शाकाहारी हिंसक होने में कोई सीधा संबंध नहीं है. वैसे ही मांसाहारी और हिंसक होने में कोई भी सीधा संबंध नहीं है. ऐसे अनेक लोग हैं जो प्याज तक नहीं खाते लेकिन महिलाओं और दलितों और अल्पसंख्यक लोगों के खिलाफ क्रूर किस्म की हिंसाओं को अंजाम देते हैं. शानदार चर्चा. आभार.
Mansahar Or shakahar se koi hinsak ho ya na ho ye mudda nhi hota hai mudda ye hota hai ki tumhare swarth k liye kisi bechare ki jaan lii jaati hai vo bhi bina gunaah k. Hamari chetna or bodh nirdharit karega na kii kisi ko jaan se maarker khana sahi hai ya galat. tum hinsak ho ya na ho usse us janwar ko kya matlb vo to apni jaan ki parwah karega....
मांसाहार या शाकाहार एक अलग विषय है लेकिन देवताओं के नाम पर बली प्रथा एकदम अनैतिक कार्य है | भगवान जीवन देने वाला है लेने वाला नहीं ....| मांस खाना है तो खाओ लेकिन भगवान के नाम पर नहीं |
@@lalitsaklani4685 puran smriti hai jo ki humne likhe hai. shruti hai ved, vedant, upamishad. agar kuch bhi puran ka ved se match nhi hota to hum nhi maan sakte. purano ko hum ne hi milavat kr li taki labh utha sake
मुझे लगता है जब मनुष्य ने देवी देवताओं को मानना शुरू किया होगा तो उन्होंने अपने देवताओं को अपने खाने की वस्तुएं चढ़ाते होंगे । क्योंकि सभी आदिवासी समुदायों में अपने देवताओं को भोजन चढ़ाने का रिवाज है, इसी तरह उन्होंने बकरे व भैसे भी चढ़ाये होंगे धीरे धीरे बकरे चढ़ाना एक परंपरा बन गयी होगी और संभवतः तत्कालीन विद्वानो के समर्थन के कारण शास्त्रों में भी उल्लेख कर दिया गया हो , और यह धार्मिक बन गया हो, मध्य काल में राजाओं के तमाम युद्धों के कारण राजओं व सामंतों ने देवी के समक्ष बली अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने के आशीर्वाद हेतु इसे बढ़ावा दिया होगा क्योंकि आप यह पाएंगे कि अधिकांश मंदिरों में बली करने का हक राजाओं या सयाणों थोकदारों को है, और यह परंपरा चलती रही। (ये केवल निजी विचार हैं)
84 लाख योनियां बनाई है भगवान ने जिस में लाखों प्रकार के देवता है जिनका रहना खाना भी अलग अलग है। जिन में कोई सात्विक होते कई तामसिक होते है। जो श्मशान में रहते है क्या वो नारियल बलि लेंगे या नर या पशु बलि ? वो पशु या नर बलि लेंगे अगर उने पशु ना मिले तो वो शमशान में आने वाले सबों से अपनी भूख मिटाते है अगर किसी ने उनको शमशान से बाहर अपने दुश्मनों को खतम करने के लिए बुलाया तो फिर वो या तो जिनके घर भेजा है उनके सदस्य को खाना शुरू कर देंगे पहले इंसानों का खून पीते है फिर उस इंसान को खतम करना शुरू करदेते है फिर उससे खाते है अगर किसी को पहले ही मालूम चल जाए कही से पूछा निकलवाने पे फिर तो उनको पशु बलि देकर वापिस भेज दिया जाता है और फिर वो उस इंसान के घर पे जाकर बैठ जाता है जिसने उसको भेजा होता है वहां भी वो वैसा ही करता है अब ऐसा तो है नि की वो उसके घर में नारियल खाना शुरू कर दे यानी सात्विक खाना शुरू कर दे जैसे जिसके घर पहले भेजा गया था उनका खून पीना फिर एक सदस्य को मौत की नीद सवा देना वैसा ही करता है अगर उसे भी पहले मालूम हो जाए तो वो भी पशु बलि देकर उससे वापिस भेजता है वापिस का मतलब शमशान। जो इंसान उस देवता को श्मशान से लाता है उसी इंसान के जरिए उसी रास्ते से वो वापिस जाता है। बलि देना बुरी बात है लोग बोलते है मगर जब तुम्हारे पीछे मौत पड़ी हो और तुम्हें बोला जाए कि अगर तुम मारना नहीं चाहते हो तो एक बकरे की बलि देनी होगी तो तुम ना बोलोगे या हा अभी तक तो 100% लोगो ने हा ही बोला है कोई नहीं मारना चाहता वो भी तब जब उसके पास मौत को रोकने का सस्ता उपाय हो। जब तक किसी पे ये श्मशानी देवता नहीं पीछे पड़ते तब तक हर कोई ज्ञान देता है जब पीछे पड़ते है फिर ये लोग ऐसे टॉपिक पे बात करने से भी डरते है। मेरे साथ खुद हुआ है मुझे पहले अंडे की स्मेल से भी उल्टी आती थी और मैं नास्तिक था और बलि पे ज्ञान देता था साल 2019 में मेरे पे मेरे सगे लोगो ने मुझ पे शमशान का देवता छोड़ दिया था मुझ पे अचानक बीमारियां पैदा होने लग गई मेरी उम्र 26 साल की थी मुझे अपनी मौत दिखाई देती थी जब मैं खाना खाता मुझे कोई बोलता था कि आज खाले कल तुझे मैं खाऊंगा रात को मेरे कान में कोई सिटी बजाता था मुझे नीद नहीं आती थी मेरी जिंदगी नरक बन गई थी फिर मैने कही से पूछा निकलवाई उन्होंने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया फिर मैने उस देवता का नाम सिमरन करना शुरू कर दिया उस से उस देवता ने मुझ पर प्रकोप करना कम कर दिया और मैने देवता को श्मशान में पूजा देने का वादा किया जब मैने वादा किया तो मैं बिना दवाई के ठीक होने लग गया इस से मेरा विश्वाश बनने लग गया आज मैने उस देवता को अपना बना लिया वो मेरे सभी काम करते है मगर मुझे गढ़वाल के लोगों पे हंसी आती है वो लोग इन देवता का इस्तेमाल अपने सगे संबंधियों को खतम करने के लिए छोड़ना जानते है मगर फिर वो देवता वापिस आकर उनका भी नुकसान करता है कभी पूरा परिवार ही खत्म हो जाता है देवता 4 गुणा स्पीड से नुकसान करता है वापिस आकर भेजने वाले का मगर वो लोग उस देवता से ये नहीं मांगते कि हमें अपने सगे संबंधियों से ज्यादा कामयाब बना देना सगे संबंधि खुद ही मर जाएंगे हमारी कामयाबी देखकर। इस देवता को मैंने कभी किसी का नुकसान करने को नहीं कहा बस ये बोला है मुझे कामयाब इंसान बना दे मेरा मुकाबला मेरे करीबी भी न कर सके तो आज मैं अपने रिश्तेदारों से आगे हूँ इन देवता की बदौलत। सेहत भी अच्छी है नहीं तो मुझे हार्ट अटैक जैसे हालत बन गए थे। बलि पे जो ज्ञान देते है वो सोच समझ कर दे। इस दुनिया में कोई शाकाहारी नहीं है हर कोई रोज किसी ना किसी जीव को मार कर सोता है। जैसे मच्छर चूहे जैसे दही के बैक्टीरिया होर ना जाने कितने जीवो को मारता है तुम लोगो को केवल मुर्गा और बकरी ही बलि दिखती है।
