0:122:33 इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः । ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥ जो भी नये अथवा पुराने पितर यहॉं से चले गये हैं, जो पितर अन्य स्थानों में हैं और जो उत्तम स्वजनों के साथ निवास कर रहे हैं अर्थात् यमलोक, मर्त्यलोक और विष्णुलोक में स्थित सभी पितरों को आज हमारा यह प्रणाम निवेदित हो 0:47 उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः । असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥ नीचे, ऊपर और मध्य स्थानों मे रहनेवाले, सोमपान करने के योग्य हमारे सभी पितर उठकर तैयार हों । यज्ञ के ज्ञाता सौम्य स्वभाव के हमारे जिन पितरों ने नूतन प्राण धारण कर लिये हैं, वे सभी हमारे बुलाने पर आकर हमारी सुरक्षा करें। 1:11 आहंपितृन् त्सुविदत्रॉं अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः । बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः ॥ उत्तम ज्ञान से युक्त पितरों को तथा अपांनपात् और विष्णु के विक्रमण को, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासन पर बैठने के अधिकारी पितर प्रसन्नापूर्वक आकर अपनी इच्छा के अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें। 1:37 बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् । त आ गतावसा शंतमेनाऽथा नः शं योरऽपो दधात ॥ कुशासन पर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके हमारी ओर आइये । यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेम से स्वीकार कीजिये । अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसाद के साथ आयें और हमें क्लेश रहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें। 2:04 उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु । त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥ पितरों को प्रिय लगनेवाली सोमरुपी निधियों की स्थापना के बाद कुशासन पर हमने पितरों को आवाहन किया है । वे यहॉं आ जायँ और हमारी प्रार्थना सुनें । वे हमारी सुरक्षा करने के साथ ही देवों के पास हमारी ओर से संस्तुति करें। 3:11 आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्र्वे । मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम ॥ हे पितरो ! बायॉं घुटना मोडकर और वेदी के दक्षिण में नीचे बैठकर आप सभी हमारे इस यज्ञ की प्रशंसा करें । मानव-स्वभाव के अनुसार हमने आपके विरुद्ध कोई भी अपराध किया हो तो उसके कारण हे पितरो, आप हमें दण्ड मत दें ( पितर बायॉं घुटना मोडकर बैठते हैं और देवता दाहिना घुटना मोडकर बैठना पसन्द करते हैं ) । 3:35 आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय । पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात ॥ अरुणवर्ण की उषादेवी के अङ्क में विराजित हे पितर ! अपने इस मर्त्यलोक के याजक को धन दें, सामर्थ्य दें तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्ति में से कुछ अंश हम पुत्रों को देवें। 3:57 ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः । तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥ सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुल के सोमपायी पितर यहॉं उपस्थित हो गये हैं । वे हमें उपकृत करने के लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कण्ठित होकर यह राजा यम हमारे-द्वारा समर्पित हवि को अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें। 4:18 अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः। ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥ 5:38 ये चेह पितरो ये च नेह यॉंश्च विद्म यॉं उ च न प्रविद्म । त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व ॥ जो हमारे पितर यहॉं ( आ गये ) हैं और जो यहॉं नही आये हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम अच्छी प्रकार जानते भी नहीं; उन सभी को, जितने ( और जैसे ) हैं, उन सभी को हे अग्निदेव ! आप भली भॉंति पहचानते हैं । उन सभी की इच्छा के अनुसार अच्छी प्रकार तैयार किये गये इस हवि को ( उन सभी के लिये ) प्रसन्नता के साथ स्वीकार करें। 6:00 ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते । तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥ हमारे जिन पितरों को अग्नि ने पावन किया है और जो अग्नि द्वारा भस्मसात] किये बिना ही स्वयं पितृभूत हैं तथा जो अपनी इच्छा के अनुसार स्वर्ग के मध्य में आनन्द से निवास करते हैं । उन सभी की अनुमति से, हे स्वराट् अग्ने ! ( पितृलोक में इस नूतन मृतजीव के ) प्राण धारण करने योग्य ( उसके ) इस शरीर को उसकी इच्छा के अनुसार ही बना दो और उसे दे दो ।
Hai pitaro pravu , tumko koti pranam 🙏🙏🙏 naa bidhi jaano naa puja ,fir v aaplog mangalkaari ,dayanidhan ho, mere jeevan ke savi dookh dard door kro 🙏🙏🙏 Hari Om Narayan Hari 🙏🙏🙏
