संगीतमय श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा:301 से 305।जनकपुरी में बारात आगमन ।पं. राहुल पाण्डेय

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  • เผยแพร่เมื่อ 14 ต.ค. 2024
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    संगीतमय श्रीरामचरितमानस श्रृंखला बालकाण्ड दोहा : 301 से 305। जनकपुरी में बारात का आगमन। पं. राहुल पाण्डेय
    गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥
    निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥
    महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥
    चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी॥
    गावहिं गीत मनोहर नाना। अति आनंदु न जाइ बखाना॥
    तब सुमंत्र दुइ स्पंदन साजी। जोते रबि हय निंदक बाजी॥
    दोउ रथ रुचिर भूप पहिं आने। नहिं सारद पहिं जाहिं बखाने॥
    राज समाजु एक रथ साजा। दूसर तेज पुंज अति भ्राजा॥
    दोहा- तेहिं रथ रुचिर बसिष्ठ कहुँ हरषि चढ़ाइ नरेसु।
    आपु चढ़ेउ स्पंदन सुमिरि हर गुर गौरि गनेसु॥३०१॥
    सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें। सुर गुर संग पुरंदर जैसें॥
    करि कुल रीति बेद बिधि राऊ। देखि सबहि सब भाँति बनाऊ॥
    सुमिरि रामु गुर आयसु पाई। चले महीपति संख बजाई॥
    हरषे बिबुध बिलोकि बराता। बरषहिं सुमन सुमंगल दाता॥
    भयउ कोलाहल हय गय गाजे। ब्योम बरात बाजने बाजे॥
    सुर नर नारि सुमंगल गाई। सरस राग बाजहिं सहनाई॥
    घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं। सरव करहिं पाइक फहराहीं॥
    करहिं बिदूषक कौतुक नाना। हास कुसल कल गान सुजाना ।
    दोहा- तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान॥
    नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान॥३०२॥
    बनइ न बरनत बनी बराता। होहिं सगुन सुंदर सुभदाता॥
    चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥
    दाहिन काग सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूँ पावा॥
    सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सवाल आव बर नारी॥
    लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा। सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा॥
    मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई॥
    छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी॥
    सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना॥
    दोहा- मंगलमय कल्यानमय अभिमत फल दातार।
    जनु सब साचे होन हित भए सगुन एक बार॥३०३॥
    मंगल सगुन सुगम सब ताकें। सगुन ब्रह्म सुंदर सुत जाकें॥
    राम सरिस बरु दुलहिनि सीता। समधी दसरथु जनकु पुनीता॥
    सुनि अस ब्याहु सगुन सब नाचे। अब कीन्हे बिरंचि हम साँचे॥
    एहि बिधि कीन्ह बरात पयाना। हय गय गाजहिं हने निसाना॥
    आवत जानि भानुकुल केतू। सरितन्हि जनक बँधाए सेतू॥
    बीच बीच बर बास बनाए। सुरपुर सरिस संपदा छाए॥
    असन सयन बर बसन सुहाए। पावहिं सब निज निज मन भाए॥
    नित नूतन सुख लखि अनुकूले। सकल बरातिन्ह मंदिर भूले॥
    दोहा- आवत जानि बरात बर सुनि गहगहे निसान।
    सजि गज रथ पदचर तुरग लेन चले अगवान॥३०४॥
    मासपारायण,दसवाँ विश्राम
    कनक कलस भरि कोपर थारा। भाजन ललित अनेक प्रकारा॥
    भरे सुधासम सब पकवाने। नाना भाँति न जाहिं बखाने॥
    फल अनेक बर बस्तु सुहाईं। हरषि भेंट हित भूप पठाईं॥
    भूषन बसन महामनि नाना। खग मृग हय गय बहुबिधि जाना॥
    मंगल सगुन सुगंध सुहाए। बहुत भाँति महिपाल पठाए॥
    दधि चिउरा उपहार अपारा। भरि भरि काँवरि चले कहारा॥
    अगवानन्ह जब दीखि बराता।उर आनंदु पुलक भर गाता॥
    देखि बनाव सहित अगवाना। मुदित बरातिन्ह हने निसाना॥
    दोहा- हरषि परसपर मिलन हित कछुक चले बगमेल।
    जनु आनंद समुद्र दुइ मिलत बिहाइ सुबेल॥३०५॥

ความคิดเห็น • 1

  • @ckfccc
    @ckfccc 2 หลายเดือนก่อน +1

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