Galat ye sab jahil log h jo janwaron ki bali dete h bewkuf h ye log vedon me janwar sarir ko kaha gya h kisi ka bhi ho inshan ko apni janwaron wali adato ko hatane ko bali kaha gaya h log galat samajh bete h kyonki hindu log kabhi bhi apne ved khud nahi padte
अपने घर अगर कोई अतिथि आए, तो हम उन्हें, हम जो खाते है वही परोसेंगे। देवी देवताए, तो हम में से ही कोई ज्यादा शक्ति मान होंगे, उनको ही भगवान् मानते होंगे,..... कोई अलग प्राणी तो नहीं होंगे। शाकाहार अच्छा और मांसाहर बुरा, यह कौन मानते होंगे, जिन्हें यही तय किया वे ही ना? जो मांसाहार को अच्छा समझते होंगे वे तो मांसाहार को ही अच्छा समझेंगे। खाने में अच्छा या बुरा, ऐसा कुछ मानना ही नहीं चाहिए।
धन्यवाद बारहमासा की टीम को राहुल कोटियाल जी आभार आप सभी का उत्तराखंड देव भूमि लिखने बोलने में। हमेशा सभी को खुशी होती है। देवभूमि बनाए रखने के लिए देवभूमि से देवभूमि में मांसाहार किसी भी प्रकार की जीव हत्या नहीं होनी चाहिए। दूसरा पूरा देवभूमि से शराब मुक्त हो। जिससे हमारी देव भूमि की पवित्रता बनी रहे हो
Rahul Kotiyal of the Baramasa Podcast deserves heartfelt appreciation for his exceptional work, which is deeply rooted in extensive research. His podcasts are not only highly informative but also provide valuable insights, particularly about the culture and heritage of Uttarakhand. Through his episodes showcasing the cultural and religious landmarks of Uttarakhand, I have gained a renewed perspective on the region’s rich and vibrant culture, which I once saw as merely deserted mountains. Like many others, I often pondered why our forefathers chose to settle in these challenging terrains. Rahul’s work has beautifully answered this question by highlighting the profound connection between the people, their traditions, and the land. His efforts have brought to light the vibrant heritage and traditions that make Uttarakhand truly remarkable. Rahul’s style of presentation is exceptionally composed and engaging, a quality shared by the other dedicated members of the Baramasa Podcast team. Although I am a non-vegetarian, I have often pondered the hypocrisy in our society, where animal sacrifice has been an integral part of divine worship to ward off evils and bring prosperity. Many of these rituals are deeply rooted in superstitions that have been glorified and woven into the fabric of our religious practices.
महोदय मैं आपकी इस बात से सहमत नही हूँ की इन्सान को जो मर्जी खाने की छुट है खासकर मांस और पशु से निकला दूध मांसाहार हमारी धरती और चेतना के लिए हानिकारक है मांसाहार पुरे विश्व से खत्म होने की मुहीम हो 🙏🙏
जानवर भी इंसान की तरह ईश्वर की संताने है उन्हें भी ईश्वर ने हमारी तरह जीवन जीने का अधिकार दिया है तो हम कौन होते है उनको मारकर खाने वाले ? ईश्वर न्याय जरूर करेगा और कर भी रहा है प्रेमानंद महाराज जी को सुनना रौंगटे खड़े हो जाएंगे किसी को मारने से पहले । मुझे गर्व है की मेरे शाकाहारी खाने में किसी की चीक,पीड़ा, दर्द ,पुकार, तड़प,खून,बदुआ नहीं है हम आपके द्वारा दिखाए जाने वाले सत्य प्रमाणों को देखने के लिए चैनल से जुड़े है ऐसे वेदों का झूटा प्रमाण देकर भ्रम फैलाने वालो लाओगे तो 🥺🥺🥺🥺 जीवों पर दया करो- वेद ये सिखाते है जय सनातन 🚩
Kisi janwar ki cheekh pukar ni ati vi ek jhatke mai mar jata hai or insaan sadiyo se meat khata aa raha hai yahi cheez sher ko be bolo ki tum be bhagwan kai bache hi or hiran be😂 @@pankajdungriyalvlogs
हठवाल जी ने बहुत सच्चाई के साथ तथ्यों को रखा है। कुछ भी ठकने का प्रयास नहीं किया है। विद्वान जन सच्चाई को स्वीकार करते हैं चाहे वह कितना ही कटु और अनैतिक क्यों न हो। गतिशीलता ही चेतना विस्तार का मूल कारण है जिसे मनुष्यों का गुण माना जाता है। बहुत सुंदर विमर्श है।
हमारे देवभूमि उत्तराखंड के सबसे बड़े साहित्यकार मान्यवर नंदकिशोर हटवालजी को मेरा सादर भरा नमस्कार। आपने बारामासा चैनल पर देवभूमि उत्तराखंड में शाकाहारी एवं मांसाहारी के बारे में अच्छी तरह से समझाया है।।
पितृदोष के लिए दो तीन हजार का "बोगठ्या" काटना मंजूर है लेकिन संस्कृत रूपी मन्त्रों द्वारा मरे हुए पितृ लोगो की नारायणी, नारायण-बलि और उनके नाम पर लाखों रुपये की खर्चीली प्रथा यथा "सतवाह" कोई "भागवत टाइप" करना मंजूर नहीं। पुरखों की परंपरा मजबूत है।👍 Old is gold👍
वो शक्ति दिखाने वाले राक्षस थे। देवताओ को कभी जरूर नही पड़ती शक्ति दिखाने की वो तो सदैव शांत रहते है। आप जिस चीज को जिस रूप मै पुजोगे उसी रूप मै आयेगी।
Devi dhura Lohaghat - Narbali ( av patthar marke ek body ke barabar blood sacrifice krte hai ) Kashni Pithoragarh - Bhais bali ( once in 10 Years) still . Uttarakhand ke salre gaw me bakra bali 100% avi bhi hai .
