition of Tanwar 👇 The territory ruled over by the Tanwar (Tungad) comprised of mod en east Punjab . Hariyana and the upper Doab of the rivers Ganges and Jamna . The first available historical reference to the Tanwar (Tungad) family is the inscription undated but pertains to the time of Mahendra Pal , the Gurjar emperor of Kanaui who ruled 890 to 910 A . D . In this inscription Gogga , adescendant of Bhunath Jaula is men tioned as a dignified administrative officer of the emperor Mahendra Pal the Gurjar Pratihar . Bhunath means , the lord of earth , a Raja . Dr . Bhandarker has interconnected this Bhunath Jaula with Maharaja Torman Javul ( Inscription now in Lahore Mu seum ) and Jaola of Kara and had concluded by these three inscrip tions that Tanwar (Tungad) and Pratihars are Gurjars . The same view had been adopted by Dr . A . F . Rudolf Hornale , Mr . V . A . Smith , Mr . Rapson , K . M . Munshi , Yatendra , Kumar Verma etc . etc . in their history books . Rahim Dad Khan Maulai Shadai writes . " In 816 , Nag Bhata Raja of Gujar Qaum , ( Gurjar race ) conquered Kanauj . The Gujars ruled there for two countries . Among them Raja Bhoj ( Mihir Bhoj ) was most famous . " A branch of the Gujars was Tanwar(Tungad ) who founded the kingdom at Delhi . [ See page 56 Tarikh Janatul Sindh ( Written in Sindhi language ] . Also T . G . page 295 लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज थे। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तंवर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तंवर था 1551 सदी का शिलालेख👇 तंवर( तोमर )वंश - 282 . गुर्जर का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास सिधे संवतु 1551 वर्षे गूरजैर श्री राजमानसीघदेवा वचनतु पूथाना सटोजरामलगगेर सारयो । । राजा की तसलिमा कामु जायै । । सुत्रधरे पजू महलनं खीरंसु मनूव सानेग समा बढ़ई रमू सिलहरी गर्ने धनूत मई । चादु । टूवल सूवाकयो वोहरीत्र । उपरोक्त शिलालेख का अनुवाद इस प्रकार से है : - . संवत् 1551 ज्येष्ठ बुदी - 2 गुर्जर श्री मानसिंह देव के आदेश पालना में सागर ( गगेर ) को स्वच्छ किया गया । इस शिलालेख की पहली पंक्ति से अवगत होता है कि राजा मानसिंह तोमर गुर्जर था । जून 1988 में भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग ने खंडार सवाईमाधोपुर ( राजस्थान ) के किले ( दुर्ग ) में काफी शिलालेख उपलब्ध किये हैं जिनमें एक शिलालेख में राजा मानसिंह तोमर ग्वालियर को स्पष्ट शब्दों में गुर्जर लिखा है ( श्री प्रकाश बाफना - नवभारत टाइम्स ( हिन्दी ) जयपर , 7 जून , 1988 ईस्वी पृष्ठ . 2 कालम 5 - 5 ) । यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1568 का है जोकि उसी से अवगत होता है । खंडार दुर्ग सवाई माधोपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है । किचं यथा क्षत्रियपि गुर्जरा । गुर्जराणा क्षत्रियाणामभावे गुर्जराख्यो जनपदः कथंस्यात । द्रश्यन्ते हि बंगा अंगा कलिंगादयो जनपदाः क्षत्रिया ख्यैव प्रसिद्धिगताः । स्पष्टं चेदं जनपद शब्दाक्षत्रियादभित्यादि पाणिनी सूत्रैः गुर्जरे व्याख्या च क्षत्रिये स्वैव मुख्याभवति ब्रह्मणादिषुतु देश सम्बन्धाज्जायते ।। तथाहि गुरी उद्यमने इति धातोः सम्पदादित्वाद्भावे विकल्प गुरं शत्रु कलंक शत्रोद्यमनेजरयति नाशयति इति गुर्जराः शब्द कल्य दूमेऽयेतादर्श व्युत्पत्ति प्रदर्शिताः ।
ye to bakwas hai k Ghouri ko prithvi raj ne 16 bar haraya... 1st time prithvi raj defeated Ghouri then 2nd attempt Ghouri conquer prithviraj chauhan... aur choonti wali example true hai.. both were great & brave Raja's of their time but have to say Ghouri ki will zyada strong thi shyd.. the fact is that pathans & Rajputs are the most brave communities of Asia no one should doubt about it...
Are tau ji mohomad gori ko kis ne mara ye bi btao maharaja jahawar सिंह ने मारा था bhartpur वालों ने thoka tha use दिल्ली me jake gate toad के लाए थे jahawar सिंह दिल्ली से. आज बी वो गेट bhartpur me h jake dekh lo उन का name bi btao jara jaato ne mara tha mohomad gori ko
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर गुर्जर बनिया गुर्जर लोहाणा गुर्जर जैन गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
ab khud hi soch lo prathvi raj chouhan ko apni jati ka batate hain ye gujjar lakin in logo ko to ye bhi nahi pta hoga ki prthvi raj ji ki asthiya kahan thi unki asthiya lane vala bhi ek rajputra hi ab ye log 100 sall badd sher singh rana ko bhi kahi gujjar n bana dale haaaaaa
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे। गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 4 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था। स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है। डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं। डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं। नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है। जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे। Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI shilalekha se bada koi proof nh 💪 नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है। गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि गुर्जर राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था। मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।................. इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं। गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त था। ये भाग सामन्तों द्वारा शासित किये जाते थे। इनमें से मुख्य भागों के नाम थे: शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान) दिल्ली के तौमर मंडोर के गुर्जर प्रतिहार बुन्देलखण्ड के कलचुरि मालवा के परमार मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल महोवा-कालिजंर के चन्देल सौराष्ट्र के चालुक्य
पेहोवा शिलालेख Shilalekha se bada koi proof nh hai करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई। दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी। गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
@@prashant44208 arey bhai iske piche kayi kaaran hai. Wo chor ab sunn haryana me jaato ne arakshan ke liye andolan kiya tha, rajasthan me rajputon ne bhi arakshan ki maang ki thi. Aarakshan present situation ko dekh kar diya jaata hai naa ki paste ko
आदरणीय चंदरबरदाई जी चारण धे जो कि एक देवजाती होती है ना कि भाट कृपया संशय ना फैलाय । सत्य के लिए धॆमग्रथों गीतापेस गूगल विकीपिड़ीया देखे । जय माता जी की । जय क्षत्र । भाई शेरसिंह राणा जी ने साहसिक काम किया है ।
Ye baat jhuth hai, Prithvi raj 1192 mein mar gaya tha or k ghauri 1206 mein....toh abb na kisi insan ka dubara zinda hona mumkin hai or na kisi mare hue ka raaja bane rehna fir kaise pritvi raj nae ghauri ko mara...ye sbb pritviraj raso mein likha gaya jhuth hai jise sabhi itihas karo nae manghadant bataya hai
सन सातवीं सदी के बाद उसको राजपूत काल खंड कहां गया इसके पहले कोई राजपूत है ही नहीं आनंदपाल की बात है आनंदपाल खटाना Gujjar pratihar जाति से थे अंगत पाल तोमर की बात है वह गुर्जर वंश के प्रतापी राजा थे आधा हिंदुस्तान 12 वीं सदी से पहले गुर्जर राष्ट्र कहलाता था या गुर्जर देश से जाना जाता था यह राजपूतों की उत्पत्ति गुर्जर राजवंश से हुई राजपूतों के अंदर क्षत्रिय का गुण होता तो यह गुजरी का दूध नहीं पता यह बात तो साफ है कि यह गुजर मन से ही पैदा हुई जाति है इसलिए इसको गुजरी का दूध पता था
TANWAR/TOMAR/TUNWAR Kushan samrat used the word Gusur in Rabatak inscription.. some say it means man or woman of high family.. later this converted into Gojar/Gujjar/Gurjar. Gurjars had the most prominent Ruling Dynasties. They ruled almost over whole modern day north India , Pakistan, Afghanistan as Kushan empire, Huna Empire and famous Gurjara Pratiharas.The Gurjar Era (1st century to 12th century) Gurjara-Pratihara - Wikipedia Before Rajputana , whole of modern day Gujarat and Rajasthan was known as Gurjaratra ( the land ruled and protected by Gurjars). The pratiharas belonged to the same clan that of Gurjaras was proved by the “Rajor inscription”.From the phrase “Gurjara Pratiharanvayah” inscribed in the “Rajor inscription”.It is known that the Pratiharas belonged to the Gurjara clan.The Rashtrakuta records and the Arabian chronicles also identify the Pariharas with Gurjaras. In the ancient history’s Maha Kavi BalShekar’s “Balbahrat prachand pandav granth” and Great Mihir Bhoj Partihar’s “Sagar Taal Prashti”, it has mentioned that Gurjars are Suryavanshi and they are the successors of great Raghukul (successors of Ikshvaku, Prthu, Harischandra, Ragu, and Dasrath). In Markandai Puran and Panchtantra, there is a reference of the Gurjar tribe. Moreover, the word Gurutar (Gurjar) has mentioned in the epic Ramayana for Maharaja Dasrath. नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है। गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुर्जर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था, क्योंकिभोज राजाओं ने 10वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हूणों और कुषाणों की नई पहचान थी।अतः हूणों और उनके वंशज गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण एवं विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहूण औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिन्दू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। निश्चित ही इन सम्राटों ने हिन्दू समाज को बाहरी और भीतरी आक्रमण से निजाद दिलाई थी इसलिए इनकी महानता के गुणगान करना स्वाभाविक ही था। लेकिन मध्यकाल में भारत के उन महान राजाओं के इतिहास को मिटाने का भरपूर प्रयास किया गया जिन्होंने यहां के धर्म और संस्कृति की रक्षा की। फिर अंग्रेजों ने उनके इतिहास को विरोधामासी बनाकर उन्होंने बौद्ध सम्राटों को महान बनाया। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे। मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था। मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया। राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं। इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर और चालुक्य के पूर्वजों के रूप में भी बताया। Historian Sir Jervoise Athelstane Baines also stated Gurjars as forefathers of Sisodiyas, chauhan, Parmar, Parihar and Chalukya. ab rajputo tm dikhana shilalekha jha likha ho wo gujjar nh rajput the lekh nh chaiye shilalekha dikha sirf shilalekha before 13 the century se phele ka
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर गुर्जर बनिया गुर्जर लोहाणा गुर्जर जैन गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
पेहोवा शिलालेख Shilalekha se bada koi proof nh hai करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई। दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी। गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
Ye story hai sirf. Ek kavi hai, jisne aisi ek kavita likhi thi. Log us kavita ko sach manne lag gaye. Asliyat mein Ghori ko Jat kom ke logo ne maara tha. Prithviraj Chauhan ek veer yodha they, unke itihas mein kayi kisse mil jayenge. Jab bharat se wapas jate waqt Muhammad Ghori ka kafila Dhiamak, Sohawa (Pakistan) mein ruka, tab Khokhar Jatto ne un par hamla karke unhein maut di.
