15 अगस्त विशेष: इतिहास के संघर्षों से निकलकर मिली हिंदुस्तान को आजादी

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  • เผยแพร่เมื่อ 18 ก.ย. 2024
  • 15 अगस्त विशेष: इतिहास के संघर्षों से निकलकर मिली हिंदुस्तान को आजादी
    15 अगस्त 1947 के बाद भारत के संवैधानिक मुखिया ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और फिर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी थे। माउंटबेटन के बाद जब एक भारतीय, राजगोपालाचारी ने गवर्नर जनरल के पद की शपथ ली थी तो वह शपथ भी ब्रिटिश सम्राट ( हिज मजेस्टी) के प्रति बफादारी की थी न कि भारत की नयी व्यवस्था के
    प्रति।हम हर साल 15 अगस्त को बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। इसी दिन की पहली बेला पर 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पहले प्रधानमंत्री के तौर पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे को फहराने के साथ ही ऐतिहासिक भाषण ‘‘ट्रीस्ट विद डेस्टिनी’’ या भाग्य के साथ साक्षात्कार दिया था। लेकिन क्या सचमुच उस दिन हमारा देश पूरी तरह आजाद हुआ था?
    दरअसल, सच्चाई यह है कि उस दिन भारत और पाकिस्तान को दो उपनिवेशों का दर्जा मिला था जिनकी सरकारें स्वदेशियों की थीं मगर सार्वभौम सत्ता फिर भी ब्रिटिश सम्राट के पास थी। उस स्वायत्तशसी भारत को सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के लिये 26 जनवरी 1950 तक और पाकिस्तान को 1956 तक इंतजार करना पड़ा। यही नहीं उस दिन के बाद भी भारत की सेकड़ों रियासतें राजशाही के बंधनों में जकड़ी हुयी थीं।
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