Great podcast he is very wise person ye line achi thi ki apne manyatayein dusron per mat thopein... Bhagwan sab roop mai hai राक्षस रूप mein bhi aur देव रूप main bhi aur buddh se humne Jana hai ki अहिंसा उसका अंतिम मार्ग है।
धन्यवाद आपने मांसाहार और शाकाहार के विषय में बहुत ही अच्छी जानकारी दी षड्यंत्र के तहत हिंदू धर्म में बलि प्रथा को बंद कर दियागया हमारे मनुष्यों ने बहुत सोच समझकर यह बलि प्रथाचालू हुई थी ताकि खून देखकर लोग बेहोशना हो जाए ऐसे कई उदाहरण मेरे आस पास बिखरे हुए हैं बलि बलि प्रथा से हिंदुओं में खून खराबी से डरने की भावना खत्म हो गईथी इसलिए मनुष्यों ने बलि प्रथा का प्रावधानकिया आपके विचार भी कुछ लगे परंतु शेरों को गए बनाने की कोशिशना करें कम से कम सांड बनाएं जो आत्मरक्षा में ही सही सामने वाले को टक्करमार सके आपका सामना मुस्लिमसे है जब तक मुस्लिम की कुर्बानी खत्म नहीं की जाती तब तक आप भी इस विषय मेंसोचे सम्राट अशोक के उदाहरण लोगों को भ्रमित ना करें वह राज्य की रक्षा नहीं कर पाया था
जय माता सीता राम जी आपने दोनों ने बहुत ही अच्छी बात कही है कि आज भी कुछ गांव में बलि प्रथा आज भी प्रचलित है हिंदू सनातन धर्म में मांसाहारी भोजन बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए और न ही बनाना चाहिए जय श्री राम राम जी ❤❤❤❤❤
इसमे कुछ भी बडी बात नही धीरे धीरे मानव जब आगे बढा माने आगे उनकी पीढी चली तो पहले पहल मासाहार ही पेट या भूख मिटाने का था तब तब आगे मनुषय बली की जगह पशु बली पर आया असली धरम् तो भंख मिटाना था और उसी को धर्म से जोडा ताकि डर के मारे पशु बली या मासाहार को करे
Kanda II, Prapathaka 1 is titled “The Special Animal Sacrifices”. You will find a horned goat sacrifice is given in Yajur Veda, Kanda II, Prapathaka 1. 1.2-5 [iii] where it says “He who desires offspring and cattle should offer to Prajapati a hornless goat.” It also says to sacrifice a horse “He who desires cattle should offer to Tvastr a horse.” (Yahur Veda, Kanda II, Prapathaka 8.2 ).
अपने ग्राम समाज के लिए बैठकी करने सामूहिकता दिखाने समस्याओं आदि पर चर्चा करने साथ ही अपने इष्ट देव को खुश करने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी ए प्रथाएं प्रचलन में आई होंगी। विषयानकूल सारगर्भित चर्चा।
पहाड़ मै किसी समय सभी वैष्णव बाहुल्य था,आज भी मिलम ग्लेशियर से नीचे शालिग्राम विराजमान है ये दंत कथाएं खुद गढ़ ली गई , जब विधर्मी आए ओर पहाड़ी लोगों पर अत्याचार किया विष्णु मंदिर खंडित किए तब मजबूर होकर लोगों ने बलि को प्रथा रूप में स्वीकर किया , वैष्णव जानवर मार नहीं सकता था दयालु था,उसका स्वभाव पतन का कारण था, इस लिए ये कथा गड़ी गई ओर बलि प्रथा अस्तित्व में आई, आज भी पंचाचुली के थल गांव में तिवारी मुस्लिम परिवार है , और सभी विष्णु मंदिर देवी मंदिर में रूपांतरित कर दिए, ओर विग्रह खंडित कर दिए गए , कूड़े के ढेर में पड़े ये विग्रह आज भी है और सुध लेने वाला कोई नहीं
He is very deep and insightful in his explanation. I am so much impressed and motivated to acquire knowledge on the topics outside of my profession and history and evolution
मेरा मानना है कि शास्त्रों में कहा गया है कि 84 लाख योनि के बाद मनुष्य का जन्म होता है तो परमात्मा ने इसी लिए हर प्राणी को खाने के लिए हर एक जीव बनाए गए हैं और इसी लिए जन्म के बाद मारना ही है तो अगर मांस को कोई भी प्राणी या जानवर नहीं खाए तो क्या उसके बाद कोई भी प्राणी नहीं मरेगा यह सब मांस खाने का मतलब शरीर के ताप को बनाए रखना ही है खास कर ठंडे इलाकों में यह आम है ताकि टेंप्रेचर न बिगड़े और साथ ही हरे पतियों में छोटे छोटे कीड़े लगे होते हैं चाहे कितना भी साफ कर लें मगर फिर भी मांस मनुष्य खाता है तो अब समय के साथ साथ हर चीज में बदलाव हो रहा है। बाकी कुछ नहीं है। मारना सभी ने है।
पहले में पहाड़ी लोगों को बहुत अच्छा मानता था, के ये दिल के साफ और दयालु होते है,, पर ये तो धरती के सबसे बड़े निर्दय और नरभक्षी होते है,, अभी कुछ दिन पहले एक केस देखा मैने के,2006 में कोठारी कांड में 18 बच्चों को मारकर खाने वाला,, नरभक्षी उत्तराखंड के कुमाऊ का था सुरिंद्र कोली मेरी आंख पटी की पटी रह गई,, तबसे ममेरा भरम दूर होगया,,, के कलयुग में कोई सही नहीं है ❤❤ जय श्री राम 🚩