Satyawrat Janghu I search jats r followers of sanatan dhsrma n they r frm suryavanshi, chandravsnshi n agnivanshi gotra...according to Wikipedia they born frm lord shiva's Kat n called jaat....it is true?????
Satyawrat Janghu ye galat history bata rahe ho dost.....me rajput nahi hu, lekin galat mat batao......Jo aap kah rahe ho, wo Sikandar ke saath hua tha na ke Gori k saath......rahi baat Khokkaro ki, toh woh Rajput community se hi belong karte hai..... Jats ka apna contribution hai aur Rajputs ka apna.... however history Rajput hamesa first line of defence rahe hai.....sare raja hi Rajput the..... Sikandar ko rokne wala raja Dahir tha..... Rajput kewal naam hi kaafi h dost....wo kewal ladte hi nahi the, balki ethically ladte the..... khair bhaiyo meri yahi salah h k jaat paat m na bato.....Sanatan tradition ki baat karo.... history ko objectively dekho, usme apne bias mat jodo....
+rahul parmar अबे औकात बता दिने निच लोग निच बर्ताव ।।हम वीर गुर्जर दहाडते तो फिर फाडते है ।।।।ये सही है कि तुम बड गुर्जरो की संतान हो ।लेकिन वो है तो गुर्जर ने अबे माता पन्ना धाय गुर्जरी मा का पग पुजो ।जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर प्रतिहार मिहीरभोज जय गुर्जर नगरी जय द्वारकाधीश
yaar tum logo par hanshi aati hain tum sabhi rajputo ko gurjar batate ho yaar mujhe ye batao ki aajj hindustan main jitni royal family hain unme se 80 percent rajput hain 10 percent marATHA hain or maratha kshatriya bhi 36 kuli rajput kshatriyo ke bhai hain 7 percent bundela royal family hain vo bhi ham 36 kuli rajputo ke hi bhai hain or 3 percent jaat royal family hain. tum gujro ki royal families kahan hain . ab kuch salo baad tum in rajgharano ke rajputo ko bhi kahi gujar mat kahene lag jana . yaar tum logo ko samaj main kab aayega ki prachin kshatriyo ki asli santane rajputra (rajput ) hain phir yahi rajput aage jakar 36 kuli rajput ,maratha kshatriya , bundela rajput , pahadi rajput or sikkh rajputo me divide hue . ham rajput marathao kshatriyo, sikkh rajputo , bundela rajputo or pahadi rajputo ko apna bhai mante jo hamari tarah asli rajputi hain . or rahi baat badgujar or gurjarprathiar ki to vo 100 percent rajput the dosa ka badgujar rajgharna or urai ka parihar rajghara aaj bhi rajput hi ja kar pata kar lo mai royal family valo ko janta hu or unse mila bhi hu . or chirne fadne ki baat tum mat hi karo vo tum logo ke muh se acchi nahi lagte aaj bhi border par rajputo ka jalva hain . or hamare purvajo ko gujar kahena band karo nahi agar hamne dahada na to tumhe dikkat ho jayegi . neech ham nahi tum ho rajputo ko neecha kahoge duniya hasegi tum par . jin devi swaroopa swamibhakt mata panna dhay ko tum gujar bata rahe ho vo rajputo ki beti jis rajya ki vo swamibhakt thi vo rajya mevad bhi sisodhiya rajputo ka rajya tha .
+rahul parmar हसी तो तुम पे आती है ।अगर पन्ना धाय माता गुर्जरी मा नही होती तो तू आज राजपुत नही होते ।।जयदेवनारायण जय महादेव सोमनाथ दादा जय द्वारकाधीश जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर प्रतिहार मिहीरभोज जय गुर्जर नगरी जय प्रथविराज चौहान गुर्जर जय भारत माता ।।अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर जय प्रथविराज चौहान जय जय गुजरातरा देश जय गुर्जरेन्दर ।जय गुर्जरेश्वर कुमार
जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर प्रतिहार दरबारो वीर गुर्जरो जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय गुर्जरेश्वर जय कनिष्ठ कुषाण विर गुर्जर प्रतिहार दरबारो प्रथविराज चौहान अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर जय हिंद
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे। गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था। स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है। डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं। डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं। नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है। जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे। Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI shilalekha se bada koi proof nh 💪 नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है। राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है। गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है )। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे। मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था। मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।................. इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं। ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
पेहोवा शिलालेख Shilalekha se bada koi proof nh hai करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई। दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी। गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
@@dashanan_ravan4443 are chutiya jaisa bol rha yha delhi mai gurjar hi the jisne 1984 ke riots mai sikho ko bachaya tha or puchna ho to ajana sikho se puch lena south delhi mai sikho ki panjabi colony sirf gurjar ne unko bachaya tha shahdara mai gurjar ne apne gharo mai rakha sikho ko or bachaya Chal or rha bewkoof ye shilalekha h bawdi puch or shilalekha hota h main proof
th-cam.com/video/x8EGwh90Tds/w-d-xo.html 👆लाल कोट (राय पिथोरा) किले (दक्षिण दिल्ली) भाई जो प्रूफ करना है सिर्फ शिलालेख और अभिलेखों पर करो वो क्या कहते है उन्हीं राजाओं के तुंगध्वज राजा जो पांडवो के 84 पीढ़ी में हुए और तुंगध्वज के वंशज तुंगड़ कहलाये तो पहले तूंगड़ गोतर था फिर आगे चलकर ये तंवर कहलाये और आगे चलकर राजा तोम हुए जिनके वंशज तोमर कहलाये और आपको नहीं पता जब दिल्ली से तंवरो का राज उसके बाद भद्रवती में रियासत बनाई थी 12वी सतबादी में और वहीं से उनके कुछ वंसज ने भद्रावती से निकलकर ग्वालियर में जा बसे और ग्वालियर में रियासत बनाई पर भद्रावती रियासत को 17वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया और ग्वालियर की रियासत को 16वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया तुंगध्वज( तुंगपाल) ( कर्नाटक में तुंग भद्र नदी के किनारे तुंगभद्र नामक राज्य बसाया वहाँ आदि गद्दी स्थापित की ) तुंगध्वज के वंशज तूंगड़ कहलाए और तूंगड़ से तंवर बने - > अभंग - > ज्वालपाल ( जवलपाल ) - > गवाल ( गवल ) ( इनके नाम पर बाद में गोपाचल पर्वत पर गवालियर राज्य बसाया गया ) - > लोरपिण्ड - > अडंगल ( अदंगल ) - > गणमेल - > नभंग - > चुक्कर ( चुक्कार ) - > तोम (राजा तोम के वंशज तोमर कहलाये और फिर आगे चलकर ग्वालियर पर राज किया) - > द्रव्यदान - > द्रुज्ञ > मनभा ( मनभ ) - > कारवाल ( करवल ) > कलंग - > कंध - > अनंगपाल ( इन्द्रप्रस्थ - महाभारत सम्राट - पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 - 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ' जयानक ' ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है । Inscrition of Tanwar 👇 The territory ruled over by the Tanwar (Tungad) comprised of mod en east Punjab . Hariyana and the upper Doab of the rivers Ganges and Jamna . The first available historical reference to the Tanwar (Tungad) family is the inscription undated but pertains to the time of Mahendra Pal , the Gurjar emperor of Kanaui who ruled 890 to 910 A . D . In this inscription Gogga , adescendant of Bhunath Jaula is men tioned as a dignified administrative officer of the emperor Mahendra Pal the Gurjar Pratihar . Bhunath means , the lord of earth , a Raja . Dr . Bhandarker has interconnected this Bhunath Jaula with Maharaja Torman Javul ( Inscription now in Lahore Mu seum ) and Jaola of Kara and had concluded by these three inscrip tions that Tanwar (Tungad) and Pratihars are Gurjars . The same view had been adopted by Dr . A . F . Rudolf Hornale , Mr . V . A . Smith , Mr . Rapson , K . M . Munshi , Yatendra , Kumar Verma etc . etc . in their history books . Rahim Dad Khan Maulai Shadai writes . " In 816 , Nag Bhata Raja of Gujar Qaum , ( Gurjar race ) conquered Kanauj . The Gujars ruled there for two countries . Among them Raja Bhoj ( Mihir Bhoj ) was most famous . " A branch of the Gujars was Tanwar(Tungad ) who founded the kingdom at Delhi . [ See page 56 Tarikh Janatul Sindh ( Written in Sindhi language ] . Also T . G . page 295 लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे। इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज थे। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तंवर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तंवर था 1551 सदी का शिलालेख👇 तंवर( तोमर )वंश - 282 . गुर्जर का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास सिधे संवतु 1551 वर्षे गूरजैर श्री राजमानसीघदेवा वचनतु पूथाना सटोजरामलगगेर सारयो । । राजा की तसलिमा कामु जायै । । सुत्रधरे पजू महलनं खीरंसु मनूव सानेग समा बढ़ई रमू सिलहरी गर्ने धनूत मई । चादु । टूवल सूवाकयो वोहरीत्र । उपरोक्त शिलालेख का अनुवाद इस प्रकार से है : - . संवत् 1551 ज्येष्ठ बुदी - 2 गुर्जर श्री मानसिंह देव के आदेश पालना में सागर ( गगेर ) को स्वच्छ किया गया । इस शिलालेख की पहली पंक्ति से अवगत होता है कि राजा मानसिंह तोमर गुर्जर था । जून 1988 में भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग ने खंडार सवाईमाधोपुर ( राजस्थान ) के किले ( दुर्ग ) में काफी शिलालेख उपलब्ध किये हैं जिनमें एक शिलालेख में राजा मानसिंह तोमर ग्वालियर को स्पष्ट शब्दों में गुर्जर लिखा है ( श्री प्रकाश बाफना - नवभारत टाइम्स ( हिन्दी ) जयपर , 7 जून , 1988 ईस्वी पृष्ठ . 2 कालम 5 - 5 ) । यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1568 का है जोकि उसी से अवगत होता है । खंडार दुर्ग सवाई माधोपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है । किचं यथा क्षत्रियपि गुर्जरा । गुर्जराणा क्षत्रियाणामभावे गुर्जराख्यो जनपदः कथंस्यात । द्रश्यन्ते हि बंगा अंगा कलिंगादयो जनपदाः क्षत्रिया ख्यैव प्रसिद्धिगताः । स्पष्टं चेदं जनपद शब्दाक्षत्रियादभित्यादि पाणिनी सूत्रैः गुर्जरे व्याख्या च क्षत्रिये स्वैव मुख्याभवति ब्रह्मणादिषुतु देश सम्बन्धाज्जायते ।। तथाहि गुरी उद्यमने इति धातोः सम्पदादित्वाद्भावे विकल्प गुरं शत्रु कलंक शत्रोद्यमनेजरयति नाशयति इति गुर्जराः शब्द कल्य दूमेऽयेतादर्श व्युत्पत्ति प्रदर्शिताः ।
पेहोवा शिलालेख Shilalekha se bada koi proof nh hai करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है, ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई। दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी। गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी। इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे। इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
Sher Singh Rana we r proud of u. Jai Rajputana!!
