स्वर्णप्रभा यक्षिणी प्रत्यक्ष सिद्धि ग्रहस्थो के लिए
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- เผยแพร่เมื่อ 11 เม.ย. 2022
- ।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं ।
यक्षिणी-नायिकानां तु,संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,
यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो -
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं ।
यक्षिणि स्वयमायाति,
कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय
ही सिद्धि मिलती है ।सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,
यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में
प्रकाशित किया गया है । इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में
होती है ।
विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,
श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
श्री अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि,
साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे
विनियोगाय नमः सर्वांगे।
।। मूल पाठ ।।
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या,
मुख की श्री धनदा और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें ।
आँखों की रक्षा वरदा, नासिका की भक्त-वत्सला करे ।
धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग की रक्षा करे ।
कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें ।
दोनों भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें ।
विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया सदा मेरी रक्षा करें ।
अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।
अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा
नितम्ब-स्थल की रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें।
गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें।
सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान, जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी
(जो सभी मन्त्रों की माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें।
मेरे सारे शरीर की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें।
अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली धनदा प्रान्तर
(लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन भू-खण्ड) में रक्षा करें।
लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें।
वरदा मेरी रक्षा करें। सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें।
महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका
क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें।
सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।
हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है।
इसके स्मरण मात्र से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है।
कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है,
और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी शास्त्रों का ज्ञाता हो जाता है।
अरण्य (वन, जंगल) में इस महा-कवच का पाठ करने से सिद्धि मिलती है।
कुल-विद्या यक्षिणी स्वयं आकर अणिमा, लघिमा, प्राप्ति आदि सभी सिद्धियाँ और सुख देती है।
कवच (लिखकर) धारण करके तथा पाठ करके रात्रि में निर्जन वन के भीतर बैठकर (अभीष्ट) यक्षिणि के मन्त्र का १ लाख जप करने से इष्ट-सिद्धि होती है।
इस महा-कवच का पाठ करने से वह देवी साधक की भार्या (पत्नी) हो जाती है।
इस कवच को ग्रहण करने से सिद्धि मिलती है इसमें कोई विचार करने की आवश्यकता नहीं है ।
।। इति वृहद्-भूत-डामरे महा-तन्त्रे श्रीमदुन्मत्त-भैरवी-भैरव-सम्वादे यक्षिणी-नायिका-कवचम् ।।
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जय श्री कृष्ण
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जय श्री कृष्णा
Jai sri sadgurudev nikhileshwar
Pranam guruji
जय माता दी गुरू जी को कोटि कोटि कोटि प्रणाम हर हर हर महादेव की जय जय माहाकाली जी को कोटि कोटि प्रणाम
जय श्री कृष्णा
जय श्री माता रानी जी की गुरुजी
जय श्री कृष्णा
Swami ji
PADHMINI...YAKSHINI.
boliy....please
🙏🙏🙏🙏🌺🌺🥭🥭🌺🥭🥭👣🙏🙏🙏
Jai gurudew jaimaa pitambra
जय श्री कृष्णा
Bahut chenal पर बहुत अलगअलग बिधि बताई और नुकसानदायक bhi बताया लेकिन आपने बहुत सरल बिधि बताई है इसका कोई हानि nahi to मुझे bhi करना कृपा मेरा मार्गदर्शन करें
Apsara mudra hoti hai kya❤
Nice video
जय श्री कृष्णा
आप अपने से मार्गदर्शन करके करवा देते हैं
तो यह साधना सफल हो जाती
क्योंकि बहुत बातों से सभी लोग अनभिज्ञ हैं
* स्वर्णवती यक्षिनी और स्वर्णप्रभा यक्षिनी अलग अलग है क्या ?
* क्या दोनो ऎक ही है ? गुरुजी कृपया मुझे बतायें 🙏🙏🙏🙏
krodh mudra kaise banani hai uska koi photo laga dijiye
Yakshini ittar yoni ki sadhna h kya Hani kaarak nahi h
Guru ji aap mere guru bun skte ho
Ghrihini ye sadhanaye kar sakti hain
हा
Guruji namaskar
जय श्री कृष्णा
M bhi apsara ya yakshini sadhna krna chahti hu pr dar lgta h k kahin koi glti n krdu.koi nuksan n ho jaye mera
Aap mujhe yakshini ni sadhna btaye guru ji
Mujhe bi ye sadhna btye guruji
स्वर्ण प्रभा यक्षिणी के पुत्र का नाम क्या है
गुरु हम डायरेक्ट स्वर्ण यक्षणी का मंत्र जप नही कर सकते क्या अगर ऐसा करते है तो फल प्राप्त होगा कि नही
Guru ji mai aapka naya subscriber hu, mai karj se bahut pareshan ho gaya hu kya mujhe koi upay bata sakte hai job bhi chut gayi hai.... pranam
अपनी कुंडली के दोषों का निवारण करे
Bhaiya samasya khatm hui kya aapki
Narender bhaya mara kaam bhi kar dena
जय श्री कृष्णा
Kis din se suru karna he
पूरा वीडियो देखे
@@Jaymahakalijyotishkendra pura video 3 bar dekha par nahi he ki kab kis din se sadhna karna he
किसी भी शुक्रवार से करें
@@devilalkumawat560 apka dhanyvad
@@bhavikvyas2986 भाई बिना गुरु के मार्गदर्शन के बिलकुल ये साधना नहीं करना
क्या स्वर्ण प्रभा यक्षिणी को स्वर्णवती यक्षिणी भी कहते या स्वर्णवती यक्षिणी अलग है
नही