जितने भी वेद पुराण है वे सभी इन्सानो द्वारा निर्मित हुएं हैं। इसीलिए जिस जिस ने भी वेद पुराण लिखे उन्होंने उसे अपने स्वार्थ व आवश्यकताओं व आस पास के वातावरण व मानसिकता व माहौल के अनुसार वेदों व पुराणों की रचना की। व इन वेदों व पुराणों में रचयिता द्वारा आवश्यकता अनुसार परिवर्तन किये गये होंगे। अगर बात की जाए देवी देवताओं की तो अगर ईश्वर ने हम सभी को बनाया है और पुरे भ्रंमाड़ को एक ही ईश्वर ने रचा है तो इस हिसाब से जितने भी धरती पर जिव जंतु है वे सभी उसी एक इश्वर की सन्ताने हुई। इसीलिए कोई रचयिता जिसकी सन्ताने सभी है वे कभी एक सन्तान को दुसरी सन्तान को मार कर या काट कर खाने की अनुमति कभी नहीं देगा। बल्कि एसी स्थिति मे रचयिता एसा करने वाले को दंडित करता होगा। रहि बात बली प्रथा के चलन की तो जितने भी धार्मिक वेद पुराण व ग्रंथ एवं प्रथाएं है वे सभी मानव निर्मित है। इसे मनुष्यों द्वारा अपनी सुविधा व स्वार्थों के अनुसार नीर्मीत कीया गया हैं। इसीलिए इस प्रथा का श्रेय भी पूर्ण रूप से मनुष्य को जाना चाहिए। इसे देवी देवताओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
Kothiyal ji AVN atwal Ji ko Sagar namaskar Garhwal Ki Sanskrit per aapane Jo vichar Rakhe bahut sarahniy hai jaise ki sthir Pani Mein kide pad Jaate Hain aur bahta Pani Ganga ki dhara se Mil Jata Hai aap Samay Samay Apne is channel ko chalate Rahen Sa dhanyvad
बहुत ही अच्छा प्रयास आप इस प्रकार के ऐपिसोड बना कर हमें अपनी संस्कृति की जानकारी उपलब्ध कराने का बहुत ही बड़ा कार्य कर रहे हैं। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ🙏💕
देखिए धर्म और परंपरा को आपस मे मत जोड़िए। लोक परंपरा में उत्सव मनाना उसमें पशु बलि देना देश काल और परिस्थिति पर निर्भर करता है दूर बॉर्डर पर गए सैनिक पुत्र की रक्षा के लिए पहाड़ की माताऐं मनौती करती थी और पुत्र के घर आने पर बकरे की बलि देकर उस इष्ट देव को बलि अर्पित करती थी।
सारे देवता पशु प्रेमी होते हैं कल भैरव के साथ भी कुता चलता हैं, देवादिदेव महादेव को तो पशुपति कहा जाता हैं। तमोगुण से ऊपर उठने के लिए मनुष्य जन्म होता हैं, चेतना का विकास होने से मनुष्य मुक्त होता है वरना भूत, प्रेत, पिशाच बन कर , दोष, रोग में पीढ़ियों में प्रकट होता हैं या फिर पितर बन कर अपने पीढ़ी के शबकर्मों से मुक्ति की आशा करता हैं
100 baat ki ek bt non veg isonly for survival when we have lack of foof stuff but today we have many option for nutrition so now we dnt need to kill animal behalf of protein nutrition
@@vickyk2207 Bhaisaab agar bakre,murge ,ande nahi khayenge to phir log enhe palna band kar denge tab ye hai ki hai janglon me bhi dheere dheere bilupto ho jayenge
I appreciate Hatwal Ji's insight on human psychology regarding bali pratha. But looking purely from the dharmic lens, I think, if we compare this with Native aboriginal's religion of any country like Tibet's Bon religion where they worshipped spirits and local deities then it would be regarded as a primitive form of worship and has no relation to God or supreme truth according to Sanatan Dharma. However, sanatan never exlcudes or disregards any form of worship so you might see these forms mentioned in the dharmic texts but that doesn't mean it encourages or justify it...its just written as a fact that shaminism or sacrifices were practiced. Sanatan or Budhhism is far superior and powerful as we may read from the stories of how buddhism was propagated to these primitive regions. For example, how Padamsambhav defeated the Bon religion in Tibet and spread Buddhism there. It's great to hear that Hatwal ji is raising the consciousness of pahadi people who have been practicing these in the name of tradition and culture. As far as veg vs non-veg, it's just a matter of geographical availability. But in today's globalised world where veg foods are easily and readily available, it has become a conscious choice to not resort to non-veg for one's food. Thanks for the interview and a great initiative🙏❤
शाकाहारी हिंसक होने में कोई सीधा संबंध नहीं है. वैसे ही मांसाहारी और हिंसक होने में कोई भी सीधा संबंध नहीं है. ऐसे अनेक लोग हैं जो प्याज तक नहीं खाते लेकिन महिलाओं और दलितों और अल्पसंख्यक लोगों के खिलाफ क्रूर किस्म की हिंसाओं को अंजाम देते हैं.
शानदार चर्चा. आभार.
बनिया अपने व्यापार बढ़ाने के लिए गुंडे पालता है, जोकि आदमी की हत्या करने में नहीं चूकते
इससे, इसका, दूर, दूर तक कोई,नाता नहीं,कि, भगवान,मीठ नहीं, खाते, हैं
Mansahar Or shakahar se koi hinsak ho ya na ho ye mudda nhi hota hai mudda ye hota hai ki tumhare swarth k liye kisi bechare ki jaan lii jaati hai vo bhi bina gunaah k. Hamari chetna or bodh nirdharit karega na kii kisi ko jaan se maarker khana sahi hai ya galat. tum hinsak ho ya na ho usse us janwar ko kya matlb vo to apni jaan ki parwah karega....