Bhia tomar arjun ke vanshaj ha jo ek kshatriya rajput the
Right bhai
Exactly
Exactly bhai mai bhi Tomar Rajput hu❤️
I am bhadoriya rajput i live MP bhind
Bhai ye rajput ki baat kr rahe hai.... Anangpal singh tomar rajput they naaki gurjar, jaat.
Yes bro
@@karansharma71 yes bro
Yeh sahi history hai Rajput kuch deer chup reh sakte hai lakin jab kabhi Khoon Khool Gaya to dushman ko rasta nahi milte bhagene ka Jai Rajputana
tum bhi surname chnge kr le
why are you talking about Rajputs mulla?
Anangpal tomar ki 2 ladkiya thi.
@@desibanda5083 bhai ye oral history h ye reliable nhi hoti
Oral history ko itihaaskar reliable nhi maante
😂😂😂😂
जय माँ भवानी
सम्राट पृथ्वीराज चौहान अमर रहे।
जय राजपुताना।
JAI TOMAR JAAT JAI TOMAR RAJPUT
Jai Rajputana , i had been to delhi but found all hype about Gujjars. Where are Rajputs in Delhi
Jalam Singh Rajput demographic of delhi hai change... rajputs are now of different background... speaks different languages
Bhai the rajputs had migrated to Rajasthan and Central India after the lost of our Samrat Prithviraj Chauhan in 1192 mainly the Chauhans and the Tanwars now Tomars in order to protect their clan....
And secondly during the Mughal Period the gujjar started living there and as their habit they in 20 century started calling themselves as the real tanwars etc.but the history reveals all the truth how the chauhans and the tanwars the real rajputs migrated to different parts of Hindustan in order to save their clan.....I'm also a Chauhan Rajput of MP and still many tomars live with us and the others chauhans and tomars living in other parts know the reality we still worship the same kuldevi and in our vanshawali it is clear that the chauhan and tomar have migrated and same the history says and rest of the chauhan n tomar all knew that fact and it was almost 800 yrs old history so how can v prove it
And it's a common sense that the muslims want the rajput to accept islam so definitely after the war Ghori want all the chauhan and tomar to accept islam so that's why we migrated to protect clan and our religion in those who didn't migrated were either slained or converted into muslim so it's a common sense how the muslim left the gujjar if they were the chuhans or tomar....
@@Aghori_Tantrik208 yaaa bro true...i m tanwar rajput living in kurukshetra haryana and by the blessings of our great ancestors living a very blissful lyf...tanwar rajput of kurukshetra haryana donated 250 acres land for a university without taking a single rupee from govt..jai rajputana
I'm mohit singh tomar mp morana but now i live in bihar jamui
mohit creating something why bro r u in anu kind of job??Me too is from Gwalior.
Jai Rajputana Really Statment
Jai Shree Ram 🕉️🚩
anang pala is the vansh of pandavas [arjun]
Jai Rajputana ....
Rajput the wo
@@shivathakurproudtoberajput6750 Hann bhai Tomar pandavon ke hi vanshaj hain....
🙏 mahabharata
@sonu babra meerut me 24 gaon hai Tomara Rajput ke
@sonu babra bhaisab Tanwar Gujar ka asli gotra Chamaayan hai
Thokhe se har gaya bati sansar esa kohi raja jo partiraj ko hara de, char bas batis gaj asat aagal parwan upur to sulatan hai mat suke tu chohan
Chandra Bardhai ne kahee thee ye baat...
Dhokhe se hi haraya tha...usne bola tha maine haar maan li main waapis jaara hun
Inhone sena waapis bhej di Ajmer
Uske baad usne pith pe waar kiya dhokhe se bina btaye hamla krdiya aur yha sab log jashan mnare the talwar shoad kar
Tabhi wo le gaya Prithviraj Chauhan ji ko...par acha huya ghar main ghus ke maara usko uski puri sena ke saamne
Jiyo mere ravo rajputo ⚔️🚩
Tomaras and Chauhans were rulers of Delhi/Parts of Haryana
चार बांस
चौबीस गज
अंगुल अष्ठ प्रमाण
ता पर सुल्तान है
मत चुके चौहान।
गुजर , अहीर ,जाट गड़रिये माली नाइ वगैरह को पिछड़ी जाती का आरक्षण भी चाहिए।
और हमारे बाप को अपना बाप भी बनाएगे।
हद है यार।
O Rangad chup ro Muslimano ka bige rajput Rangad 1300isv sa phala koi rajput sabad ka name Nai tha pratviraj chauhan gujjar ha
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत
गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे।
गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।
डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।
डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।
नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।
जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI
shilalekha se bada koi proof nh 💪
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
)। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।
समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे।
मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।.................
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
@@Raghukulvasi2003 bekoof phele jaker shilalekha to pad le wha Rajput ka to word tk nh milta
Or Gurjar likha h Par reality tmhe bhi pta h Ki Gurjar Rajao ki Aulaad Rajput bni😆😆😆😆😆
अरबी लेखक अलबिलादूरी ने लिखा है कि खलीफा हासम के सेनापति ने अनेक प्रदेशों की विजय कर ली थी परंतु वे उज्जैन के गुर्जरों पर विजय प्राप्त नहीं कर सका और और सिंध के गवर्नर जुनैद के उत्तराधिकारी निर्बल शासक र्सिद्ध हुए जिनके शासन काल में गुर्जरों के कारण अरबो को अनेक जीते हुए भाग छोड़ने पड़े
सुलेमान नामक अरब यात्री ने गुर्जरों के बारे में साफ-साफ लिखा है कि गुर्जर इस्लाम के सबसे बड़े शत्रु है और
जोधपुर अभिलेख में लिखा हुआ है कि दक्षिणी का चाहमान वंश गुर्जरों के अधीन था
कहला अभिलेख में लिखा हुआ है की कलचुरी वंश गुर्जरों के अधीन था
चाटसू अभिलेख में लिखा हुआ है की गूहिल वंश जोकि महाराणा प्रताप का मूल वंस है वह गुर्जरों के अधीन था
पिहोवा अभिलेख में लिखा हुआ है कि हरियाणा का शासन गुर्जरों के अधीन था खुमाण रासो के अनुसार राजा खुमाण गुर्जरों के अधीन था और इसके अलावा अगर आप इतिहास में गुर्जरों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको भी भिलमलक्काचार्य का ब्रह्मा स्फूट सिद्धांत
उद्योतनसुरी की कुवलयमाला कश्मीरी कवि कल्हण की राजतरंगिणी
प्रबन्ध कोष ग्रन्थ व खुमान रासो ग्रंथ के अनुसार गुर्जरों ने मुसलमानों को हराया और खुमान रासो
राम गया अभिलेख
बकुला अभिलेख
दौलतपुर अभिलेख
गुनेरिया अभिलेख
इटखोरी अभिलेख
पहाड़पुर अभिलेख
घटियाला अभिलेख
हड्डल अभिलेख
रखेत्र अभिलेख
राधनपुर और वनी डिंडोरी अभिलेख
राजशेखर का कर्पूर मंजरी ग्रंथ, काव्यमीमांसा ग्रंथ ,विध्दशालभंजिका ग्रंथ
कवि पंपा ,
जैन आचार्य जिनसेन की हरिवंश पुराण आदि के द्वारा दिया गया विवरण पढ़ सकते हैं आपको वास्तविक सच्चाई मालूम हो जाएगी
Pad lena or ho sake to kisi historian ko bula lena
Ya court mai case kr do ki kn Gurjar tha kn Rajput pta chal jayga reality😆😆😆😆😆😆😆😆😆😆
@@vtanwar4773
Chor sale
Chori krr k to ji rhe ho
@@Raghukulvasi2003 ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड में एक श्लोक है -
क्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह”
अर्थात् क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं।
वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।
सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ व संस्कृत के विद्वान् पं० चिन्तामणि विनायक वैद्य के मतानुसार ई० सन् 800 से 1100 के बीच राजपुत्र बने हैं।
प्राचीन ग्रन्थों में न तो राजपूत जाति का उल्लेख है और न राजपूताने* का।
Bhosdi gand mai bhar lena isko ab😆
kya tomar general cast me aate hai
Yes tomar rajpoot hai or general caste mai aate hai.Jo reservation mai hai vo rajpoot hi nahi hai.
