32 अंगों पर "असुभ सञ्ज्ञा"
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- เผยแพร่เมื่อ 7 ก.พ. 2025
- 32 अंगों पर "असुभ सञ्ज्ञा" (Asuba Saññā) एक बौद्ध ध्यान तकनीक है, जो अशुभता या शरीर की अस्थिरता और अस्थायी प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करती है। इस अभ्यास का उद्देश्य सांसारिक मोह, आकर्षण और अहंकार को कम करना है।
असुभ सञ्ज्ञा का अर्थ
"असुभ" का अर्थ है अशुभ, अर्थात वह जो स्थायी, शुद्ध या आकर्षक नहीं है। "सञ्ज्ञा" का अर्थ है मानसिक धारणा या अवलोकन। इस तकनीक में शरीर के 32 हिस्सों पर ध्यान देकर यह समझा जाता है कि शरीर केवल तत्वों का समूह है और इसमें कोई स्थायी सुंदरता या शुद्धता नहीं है।
शरीर के 32 अंग (असुभ सञ्ज्ञा के लिए):
केश (सिर के बाल)
लोमा (शरीर के बाल)
नख (नाखून)
दन्त (दांत)
त्वचा (चमड़ी)
मांस (मांसपेशियां)
नस (नसें)
हड्डी (अस्थि)
मज्जा (हड्डी का गूदा)
गुर्दा (किडनी)
हृदय (दिल)
यकृत (लीवर)
फुफ्फुस (फेफड़े)
जिगर (स्प्लीन)
आंत (आंतें)
पेट (अमाशय)
मलाशय (गुदा)
मूत्राशय (ब्लैडर)
दिमाग (मस्तिष्क)
रक्त (खून)
पित्त (पित्त रस)
कफ (बलगम)
चर्बी (वसा)
पसीना (स्वेद)
आंसू (नेत्रजल)
लार (थूक)
मूत्र (पेशाब)
वीर्य (शुक्र)
गर्भाशय (महिला जननांग)
गर्भ (भ्रूण या गर्भस्थ शिशु)
ध्वनि (आवाज)
प्राण (जीवन ऊर्जा)
असुभ सञ्ज्ञा का अभ्यास कैसे करें:
ध्यान मुद्रा में बैठें: एक शांत स्थान चुनें और आरामदायक मुद्रा में बैठें।
सांस पर ध्यान केंद्रित करें: मन को स्थिर करने के लिए अपनी सांसों पर ध्यान दें।
एक-एक अंग का अवलोकन करें: शरीर के इन 32 अंगों पर क्रम से ध्यान केंद्रित करें। प्रत्येक अंग को उसकी अस्थिरता, अशुद्धता और परिवर्तनशीलता के रूप में देखें।
वास्तविकता का अवलोकन: समझें कि शरीर का हर अंग क्षणिक और अस्थायी है। यह न तो पूर्ण है, न शुद्ध, और न ही आत्मा से जुड़ा हुआ है।
मोह और आकर्षण का क्षय: शरीर के प्रति मोह और आकर्षण को कम करने के लिए यह महसूस करें कि यह केवल तत्वों का अस्थायी समूह है।
असुभ सञ्ज्ञा के लाभ:
आसक्ति का क्षय: यह अभ्यास मोह, वासना और अहंकार को कम करता है।
शांति और संतुलन: जीवन की अस्थायी प्रकृति को समझकर मन को शांति मिलती है।
वैराग्य: सांसारिक सुखों और शरीर के प्रति आसक्ति को त्यागने में मदद करता है।
मृत्यु का स्मरण: यह समझ विकसित होती है कि जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु अनिवार्य है।
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