अंतिम पाठ - 18 || यही जीवन है, नॉन-स्टॉप चुनौती || संकल्प पहले जानो, फिर ठानो by आचार्य प्रशांत

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 ก.ย. 2024
  • संकल्प
    पहले जानो, फिर ठानो
    हम सब अपने लिए कुछ लक्ष्य बनाते हैं, और उन्हें पूरा करने के लिए अनेक संकल्प उठाते हैं। बहुत बार उन संकल्पों को पूरा करके बाहर-बाहर हम बहुत कुछ अर्जित भी कर लेते हैं, पर क्या उससे भीतर का खालीपन मिट जाता है? क्या ऐसा होता है कि जो मिला है उससे और पाने की चाहत ही खत्म हो जाए? वो चाहतें दोबारा उठें ही न?
    हम एक संकल्प से दूसरे संकल्प पर दौड़ते रहते हैं लेकिन रुक कर यह नहीं पूछते कि संकल्प खुद पूरा होकर भी क्या हमें पूरा कर पा रहा है? क्या जीवन में कोई मूलभूत बदलाव आ रहा है?
    आचार्य प्रशांत की यह पुस्तक संकल्प‌ लेने वाले का ध्यान बाहर से भीतर की ओर मोड़ने का प्रयास है। संकल्पकर्ता कौन है? उसके संकल्प किन लक्ष्यों के लिए लिये जा रहे हैं? वो लक्ष्य ही कहॉं से निर्धारित हो रहे हैं?
    यह पुस्तक व्यक्ति को इन मूल प्रश्नों की ओर लेकर आती है जिससे कि उसके संकल्प समझ और बोध से उठें, अज्ञानता और बाहरी प्रभावों के कारण नहीं। पुस्तक के माध्यम से आचार्य जी ने सही संकल्प से जुड़ी कुछ भ्रांतियों और चुनौतियों पर भी मार्गदर्शन किया है।
    Index
    1. लक्ष्य को लेकर स्पष्टता
    2. अनुशासन को लेकर स्पष्टता
    3. दमन और शमन को लेकर स्पष्टता
    4. स्पष्टता - कुछ भी करने से पहले पूछो
    5. स्पष्टता से ही सही चुनाव
    6. जीवन में सही दिशा ज़रूरी
    7. संकल्प और महत्वाकांक्षा
    8. किसी भी शक्ति से बड़ा है तुम्हारा संकल्प
    9. सही चुनाव का सामर्थ्य
    10. असली संकल्प उठा लो
    11. असली संकल्प उठा लो
    12. सही राह में सहो और आगे बढ़ो
    13. सही राह में गलतियाँ तो होंगी, पर...
    14. चुनौती - ताकत की कमी
    15. चुनौती - प्रतिष्ठा की चाहत
    16. चुनौती - तकलीफ़ों को सहने की
    17. चुनौती - क्षणिक सुख से आगे बढ़ने की
    18. यही जीवन है, नॉन-स्टॉप चुनौती

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