Yess
Kaha rah Rahe ho tomar ( Thakur ) hai and Thakur always the highest caste in india
true historyi m pathan i m glad this old guy still hv vrycorrect infos there are three tomb i visited in ghazni......
bhai kabar pakistan m h you tube pe mahammad gori ki kabar titel se h chek kar le jhalam ke kinare
MOHIT NEHRA TU khod k Aaya tha Kya uski kabar. JB SB kehre Hai Afghanistan me Hai TU jbrdsti history Kyu bdl Raha Hai.
vikrant chaudhary भाई यहाँ कुछ भाई बहुत ज्यादा पढ़े थे इसलिए किसी की न समझने वाले तो बेकार में अपनी ऊर्जा नष्ट ना करे।
Jai gurjar samrat Prithviraj Chouhan. Jai Gujjar samaj.
Bosdk kuch tho saram karo
Prithviraj Chauhan ke vanshaj jinda hai chor, tu kaha unko apna baap bana raha 😂
Ek bar Mathura ke sonkh town or sonoth me a jana sari history pta chl jaegi
nice chauhan rajput
bag mulla
Mai Anangpal tomar ka he vansh ho am also rajput but am muslim 😊
Sir then when did u r forefathers became Muslims?....
I mean was it a forceful conversion or by their own will??
KSHATRIYA RAJPUTRA SIRF HINDU ,ISLAM AALAG RELIGION H
@@prathameshpatil6237 those Rajputs who didnt want to convert to Islam ,were killed whereas the others ,became muslim( by some fear or some force)
I am tomar
Hello hukum
Jai mata ji ri sa
Jai Rajputa, Jai Prithviraj Chauhan🚩
I am tomar in
Jai Rajputana ⚔️
my name is devav singh tomar i m also tomar and vanshaz of satna mp we are from delhi then ayodhya then bareili then satna
Kai ese gujjar bhi hay Jinne chauhan name churaliya or khud ko Raj put aur maharaj sri prithviraj ka vansh mante hay. Per yhe ek bohot bada jhut hay take inko Raj put mana Jay per rahe y gujjar hi. 👳 Jay rajputana 👳👑💪.kyuki ek ya do jagao ko chodh k baki sare CHAUHAN. Raj put HAY NA K gujjar. Inka chauhan vansh se koi nata Nhi hay. Chauhan sirf Raj put hay 💪👑. Koi gujjar pujjar nhi 😂.
Excusme Karan shab gujjaro ka etihaas 425 esvi se h or rajputu ka 1200 esvi se h gujjaro ka etihaas bhut Purana h samjhe .or prithviraj raso me BHI prithviraj ko gujjar he btaya gya h or unka gotra kalsyaan tha okkk mere Bhai tum log gujjaro se mat jla karo
Or panana dhay gujjari ne hi Rana ratap ke pita ko bachaya tha .kise or cast me Etna dam nhi ke vo dusro ka vansh bacha sake
Karan ji aapas me ladane se kuch nahi hoga.....aap prathviraj raso padiye....us se aapko puri history pata lagegi....aapase ek dusre se ladne ka koi fayada nahi....rajput aur gurjar ek hi h....Lekin ise vo hi samjh payega.....jo itihas ko acche se samjhega.....Verna aapas me ladte rahiye.......
@@avinashkhatana9285 sare gujjar rajputo se connect nahi he bas 40% gujjar rajputo se nikal k bane he ...jisme tere kalsya kulyan chauhan basoya baisla bhati chandel tomar katariya chhoker chavda khatana ...aur bhi kai clan... same jato me tomar bhati chauhan parmar solanki rathoro jadauno dahiya katariya chhokar khhokar in rajao ki clan he ....
😂😂😂😂😂
Chutiye phele thang se padha hota to pta chalta tm Khud Gurjaro ko apna papa khete ho👇
रानी लक्ष्मी कुमारी, चुडावत, (राजपूत ) ने राजस्थान का एक लंबा इतिहास लगभग 800 पृष्ठों पर लिखा है। 10 वीं शताब्दी ईस्वी की एक सत्य घटना पर वह लिखती हैं, देव नारायण गुर्जर ने अपने बिखरे परिवार के सदस्यों को एकत्र किया । उसके चचेरे भाइयों में से एक फर्श कालीन पर बैठा था, देवा नारायण ने उसे बुलाया, हे भाई, वह राजपूतों के बैठने की जगह है, तुम यहाँ सिंहासन के पास आओ। उन्हें लगता है कि गुर्जर वर्ग सभी राजपूतों के लिए एक श्रेष्ठ वर्ग है.
गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत
गुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह राजपूत)
सोमनाथ मंदिर को करने नष्ट प्रभास पहन को करने नष्ट चलदिया गजनी से महमूद संग ले गोले और बारूद विश्व विजय था उसका लक्स लट खसोट मे वह था दकस राह मे आई अनेको बाधा सैन्य बल भी खप गया आधा थे मनसूबे उसके मजबूत रोक ना सके उसको कोई पूत राह मे पड़ता था मुल्तान जा पहुचा वहा पर सुल्तान मुल्तान का शासक था अजयपाल बन गया महमूद की ठाल हो गया अजयपाल बैइमान नाम डूबा बैठा चौहान सुन अजयपाल की करतूत आपा खो बैठा गुर्जर का पूत था वो बापा रणवीर बुठा सेर गजब का वीर चौहान खानदान की आन सम्राट गुर्जरेष्वर की शान पर आगे दाग ना लगने दूगा सोमनाथ को ना जलने दुगा मिट गया वीर देशधर्म पर कर आधात महमूद मरम पर भूला ना ऊनको हम पाऐगे तुझे घोघो बापा हम गायेगे दी खूब मार था लिया घेर महमूद जब पहूचा अजमेर हिन्दू धर्म का है भाग्य मन्द यहा हर युग मे जन्मे जयचंद देकर कपट व देकर धोखा महमूद भी पा गया था मौका करके सुलह सान्ती का नाटक जा पहुचा पुष्कर के फाटक सतरान ध्यान मे था गुर्जर चौहान पिठ पे वार कराया सुल्तान था लडता जाता बठता जाता उसका सैन्य बल घटताजाता उसको ना रोक सकी कोई उसका लक्स ही था गुजरात महमूद की परतिसा मे अधीर था गुर्जर भू का गुर्जर वीर बडा ही पराक्रमी ओर बलवीर जिसकी थी रतक प्याशी शमसीर ।।।महमूद की खत्म करने नौटंकी गुर्जरेष्वर वीर भीमदेव सोलंकी लेकर अपनी सैना एक लाख महमूद के सपने करने खाक जा पहुचा महालय सोमनाथ मानो वहा खुद पशुपतिनाथ कर रहे हो सन्य संचालन करके धर्म और मर्यादा पालन था तत्पर गुर्जर कुल गौरव रण सेतर मे मचाने रौरव दोनो पकस के सैनिक बठ गये अस्वरोही अश्वो पर चठ गये थी चमकी ऊटो पर तलवार थे हाथियो पर हाथो असवार बड़ी भयंकर हुई लड़ाई महमूद ने उसदिन पार ना पाई खाकर अच्छा खासा जन नुकसान पिछे हट गया था सुल्तान दूसरे दिन युध्द हुआ घनघोर चारो और मच गया शौर या मेरे मौला हमै बचाओ गठ गजनी की राह दिखाओ दे हर हर महादेव का नारा अरिदल को था खूब ही मारा गुर्जर काछी और भील शत्रु दल के सिर मे ठोक रहे थे किल करके शत्रु मार्ग अवरुद्ध भीमदेव गुर्जरेष्वर कर रहा था युध्द उसकी खडग थी जशन मनाती बार बार वह खून मे नहाती
+CHANDAN CHAUHAN अबे बेटे चौहान से पहले वो वीर गुर्जर है ।।।बेटे गूगल सर्च कर ले ।।।गुर्जरो का ही पग पुजो राजपुतो ।।।जय पन्ना धाय माता गुर्जरी मा ।।।।।।।हम तो सम्राटो के सम्राट पण हे हम वीर गुर्जर दहाडते तो फिर फाडते है ।।।।।।।।।।।।ये मत सोचो कि सेर के पेर मै काटा लगने से अब कुत्ते राज करगे ।।।।।लेकिन राजपुतो तुम्हारे ईतिहास खंगाल के देखले तुम्हारे नाम के पीछे दास लगाते थे और वीर गुर्जरो के साथ राज लगता है बेटे ।।।।।और सुन तू म सभी ।।।।वीर गुर्जरो और बडगुर्जरो की ही संतान हो आज तुम्हारे बाप से बात करने लगे हो ।।सुन बेटे ।।।।अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर ।।।।।।जय गुर्जरेश्वर जय गुर्जरेन्दर दरबार जय वीर गुर्जर दरबार ।।।।।जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल प्रतिहार मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर भोज जय मिहिर ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
👑जय गुर्जर दरबारो 👑जय गौ कु ल 👑
+Jai rana बटे वीर गुर्जरो से मत उलज जल जाऔगे
shilalekha se bada koi proof nh hai or sare shilalekha before 10th century ke hai
@CHANDAN CHAUHAN गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत
गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे।
गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।
डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।
डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।
नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।
जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI
shilalekha se bada koi proof nh 💪
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
)। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।
समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे।
मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।.................
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
@CHANDAN CHAUHAN shi tere barbari krni nh jb tk gurjar raja rhe tb tk koi muslim india mai nh aasaka or ye khud muslim writer suleman ne khi hai 10th century
or jb tm rajput word aya to india par muslimo ka gulam bn gya tm muslim ke gulam bn gye or fir unke sth sadi or angrejo ki gulami ki tune
tm hamari ek percnt barbari nh kar sakte samjha
ab kya kare koi hamare itihas ko bigade ga to javab to dena hi padge admin mahoday aapko gurjar sahab ke comment pahale delete kar dene chaiye the .
Sher Singh Rana jindabad
Shahdara rajputa ka gam hai?