पितृ स्तोत्र अर्थ:- रूचि बोले - जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ। जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ। नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ। चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ। अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों। मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।।। पितृ स्तोत्र पाठ ।। अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।। इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।। मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।। नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।। प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।। नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।। सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।। अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।। ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।। तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।। Pitra dosh nivaran stotra (पितृ दोष निवारण स्तोत्र) Pitra stotra- Pitra Suktam पितृ-सूक्तम् (पितृ दोष निवारण स्तोत्र) PITRA DOSH NIVARAN STOTRA PITRA STOTRA- PITRA SUKTAM पितृ स्तोत्र पाठ - पितृ-सूक्तम् अमावस्या हो या पूर्णिमा अथवा श्राद्ध पक्ष के दिनों में संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ-सूक्तम् का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति जीवन में बहुत परेशानी का अनुभव करते हैं उनको तो यह पाठ प्रतिदिन अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे उनके जीवन के समस्त संकट दूर होकर उन्हें पितरों का आशीष मिलता है...। पितृ स्तोत्र पाठ मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न एवम पितृदोष शांत हो जाता है।
।। पितृ-सूक्तम् ।।
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥
॥ ॐ शांति: शांति:शांति:॥
0:12 2:33
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥
जो भी नये अथवा पुराने पितर यहॉं से चले गये हैं, जो पितर अन्य स्थानों में हैं और जो उत्तम स्वजनों के साथ निवास कर रहे हैं अर्थात् यमलोक, मर्त्यलोक और विष्णुलोक में स्थित सभी पितरों को आज हमारा यह प्रणाम निवेदित हो
0:47
उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः ।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥
नीचे, ऊपर और मध्य स्थानों मे रहनेवाले, सोमपान करने के योग्य हमारे सभी पितर उठकर तैयार हों । यज्ञ के ज्ञाता सौम्य स्वभाव के हमारे जिन पितरों ने नूतन प्राण धारण कर लिये हैं, वे सभी हमारे बुलाने पर आकर हमारी सुरक्षा करें।
1:11
आहंपितृन् त्सुविदत्रॉं अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः ।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः ॥
उत्तम ज्ञान से युक्त पितरों को तथा अपांनपात् और विष्णु के विक्रमण को, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासन पर बैठने के अधिकारी पितर प्रसन्नापूर्वक आकर अपनी इच्छा के अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें।
1:37
बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।
त आ गतावसा शंतमेनाऽथा नः शं योरऽपो दधात ॥
कुशासन पर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके हमारी ओर आइये । यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेम से स्वीकार कीजिये । अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसाद के साथ आयें और हमें क्लेश रहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें।
2:04
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥
पितरों को प्रिय लगनेवाली सोमरुपी निधियों की स्थापना के बाद कुशासन पर हमने पितरों को आवाहन किया है । वे यहॉं आ जायँ और हमारी प्रार्थना सुनें । वे हमारी सुरक्षा करने के साथ ही देवों के पास हमारी ओर से संस्तुति करें।
3:11
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्र्वे ।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम ॥
हे पितरो ! बायॉं घुटना मोडकर और वेदी के दक्षिण में नीचे बैठकर आप सभी हमारे इस यज्ञ की प्रशंसा करें । मानव-स्वभाव के अनुसार हमने आपके विरुद्ध कोई भी अपराध किया हो तो उसके कारण हे पितरो, आप हमें दण्ड मत दें ( पितर बायॉं घुटना मोडकर बैठते हैं और देवता दाहिना घुटना मोडकर बैठना पसन्द करते हैं ) ।
3:35
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय ।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात ॥
अरुणवर्ण की उषादेवी के अङ्क में विराजित हे पितर ! अपने इस मर्त्यलोक के याजक को धन दें, सामर्थ्य दें तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्ति में से कुछ अंश हम पुत्रों को देवें।
3:57
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः ।
तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥
सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुल के सोमपायी पितर यहॉं उपस्थित हो गये हैं । वे हमें उपकृत करने के लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कण्ठित होकर यह राजा यम हमारे-द्वारा समर्पित हवि को अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें।
4:18
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
5:38
ये चेह पितरो ये च नेह यॉंश्च विद्म यॉं उ च न प्रविद्म ।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व ॥
जो हमारे पितर यहॉं ( आ गये ) हैं और जो यहॉं नही आये हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम अच्छी प्रकार जानते भी नहीं; उन सभी को, जितने ( और जैसे ) हैं, उन सभी को हे अग्निदेव ! आप भली भॉंति पहचानते हैं । उन सभी की इच्छा के अनुसार अच्छी प्रकार तैयार किये गये इस हवि को ( उन सभी के लिये ) प्रसन्नता के साथ स्वीकार करें।
6:00
ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते ।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥
हमारे जिन पितरों को अग्नि ने पावन किया है और जो अग्नि द्वारा भस्मसात] किये बिना ही स्वयं पितृभूत हैं तथा जो अपनी इच्छा के अनुसार स्वर्ग के मध्य में आनन्द से निवास करते हैं । उन सभी की अनुमति से, हे स्वराट् अग्ने ! ( पितृलोक में इस नूतन मृतजीव के ) प्राण धारण करने योग्य ( उसके ) इस शरीर को उसकी इच्छा के अनुसार ही बना दो और उसे दे दो ।
Thanks.
