51. योग दर्शन 1/36 मन को रोकने के लिए रोचक उपाय।
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- เผยแพร่เมื่อ 17 ก.ย. 2024
- विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थितिनिबन्धनी ॥ ३५ ॥
शब्दार्थ- (विषयवती) रूप-रस- गन्ध-स्पर्श-शब्द विषयों वाली (वा) अथवा ( प्रवृत्ति = प्रवृत्ति अनुभूति (उत्पन्ना) उत्पन्न हुई, (मनसः) मन की (स्थिति - निबन्धिनी) स्थिति व बाँधने वाली होती हैं।
सूत्रार्थ - अथवा गन्ध आदि विषयों के सम्बन्ध से उत्पन्न अनुभूति मन की स्थि को बाँधने वाली होती हैं।
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🙏🙏🙏
ओउम् नमस्ते जी🙏🙏🙏
सादर प्रणाम आचार्य जी
🕉️🌄🌅🔵🙏🙏🙏
Great work guru dhanyvad life change kar did🙏🙏🙏🙏🙏
Sader nameste aacharya ji
Achary Ankit Pravakar Sadare Namasteji (Binod Kumar Dehury Odisha
श्रीमान जी आपने पुस्तकें बड़ी और अपनी कल्पना और दूसरे अध्ययन से या दूसरे जगह से सुन कर आशय समझकर एक मत का निर्माण करने में लगे हैं।
मूर्ति पूजा और अमूर्त पूजा ध्यान विषय लक्ष्य क्रिया पूजा शब्द का अर्थ तरह तरह की मानसिक वाले लोग आपको किसी संस्थान से बाहर निकल कर तरह तरह की मानसिक गतिविधियों और क्षमताओं को समझने की क्षमता को विकसित कीजिए।
आपने मूर्ति पूजा को जो समझा है उसमें आप की अनभिज्ञता और आपका बचपना दिखता है सुलक्कल और पढ़ाकू होने से वास्तु एक अध्यात्मिक शिक्षा उतरती नहीं ।
आपकी इस अधूरे विश्लेषण से समाज का तथा स्वामी दयानंद के अभियान का बहुत नुकसान हो रहा है।
इच्छा कीजिए और उसकी पूर्ति के लिए संघर्ष
कीजिए तब मूर्ति पूजा और अमूर्त पूजा का रहस्य समझ में आयेगा।
क्यों आपकी बात कोई मानेगा।
सच्चाई यही है मूर्ति में भगवान कोई नहीं मानता।
मानकर शुरू भी करे तो उससे छूट जाता।
धारण शक्ति इतनी प्रबल जिसकी हो जाएगी।
बाकी खूब दंगल कीजिए कोई दिक्कत नहीं।
मूर्ति के लिए और अध्ययन विशेष कर साधना कीजिए सबको ध्याता ध्येय ध्यान का अंतर समझ में आने लगता है।
प्रिय महोदय!आपके वक्तव्य में भाषा संबंधी त्रुटि के कारण आपका मंतव्य स्पष्ट नहीं हो रहा है,कृपया स्पष्ट करें।