गुर्जर (तोमर)बाबाजी आपके बारे में हम जानते है ,लेकिन आपको पूरी बात बतानी चाहिए थी , की दिल्ली में व आस - पास के क्षेत्र में गुर्जर (तोमर , तँवर) रहते है ! और राजस्थान में (चौहान) गुर्जर रहते है ,( यू.पी.)में चौहान राजपूत मैनपुरी व आस - पास के क्षेत्र में ! धन्यवाद ! " जय हिन्द " "जय भारत "
Bhai sahab mainpuri ke siva Ajmer wa jaipur ke pass kai gaao rajputo ke hai or hume khushi hui, ki gujar bhai bhi chauhan hai 🙂
Anangpal singh tomar rajpoot they naki gurjar, jaat
bewkoof rajsthan haryana me sbhie chauhan rajput ha..kota,bundi pe raj krne wale hada makrana jalore pe raj krne wale songira chauhan rajput ha pure desh me ha chauhan aur tomar rajput
Beta tomer rajput sadiyo we chle aa rhe hai jammu main abhi bhi tum gujjar gochar ke naam se hi jaane jaate ho kyunki waha reservation nhi paas ho rha itehass choro 😂
Jai shree ram jai rajputana
Muche bahut jordar h baba ke
prithvirajcuhan good man
Anangpalsingh tomar ne hi laal killa banvaya tha
Ha bhai
jay rana jay rajputana
Anagpaal ka ladka tha jiska naam kaarak tha
आपको ही नहीं पता उसे जिताने वाला कौशल सिंह दहिया था जो हरियाणा
तोमर गुर्जर वंश गुर्जर प्रतिहार के अधीन थे
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर
गुर्जर बनिया
गुर्जर लोहाणा
गुर्जर जैन
गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज
सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
Kahan padh liya bhai tunee
bahut achha bola aapne baba yahi he sachchai
bahut khub baba
Sher Singh Rana jindabaad Jai rajput
Jai Rajputana
Tiger of the Gujjar my rule my commands no all world seasonal TV
Jalam Singh Rajput jarral.rajput
yes this is true history
(the events im not sure about )
re bhai toor momdan tomar hove h k
@@राणासचिनतोमर toor or tomar ek hi h
Shubham Panwar okk bhai
@@राणासचिनतोमर actually Punjabi me tomar se toor ban gaya jaise kanwar se kaur ban gya aur toor surname Rajput sikh likhte h
Shubham Panwar thanku bhai btane k liye
Jai Bhavani
Bohat achhe baba
kon koyala hain ye sab jante hain joginder gujjar
Veer gujjar samrato ki jay
Kuchh bhi
Jay Rajputana
ram ram baba
Rajputana🔥
th-cam.com/video/x8EGwh90Tds/w-d-xo.html
👆लाल कोट (राय पिथोरा) किले (दक्षिण दिल्ली)
भाई जो प्रूफ करना है सिर्फ शिलालेख और अभिलेखों पर करो वो क्या कहते है उन्हीं राजाओं के
तुंगध्वज राजा जो पांडवो के 84 पीढ़ी में हुए और तुंगध्वज के वंशज तुंगड़ कहलाये तो पहले तूंगड़ गोतर था
फिर आगे चलकर ये तंवर कहलाये और आगे चलकर राजा तोम हुए जिनके वंशज तोमर कहलाये
और आपको नहीं पता जब दिल्ली से तंवरो का राज उसके बाद भद्रवती में रियासत बनाई थी 12वी सतबादी में और वहीं से उनके कुछ वंसज ने भद्रावती से निकलकर ग्वालियर में जा बसे और ग्वालियर में रियासत बनाई पर भद्रावती रियासत को 17वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया और ग्वालियर की रियासत को 16वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया
तुंगध्वज( तुंगपाल) ( कर्नाटक में तुंग भद्र नदी के किनारे तुंगभद्र नामक राज्य बसाया वहाँ आदि गद्दी स्थापित की ) तुंगध्वज के वंशज तूंगड़ कहलाए और तूंगड़ से तंवर बने
- > अभंग
- > ज्वालपाल ( जवलपाल )
- > गवाल ( गवल ) ( इनके नाम पर बाद में गोपाचल पर्वत पर गवालियर राज्य बसाया गया )
- > लोरपिण्ड
- > अडंगल ( अदंगल )
- > गणमेल
- > नभंग
- > चुक्कर ( चुक्कार )
- > तोम (राजा तोम के वंशज तोमर कहलाये और फिर आगे चलकर ग्वालियर पर राज किया)
- > द्रव्यदान
- > द्रुज्ञ
> मनभा ( मनभ )
- > कारवाल ( करवल )
> कलंग
- > कंध
- > अनंगपाल ( इन्द्रप्रस्थ - महाभारत सम्राट -
पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 - 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ' जयानक ' ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है ।
Inscrition of Tanwar 👇
The territory ruled over by the Tanwar (Tungad) comprised of mod en east Punjab . Hariyana and the upper Doab of the rivers Ganges and Jamna . The first available historical reference to the Tanwar (Tungad) family is the inscription undated but pertains to the time of Mahendra Pal , the Gurjar emperor of Kanaui who ruled 890 to 910 A . D . In this inscription Gogga , adescendant of Bhunath Jaula is men tioned as a dignified administrative officer of the emperor Mahendra Pal the Gurjar Pratihar . Bhunath means , the lord of earth , a Raja . Dr . Bhandarker has interconnected this Bhunath Jaula with Maharaja Torman Javul
( Inscription now in Lahore Mu seum ) and Jaola of Kara and had concluded by these three inscrip tions that Tanwar (Tungad) and Pratihars are Gurjars . The same view had been adopted by Dr . A . F . Rudolf Hornale , Mr . V . A . Smith , Mr . Rapson , K . M . Munshi , Yatendra , Kumar Verma etc . etc . in their history books . Rahim Dad Khan Maulai Shadai writes . " In 816 , Nag Bhata Raja of Gujar Qaum , ( Gurjar race ) conquered Kanauj . The Gujars ruled there for two countries . Among them Raja Bhoj ( Mihir Bhoj ) was most famous . " A branch of the Gujars was Tanwar(Tungad ) who founded the kingdom at Delhi . [ See page 56 Tarikh Janatul Sindh ( Written in Sindhi language ] . Also T . G . page 295
लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज थे।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तंवर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
(गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तंवर था
1551 सदी का शिलालेख👇
तंवर( तोमर )वंश - 282 . गुर्जर का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास सिधे संवतु 1551 वर्षे
गूरजैर श्री राजमानसीघदेवा वचनतु पूथाना सटोजरामलगगेर सारयो । । राजा की तसलिमा कामु जायै । । सुत्रधरे पजू महलनं खीरंसु मनूव सानेग समा बढ़ई रमू सिलहरी गर्ने धनूत मई । चादु । टूवल सूवाकयो वोहरीत्र ।
उपरोक्त शिलालेख का अनुवाद इस प्रकार से है : - . संवत् 1551 ज्येष्ठ बुदी - 2 गुर्जर श्री मानसिंह देव के आदेश पालना में सागर ( गगेर ) को स्वच्छ किया गया । इस शिलालेख की पहली पंक्ति से अवगत होता है कि राजा मानसिंह तोमर गुर्जर था । जून 1988 में भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग ने खंडार सवाईमाधोपुर ( राजस्थान ) के किले ( दुर्ग ) में काफी शिलालेख उपलब्ध किये हैं जिनमें एक शिलालेख में राजा मानसिंह तोमर ग्वालियर को स्पष्ट शब्दों में गुर्जर लिखा है ( श्री प्रकाश बाफना - नवभारत टाइम्स ( हिन्दी ) जयपर , 7 जून , 1988 ईस्वी पृष्ठ . 2 कालम 5 - 5 ) । यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1568 का है जोकि उसी से अवगत होता है । खंडार दुर्ग सवाई माधोपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है ।
किचं यथा क्षत्रियपि गुर्जरा । गुर्जराणा क्षत्रियाणामभावे गुर्जराख्यो जनपदः कथंस्यात । द्रश्यन्ते हि बंगा अंगा कलिंगादयो जनपदाः क्षत्रिया ख्यैव प्रसिद्धिगताः । स्पष्टं चेदं जनपद शब्दाक्षत्रियादभित्यादि पाणिनी सूत्रैः गुर्जरे व्याख्या च क्षत्रिये स्वैव मुख्याभवति ब्रह्मणादिषुतु देश सम्बन्धाज्जायते ।। तथाहि गुरी उद्यमने इति धातोः सम्पदादित्वाद्भावे विकल्प गुरं शत्रु कलंक शत्रोद्यमनेजरयति नाशयति इति गुर्जराः शब्द कल्य दूमेऽयेतादर्श व्युत्पत्ति प्रदर्शिताः ।
Jai rajputana
Wahhh re Sher Singh Rana
jai Rajput
Veer gurjar 🙏🙏🙏🙏
ye to bakwas hai k Ghouri ko prithvi raj ne 16 bar haraya... 1st time prithvi raj defeated Ghouri then 2nd attempt Ghouri conquer prithviraj chauhan... aur choonti wali example true hai.. both were great & brave Raja's of their time but have to say Ghouri ki will zyada strong thi shyd..
the fact is that pathans & Rajputs are the most brave communities of Asia no one should doubt about it...
जय राजपुताना
Nice
From b.s.r.
Ye uncle 12vi sadi me jee rahe hai. Fake history fela raha, no doubt rajputs are so mislead today.
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य भारत कोश सर्च करे बहम दूर हो जाएगा गुर्जर है या राजपूत
😂😂😂😂 100 baad beti knha se aayi
Are tau ji mohomad gori ko kis ne mara ye bi btao maharaja jahawar सिंह ने मारा था bhartpur वालों ने thoka tha use दिल्ली me jake gate toad के लाए थे jahawar सिंह दिल्ली से. आज बी वो गेट bhartpur me h jake dekh lo उन का name bi btao jara jaato ne mara tha mohomad gori ko
Rajput ne maara tha
jai Rajputana
sorry agar kisi ko kharab laga ho
Bhai sahab history nhi jante to kyu bol rhe ho
Lost to Mughals and they call themselves as heroes 😂
jai rajputana
Fake fabricated history rajput was just a title of gujjar royals
who fabricated Rajput history btw
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर
गुर्जर बनिया
गुर्जर लोहाणा
गुर्जर जैन
गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज
सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
ab khud hi soch lo prathvi raj chouhan ko apni jati ka batate hain ye gujjar lakin in logo ko to ye bhi nahi pta hoga ki prthvi raj ji ki asthiya kahan thi unki asthiya lane vala bhi ek rajputra hi ab ye log 100 sall badd sher singh rana ko bhi kahi gujjar n bana dale haaaaaa
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत
गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे।
गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 4 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।
डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।
डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।
नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।
जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI
shilalekha se bada koi proof nh 💪
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
)। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।
समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि गुर्जर राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था।
मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।.................