Thanks
Dhanyawad
Thanks
।। ओम सर्वेभ्यो पितृभ्यो नमः।।
।। ओम द्रां दत्तात्रेयाय नमः।।
।। ओम नमो भगवते वासुदेवाय।।
శ్రీ పరమేశ్వరునికి నమస్కారములు......సకల దేవతలకు నమస్కారములు ... సకల ఋషులకు నమస్కారములు ....సమస్త ఋషులకు నమస్కారములు ...సమస్త పితృ దేవతలకు నమస్కారములు .... సమస్త పితృ దేవతలకు నమస్కారములు .... సమస్త పితృ దేవతలకు నమస్కారములు .... ఓం నమో నారాయణాయ ఓం.....
Thank you for your positive PITRU DOSH NIVARAN STROTAM FOR HELPING ME TO RELIEVE ME FROM PITRUDOSHA ❤❤❤❤❤THANK YOU UNIVERSE 🙏🙏🙏🙏🙏
आपने बहुत अच्छा गाया है इसकी स्क्रिप्ट स्क्रीन पर देनी चाहिए इसके बिना यह अधूरा है l
पितृदेवताय नमा🙏🙏
Om pitra davha namha protected me blessed my husband my child support me i fulfilled gratitude thank you pitradavha thank you gurudev datta
Hai pitru sat sat naman Sab ka Kalyan ho Shanti Shanti Shanti Shanti🌍🙏🙏🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
Pitra dev ko shath shath naman.
नमस्कार
खूप छान आहे. धन्यवाद।
जय भोले बाबा...
आपके सब सॉंग बहोत अच्छे हैं....
पर आपसे एक विनंती हैं !!
कि आप एक गाना माँ बिजासनी सेंधवा पर हि बनाये..... Please
Humble request to provide lyrics with meanings subtitles
Om Pitra Devah Namah 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ઑ
@@HiteshPatel-tw6wg aàaaàaààaàààà
Jay Pitru Dev
Thank you ( the whole team) 🙏
Dhanywad guruji❤
Hai pitaro pravu , tumko koti pranam 🙏🙏🙏 naa bidhi jaano naa puja ,fir v aaplog mangalkaari ,dayanidhan ho, mere jeevan ke savi dookh dard door kro 🙏🙏🙏 Hari Om Narayan Hari 🙏🙏🙏
Om pitru devatha namaha
🙏🙏श्रीगुरू शरणम्🙏🙏
👣शत् शत् नमन👏वंदनम्👣
Благодарю Вас и Браминов 🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️
Aneka koti namaskarangal
Jai pitru namah🙏
🙏🏻♥️Jai Laxmi Narayan♥️🙏🏻 🙏🏻♥️Pitra Dev♥️🙏🏻
Very beautifully composed
बहुत सुंदर। धन्यवाद
यह पितृ सूक्त
Joy pitree dev namaste.........01
❤️🙏
खरंच खूप छान स्तोत्र धन्यवाद सर 🙏❤
Best Stotram.