मांसाहार या शाकाहार एक अलग विषय है लेकिन देवताओं के नाम पर बली प्रथा एकदम अनैतिक कार्य है | भगवान जीवन देने वाला है लेने वाला नहीं ....| मांस खाना है तो खाओ लेकिन भगवान के नाम पर नहीं |
Bhagwan Jiwan lete bhi h
@@jyotitolia4295 apna jiwan dedo unhe. janwaro ka nhi
@@jyotitolia4295 Bhagwan ka kam bhagwan par hi chhod do to behtar hai
Kalika puran pdo
@@lalitsaklani4685 puran smriti hai jo ki humne likhe hai. shruti hai ved, vedant, upamishad. agar kuch bhi puran ka ved se match nhi hota to hum nhi maan sakte. purano ko hum ne hi milavat kr li taki labh utha sake
Hatwal sir wale ye series rukni nhi chahiye 🤩🤩🤩🤩
मुझे लगता है जब मनुष्य ने देवी देवताओं को मानना शुरू किया होगा तो उन्होंने अपने देवताओं को अपने खाने की वस्तुएं चढ़ाते होंगे । क्योंकि सभी आदिवासी समुदायों में अपने देवताओं को भोजन चढ़ाने का रिवाज है, इसी तरह उन्होंने बकरे व भैसे भी चढ़ाये होंगे धीरे धीरे बकरे चढ़ाना एक परंपरा बन गयी होगी और संभवतः तत्कालीन विद्वानो के समर्थन के कारण शास्त्रों में भी उल्लेख कर दिया गया हो , और यह धार्मिक बन गया हो, मध्य काल में राजाओं के तमाम युद्धों के कारण राजओं व सामंतों ने देवी के समक्ष बली अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने के आशीर्वाद हेतु इसे बढ़ावा दिया होगा क्योंकि आप यह पाएंगे कि अधिकांश मंदिरों में बली करने का हक राजाओं या सयाणों थोकदारों को है, और यह परंपरा चलती रही।
(ये केवल निजी विचार हैं)
84 लाख योनियां बनाई है भगवान ने जिस में लाखों प्रकार के देवता है जिनका रहना खाना भी अलग अलग है। जिन में कोई सात्विक होते कई तामसिक होते है। जो श्मशान में रहते है क्या वो नारियल बलि लेंगे या नर या पशु बलि ? वो पशु या नर बलि लेंगे अगर उने पशु ना मिले तो वो शमशान में आने वाले सबों से अपनी भूख मिटाते है अगर किसी ने उनको शमशान से बाहर अपने दुश्मनों को खतम करने के लिए बुलाया तो फिर वो या तो जिनके घर भेजा है उनके सदस्य को खाना शुरू कर देंगे पहले इंसानों का खून पीते है फिर उस इंसान को खतम करना शुरू करदेते है फिर उससे खाते है अगर किसी को पहले ही मालूम चल जाए कही से पूछा निकलवाने पे फिर तो उनको पशु बलि देकर वापिस भेज दिया जाता है और फिर वो उस इंसान के घर पे जाकर बैठ जाता है जिसने उसको भेजा होता है वहां भी वो वैसा ही करता है अब ऐसा तो है नि की वो उसके घर में नारियल खाना शुरू कर दे यानी सात्विक खाना शुरू कर दे जैसे जिसके घर पहले भेजा गया था उनका खून पीना फिर एक सदस्य को मौत की नीद सवा देना वैसा ही करता है अगर उसे भी पहले मालूम हो जाए तो वो भी पशु बलि देकर उससे वापिस भेजता है वापिस का मतलब शमशान।
जो इंसान उस देवता को श्मशान से लाता है उसी इंसान के जरिए उसी रास्ते से वो वापिस जाता है।
बलि देना बुरी बात है लोग बोलते है मगर जब तुम्हारे पीछे मौत पड़ी हो और तुम्हें बोला जाए कि अगर तुम मारना नहीं चाहते हो तो एक बकरे की बलि देनी होगी तो तुम ना बोलोगे या हा अभी तक तो 100% लोगो ने हा ही बोला है कोई नहीं मारना चाहता वो भी तब जब उसके पास मौत को रोकने का सस्ता उपाय हो।
जब तक किसी पे ये श्मशानी देवता नहीं पीछे पड़ते तब तक हर कोई ज्ञान देता है जब पीछे पड़ते है फिर ये लोग ऐसे टॉपिक पे बात करने से भी डरते है।
मेरे साथ खुद हुआ है मुझे पहले अंडे की स्मेल से भी उल्टी आती थी और मैं नास्तिक था और बलि पे ज्ञान देता था साल 2019 में मेरे पे मेरे सगे लोगो ने मुझ पे शमशान का देवता छोड़ दिया था मुझ पे अचानक बीमारियां पैदा होने लग गई मेरी उम्र 26 साल की थी मुझे अपनी मौत दिखाई देती थी जब मैं खाना खाता मुझे कोई बोलता था कि आज खाले कल तुझे मैं खाऊंगा रात को मेरे कान में कोई सिटी बजाता था मुझे नीद नहीं आती थी मेरी जिंदगी नरक बन गई थी फिर मैने कही से पूछा निकलवाई उन्होंने सब दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया फिर मैने उस देवता का नाम सिमरन करना शुरू कर दिया उस से उस देवता ने मुझ पर प्रकोप करना कम कर दिया और मैने देवता को श्मशान में पूजा देने का वादा किया जब मैने वादा किया तो मैं बिना दवाई के ठीक होने लग गया इस से मेरा विश्वाश बनने लग गया आज मैने उस देवता को अपना बना लिया वो मेरे सभी काम करते है मगर मुझे गढ़वाल के लोगों पे हंसी आती है वो लोग इन देवता का इस्तेमाल अपने सगे संबंधियों को खतम करने के लिए छोड़ना जानते है मगर फिर वो देवता वापिस आकर उनका भी नुकसान करता है कभी पूरा परिवार ही खत्म हो जाता है देवता 4 गुणा स्पीड से नुकसान करता है वापिस आकर भेजने वाले का मगर वो लोग उस देवता से ये नहीं मांगते कि हमें अपने सगे संबंधियों से ज्यादा कामयाब बना देना सगे संबंधि खुद ही मर जाएंगे हमारी कामयाबी देखकर।
इस देवता को मैंने कभी किसी का नुकसान करने को नहीं कहा बस ये बोला है मुझे कामयाब इंसान बना दे मेरा मुकाबला मेरे करीबी भी न कर सके तो आज मैं अपने रिश्तेदारों से आगे हूँ इन देवता की बदौलत। सेहत भी अच्छी है नहीं तो मुझे हार्ट अटैक जैसे हालत बन गए थे।
बलि पे जो ज्ञान देते है वो सोच समझ कर दे।
इस दुनिया में कोई शाकाहारी नहीं है हर कोई रोज किसी ना किसी जीव को मार कर सोता है। जैसे मच्छर चूहे जैसे दही के बैक्टीरिया होर ना जाने कितने जीवो को मारता है तुम लोगो को केवल मुर्गा और बकरी ही बलि दिखती है।
Galat ye sab jahil log h jo janwaron ki bali dete h bewkuf h ye log vedon me janwar sarir ko kaha gya h kisi ka bhi ho inshan ko apni janwaron wali adato ko hatane ko bali kaha gaya h log galat samajh bete h kyonki hindu log kabhi bhi apne ved khud nahi padte
अपने घर अगर कोई अतिथि आए, तो हम उन्हें, हम जो खाते है वही परोसेंगे।
देवी देवताए, तो हम में से ही कोई ज्यादा शक्ति मान होंगे, उनको ही भगवान् मानते होंगे,..... कोई अलग प्राणी तो नहीं होंगे।
शाकाहार अच्छा और मांसाहर बुरा, यह कौन मानते होंगे, जिन्हें यही तय किया वे ही ना?