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य अनेक भागों में विभक्त था। ये भाग सामन्तों द्वारा शासित किये जाते थे। इनमें से मुख्य भागों के नाम थे:
शाकम्भरी (सांभर) के चाहमान (चौहान)
दिल्ली के तौमर
मंडोर के गुर्जर प्रतिहार
बुन्देलखण्ड के कलचुरि
मालवा के परमार
मेदपाट (मेवाड़) के गुहिल
महोवा-कालिजंर के चन्देल
सौराष्ट्र के चालुक्य
पेहोवा शिलालेख
Shilalekha se bada koi proof nh hai
करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था
गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई।
दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी।
गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
Bhai to gurjar obc me ku atey hai general me aney chahiye....
@@prashant44208 arey bhai iske piche kayi kaaran hai. Wo chor ab sunn haryana me jaato ne arakshan ke liye andolan kiya tha, rajasthan me rajputon ne bhi arakshan ki maang ki thi. Aarakshan present situation ko dekh kar diya jaata hai naa ki paste ko
मत चूकै चौहान
JAY JAAT
Gujjar h
Jay rajputana
आदरणीय
चंदरबरदाई जी चारण धे जो कि एक देवजाती होती है ना कि भाट कृपया संशय ना फैलाय ।
सत्य के लिए धॆमग्रथों गीतापेस गूगल विकीपिड़ीया देखे ।
जय माता जी की ।
जय क्षत्र ।
भाई शेरसिंह राणा जी ने साहसिक काम किया है ।
Veer bhogya vasundhara
Chauhan Gujar ho ya Raj putr par kisi kam ka nahi sola bar hud kar di chauhan sharm nahi aayi
🤣🤣🤣 budhape me satiyaga yu
Ye baat jhuth hai, Prithvi raj 1192 mein mar gaya tha or k ghauri 1206 mein....toh abb na kisi insan ka dubara zinda hona mumkin hai or na kisi mare hue ka raaja bane rehna fir kaise pritvi raj nae ghauri ko mara...ye sbb pritviraj raso mein likha gaya jhuth hai jise sabhi itihas karo nae manghadant bataya hai
सन सातवीं सदी के बाद उसको राजपूत काल खंड कहां गया इसके पहले कोई राजपूत है ही नहीं आनंदपाल की बात है आनंदपाल खटाना Gujjar pratihar जाति से थे अंगत पाल तोमर की बात है वह गुर्जर वंश के प्रतापी राजा थे आधा हिंदुस्तान 12 वीं सदी से पहले गुर्जर राष्ट्र कहलाता था या गुर्जर देश से जाना जाता था यह राजपूतों की उत्पत्ति गुर्जर राजवंश से हुई राजपूतों के अंदर क्षत्रिय का गुण होता तो यह गुजरी का दूध नहीं पता यह बात तो साफ है कि यह गुजर मन से ही पैदा हुई जाति है इसलिए इसको गुजरी का दूध पता था
pratihar jati thi gurjar ek area ka nam tha isliye gurjar pratihar bolte h
pratihar/parihar rajput the bewkoof ...rajput hazaro salo se rh rahe himachal kangra ke katoch rajput rathore etc. hazaro salo se ha
TANWAR/TOMAR/TUNWAR
Kushan samrat used the word Gusur in Rabatak inscription.. some say it means man or woman of high family.. later this converted into Gojar/Gujjar/Gurjar.
Gurjars had the most prominent Ruling Dynasties. They ruled almost over whole modern day north India , Pakistan, Afghanistan as Kushan empire, Huna Empire and famous Gurjara Pratiharas.The Gurjar Era (1st century to 12th century) Gurjara-Pratihara - Wikipedia
Before Rajputana , whole of modern day Gujarat and Rajasthan was known as Gurjaratra ( the land ruled and protected by Gurjars).
The pratiharas belonged to the same clan that of Gurjaras was proved by the “Rajor inscription”.From the phrase “Gurjara Pratiharanvayah” inscribed in the “Rajor inscription”.It is known that the Pratiharas belonged to the Gurjara clan.The Rashtrakuta records and the Arabian chronicles also identify the Pariharas with Gurjaras.
In the ancient history’s Maha Kavi BalShekar’s “Balbahrat prachand pandav granth” and Great Mihir Bhoj Partihar’s “Sagar Taal Prashti”, it has mentioned that Gurjars are Suryavanshi and they are the successors of great Raghukul (successors of Ikshvaku, Prthu, Harischandra, Ragu, and Dasrath). In Markandai Puran and Panchtantra, there is a reference of the Gurjar tribe. Moreover, the word Gurutar (Gurjar) has mentioned in the epic Ramayana for Maharaja Dasrath.
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
)। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।
समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुर्जर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था, क्योंकिभोज राजाओं ने 10वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हूणों और कुषाणों की नई पहचान थी।अतः हूणों और उनके वंशज गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण एवं विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहूण औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिन्दू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। निश्चित ही इन सम्राटों ने हिन्दू समाज को बाहरी और भीतरी आक्रमण से निजाद दिलाई थी इसलिए इनकी महानता के गुणगान करना स्वाभाविक ही था। लेकिन मध्यकाल में भारत के उन महान राजाओं के इतिहास को मिटाने का भरपूर प्रयास किया गया जिन्होंने यहां के धर्म और संस्कृति की रक्षा की। फिर अंग्रेजों ने उनके इतिहास को विरोधामासी बनाकर उन्होंने बौद्ध सम्राटों को महान बनाया। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे।
मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।
राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर और चालुक्य के पूर्वजों के रूप में भी बताया।
Historian Sir Jervoise Athelstane Baines also stated Gurjars as forefathers of Sisodiyas, chauhan, Parmar, Parihar and Chalukya.
ab rajputo tm dikhana shilalekha jha likha ho wo gujjar nh rajput the lekh nh chaiye shilalekha dikha sirf shilalekha before 13 the century se phele ka
Jai Gurjar Samrat Anangpal Tanwar ji. Jai Gurjar Samrat Prithaviraj Chauhan
गुजरात को पहले गुर्जरदेश कहा जाता था उनपे शासन करने वाले सभी राजपुत राजवंश को गुर्जर नरेश , गुर्जस्वर, गुर्जर पति , कहा जाता था जो एक स्थान वाचक शब्द था प्रतिहार, चालुक्य ,( सोंलंकी) चाहमान (चौहान) राष्ट्र कुट ( राठौर) और पाल वंश इन सभी kashtriya राजवंशों के राजा के नाम के आगे गुर्जर शब्द लगता था तो क्या ये सभी गुर्जर है गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह को गुर्जर पति सुल्तान मुजफर शाह कहा गया है तो क्या वह भी गुर्जर है अहमदाबाद का शीला लेख पढ़ लेना गुर्जर एक स्थान वाचक शब्द था लेकिन प्रतिहार एक वंश है प्रतिहारो ने प्रथम कनोज , गुर्जर देश , और बादमें मंडोर मे अपनी राजधानी बनाई वहा पर राठौर और प्रतिहार राजपूतों के बीच युद्ध हुआ जिससे प्रतिहारो ने अपनी राजधानी नागोद की बनाया वर्तमान में राजा महेन्द्र सिंह परिहार वहा पर राजा है जो राजपुत है नकी गुर्जर
गुर्जर बनिया
गुर्जर लोहाणा
गुर्जर जैन
गुर्जर शुद्ध झती मे भी आते है तो कोंसी जाती के थे मिहिरभोज
सूर्यवंशी दिलीप, अज, रघकुलश्रेष्ठ श्री राम के अनुज लक्ष्मण के एक सो छठे वंशज राजपुत सम्राट मिहिरभोज को सत सत नमन
Ganwar
Wrong history..
पेहोवा शिलालेख
Shilalekha se bada koi proof nh hai
करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था
गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई।
दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी।
गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
Ye story hai sirf. Ek kavi hai, jisne aisi ek kavita likhi thi. Log us kavita ko sach manne lag gaye. Asliyat mein Ghori ko Jat kom ke logo ne maara tha. Prithviraj Chauhan ek veer yodha they, unke itihas mein kayi kisse mil jayenge.
Jab bharat se wapas jate waqt Muhammad Ghori ka kafila Dhiamak, Sohawa (Pakistan) mein ruka, tab Khokhar Jatto ne un par hamla karke unhein maut di.
sahi kaha bhai sabko pta h ye but ye bevkuf apni alag duniya m jee re h
Satyawrat Janghu I search jats r followers of sanatan dhsrma n they r frm suryavanshi, chandravsnshi n agnivanshi gotra...according to Wikipedia they born frm lord shiva's Kat n called jaat....it is true?????
khokhar are Rajputs not jatt in pothohar region of pakistani punjab .
Satyawrat correct you're knowledge about tribes.
Satyawrat Janghu
ye galat history bata rahe ho dost.....me rajput nahi hu, lekin galat mat batao......Jo aap kah rahe ho, wo Sikandar ke saath hua tha na ke Gori k saath......rahi baat Khokkaro ki, toh woh Rajput community se hi belong karte hai.....
Jats ka apna contribution hai aur Rajputs ka apna....
however history Rajput hamesa first line of defence rahe hai.....sare raja hi Rajput the..... Sikandar ko rokne wala raja Dahir tha..... Rajput kewal naam hi kaafi h dost....wo kewal ladte hi nahi the, balki ethically ladte the.....
khair bhaiyo meri yahi salah h k jaat paat m na bato.....Sanatan tradition ki baat karo.... history ko objectively dekho, usme apne bias mat jodo....
