श्रीमदभागवत उपदेश | श्री आत्म तत्व दास | SB 1.15.43 | 1.09.2024 | ISKCON Bangalore Hindi

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  • เผยแพร่เมื่อ 2 ต.ค. 2024
  • चीरवासा निराहारो बद्धवाड्मुक्तमूर्धजः ।
    दर्शयन्नात्मनो रूपं जडोन्मत्तपिशाचवत् ।
    अनवेक्षमाणो निरगादशृण्वन्बधिरो यथा ॥ ४३॥
    तत्पश्चात् महाराज युधिष्ठिर ने फटे हुए वस्त्र पहन लिये, ठोस आहार लेना बन्द कर दिया, वे जान कर गूँगे बन गये और बालों को खोल दिया। इन सबके मिल-जुले रुप में, वे एक उजड्डु या वृत्तिविहीन पागल की तरह दिखने लगे। वे किसी वस्तु के लिए अपने भाइयों पर आश्रित नहीं रहे। वे बहरे मनुष्य की तरह कुछ भी न सुनने लगे।
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