मीराके प्रभु गिरधर नागर मिल बिछुड़न नहीं कीजै। 40(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
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- เผยแพร่เมื่อ 7 ก.พ. 2025
- Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन।
मीराजी के चरित्र में देखिए। वे कहती हैं,-”कृपा रावरै कीजै, साजन, ज्यों जानें, त्यों सुधि लीजै।“ यहाँ उनका संसार का त्याग है, साधन के अभिमान का त्याग है, अपने अधिकार का त्याग है। आगे कहती हैं कि मेरा अधिकार ही नहीं है। आप जैसे चाहें, मेरी सुधि लें। मेरा कोई और नहीं है। तो साधन के अभिमान का भी त्याग। वे श्रीकृष्ण की नित्य प्रिया है। उन्होंने गोपियों की भाँति परकीया भाव की बात पसन्द की। परकीया भाव में विशेष त्याग है। परकीया अपने पति पर अपना कोई अधिकार नहीं मानती। स्वकीया अपने पति पर अपना अधिकार मानती है, जैसे, रुक्मिणी जी।
मालूम होता है कि मीराजी इस युग की गोपी हैं। तभी वे कहती हैं कि मेरा कोई अधिकार नहीं है। आप जैसे चाहें, मेरी सुधि लें। यह आत्मीय सम्बन्ध की विलक्षणता है। वे कहती हैं कि मेरा कोई और नहीं हैं। दिन में मुझे भूख नहीं लगती, रात में नींद नहीं आती। इसका अर्थ क्या है? मीराजी प्राण-धर्म से ऊपर उठ गई। भूख लगना प्राण-धर्म है। नींद आना कारण शरीर का धर्म है। वे कारण शरीर से भी ऊपर उठ गई।
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