जो मांसाहार को अच्छा समझते होंगे वे तो मांसाहार को ही अच्छा समझेंगे।
खाने में अच्छा या बुरा, ऐसा कुछ मानना ही नहीं चाहिए।
मुझे नहीं लगता तू पहाड़ का है।
@@ganeshraypa8936 kyo bhai kya lgta fir tujhe
बहुत सार्थक चर्चा साधुवाद।
धन्यवाद बारहमासा की टीम को राहुल कोटियाल जी आभार आप सभी का उत्तराखंड देव भूमि लिखने बोलने में। हमेशा सभी को खुशी होती है। देवभूमि बनाए रखने के लिए देवभूमि से देवभूमि में मांसाहार किसी भी प्रकार की जीव हत्या नहीं होनी चाहिए। दूसरा पूरा देवभूमि से शराब मुक्त हो। जिससे हमारी देव भूमि की पवित्रता बनी रहे हो
@@RajendraMehta-k7p ये अच्छा एंव सर्व स्वीकार्य विचार होना चाहिऐ...
Respect for Acharya prashant has increased in my Heart ❤️
Rahul Kotiyal of the Baramasa Podcast deserves heartfelt appreciation for his exceptional work, which is deeply rooted in extensive research. His podcasts are not only highly informative but also provide valuable insights, particularly about the culture and heritage of Uttarakhand.
Through his episodes showcasing the cultural and religious landmarks of Uttarakhand, I have gained a renewed perspective on the region’s rich and vibrant culture, which I once saw as merely deserted mountains. Like many others, I often pondered why our forefathers chose to settle in these challenging terrains. Rahul’s work has beautifully answered this question by highlighting the profound connection between the people, their traditions, and the land.
His efforts have brought to light the vibrant heritage and traditions that make Uttarakhand truly remarkable. Rahul’s style of presentation is exceptionally composed and engaging, a quality shared by the other dedicated members of the Baramasa Podcast team.
Although I am a non-vegetarian, I have often pondered the hypocrisy in our society, where animal sacrifice has been an integral part of divine worship to ward off evils and bring prosperity. Many of these rituals are deeply rooted in superstitions that have been glorified and woven into the fabric of our religious practices.
एक पीढ़ी का पाखंड ,दूसरे पीढ़ी की प्रथा बन जाती है !
Bahut badeya debate bhaji👍
Doing such a great job baramasa… ❤️❤️
But sadly public of Uttarakhand is not giving much attention … don’t know y
महोदय मैं आपकी इस बात से सहमत नही हूँ की इन्सान को जो मर्जी खाने की छुट है खासकर मांस और पशु से निकला दूध मांसाहार हमारी धरती और चेतना के लिए हानिकारक है मांसाहार पुरे विश्व से खत्म होने की मुहीम हो 🙏🙏
So ja
भाई कुछ भी मत बोलो यार मैं भी नहीं खाता लेकिन इसका ये मतलब नहीं की मैं खाने वाले का विरोध करू चक्र है जो बना हुआ चलने दो उस को😂😂
Bahut sundar jankari ❤❤
जानवर भी इंसान की तरह ईश्वर की संताने है उन्हें भी ईश्वर ने हमारी तरह जीवन जीने का अधिकार दिया है तो हम कौन होते है उनको मारकर खाने वाले ?
ईश्वर न्याय जरूर करेगा और कर भी रहा है
प्रेमानंद महाराज जी को सुनना रौंगटे खड़े हो जाएंगे किसी को मारने से पहले ।
मुझे गर्व है की मेरे शाकाहारी खाने में किसी की चीक,पीड़ा, दर्द ,पुकार, तड़प,खून,बदुआ नहीं है
हम आपके द्वारा दिखाए जाने वाले सत्य प्रमाणों को देखने के लिए चैनल से जुड़े है ऐसे वेदों का झूटा प्रमाण देकर भ्रम फैलाने वालो लाओगे तो 🥺🥺🥺🥺
जीवों पर दया करो- वेद ये सिखाते है
जय सनातन 🚩
👏🏻👏🏻👏🏻
Fir to Pani v Bina filter or boil kre pete hoge taki bacteria mr na jaye ku bs without research Gyan bato
@ kyu jab tum pani pite ho to kya kisi ki chik pukar sunayi deti hai kya?
