शाहदाना वली के कुल में दिखा रूहानियत का नज़ारा

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  • เผยแพร่เมื่อ 20 ต.ค. 2024
  • हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा - एक परिचय
    मरकज़े अहलेसुन्नत बरेली शरीफ़ बहुत ही ख़ूबियों का हामिल शहर है इस शहर में जहाँ इमामे अहलेसुन्नत आलाहज़रत फ़ाज़िले बरेलवी अलैहर्रहमा आराम फ़रमा हैं वहीं एक बहुत ही अज़ीम शख़्सियत हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा भी आराम फ़रमा हैं जिन्होंने हक़ की हिमायत का फ़रीज़ा अन्जाम देते हुये बातिल ताक़तों का मुक़ाबला करते हुये उन्का क़िला क़मअ़ कर दिया था।
    हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा का ख़ानदान मुहम्मद बिन क़ासिम के ज़माने में हिन्दुस्तान आया और सुल्तान अलाउद्दीन के ज़माने मे देहली मुनतक़िल हुआ।
    अल्लाह तअ़ाला का फ़रमान है कि ‘‘बेशक तुम में अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा बुज़ुर्गी वाला वह है जो तुम में तक़वे वाला है’’ के मिसदाक़ आप इन्तिहाई मुत्तक़ी, परहेज़गार और ख़ुदा रसीदा बुज़ुर्ग थे, इबादत व रियाज़त और मख़लूक़े ख़ुदा की हाजतें पूरी करना आपका महबूब मशग़ला था।
    हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा ने अपने दौर की इस्लाम मुख़ालिफ़ तहरीकों का डट कर मुक़ाबला किया और दुश्मने इस्लाम की सरकोबी फ़रमाई, यहाँ तक कि शहंशाहे अकबर जैसे ताक़तवर हुक्मराँ की भी परवाह न की और उसके ख़ुद बनाये हुये मज़हब ‘‘दीने इलाही’’ के ख़िलाफ़ जिहाद बिस्सैफ़ किया।
    वली को वली पहचानता है- लोगों का बयान है कि आलाहज़रत फ़ाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा के मज़ार शरीफ़ पर तशरीफ़ लाते और बाहर से ही फ़ातिहा पढ़कर चले जाते। लोगों ने अर्ज़ किया कि आप आतें है और बाहर से ही फ़ातिहा पढ़कर क्यों चले जाते हैं, अन्दर क्यों नही जाते? तो आलाहज़रत ने जवाब में इरशाद फ़रमाया कि इतनी बड़ी हस्ती के सामने मैं कैसे जा सकता हूँ?। इससे हज़रत शाहदाना वली की अज़मत का अन्दाज़ा बख़ूबी लगाया जा सकता है। (मज़कूरा वक़िए के रावी जनाब अब्दुल वाजिद ख़ाँ उर्फ बब्बू भाई हैं)
    करामातः- एक बार चन्द लोग हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा के पास एक ज़िन्दा शख़्स को पलंग पर लिटाकर लोये और हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा से उसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने को कहा, आपने उसकी नमाज़े जनाज़ा पढा दी। इसके बाद वह लोग हंसते हुये चले गये कि यह अल्लाह वाले कैसे हैं जो यह भी न पहचान सके कि यह ज़िन्दा है या मुर्दा। कुछ दूर चलने के बाद उन्होंने उस शख़्स (जिसकी नमाज़े जनाज़ा पढ़वाई थी) के ऊपर से चादर हटाई और उसको उठाना चाहा, लेकिन यह देखकर सब घबरा गए कि वह ज़िन्दा नहीं बल्कि मर गया है। फिर वह लोग हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा की बारगाह में आये और आप से माफ़ी माँग कर उसको ज़िन्दा करने की दरख़्वास्त की। आपने फ़रमाया इसमें मेरा क्या दोश है? तुम ने ही तो यह नाटक रचा था, उसे जाकर देखो ज़िन्दा पाओगे लेकिन तौबा करो कि कभी मज़ाक नहीं उड़ाओगे। उन लोगों ने जब जाकर देखा तो उस शख़्स को ज़िन्दा पाया।
