मुद्दा | जलवायु परिवर्तन | इसका खेती - किसानी पर क्या असर पड़ रहा है?| विश्लेषण

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  • เผยแพร่เมื่อ 27 ก.ย. 2024
  • To know more about climate change visit www.downtoeart...
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    ये दृश्य इस महीने के पहले पखवाड़े के हैं। ये 9 जनवरी, 2022 को हुई ओलावृष्टि के दृश्य हैं। सफेद बेर नुमा आकार के ये ओले मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक शहर ओरचा में गिरे थे। लगभग आधे घंटे तक हुई इस ओलावृष्टि ने कम से कम 12 गांवों में खड़ी गेहूं, मटर, ज्वार और दूसरी फसलों को नष्ट कर दिया। मध्य प्रदेश के छतरपुर और विदिशा जिलों से भी ऐसी ही रिपोर्टें आई हैं?
    मध्य भारत के विभिन्न हिस्सों में हुई यह ओलावृष्टि ठीक उसी तरह सामान्य से बात हो गई है, जैसे कि बेमौसमी बारिश, बाढ़ या सूखे की बात हो गई है। 2020 में टिड्डियों के हमले भी हुए। ये क्यों हो रहे हैं? क्या ये जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे हैं? आइए, मुद्दा की इस कड़ी में इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं, लेकिन इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, कृपया हमारी वेबसाइट www.downtoearth.org.in पर जाएं। आपकी स्क्रीन के ऊपर दाएं कोने पर इसका लिंक भी दिया गया है। हमारे यूट्यूब चैनल को भी सबस्क्राइब करें। जहां आपको विज्ञान, पर्यावरण और सतत विकास पर 800 से अधिक वीडियो देखने को मिलेंगे।
    मुद्दा की इस कड़ी में, हम चर्चा करेंगे कि कैसे जलवायु परिवर्तन की वजह से बेमौसमी घटनाएं बढ़ी हैं और इसका खेती-किसानी पर क्या असर पड़ रहा है? मैं आपको कुछ आंकड़े बताता हूं। पिछले साल, 2021 के अक्टूबर और नवंबर के महीने में, यूनाइटेड किंगडम में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन का नाम COP26 भी रखा गया था। इस सम्मेलन से कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र की एक खास एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्लूएमओ की एक रिपोर्ट आई। अपनी इस रिपोर्ट में WMO ने भारत के बारे में कहा-
    WMO ने कहा कि 2020 में भारत को प्राकृतिक आपदाओं के कारण 87 बिलियन डॉलर तकरीबन 645 अरब रुपए का नुकसान हुआ। 2020 ने संयुक्त रूप से गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड बनाया था। इस साल पृथ्वी 1.39 डिग्री अधिक गर्म रही। नुकसान के मामले में चीन के बाद दूसरा नंबर भारत का था। इतना ही नहीं, 2020 में ही भारत में बंगाल की खाड़ी में सबसे शक्तिशाली चक्रवात अम्फान सहित तीन चक्रवात आए। 2020 वह वर्ष भी था, जब अफ्रीका से आई टिड्डियों ने खेतों पर आक्रमण किया। 2020 वह वर्ष भी था, जब भारत के एक तिहाई जिलों या लगभग 250 जिलों में सूखे का प्रकोप रहा या बारिश की भारी कमी रिकॉर्ड की गई। जबकि इतने ही जिलों में सामान्य से बहुत ज्यादा बारिश हुई।
    जलवायु परिवर्तन और बेमौसमी घटनाएं भारत की खेती-किसानी के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। इन बेमौसमी घटनाओं के कारण हर साल भारत में लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हो रही है। 30 नवंबर 2021 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तौमर ने बताया कि चक्रवाती तूफान, अचानक आई बाढ़, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की वजह से 25 नवंबर, 2021 तक लगभग 50 लाख 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की फसल बर्बाद हो गई थी। .
    भारत सरकार और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा प्रकाशित ऐसी कई रिपोर्टें हैं जो खेती पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में बात करती हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी ICAR ने 2019 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें भारतीय कृषि के जोखिमों का आकलन किया गया। इसमें कहा गया है कि भारत की जलवायु में बदलाव आने वाला है जिसका असर पूरे देश में बुवाई और कटाई के पैटर्न पर भी पड़ेगा। यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2080 तक वर्षा सिंचित क्षेत्रों में चावल का उत्पादन ढाई से 10% तक कम हो जाएगा, जबकि इस सदी के अंत तक गेहूं का उत्पादन 6 से 25% कम हो जाएगा। इसी तरह मक्का का उत्पादन भी इस सदी के अंत तक 18-23% कम हो जाएगा।
    पिछले पांच वर्षों में फसल के नुकसान से होने वाली आर्थिक क्षति का कोई आकलन नहीं है। लेकिन नुकसान के पैमाने का अंदाजा 2016 के फसल के नुकसान के आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जब 66 लाख 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों के नुकसान का अनुमान 4 अरब 52 करोड़ 72 लाख रुपए लगाया गया था। यह आंकड़ा सरकार द्वारा 2020 में लोकसभा में प्रस्तुत किया गया था। अब अगर इसे 3 करोड़ 60 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र पर लागू किया जाता है, तो 2016 से 2020 के बीच भारत को लगभग 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यानी किसानों को पिछले पांच साल के दौरान सीधे-सीधे 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। जो साल 2020-21 के राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के बजट से भी अधिक है।
    यह केवल एक सांकेतिक आंकड़ा है, जिसका अनुमान 2017 के फसल नुकसान के मूल्यांकन से लगाया गया है। जबकि 2016 के मुकाबले 2017 में कम नुकसान हुआ था, जो तकरीबन 50 लाख 8 हजार हेक्टेयर था, लेकिन 2017 के नुकसान का आंकलन 8761 करोड़ रुपये था, जो लगभग दोगुना बैठता है। यानी कि बहुत कुछ फसलों के प्रकार और बुवाई के मौसम पर भी निर्भर करता है।
    विश्व स्तर पर यह स्वीकार किया गया है कि चरम मौसम किसानों को होने वाली फसल के अधिकांश नुकसान का कारण है। यहां तक ​​कि एफएओ ने भी अपनी रिपोर्ट स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, 2021 में इसे स्वीकार किया है। और सभी को यह याद दिलाने के लिए कि यह सब हम तब देख रहे हैं जब औसत वैश्विक तापमान में सिर्फ 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक बढ़ जाए तो क्या होगा? क्या होगी भारत की योजना? खासकर आने वाले साल में, जब सरकार की खुद की किसान की आय दोगुनी करने की समय सीमा नजदीक आ रही है। समय की मांग है कि ऐसा तंत्र का निर्माण किया जाए, जो जलवायु के अनुरूप हो, ताकि 31 दिसंबर को समाप्त हुए साल की तरह 2022 भी बुरा साबित न हो।

