National Integration And Language by

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  • เผยแพร่เมื่อ 22 ธ.ค. 2024

ความคิดเห็น • 13

  • @samraj1000
    @samraj1000 3 ปีที่แล้ว +2

    लेखों की यह श्रृंखला अपने आप मे एक बहुत महत्वपूर्ण साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक योगदान भी है एवं उपलब्धि भी। अगर ये लेख यहां इस प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नही होते, तो जीवन में इनसे रु-बरु होने या इनको पढ़ने-सुनने की ज़रा सी भी सम्भावना नही थी । धन्यवाद सर ।

    • @DESHARYANA
      @DESHARYANA  3 ปีที่แล้ว

      शुक्रिया

  • @bajrangbihari433
    @bajrangbihari433 3 ปีที่แล้ว +5

    "हिंदी का प्रचार करना एक बात है, हिंदी का प्रयोग करना दूसरी बात।"
    भाषा के सवाल पर भीष्म साहनी का बेबाक चिंतन।
    भाषा को धर्म के साथ जोड़ने के घातक परिणाम हुए हैं।
    भीष्म साहनी की स्मृति को नमन।
    प्रो. सुभाष को इसके चयन, सुंदर वाचन के लिए बहुत शुक्रिया।

    • @DESHARYANA
      @DESHARYANA  3 ปีที่แล้ว

      शुक्रिया

  • @kanwaljitkaur5532
    @kanwaljitkaur5532 3 ปีที่แล้ว +3

    भाषा की समस्या का सर्वांग पूर्ण विवेचन प्रस्तुत करता निबंध। स्वर प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।

    • @DESHARYANA
      @DESHARYANA  3 ปีที่แล้ว

      शुक्रिया

  • @b.madanmohan7522
    @b.madanmohan7522 3 ปีที่แล้ว +3

    चार भाषाओं के जानकार भीष्म जी ने भाषा समस्या को राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में बखूबी स्पष्ट किया है। बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको मुबारक।

  • @bkhardeep
    @bkhardeep 3 ปีที่แล้ว +2

    बहुत अच्छा

    • @DESHARYANA
      @DESHARYANA  3 ปีที่แล้ว

      शुक्रिया सर जी

  • @gouravsingh1002
    @gouravsingh1002 3 ปีที่แล้ว +1

    बहुत अच्छा सर जी 🙏🙏

  • @ManiKumar-ht1cf
    @ManiKumar-ht1cf 10 หลายเดือนก่อน +1

    भारत मे सब कुछ होता है जैसे जिस तरह नेपाल की नागरिकतानाम की बाहक नेपालीशब्द केो भारतीय संबिधान की अष्टम अनुसूचि
    मे अन्तर्भूक्त किया है क्या उससे भारतीय राष्ट्रीयता बिखन्डन नही होगी ? काफ़ी समस्या है ।यदि नेपाली नाम को ईतना बढ़ावा देना तब बांगलाभाषाकोबांगलादेशी
    और उर्दूको पाकिस्तानी नाम से संबिधानमे अन्तरंभूक्त करने से सरकार एवं देश की कानुन बिदों को आपत्ति क्यू होगी?
    नेपाली ,बांग्लादेशी ,पाकिस्तानी ,श्रीलंकन ये सब बिदेशी नागरिकके परिचायक है जब कि गोर्खा बंगाली तमील सिन्धी जातिबाचक हैऔर किसी बिदेशी नागरिकतानाम सेजुढी नही है।
    अत:नेपाली नाम को यथाशीघ्र गोर्खानाम से प्रतिस्थापित किया जाय तो चिकन नेक भी 🎉बचेगी ।भारतीय गोर्खाओंको ज़बरजस्ती नेपाली बनाने कि प्रयास हमारेगेर्खों साथ एवं भारत के हित मे भीनही है।भारतीय बंगालीयों को बांग्लादेशी बनाना या भारतीय सिन्धीको ज़बरदस्ती पाकिस्तानी कहना जैसा भूल होगी apertheid की तरह।यदि भारत के लिए पाकिस्तानि बांग्लादेशी श्रीलंकन राष्ट्रीय सूरक्षा की दृंष्टिस्े समस्या हो सक्ती है तब नेपाली नाम से तोऔर बढी समस्या होगी ! अत: साहनी जी रचना मे उर्दू के बारे मे उनका बिचार कुछ हदतक ठीक है मगर उक्त समस्यों को भी उन की रचना मे स्थान मिलता तो पाठको को और अच्छालगता। malice towards none friends
    Jai Bharat
    Dr Mani kumar Sharma
    Distt Darjeeling
    07022024