बहुत ही खूबसूरत कविता, लेखिका को ढेरों बधाईयाँ। सच में त्याग वाली पंक्ति जिसमें बिना कुछ बोले किनारा कर लेने का जिक्र है, वो बहुत सही लगी, समुंद्र के मानवीकरण के बीच ऐसा लगा मानो मानव का समुंद्रीकरण कर दिया गया हो। बहुत-बहुत बधाई।
कविता :- " पापा मनमानी करने लगें " खुले घर की परिन्दी थीं आजाद घर की परी थीं कहाँ कमी थी उस को सब मनमानी उसकी थीं उसे पसंद था वो खिलोने पापा लें आते थे कभी घोड़ा तो कभी झूमका भी ले आतें थे बचपन गुजरा बेटी का तो पापा एक सोनें का महल और गुड्डे़ की तलाश करनें लगें अब पापा भी अपनी मन मानी करने लगें पापा ने एक उम्र के साथ प्यार और फिर प्यार से हाथों में मेहन्दी लगवाने को बोलें वो बेटी नादान थीं पापा को बोला पापा..! मेहन्दी लालम लाल रचीं हैं पापा ने बेटी के हाथ पीले करवाने को हल्दी की पुड़िया लें आये बेटी मेहन्दी देख के खुश हो रही मगर फिर हल्दी ओह! ये हल्दी क्यों लगाऊं मेहन्दी अच्छी हैं ना और कुछ बोले कि पापा गुस्सा कर बैठे अब पापा भी मनमानी कर बैठे बेटी के विदाई में भी रोने की कंजूसी कर बैठे कभी ना रो ने वाली परीं भी रो ने लगीं पापा जिभर के रो लेतें उससे पहले ही बेटी विदाई को चलने लगीं अब बेटी पापा से पराई होने लगीं E-Mail I'd :- ummedparihar758@gmail.com
comment me apni likhi hui panktiya post karde, aur apna email address bhi neeche mention kre, agar sir ki team ne apki hui pankti select ki to wo aapko contact karenge email ke through.
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सर ये मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है 🙏🙏
Bahut sundar कविता
बहुत ही सुंदर मार्मिक कविता
लाजवाब
बहुत सुंदर
Super gajab guru ji ❤😊
Vaah irshad bhi aaj aap ko dhek ker ruh ko sakun mila
बहुत ही खूबसूरत कविता, लेखिका को ढेरों बधाईयाँ। सच में त्याग वाली पंक्ति जिसमें बिना कुछ बोले किनारा कर लेने का जिक्र है, वो बहुत सही लगी, समुंद्र के मानवीकरण के बीच ऐसा लगा मानो मानव का समुंद्रीकरण कर दिया गया हो। बहुत-बहुत बधाई।
Congratulations bhabhi ji
बहुत खूबसूरत गहराई लिए कविता के लिए बधाई ...
Bahut Hi Khubsurat Hai
Superb 👏
You are great sir
Wonderful Irshad Saab 🙏👌🙂
कविता :-
" पापा मनमानी करने लगें "
खुले घर की परिन्दी थीं
आजाद घर की परी थीं
कहाँ कमी थी उस को
सब मनमानी उसकी थीं
उसे पसंद था वो खिलोने
पापा लें आते थे
कभी घोड़ा तो कभी
झूमका भी ले आतें थे
बचपन गुजरा बेटी का तो
पापा एक सोनें का महल
और गुड्डे़ की तलाश करनें
लगें
अब पापा भी अपनी मन मानी
करने लगें
पापा ने एक उम्र के साथ
प्यार और फिर प्यार से
हाथों में मेहन्दी लगवाने
को बोलें
वो बेटी नादान थीं
पापा को बोला पापा..!
मेहन्दी लालम लाल
रचीं हैं
पापा ने बेटी के हाथ पीले
करवाने को हल्दी की पुड़िया
लें आये
बेटी मेहन्दी देख के खुश
हो रही मगर फिर हल्दी
ओह! ये हल्दी क्यों लगाऊं
मेहन्दी अच्छी हैं
ना और कुछ बोले
कि पापा गुस्सा कर बैठे
अब पापा भी मनमानी कर बैठे
बेटी के विदाई में भी रोने की
कंजूसी कर बैठे
कभी ना रो ने वाली परीं
भी रो ने लगीं
पापा जिभर के रो लेतें
उससे पहले ही बेटी
विदाई को चलने लगीं
अब बेटी पापा से पराई
होने लगीं
E-Mail I'd :- ummedparihar758@gmail.com
Apne likhe kalaam kaise Aap tak pohchayi jaye??
comment me apni likhi hui panktiya post karde, aur apna email address bhi neeche mention kre, agar sir ki team ne apki hui pankti select ki to wo aapko contact karenge email ke through.
@@sharwankori218 thanks batane k liye
Mera comment mughe ku nai dekhai dera . jo pehle keya tha