लेखों की यह श्रृंखला अपने आप मे एक बहुत महत्वपूर्ण साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक योगदान भी है एवं उपलब्धि भी। अगर ये लेख यहां इस प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नही होते, तो जीवन में इनसे रु-बरु होने या इनको पढ़ने-सुनने की ज़रा सी भी सम्भावना नही थी । धन्यवाद सर ।
"हिंदी का प्रचार करना एक बात है, हिंदी का प्रयोग करना दूसरी बात।" भाषा के सवाल पर भीष्म साहनी का बेबाक चिंतन। भाषा को धर्म के साथ जोड़ने के घातक परिणाम हुए हैं। भीष्म साहनी की स्मृति को नमन। प्रो. सुभाष को इसके चयन, सुंदर वाचन के लिए बहुत शुक्रिया।
भारत मे सब कुछ होता है जैसे जिस तरह नेपाल की नागरिकतानाम की बाहक नेपालीशब्द केो भारतीय संबिधान की अष्टम अनुसूचि मे अन्तर्भूक्त किया है क्या उससे भारतीय राष्ट्रीयता बिखन्डन नही होगी ? काफ़ी समस्या है ।यदि नेपाली नाम को ईतना बढ़ावा देना तब बांगलाभाषाकोबांगलादेशी और उर्दूको पाकिस्तानी नाम से संबिधानमे अन्तरंभूक्त करने से सरकार एवं देश की कानुन बिदों को आपत्ति क्यू होगी? नेपाली ,बांग्लादेशी ,पाकिस्तानी ,श्रीलंकन ये सब बिदेशी नागरिकके परिचायक है जब कि गोर्खा बंगाली तमील सिन्धी जातिबाचक हैऔर किसी बिदेशी नागरिकतानाम सेजुढी नही है। अत:नेपाली नाम को यथाशीघ्र गोर्खानाम से प्रतिस्थापित किया जाय तो चिकन नेक भी 🎉बचेगी ।भारतीय गोर्खाओंको ज़बरजस्ती नेपाली बनाने कि प्रयास हमारेगेर्खों साथ एवं भारत के हित मे भीनही है।भारतीय बंगालीयों को बांग्लादेशी बनाना या भारतीय सिन्धीको ज़बरदस्ती पाकिस्तानी कहना जैसा भूल होगी apertheid की तरह।यदि भारत के लिए पाकिस्तानि बांग्लादेशी श्रीलंकन राष्ट्रीय सूरक्षा की दृंष्टिस्े समस्या हो सक्ती है तब नेपाली नाम से तोऔर बढी समस्या होगी ! अत: साहनी जी रचना मे उर्दू के बारे मे उनका बिचार कुछ हदतक ठीक है मगर उक्त समस्यों को भी उन की रचना मे स्थान मिलता तो पाठको को और अच्छालगता। malice towards none friends Jai Bharat Dr Mani kumar Sharma Distt Darjeeling 07022024
लेखों की यह श्रृंखला अपने आप मे एक बहुत महत्वपूर्ण साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक योगदान भी है एवं उपलब्धि भी। अगर ये लेख यहां इस प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध नही होते, तो जीवन में इनसे रु-बरु होने या इनको पढ़ने-सुनने की ज़रा सी भी सम्भावना नही थी । धन्यवाद सर ।
शुक्रिया
"हिंदी का प्रचार करना एक बात है, हिंदी का प्रयोग करना दूसरी बात।"
भाषा के सवाल पर भीष्म साहनी का बेबाक चिंतन।
भाषा को धर्म के साथ जोड़ने के घातक परिणाम हुए हैं।
भीष्म साहनी की स्मृति को नमन।
प्रो. सुभाष को इसके चयन, सुंदर वाचन के लिए बहुत शुक्रिया।
शुक्रिया
भाषा की समस्या का सर्वांग पूर्ण विवेचन प्रस्तुत करता निबंध। स्वर प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।
शुक्रिया
चार भाषाओं के जानकार भीष्म जी ने भाषा समस्या को राष्ट्रीय एकता के संदर्भ में बखूबी स्पष्ट किया है। बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको मुबारक।
शुक्रिया
@@DESHARYANA 1q
बहुत अच्छा
शुक्रिया सर जी
बहुत अच्छा सर जी 🙏🙏
भारत मे सब कुछ होता है जैसे जिस तरह नेपाल की नागरिकतानाम की बाहक नेपालीशब्द केो भारतीय संबिधान की अष्टम अनुसूचि
मे अन्तर्भूक्त किया है क्या उससे भारतीय राष्ट्रीयता बिखन्डन नही होगी ? काफ़ी समस्या है ।यदि नेपाली नाम को ईतना बढ़ावा देना तब बांगलाभाषाकोबांगलादेशी
और उर्दूको पाकिस्तानी नाम से संबिधानमे अन्तरंभूक्त करने से सरकार एवं देश की कानुन बिदों को आपत्ति क्यू होगी?
नेपाली ,बांग्लादेशी ,पाकिस्तानी ,श्रीलंकन ये सब बिदेशी नागरिकके परिचायक है जब कि गोर्खा बंगाली तमील सिन्धी जातिबाचक हैऔर किसी बिदेशी नागरिकतानाम सेजुढी नही है।
अत:नेपाली नाम को यथाशीघ्र गोर्खानाम से प्रतिस्थापित किया जाय तो चिकन नेक भी 🎉बचेगी ।भारतीय गोर्खाओंको ज़बरजस्ती नेपाली बनाने कि प्रयास हमारेगेर्खों साथ एवं भारत के हित मे भीनही है।भारतीय बंगालीयों को बांग्लादेशी बनाना या भारतीय सिन्धीको ज़बरदस्ती पाकिस्तानी कहना जैसा भूल होगी apertheid की तरह।यदि भारत के लिए पाकिस्तानि बांग्लादेशी श्रीलंकन राष्ट्रीय सूरक्षा की दृंष्टिस्े समस्या हो सक्ती है तब नेपाली नाम से तोऔर बढी समस्या होगी ! अत: साहनी जी रचना मे उर्दू के बारे मे उनका बिचार कुछ हदतक ठीक है मगर उक्त समस्यों को भी उन की रचना मे स्थान मिलता तो पाठको को और अच्छालगता। malice towards none friends
Jai Bharat
Dr Mani kumar Sharma
Distt Darjeeling
07022024