    इसी तरह का एक और वाक़िअ़ा है कि एक बार आपके सामने से एक क़ाफ़िला गुज़रा जिनके घोड़ों पर सामान था। हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा ने फ़रमाया कि यह घोड़ों पर क्या लाये हो? बोरों में शकर थी उन्होंने यह गुमान करके कि यह माँग लेंगे रेत बताई। तो हज़रत शाहदाना वली ने फ़रमया कि रेत ही होगी। वह क़ाफ़िला जब बाज़ार पहुँचा और बोरियाँ खोलीं तो देख कर हैरान रह गये, बोरियों में रेत थी। उस क़ाफ़िले के अमीर ने कहा जहाँ फ़क़ीरों ने पूँछा था वहीं चलो और उनसे माफ़ी माँगो। क़ाफ़िले वाले वहीं पहुँचे और हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा की बारगाह में माफ़ी माँगी आपने फ़रमाया अच्छा शकर होगी फ़क़ीरों को क्या मतलब है। दोबारा जब उन्होंने बोरियाँ देखीं तो शकर ही पाई।
    शहादतः- शहंशाहे अकबर का बेदीनी का दौर था, अकबर ने मुख़तलिफ़ मज़हबों की जो बातें पसन्द आई उन्हें जमा करके एक मज़हब बनाया जिसका नाम दीने इलाही रखा। जब इस बातिल मज़हब की तबलीग़ की जाने लगी और इस्लामी की खुली तौहीन और रुसवाई की जाने लगी तो उस वक़्त के बड़े बड़े उलमाये किराम जैसे हज़रत मुजद्दिदे अलफ़े सानी अलैहिर्रहमा और मीर अब्दुल वाहिद बिलगिरामी अलैहिर्रहमा वग़ैरह ने अकबर के बनाये हुये बातिल मज़हब ‘‘दीने इलाही’’ के ख़िलाफ़ क़लमी और लिसानी जिहाद किया लेकिन हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा ने बहादुर नियाबत ख़ाँ के साथ शहंशाह अकबर की बे-दीनी के ख़िलाफ़ जिहाद बिस्सैफ़ (तलवार से जिहाद) किया। उस वक़्त बरेली और सम्भल का गवर्नर नवाब हकीम एैनुल मलिक शीराज़ी था, गवर्नर एैनुल मलिक ने बरेली के क़िलए को मज़बूत किया और आसपास के जागीरदारों के साथ हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा का मुक़ाबला किया। कुछ लोगों ने हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा की एैनुल मलिक से सुलह कराना चाही लेकिन हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा की ग़ैरते दीनी ने यह गवारा नहीं किया वह इस्लाम के दुश्मनांे से किसी तरह की सुलह करें लिहाज़ा हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा ने सुलह से साफ़ इन्कार कर दिया। मजबूर होकर नवाब एैनल मलिक ने साज़िश करके बहादुर नियाबत ख़ाँ को अपनी तरफ़ मिला लिया। नियाबत ख़ाँ की ग़द्दारी से हज़रत शाहदाना वली अलैहिर्रहमा की ताक़त कमज़ोर हो गई लेकिन आप ने हिम्मत न हारी और पूरे सब्र और हौसले के साथ सुन्नते हुसैनी पर अमल किया और शहंशाह अकबर की बातिल ताक़तों से मुक़ाबला करते हुये 990 हिजरी मुताबिक़ 1582 ईसवी में शहादात से सरफ़राज़ होकर अपने मालिके हक़ीक़ी से जा मिले।
    अब्रे रहमत उनके मरक़द पर गुहर बारी करे हश्र तक शाने करीमी नाज़ बरदारी करे

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