अशुभ सञ्ञा और ध्यान

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  • เผยแพร่เมื่อ 7 ก.พ. 2025
  • अशुभ सञ्ञा और ध्यान
    अशुभ सञ्ञा का अभ्यास शरीर और संसार की वास्तविकता पर ध्यान केंद्रित करने का एक तरीका है, जिससे व्यक्ति को वैराग्य और मुक्ति का अनुभव होता है। यह अभ्यास मुख्य रूप से शरीर की अशुद्धता, अस्थिरता और असंतोषजनक प्रकृति को समझने पर आधारित है। नीचे अशुभ सञ्ञा और ध्यान का एक सरल तरीका दिया गया है:
    1. शरीर की अशुद्धता पर ध्यान करें (अशुभ ध्यान)
    पाली वाक्य:
    "इमं कायं पादतलां उद्धं केसमत्थकं तकपरियन्तं पूरं नानाप्पकारस्स असुचिनो पच्चवेच्छति।"
    हिंदी अनुवाद:
    "यह शरीर पैरों के तलवे से लेकर सिर के बालों तक, चर्म से ढका हुआ है और विभिन्न प्रकार की अशुद्धियों से भरा हुआ है।"
    अभ्यास:
    शांत स्थान पर बैठकर कल्पना करें कि शरीर केवल हड्डी, मांस, खून, पित्त, और अन्य अशुद्धियों का संग्रह है।
    यह सोचें:
    "क्या यह शरीर, जिसे मैं अपना मानता हूँ, वास्तव में शुद्ध और सुंदर है?"
    "यह शरीर नाशवान है और विभिन्न रोगों व पीड़ाओं का घर है।"
    2. अस्थिरता (अनिच्चा) पर ध्यान करें
    पाली वाक्य:
    "रूपं अनिच्चं, वेदना अनिच्चा, सञ्ञा अनिच्चा, संखारा अनिच्चा, विञ्ञाणं अनिच्चं।"
    हिंदी अनुवाद:
    "रूप (शरीर), वेदना (अनुभूति), सञ्ञा (धारणाएँ), संखार (मानसिक गठन), और विञ्ञान (चेतना) अस्थिर हैं।"
    अभ्यास:
    यह ध्यान करें कि शरीर और सभी मानसिक अवस्थाएँ क्षणभंगुर हैं।
    हर सांस, हर अनुभव क्षणिक है और स्थायी सुख नहीं दे सकता।
    3. शरीर की अशुद्धियों की सूची पर विचार करें
    पाली वाक्य:
    "केसा लोमा नखा दन्ता तचो, मंसं न्हारु अट्ठि अट्ठिमिञ्जं वक्कं, हदयं यकनं पप्पासं पित्तं लोहितं..."
    हिंदी अनुवाद:
    "बाल, रोएँ, नाखून, दाँत, चर्म, माँस, नसें, हड्डियाँ, हृदय, यकृत, फेफड़े, पित्त, रक्त आदि।"
    अभ्यास:
    शरीर की इन अशुद्धियों को ध्यान में लाएँ और इन पर गहराई से विचार करें।
    समझें कि शरीर केवल अशुद्ध तत्वों का संग्रह है और इसमें कुछ भी स्थायी या सुंदर नहीं है।
    4. दैनिक जीवन में अशुभ सञ्ञा का अभ्यास
    रोज़मर्रा की समस्याओं जैसे थकान, बीमारी, भूख, और वृद्धावस्था पर ध्यान दें।
    यह समझें कि संसार में कोई भी चीज़ स्थायी सुख प्रदान नहीं कर सकती।
    5. अंतिम लक्ष्य: वैराग्य और मुक्ति
    यह ध्यान का उद्देश्य शरीर या जीवन के प्रति घृणा नहीं है, बल्कि इसे समझकर इनसे अलग होना है।
    वैराग्य के साथ करुणा (दूसरों के लिए दया) और आत्मिक शांति प्राप्त करना ही इस अभ्यास का उद्देश्य है।

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