मैं नीर भरी दु:ख की बदली! स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रन्दन में आहत विश्व हंसा, नयनों में दीपक से जलते, पलकों में निर्झरिणी मचली! मेरा पग-पग संगीत भरा, श्वासों में स्वप्न पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय बयार पली,
Some of Jaishankar Prasad's plays include: Skandagupta: A famous play written in 1928 Chandragupta: A famous play Dhruvaswamini: Considered by some to be Prasad's best play, set in the Gupta Age Titli: A play by Jaishankar Prasad Ajatshatru: A play by Jaishankar Prasad Kankal: A play by Jaishankar Prasad
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के बारे में कुछ खास बातें: वे भक्तिकालीन साहित्य के अच्छे जानकार थे. उन्हें साल 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. उनके मित्र और परिवार ने उन्हें 'मुकेश शास्त्री' उपनाम दिया था. उनकी लेखनी में मौलिक चिंतन का छाप मिलता है. उन्होंने सरकार और शासन पर कटाक्ष किया है. उन्होंने उपन्यास, निबंध, और संपादन के ज़रिए लोगों तक हिन्दी और उसके प्रभाव को पहुंचाने का काम किया है.
अदभुत
🔥🔥
❤❤
एक शौक बेमिसाल रखा करो
🎸
हालात जैसे भी हो
होठों पर हमेशा #मुस्कान रखा करो
🎸🎸
बहुत ही शानदार वीडियो बनाया है आपने 🎉 बहुत सारी जानकारी मिलती हैं आप के वीडियो में ✅👌👍 like done 👍 full watch 👌
Great video 😊❤
Thanks for watching!
Nice
Thanks
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश-चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक
सुंदर☺️
संस्कृत से संस्कृति हमारी, हिंदी से हिंदुस्तान है 🇮🇳
मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,
Some of Jaishankar Prasad's plays include:
Skandagupta: A famous play written in 1928
Chandragupta: A famous play
Dhruvaswamini: Considered by some to be Prasad's best play, set in the Gupta Age
Titli: A play by Jaishankar Prasad
Ajatshatru: A play by Jaishankar Prasad
Kankal: A play by Jaishankar Prasad
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के बारे में कुछ खास बातें:
वे भक्तिकालीन साहित्य के अच्छे जानकार थे.
उन्हें साल 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
उनके मित्र और परिवार ने उन्हें 'मुकेश शास्त्री' उपनाम दिया था.
उनकी लेखनी में मौलिक चिंतन का छाप मिलता है.
उन्होंने सरकार और शासन पर कटाक्ष किया है.
उन्होंने उपन्यास, निबंध, और संपादन के ज़रिए लोगों तक हिन्दी और उसके प्रभाव को पहुंचाने का काम किया है.
Hindi Rastriyo Basha???