Jai Ho Gurjar raja Anangpal Tanwar ji ki 🙏🙏🙏
।।।।।वो चौहान गुर्जर थे इतिहास के पत्ते गूमा के देखले क्यु की राजपुत का इतिहास स12 वी सदी बाद मिलता हे।।
+rahul parmar अबे औकात बता दिने निच लोग निच बर्ताव ।।हम वीर गुर्जर दहाडते तो फिर फाडते है ।।।।ये सही है कि तुम बड गुर्जरो की संतान हो ।लेकिन वो है तो गुर्जर ने अबे माता पन्ना धाय गुर्जरी मा का पग पुजो ।जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर प्रतिहार मिहीरभोज जय गुर्जर नगरी जय द्वारकाधीश
yaar tum logo par hanshi aati hain tum sabhi rajputo ko gurjar batate ho yaar mujhe ye batao ki aajj hindustan main jitni royal family hain unme se 80 percent rajput hain 10 percent marATHA hain or maratha kshatriya bhi 36 kuli rajput kshatriyo ke bhai hain 7 percent bundela royal family hain vo bhi ham 36 kuli rajputo ke hi bhai hain or 3 percent jaat royal family hain. tum gujro ki royal families kahan hain . ab kuch salo baad tum in rajgharano ke rajputo ko bhi kahi gujar mat kahene lag jana . yaar tum logo ko samaj main kab aayega ki prachin kshatriyo ki asli santane rajputra (rajput ) hain phir yahi rajput aage jakar 36 kuli rajput ,maratha kshatriya , bundela rajput , pahadi rajput or sikkh rajputo me divide hue . ham rajput marathao kshatriyo, sikkh rajputo , bundela rajputo or pahadi rajputo ko apna bhai mante jo hamari tarah asli rajputi hain . or rahi baat badgujar or gurjarprathiar ki to vo 100 percent rajput the dosa ka badgujar rajgharna or urai ka parihar rajghara aaj bhi rajput hi ja kar pata kar lo mai royal family valo ko janta hu or unse mila bhi hu . or chirne fadne ki baat tum mat hi karo vo tum logo ke muh se acchi nahi lagte aaj bhi border par rajputo ka jalva hain .
or hamare purvajo ko gujar kahena band karo nahi agar hamne dahada na to tumhe dikkat ho jayegi . neech ham nahi tum ho rajputo ko neecha kahoge duniya hasegi tum par . jin devi swaroopa swamibhakt mata panna dhay ko tum gujar bata rahe ho vo rajputo ki beti jis rajya ki vo swamibhakt thi vo rajya mevad bhi sisodhiya rajputo ka rajya tha .
or parmaro ke sabhi rajghare rajput hain
or rajputo ki site par aakar bhokna band kar .
+rahul parmar हसी तो तुम पे आती है ।अगर पन्ना धाय माता गुर्जरी मा नही होती तो तू आज राजपुत नही होते ।।जयदेवनारायण जय महादेव सोमनाथ दादा जय द्वारकाधीश जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर प्रतिहार मिहीरभोज जय गुर्जर नगरी जय प्रथविराज चौहान गुर्जर जय भारत माता ।।अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर जय प्रथविराज चौहान जय जय गुजरातरा देश जय गुर्जरेन्दर ।जय गुर्जरेश्वर कुमार
जय गुर्जरेश्वरकुमारपाल सोलंकी वंशी विर गुर्जर
प्रतिहार दरबारो वीर गुर्जरो
जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर जय मिहिर
जय गुर्जरेश्वर जय कनिष्ठ कुषाण विर गुर्जर प्रतिहार दरबारो प्रथविराज चौहान अजमेरे बैसणो साभंर मै निकाल धोली डाग का भाजा मै च्कवा का राज चौहान गुर्जर जय हिंद
गुर्जर प्रतिहार फोर फादर ऑफ़ राजपूत
गुर्जर प्रतिहार राजपूत कबीले के पूर्व पिता हैं
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
इतिहासकार सर जर्वाइज़ एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परीर, चालुक्य और राजपूत के पूर्वज थे।
गुर्जर लेखक के एम मुंशी ने कहा कि प्रतिहार, परमार और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
विन्सेंट स्मिथ का मानना था कि गुर्जर वंश, जिसने 6 वीं से 11 वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत में एक बड़े साम्राज्य पर शासन किया था, और शिलालेख में "गुर्जर-प्रतिहार" के रूप में उल्लेख किया गया है, निश्चित रूप से गुर्जरा मूल का था।
स्मिथ ने यह भी कहा कि अन्य उत्पनीला क्षत्रिय कुलों की उत्पत्ति होने की संभावना है।
डॉ के। जमानदास यह भी कहते हैं कि प्रतिहार वंश गुर्जरों से निकला है, और यह "एक मजबूत धारणा उठाता है कि अन्य राजपूत समूह भी गुर्जरा या संबद्ध विदेशी आप्रवासियों के वंशज हैं।
डॉ० आर० भण्डारकर प्रतिहारों की गुर्जरों से उत्पत्ति मानते हुए अन्य अग्निवंशीय राजपूतों को भी विदेशी उत्पत्ति का कहते हैं।
नीलकण्ठ शास्री विदेशियों के अग्नि द्वारा पवित्रीकरण के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं क्योंकि पृथ्वीराज रासो से पूर्व भी इसका प्रमाण तमिल काव्य 'पुरनानूर' में मिलता है। बागची गुर्जरों को मध्य एशिया की जाति वुसुन अथवा 'गुसुर 'मानते हैं क्योंकि तीसरी शताब्दी के अबोटाबाद - लेख में 'गुशुर 'जाति का उल्लेख है।
जैकेसन ने सर्वप्रथम गुर्जरों से अग्निवंशी राजपूतों की उत्पत्ति बतलाई है। पंजाब तथा खानदेश के गुर्जरों के उपनाम पँवार तथा चौहान पाये जाते हैं। यदि प्रतिहार व सोलंकी स्वयं गुर्जर न भी हों तो वे उस विदेशी दल में भारत आये जिसका नेतृत्व गुर्जर कर रहे थे।
Gurajr Pratiharas are the fore father of rajput clan
राजपूत गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य के सामंत थेIगुर्जर-साम्राज्य के पतन के बाद इन लोगों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किएI
shilalekha se bada koi proof nh 💪
नीलकुण्ड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
राजौर शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।। बादामी के चालुक्य नरेश पुलकेशियन द्वितीय के एहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख आभिलेखिक रूप से सर्वप्रथम रूप से हुआ है।
गुर्जर जाति का एक शिलालेख राजोरगढ़ (अलवर जिला) में प्राप्त हुआ है
)। मार्कंदई पुराण और पंचतंत्र में, गुर्जर जनजाति का एक संदर्भ है।
समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने गुजरर सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया गया था, क्योंकि नवजात राजाओं ने 10 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवृत्त का महान सम्राट कहा जाता था। गुर्जर संभवतः हुनों और कुषाणों की नई पहचान थीं तो हुनों और पर्वत का समय गुर्जरों ने हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षण और विकास में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस कारण से इनके सम्राट मिहिरकुलहुन औरमिहिरभोज गुर्जर को समकालीन हिंदू समाज द्वारा अवतारी पुरुष के रूप में देखा जाना आश्चर्य नहीं होगा। सचमुच सम्राट मिहिरकुल सम्राट अशोक से भी महान थे।
मेहरौली, जिसे पहले मिहिरावाली के नाम से जाना जाता था, का मतलब मिहिर का घर, गुर्जर-प्रतिहार वंश के राजा मिहिर भोज द्वारा स्थापित किया गया था।
मेहरौली उन सात प्राचीन शहरों में से एक है जो दिल्ली की वर्तमान स्थिति बनाते हैं। लाल कोट किला का निर्माण गुर्जर तनवार प्रमुख अंंगपाल प्रथम द्वारा 731 के आसपास किया गया था और 11 वीं शताब्दी में अनांगपाल द्वितीय द्वारा विस्तारित किया गया था, जिसने अपनी राजधानी को कन्नौज से लाल कोट में स्थानांतरित कर दिया था। गुर्जर तनवार 12 वीं शताब्दी में चौहानों द्वारा पराजित हुए थे। पृथ्वीराज चौहान ने किले का विस्तार किया और इसे किला राय पिथोरा कहा। उन्हें 11 9 2 में मोहम्मद घोरी ने पराजित किया, जिन्होंने अपना सामान्य कुतुब-उद-दीन अयबाक को प्रभारी बना दिया और अफगानिस्तान लौट आया।.................
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
राम सरप जून लिखते हैं कि ... गुजराती इतिहास के लेखक अब्दुल मलिक मशर्मल लिखते हैं कि गुजर इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
ab rajput tm dikhao shilalekha hona chaiye ko lekh nh googal par koi kuch bhi bna dta bina proof ke koi kuch bhi likh dta hai, par shilalekha se bada koi proof nh hai sirf shilalekha 13 century phele ka ho
पेहोवा शिलालेख
Shilalekha se bada koi proof nh hai
करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था
गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई।
दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी।
गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
@@kanishksinghtanwar2455 gd bhai ji
+Dad of all Sikhs जल जल के मरगेये और तूमारी बेन हमारी होगाई
जल जल के साले बनाये साला जी केसे केसे हो
@@dashanan_ravan4443 are chutiya jaisa bol rha yha delhi mai gurjar hi the jisne 1984 ke riots mai sikho ko bachaya tha or puchna ho to ajana sikho se puch lena south delhi mai sikho ki panjabi colony sirf gurjar ne unko bachaya tha shahdara mai gurjar ne apne gharo mai rakha sikho ko or bachaya
Chal or rha bewkoof ye shilalekha h bawdi puch or shilalekha hota h main proof
bevkuf gori ki kabar pakistan m h na ki afganistan m. mangaddant kahani bana rakhi h. parthviraj ko yudh m hi mar diya gya tha.
+Manoj Singh Rajput haaahaaa bejde jaha bejni h post.
+Manoj Singh Rajput ..
rajput is the reality of india.....
no one can forget it
+Satyawrat Janghu chalo bhai man tumahri baat...
ab ye batao lal kile kiwaad kaha h
..vapas kar do
+king maker deeg k mahal m bharatpur h kiwad
+MOHIT NEHRA
ye kahan per h??