Kisi janwar ki cheekh pukar ni ati vi ek jhatke mai mar jata hai or insaan sadiyo se meat khata aa raha hai yahi cheez sher ko be bolo ki tum be bhagwan kai bache hi or hiran be😂 @@pankajdungriyalvlogs
@@pankajdungriyalvlogs haan sunai nhi deti iska mtlb ye nhi ki hathya ni krte hain
किसी देवता ने प्रत्यक्ष रूप में कुछ नही कहा है , ये सब कल्पित है , देवता बकरा नही खाता ❤❤❤
Bilkul sahi negi da
हठवाल जी ने बहुत सच्चाई के साथ तथ्यों को रखा है। कुछ भी ठकने का प्रयास नहीं किया है। विद्वान जन सच्चाई को स्वीकार करते हैं चाहे वह कितना ही कटु और अनैतिक क्यों न हो। गतिशीलता ही चेतना विस्तार का मूल कारण है जिसे मनुष्यों का गुण माना जाता है। बहुत सुंदर विमर्श है।
सराहनीय प्रयासं । हटवाल जी का धन्यवाद उनके कार्यक्रम बहुत अच्छे और वैज्ञानिक तथ्यों व तर्को के आधार पर होते है
बलि प्रथा की जानकारी के लिए आभार, उत्तराखंड में बलि प्रथा की जानकारी सटीक ❤❤❤
हमारे देवभूमि उत्तराखंड के सबसे बड़े साहित्यकार मान्यवर नंदकिशोर हटवालजी को मेरा सादर भरा नमस्कार। आपने बारामासा चैनल पर देवभूमि उत्तराखंड में शाकाहारी एवं मांसाहारी के बारे में अच्छी तरह से समझाया है।।
पितृदोष के लिए दो तीन हजार का "बोगठ्या" काटना मंजूर है लेकिन संस्कृत रूपी मन्त्रों द्वारा मरे हुए पितृ लोगो की नारायणी, नारायण-बलि और उनके नाम पर लाखों रुपये की खर्चीली प्रथा यथा "सतवाह" कोई "भागवत टाइप" करना मंजूर नहीं। पुरखों की परंपरा मजबूत है।👍 Old is gold👍
Bali lene vaale pitrDevta nahi pret hain
हटवाल जी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।बारामासा की उच्च स्तरीय पत्रकारिता
यह तो सत्य है कि बलि खाने वाले देवी देवता आज श्रीफल में संतुष्ट हैं।
@@jeevan_saar1 क्युकी देवता भी अपने लोक चले गए है पहले जैसी शक्ति कहाँ देखने को मिल रही है अब
Shree fal ?
@@Sarpara नारियल
उनका, दिमाग, खराब हो गया है, देवताओं,भी,
वो शक्ति दिखाने वाले राक्षस थे। देवताओ को कभी जरूर नही पड़ती शक्ति दिखाने की वो तो सदैव शांत रहते है। आप जिस चीज को जिस रूप मै पुजोगे उसी रूप मै आयेगी।
ज्ञानवर्धक रहा आज का पॉडकास्ट...
उम्दा
Devi dhura Lohaghat - Narbali ( av patthar marke ek body ke barabar blood sacrifice krte hai )
Kashni Pithoragarh - Bhais bali ( once in 10 Years) still .
Uttarakhand ke salre gaw me bakra bali 100% avi bhi hai .
That's why I believe in science more than anything!
Well Done Baramasa 👏 ✔️
विषय बहुत ही अच्छा और ज्ञानवर्धक था। चर्चा काफी अच्छी रही। 🙏
😂❤❤😂🎉😢😢😮😅
I think it is a logical explanation by an educated person 😊
कुमाऊं में अठवार एक ही दिन में 8 बलि होती हैं आज भी ।।
Dada ji you always motivate us , whatever you do in life ,do it with passion ,it's make you fell energetic in life
Great podcast he is very wise person ye line achi thi ki apne manyatayein dusron per mat thopein...
Bhagwan sab roop mai hai राक्षस रूप mein bhi aur देव रूप main bhi aur buddh se humne Jana hai ki अहिंसा उसका अंतिम मार्ग है।
Thank you so much sir ye aisi jankariya dene ko historic mythology se htkr
महत्वपूर्ण जानकारी
धन्यवाद आपने मांसाहार और शाकाहार के विषय में बहुत ही अच्छी जानकारी दी षड्यंत्र के तहत हिंदू धर्म में बलि प्रथा को बंद कर दियागया हमारे मनुष्यों ने बहुत सोच समझकर यह बलि प्रथाचालू हुई थी ताकि खून देखकर लोग बेहोशना हो जाए ऐसे कई उदाहरण मेरे आस पास बिखरे हुए हैं बलि बलि प्रथा से हिंदुओं में खून खराबी से डरने की भावना खत्म हो गईथी इसलिए मनुष्यों ने बलि प्रथा का प्रावधानकिया आपके विचार भी कुछ लगे परंतु शेरों को गए बनाने की कोशिशना करें कम से कम सांड बनाएं जो आत्मरक्षा में ही सही सामने वाले को टक्करमार सके आपका सामना मुस्लिमसे है जब तक मुस्लिम की कुर्बानी खत्म नहीं की जाती तब तक आप भी इस विषय मेंसोचे सम्राट अशोक के उदाहरण लोगों को भ्रमित ना करें वह राज्य की रक्षा नहीं कर पाया था
Bahut sandar
Very good presentation. Pl continue to organize such programs.
उत्तराखंड एकता मंच के अनूप बिष्ट को लाईये अगले podcast में 5th schedule
जय माता सीता राम जी आपने दोनों ने बहुत ही अच्छी बात कही है कि आज भी कुछ गांव में बलि प्रथा आज भी प्रचलित है हिंदू सनातन धर्म में मांसाहारी भोजन बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए और न ही बनाना चाहिए जय श्री राम राम जी ❤❤❤❤❤
बारामासा हमेशा ही सर्वोपरि ❤
Bhut sundar🙏 प्रस्तुति आदरणीय टीम बारामासा 🙏
सर जी सबसे पहलः नर बली ही होती थी धीरे धीरे प शु बली मे परिवर्तित हुए
इसमे कुछ भी बडी बात नही धीरे धीरे मानव जब आगे बढा माने आगे उनकी पीढी चली तो पहले पहल मासाहार ही पेट या भूख मिटाने का था तब तब आगे मनुषय बली की जगह पशु बली पर आया असली धरम् तो भंख मिटाना था और उसी को धर्म से जोडा ताकि डर के मारे पशु बली या मासाहार को करे
धार्मिक तो एक डर के साथ जोडा गया है ताकि कम लिखे पढे ये नासमझ को मंरख बना कर पेट की भरपायी हो जाय
Kanda II, Prapathaka 1 is titled “The Special Animal Sacrifices”. You will find a horned goat sacrifice is given in Yajur Veda, Kanda II, Prapathaka 1. 1.2-5 [iii] where it says “He who desires offspring and cattle should offer to Prajapati a hornless goat.”
It also says to sacrifice a horse “He who desires cattle should offer to Tvastr a horse.” (Yahur Veda, Kanda II, Prapathaka 8.2 ).
