समाजशास्त्र का परिचय || अध्याय 1 || समाजशास्त्रीय चिंतन || B.A. (Sociology) 1st Semester

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  • เผยแพร่เมื่อ 10 ก.พ. 2025
  • इस वीडियो में हम समाजशास्त्र स्नातक (1st semester) के विषय "समाजशास्त्र का परिचय" के अध्याय 1 - "समाजशास्त्रीय चिंतन" पे चर्चा करेंगे।
    समाजशास्त्र -स्नातक के सारे videos के playlist का link :
    • समाजशास्त्र (स्नातक)
    समाजशास्त्र यानी sociology हमें यह समझने का तरीका देता है कि समाज कैसे काम करता है और लोग इसमें किस तरह से घुलते-मिलते हैं। ज़्यिग्मुंट बाउमन और सी. डब्ल्यू. मिल्स जैसे समाजशास्त्रियों ने यह बताया कि समाजशास्त्र केवल अध्ययन का विषय नहीं है, बल्कि यह हमें अपने आसपास की दुनिया को नए नज़रिए से देखने में मदद करता है। बाउमन का मानना था कि समाज में शक्ति यानी power सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो लोग सत्ता में होते हैं, वे समाज के नियम, मूल्य और धारणाएँ तय करते हैं। दूसरी ओर, मिल्स ने यह समझाया कि समाज केवल सत्ता से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक प्रक्रियाओं से भी बनता है। उन्होंने ‘सामाजिक कल्पना’ यानी sociological imagination की अवधारणा दी, जिससे पता चलता है कि हमारी सोच हमारे इतिहास और समाज की संरचना से प्रभावित होती है।
    समाजशास्त्र के अध्ययन में ‘अमूर्त अनुभववाद’ यानी abstracted empiricism एक महत्वपूर्ण पद्धति है। इसमें आँकड़ों को इकट्ठा कर विश्लेषण किया जाता है, लेकिन कई बार इसमें यह नहीं देखा जाता कि कौन-सा विषय वास्तव में अध्ययन के योग्य है। मिल्स ने इस प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए कहा कि समाजशास्त्र केवल पद्धति तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे समाज की गहरी समझ विकसित करनी चाहिए।
    समाजशास्त्र रोज़मर्रा के जीवन को भी समझने का माध्यम है। मिल्स के अनुसार, लोग एक सामाजिक ‘जाल’ यानी trap में फंसे होते हैं, जहाँ वे यह नहीं समझ पाते कि उनके जीवन को प्रभावित करने वाली घटनाएँ बाहरी सामाजिक शक्तियों से जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए, कोई आर्थिक संकट दुनिया के दूसरे हिस्से में आता है, लेकिन उसका असर भारत के लोगों पर भी पड़ सकता है।
    समाजशास्त्र यह भी बताता है कि हम समाज में विभिन्न समूहों यानी groups का हिस्सा होते हैं। इन-ग्रुप यानी in-group वे लोग होते हैं, जिनसे हमारा आत्मीय संबंध होता है, जैसे परिवार और दोस्त। जबकि आउट-ग्रुप यानी out-group वे लोग होते हैं, जिनसे हमारा संबंध केवल औपचारिक या व्यावसायिक होता है। इसी तरह, समाज में ‘अजनबी’ यानी stranger का भी एक विशेष स्थान होता है। शहरों में अजनबीपन बढ़ जाता है, जिससे सामाजिक दूरियाँ बढ़ सकती हैं।
    समाज में सत्ता विभिन्न रूपों में मौजूद होती है। मैक्स वेबर ने तीन प्रकार की सत्ता का वर्णन किया- पारंपरिक यानी traditional, करिश्माई यानी charismatic और विधिक-तर्कसंगत यानी legal-rational। पारंपरिक सत्ता पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है, जैसे राजशाही। करिश्माई सत्ता किसी व्यक्ति की विशेष योग्यताओं के कारण मिलती है, जैसे महात्मा गांधी। वहीं, विधिक-तर्कसंगत सत्ता कानूनों और तर्क पर आधारित होती है, जैसे अदालतों की शक्ति।
    समाजशास्त्र यह भी बताता है कि कई बार सत्ता और शोध आपस में जुड़े होते हैं। सत्ता में बैठे लोग वही शोध कार्य करवाते हैं, जो उनके हित में हो। मिल्स ने इसे ‘बौद्धिक नियंत्रण’ यानी intellectual control कहा। इसमें समाजशास्त्री स्वतंत्र रूप से अध्ययन नहीं कर पाते और नौकरशाही यानी bureaucracy उनके शोध को नियंत्रित करती है।
    इतिहास समाजशास्त्र का एक अनिवार्य हिस्सा है। मिल्स ने बताया कि समाज को समझने के लिए केवल वर्तमान घटनाएँ देखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह देखना भी ज़रूरी है कि अतीत में कौन-सी घटनाएँ हुईं और वे समाज को कैसे प्रभावित कर रही हैं। इतिहास को कई बार सत्ता द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि केवल वही तथ्य सामने आएँ जो एक विशेष विचारधारा को बढ़ावा देते हैं।
    समाजशास्त्र की एक विशेषता यह भी है कि यह विज्ञान और दर्शन के बीच संतुलन बनाए रखता है। समाजशास्त्र वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करता है, लेकिन यह केवल संख्यात्मक अध्ययन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज के व्यापक संदर्भ को भी समझने का प्रयास करता है। मिल्स ने कहा कि एक अच्छा समाजशास्त्री केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह विधि यानी method, सिद्धांत यानी theory और मूल्य यानी values को ध्यान में रखकर शोध करता है।
    समाजशास्त्र का उद्देश्य केवल अध्ययन करना नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाना भी है। इतिहास में कई उदाहरण हैं, जहाँ समाजशास्त्र ने बदलाव की दिशा तय की है। महिलाओं के अधिकारों, जातिवाद और श्रमिक अधिकारों से जुड़े आंदोलनों में समाजशास्त्र की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
    बाउमन ने यह भी कहा कि समाज में मौजूद मूल्य यानी values और कार्य यानी actions एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। समाज में परिवर्तन तभी आता है, जब सामाजिक मूल्य बदलते हैं। अगर कोई समाज शिक्षा को प्राथमिकता देता है, तो वहाँ विकास तेज़ी से होगा, लेकिन अगर कोई समाज केवल पारंपरिक विचारों से जुड़ा रहेगा, तो उसमें परिवर्तन धीमी गति से होगा।
    समाजशास्त्र हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने आसपास हो रही घटनाओं पर सवाल उठाने चाहिए। कई बार हमें बताया जाता है कि चीज़ें हमेशा से ऐसी ही रही हैं, लेकिन समाजशास्त्र दिखाता है कि समाज में कुछ भी स्थायी नहीं होता। हर चीज़ समय के साथ बदलती है और इन बदलावों को समझना आवश्यक है।
    समाजशास्त्र केवल एक अकादमिक विषय नहीं है, बल्कि यह हमें यह समझने में मदद करता है कि हम समाज में किस तरह से फिट होते हैं और इसे कैसे बेहतर बना सकते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि हमें समाज की संरचना को केवल सतही रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि इसके पीछे कौन-से कारक काम कर रहे हैं।

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