Jai Rajputana
Jay rajputana
th-cam.com/video/x8EGwh90Tds/w-d-xo.html
👆लाल कोट (राय पिथोरा) किले (दक्षिण दिल्ली)
भाई जो प्रूफ करना है सिर्फ शिलालेख और अभिलेखों पर करो वो क्या कहते है उन्हीं राजाओं के
तुंगध्वज राजा जो पांडवो के 84 पीढ़ी में हुए और तुंगध्वज के वंशज तुंगड़ कहलाये तो पहले तूंगड़ गोतर था
फिर आगे चलकर ये तंवर कहलाये और आगे चलकर राजा तोम हुए जिनके वंशज तोमर कहलाये
और आपको नहीं पता जब दिल्ली से तंवरो का राज उसके बाद भद्रवती में रियासत बनाई थी 12वी सतबादी में और वहीं से उनके कुछ वंसज ने भद्रावती से निकलकर ग्वालियर में जा बसे और ग्वालियर में रियासत बनाई पर भद्रावती रियासत को 17वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया और ग्वालियर की रियासत को 16वी शताब्दी में मुगलो ने खत्म कर दिया
तुंगध्वज( तुंगपाल) ( कर्नाटक में तुंग भद्र नदी के किनारे तुंगभद्र नामक राज्य बसाया वहाँ आदि गद्दी स्थापित की ) तुंगध्वज के वंशज तूंगड़ कहलाए और तूंगड़ से तंवर बने
- > अभंग
- > ज्वालपाल ( जवलपाल )
- > गवाल ( गवल ) ( इनके नाम पर बाद में गोपाचल पर्वत पर गवालियर राज्य बसाया गया )
- > लोरपिण्ड
- > अडंगल ( अदंगल )
- > गणमेल
- > नभंग
- > चुक्कर ( चुक्कार )
- > तोम (राजा तोम के वंशज तोमर कहलाये और फिर आगे चलकर ग्वालियर पर राज किया)
- > द्रव्यदान
- > द्रुज्ञ
> मनभा ( मनभ )
- > कारवाल ( करवल )
> कलंग
- > कंध
- > अनंगपाल ( इन्द्रप्रस्थ - महाभारत सम्राट -
पृथ्वीराज विजय एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है । वर्ष 1191 - 93 ई . के बीच इस ग्रंथ की रचना कश्मीरी पण्डित ' जयानक ' ने की । इस ग्रंथ के माध्यम से पृथ्वीराज तृतीय के विषय में जानकारी मिलती है ।
Inscrition of Tanwar 👇
The territory ruled over by the Tanwar (Tungad) comprised of mod en east Punjab . Hariyana and the upper Doab of the rivers Ganges and Jamna . The first available historical reference to the Tanwar (Tungad) family is the inscription undated but pertains to the time of Mahendra Pal , the Gurjar emperor of Kanaui who ruled 890 to 910 A . D . In this inscription Gogga , adescendant of Bhunath Jaula is men tioned as a dignified administrative officer of the emperor Mahendra Pal the Gurjar Pratihar . Bhunath means , the lord of earth , a Raja . Dr . Bhandarker has interconnected this Bhunath Jaula with Maharaja Torman Javul
( Inscription now in Lahore Mu seum ) and Jaola of Kara and had concluded by these three inscrip tions that Tanwar (Tungad) and Pratihars are Gurjars . The same view had been adopted by Dr . A . F . Rudolf Hornale , Mr . V . A . Smith , Mr . Rapson , K . M . Munshi , Yatendra , Kumar Verma etc . etc . in their history books . Rahim Dad Khan Maulai Shadai writes . " In 816 , Nag Bhata Raja of Gujar Qaum , ( Gurjar race ) conquered Kanauj . The Gujars ruled there for two countries . Among them Raja Bhoj ( Mihir Bhoj ) was most famous . " A branch of the Gujars was Tanwar(Tungad ) who founded the kingdom at Delhi . [ See page 56 Tarikh Janatul Sindh ( Written in Sindhi language ] . Also T . G . page 295
लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।
इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज थे।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तंवर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
लेखक अब्दुल मलिक,जनरल सर कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर जाती
(गुजर पी -213 का इतिहास) 218)। उनका गोत्रा तंवर था
1551 सदी का शिलालेख👇
तंवर( तोमर )वंश - 282 . गुर्जर का प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास सिधे संवतु 1551 वर्षे
गूरजैर श्री राजमानसीघदेवा वचनतु पूथाना सटोजरामलगगेर सारयो । । राजा की तसलिमा कामु जायै । । सुत्रधरे पजू महलनं खीरंसु मनूव सानेग समा बढ़ई रमू सिलहरी गर्ने धनूत मई । चादु । टूवल सूवाकयो वोहरीत्र ।
उपरोक्त शिलालेख का अनुवाद इस प्रकार से है : - . संवत् 1551 ज्येष्ठ बुदी - 2 गुर्जर श्री मानसिंह देव के आदेश पालना में सागर ( गगेर ) को स्वच्छ किया गया । इस शिलालेख की पहली पंक्ति से अवगत होता है कि राजा मानसिंह तोमर गुर्जर था । जून 1988 में भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग ने खंडार सवाईमाधोपुर ( राजस्थान ) के किले ( दुर्ग ) में काफी शिलालेख उपलब्ध किये हैं जिनमें एक शिलालेख में राजा मानसिंह तोमर ग्वालियर को स्पष्ट शब्दों में गुर्जर लिखा है ( श्री प्रकाश बाफना - नवभारत टाइम्स ( हिन्दी ) जयपर , 7 जून , 1988 ईस्वी पृष्ठ . 2 कालम 5 - 5 ) । यह शिलालेख विक्रम सम्वत् 1568 का है जोकि उसी से अवगत होता है । खंडार दुर्ग सवाई माधोपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है ।
किचं यथा क्षत्रियपि गुर्जरा । गुर्जराणा क्षत्रियाणामभावे गुर्जराख्यो जनपदः कथंस्यात । द्रश्यन्ते हि बंगा अंगा कलिंगादयो जनपदाः क्षत्रिया ख्यैव प्रसिद्धिगताः । स्पष्टं चेदं जनपद शब्दाक्षत्रियादभित्यादि पाणिनी सूत्रैः गुर्जरे व्याख्या च क्षत्रिये स्वैव मुख्याभवति ब्रह्मणादिषुतु देश सम्बन्धाज्जायते ।। तथाहि गुरी उद्यमने इति धातोः सम्पदादित्वाद्भावे विकल्प गुरं शत्रु कलंक शत्रोद्यमनेजरयति नाशयति इति गुर्जराः शब्द कल्य दूमेऽयेतादर्श व्युत्पत्ति प्रदर्शिताः ।
Jai rajputana
पेहोवा शिलालेख
Shilalekha se bada koi proof nh hai
करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में क्या निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
दो शिलालेख दिनांकित नौवें शताब्दी ईस्वी पेहोवा में पाया उल्लेख है कि जगह द्वारा नियंत्रित किया गया महेंद्रपाला , की कन्नौज और एक विष्णु मंदिर इस स्थान में निर्माण किया गया था तोमर परिवार है,
ऐतिहासिक संदर्भ तोमर राजवंश के शासनकाल के दौरान जारी किए गए पेहोवा शिलालेख में होता है प्रतिहार राजा महेंद्रपाला ई (आर सी 885-910 सीई) [दिल्ली तोमर कन्नौज के Partiharas के जागीरदार थे]।इस अवांछित शिलालेख में कहा गया है कि तोमर परिवार का जौला एक अज्ञात राजा की सेवा करके समृद्ध हो गया। उनके वंशजों में वज्रता, जजुका और गोगगा शामिल थे। शिलालेख से पता चलता है कि गोगगा महेंद्रपाल आई का एक वासल था। यह गोगगा और उसके सौतेले भाई पूर्ण-राजा और देव-राजा द्वारा तीन विष्णु मंदिरों के निर्माण का रिकॉर्ड करता है । मंदिर सरस्वती नदी के तट पर पृथ्वीुका ( आईएएसटी : पुथुदाका; पेहोवा) में स्थित थे ।गोगगा के तत्काल उत्तराधिकारी के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेहोवा शिलालेख से पता चलता है कि यह विशेष तोमरा परिवार करनाल क्षेत्र के आसपास बस गया था। हालांकि, एफ। किलहॉर्न ने सुझाव दिया कि यह तोमरा परिवार वास्तव में दिल्ली में रहता है: वे तीर्थयात्रा पर पेहोवा गए थे, और वहां एक मंदिर बनाया था
गुज्जर तोमर के हाथों से दिल्ली गुज्जर चौहान के हाथों में कैसे गई।
दिल्ली की स्थापना 736AD में गुज्जर तोमर (तंवर,तुआर्स, टूर्स, तोमर) ने की थी। गुंजर तोमर का सबसे पुराना संदर्भ कन्नुज के गुज्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम के शासनकाल के हरियाणा के वर्तमान हरियाणा के करनाल जिले में पेहोवा, प्राचीन प्रितुदाका में एक शिलालेख में पाया गया है। यह कहता है कि वे गुज्जर तोमर राजवंश के राजा जुआला थे जिन्होंने गुज्जर प्रतिहार राजा के मामलों की देखभाल करके समृद्धि प्राप्त की थी।
गुज्जर चौहान राजा गुआजर द्वितीय द्वार द्वितीय द्वितीय गुज्जर चौहान राजा चंदन के बेटे ने गुज्जर तोमर राजा रुद्रना को युद्ध में मारा। पुष्कर की धार्मिक इमारतों की नींव उस समय गुज्जर चौहान राजा चंदन की पत्नी ने रखी थी।
इतिहासकार डॉ ऑगस्टस होर्नले का मानना है कि तोमर गुर्जरा (या गुज्जर) के शासक वंश में से एक थे।
इतिहास के लेखक जनरल सर ए कनिंघम के अनुसार, कानाउज के शासकों गुजर (गुजर पी -213 का इतिहास) 218)।उनका गोत्रा तोमर था और वे हुन चीफ टोरमन के वंशज हैं।
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