🙏❤🌹OM SARVA PITRUNAM SARVADA PREETHIKARA BHAVATHU 🌹❤🙏
namopitruprusayanamaha... he.. pitrugan.. mere.. upar... assribad... karo.... meriuprlgahua.. sabhi.. dosko... door. karo... om. namasibya
धन्यवाद सर 🙏❤ खरंच खूप छान मंत्र उच्चार ❤
Excellent voice. True affections.
Thanks for your video... Thanks Guru jee
Har Har Mahadev Jai Shree Radhe Radhe Jai Shree Pitra dev Bhagwan. Thank U and Charnome Koti Koti Pranams Guruji..
Mahalaxmi ki kripa kab hogi
जय पित्रोभ्यो नमः।
🙏🙏
Very nice 👍🙂 jay gurudev shi ram ji ki jai ho
Add lyrics to sing with these singers.
Nice presentation.
Om
Thank you pitru dev
Pitrubyo namaha....super
मातृ पितृ देवो भव
औम पितृ देवाय मंगरे गोत नमो नमः नमो नमः नमो नमः 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Om pitra devaya namha🙏🙏🙏
Jai Pitrobhyo Namah
Om Pitrubhyo Namah🙏🙏
Jay shri pitrudev Bhagvan
ऊं पितृभ्यो नमः।
❤️❤️🙏🙏
Avaj khup Chan👃👃👃👏🌺
Tnk u so much. Namaskarams
Wow so beautiful fine fine
Danya vaadalu swami jee
Pitru suktam namah
Jaya Jaya pitru . stotaram.namo.namahan..
Mage paulle Siyalu denagema thundos duruwewa..
Thanks for this ❤❤❤❤
NICE PRESENTATION.
Jai pitardevay namah
Pls show this in vedio we r able to read easily. In tamil
OM PITRU BHAYO NAMAHA
Jai ho
Pls give the lyrics
Nice!
Calming effect!
God Bless...!!!
Very good shlokas bhajans
कूपया पितृ सूक्त भी लिखा आये संस्कृत मे जिसे हम आपके साथ पढ सके या कोशिश कर सके धन्यवाद
।। पितृ-सूक्तम् ।।
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥
॥ ॐ शांति: शांति:शांति:॥
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जय माता दी ❤️❤️
Good.
Suuuuperbbb
Jai pitrbhya namah
Om pitridevtabhyo namah
Plz give the lyrics of mantra, so that it will be very helpful.
Along with mantra plz give the meaning to each slokas.
Pitru devoobhava fine
Thanks
Jai Mata Di ❤️❤️
Nice
Nice🙏🙏
🙏🙏💐💐💐🙏
👌
Super
Jai mata di
🙏🙏🙏
🙏
इस स्त्रोत के शब्दों को लिख कर बताना चाहिए
पितृ स्तोत्र अर्थ:-
रूचि बोले - जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों।
मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है।।। पितृ स्तोत्र पाठ ।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
Pitra dosh nivaran stotra (पितृ दोष निवारण स्तोत्र) Pitra stotra- Pitra Suktam पितृ-सूक्तम्
(पितृ दोष निवारण स्तोत्र) PITRA DOSH NIVARAN STOTRA PITRA STOTRA- PITRA SUKTAM पितृ स्तोत्र पाठ - पितृ-सूक्तम्
अमावस्या हो या पूर्णिमा अथवा श्राद्ध पक्ष के दिनों में संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ-सूक्तम् का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है।
जो व्यक्ति जीवन में बहुत परेशानी का अनुभव करते हैं उनको तो यह पाठ प्रतिदिन अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे उनके जीवन के समस्त संकट दूर होकर उन्हें पितरों का आशीष मिलता है...।
पितृ स्तोत्र पाठ
मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ ) में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ प्रसन्न एवम पितृदोष शांत हो जाता है।
Om pitrrayo namah
@@jufsrdaghyijfrazdsfujngfgo2153 धन्यवाद
good
Namaskar Dhanya vaad- Request lyrics and meanings and Source of Stotra , Thanks Respects, TR
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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Pitra devo bhav
Aum aryamaye namah
👌🙏🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️🙇🏻♀️
humble request to provide lyrics
Account is suspended
Give wordings of shloks
Please give lyrics 🙏
Sundar
Bhadra chalam jai Sri Raam
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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Please lyrics bhi deejiye
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🥰🥰🥰🥰🥰🥰🥰❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
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