ความคิดเห็น • 26

  • @mayur14190
    @mayur14190 2 ปีที่แล้ว

    Very well explained. Thanks 🙏

  • @RohitPrasharshimla
    @RohitPrasharshimla 2 ปีที่แล้ว +1

    जबरदस्त जिंदाबाद

  • @keshavbhardwaj416
    @keshavbhardwaj416 2 ปีที่แล้ว

    महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए सर आपका आभार

  • @gulmohar4724
    @gulmohar4724 2 ปีที่แล้ว +1

    Thank you

  • @aakashbaranwal6933
    @aakashbaranwal6933 2 ปีที่แล้ว

    Thank you team downtoearth🙏

  • @ShwetaSingh-wq7ux
    @ShwetaSingh-wq7ux 2 ปีที่แล้ว +3

    Please continue this series in Hindi

  • @mayanklucknow
    @mayanklucknow 2 ปีที่แล้ว +1

    nice

  • @Live_bit_More
    @Live_bit_More 2 ปีที่แล้ว

    humankind should save the environment or at least be environmentally consciousProtecting the environment protects humanity: It is a way to give to your generation

  • @prateekjagtap
    @prateekjagtap 2 ปีที่แล้ว +1

    Please remove background music in videos.. At 1.5x it sounds very disturbing

  • @Clickviralshorts
    @Clickviralshorts 2 ปีที่แล้ว +3

    Very very thanku for discussion in Hindi language 🙏🙏

  • @sanbaisaste917
    @sanbaisaste917 9 หลายเดือนก่อน

    जलवायु परिवर्तन

  • @Pratyushxkumar
    @Pratyushxkumar 2 ปีที่แล้ว +3

    i dont think that our planet will exist upto 2030 becoz if 1 degree has rised just in these 2 years then think will we able to stop this global warming till 8 years !!! this should be taken seriously ..

  • @gurugantaal5782
    @gurugantaal5782 2 ปีที่แล้ว +4

    SCIENCE AND TECH K KAARAN HI GLOBAL WARMING HUI HAI . SCIENCE & TECH SE KAISE BACHE AB ?

    • @ashutoshgautam2598
      @ashutoshgautam2598 2 ปีที่แล้ว

      बहुत सरल है एक काम करे मोबाइल देखना बन्द कर दो वह भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का हिस्सा है...

    • @kishanpr77
      @kishanpr77 2 ปีที่แล้ว

      जितना सरल है उतना कठिन भी।
      अपने ईंधन, संसाधनों और Technology का उपयोग को केवल अपनी जरूरत तक ही सीमित रखें और जितना संभव हो उतना कम waste उत्पन्न करें। अपनी बेवजह की इच्छाओं और मनोरंजन के लिए नहीं।
      This problem needs everyone's awareness and participation from globe.

  • @pawanrawat7827
    @pawanrawat7827 2 ปีที่แล้ว +3

    save humans by saving environment ,because environment will find a way to save itself and that will be hazardous for human species . 😁

  • @vishallathwal5564
    @vishallathwal5564 10 หลายเดือนก่อน

    न्यू स्कैम लोगो के साथ बहुत बड़ा धोका हो रहा है दुनिया में

  • @mukeshkumar-bg9my
    @mukeshkumar-bg9my หลายเดือนก่อน

    Thank you

  • @omkarbiradar3383
    @omkarbiradar3383 2 ปีที่แล้ว +2

    Koi officers ya koi netha hamare area mein nahi aaya,🤔🤔🙏😷

  • @MaheshNaudiyal
    @MaheshNaudiyal 2 ปีที่แล้ว

    बहुत शानदार जानकारी

  • @rajneeshsahooias8421
    @rajneeshsahooias8421 2 ปีที่แล้ว +2

    Thanks sir for providing valuable knowledge

  • @aliinformation1465
    @aliinformation1465 2 ปีที่แล้ว

    2022 bura sabit

  • @kishanpr77
    @kishanpr77 2 ปีที่แล้ว

    👌👍

  • @gauravgulmohar
    @gauravgulmohar 2 ปีที่แล้ว

    शानदार वीडियो। सर क्या इसी तरह अनेक मुद्दों पर अनवरत वीडियो जारी किया जा सकता है? यह श्रृंखला आगे बढ़े तो दर्शकों के लिए लाभकारी होगा।🙏

  • @rp8280
    @rp8280 2 ปีที่แล้ว

    Please also suggest some measures to minimise the risk