बहुत अच्छी जानकारी 👍
उत्तम जानकारी
Bahut sunder sar
अपने ग्राम समाज के लिए बैठकी करने सामूहिकता दिखाने समस्याओं आदि पर चर्चा करने साथ ही अपने इष्ट देव को खुश करने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी ए प्रथाएं प्रचलन में आई होंगी। विषयानकूल सारगर्भित चर्चा।
सादर सह धन्यवाद , ढेर सारा साधुवाद।🎉❤
Very important video for new generation
Aapki video dekh ke kafi knowledge milta h 😊
Good conclusion 👌🙏
पहाड़ मै किसी समय सभी वैष्णव बाहुल्य था,आज भी मिलम ग्लेशियर से नीचे शालिग्राम विराजमान है ये दंत कथाएं खुद गढ़ ली गई , जब विधर्मी आए ओर पहाड़ी लोगों पर अत्याचार किया विष्णु मंदिर खंडित किए तब मजबूर होकर लोगों ने बलि को प्रथा रूप में स्वीकर किया , वैष्णव जानवर मार नहीं सकता था दयालु था,उसका स्वभाव पतन का कारण था, इस लिए ये कथा गड़ी गई ओर बलि प्रथा अस्तित्व में आई, आज भी पंचाचुली के थल गांव में तिवारी मुस्लिम परिवार है , और सभी विष्णु मंदिर देवी मंदिर में रूपांतरित कर दिए, ओर विग्रह खंडित कर दिए गए , कूड़े के ढेर में पड़े ये विग्रह आज भी है और सुध लेने वाला कोई नहीं
👌👌
Bhut sundar ❤
wonderfull explaination
बहुत शानदार चर्चा रही😊
Very educative 🙏
Guru ji ko koti koti pranam
सुंदर जानकारी ❤
very nice episode
बहुत सुन्दर गुरुजी।
बलि पर कानूनी प्रतिबंध लगना चाहिए।
Bahut badia Raha podcast age bhi ate rehne chahiye ese topics pe.
He is very deep and insightful in his explanation.
I am so much impressed and motivated to acquire knowledge on the topics outside of my profession and history and evolution
उत्तराखंड परीक्षा की तैयारी करने वालों हमेशा देखा करो ❤😊😀
आ गए ज्ञान बांटने , लगेगा ना मसाण एक नहीं एक हजार बकरियां काटोगे। जो भुगत रहा है वही जानता है। पहाड़ के सभी देवी देवताओं को प्रणाम 🙏🚩
Sahi bola dost ,dev devta ki shakti s log pagal hote
Ye baat bhi shi h...lekin masan bhi devtao ko manne walo ko hi kyu lgta h
🙏❤
मेरा मानना है कि शास्त्रों में कहा गया है कि 84 लाख योनि के बाद मनुष्य का जन्म होता है तो परमात्मा ने इसी लिए हर प्राणी को खाने के लिए हर एक जीव बनाए गए हैं और इसी लिए जन्म के बाद मारना ही है तो अगर मांस को कोई भी प्राणी या जानवर नहीं खाए तो क्या उसके बाद कोई भी प्राणी नहीं मरेगा यह सब मांस खाने का मतलब शरीर के ताप को बनाए रखना ही है खास कर ठंडे इलाकों में यह आम है ताकि टेंप्रेचर न बिगड़े और साथ ही हरे पतियों में छोटे छोटे कीड़े लगे होते हैं चाहे कितना भी साफ कर लें मगर फिर भी मांस मनुष्य खाता है तो अब समय के साथ साथ हर चीज में बदलाव हो रहा है। बाकी कुछ नहीं है। मारना सभी ने है।
Achchi jaankari prapaat hui
🎉🎉
पहाड़ में बलि प्रथा का शास्त्रों में कोई वर्णन नहीं है। यह कुप्रथाएं ब्राह्मणों द्वारा चलाई गई।
पोंगा पंडितों ने...
22:00 64 बली बधाण (Tharali) chamoli में 2020- 21 में ही हुई थी।
इसमें 64 बागी और बकरों की बलि होती है
अठवाड भी होता है थराली देवाल में अभी भी
भाई अभी भी होती है क्या? हमारे यहाँ आखरी २०१२ मे हुई थी
पहले में पहाड़ी लोगों को बहुत अच्छा मानता था, के ये दिल के साफ और दयालु होते है,, पर ये तो धरती के सबसे बड़े निर्दय और नरभक्षी होते है,, अभी कुछ दिन पहले एक केस देखा मैने के,2006 में कोठारी कांड में 18 बच्चों को मारकर खाने वाला,, नरभक्षी उत्तराखंड के कुमाऊ का था सुरिंद्र कोली मेरी आंख पटी की पटी रह गई,, तबसे ममेरा भरम दूर होगया,,, के कलयुग में कोई सही नहीं है ❤❤ जय श्री राम 🚩
Kulsari me bhi hua krti thi phle yr
Chamoli m hota rhta h 2019 m Band patti m bhi hua tha
@@priyanshunegi2361 ha me v chamoli se hu Bhai
असभ्य है वो मानव जो अपनी खुशहाली के लिए बेजुबान पशुओं की बलि चाहता है ।
पहाड़ों में जाति प्रथा के बारे में भी विचार बताए
Awesome
Very nice
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च।
अजापुत्रं बलिं दद्यात् दैवो दुर्बलघातक:।।
Dhnywaad
Right
बलि प्रथा को को जिन्होंने देवता के नाम पर स्थापित किया, आज वे मांसाहार करने वालों से घृणा करते है। जबकि इन सभी कर्मकांडो के केंद्र में वही लोग हैं।
जितने भी वेद पुराण है वे सभी इन्सानो द्वारा निर्मित हुएं हैं। इसीलिए जिस जिस ने भी वेद पुराण लिखे उन्होंने उसे अपने स्वार्थ व आवश्यकताओं व आस पास के वातावरण व मानसिकता व माहौल के अनुसार वेदों व पुराणों की रचना की। व इन वेदों व पुराणों में रचयिता द्वारा आवश्यकता अनुसार परिवर्तन किये गये होंगे। अगर बात की जाए देवी देवताओं की तो अगर ईश्वर ने हम सभी को बनाया है और पुरे भ्रंमाड़ को एक ही ईश्वर ने रचा है तो इस हिसाब से जितने भी धरती पर जिव जंतु है वे सभी उसी एक इश्वर की सन्ताने हुई। इसीलिए कोई रचयिता जिसकी सन्ताने सभी है वे कभी एक सन्तान को दुसरी सन्तान को मार कर या काट कर खाने की अनुमति कभी नहीं देगा। बल्कि एसी स्थिति मे रचयिता एसा करने वाले को दंडित करता होगा। रहि बात बली प्रथा के चलन की तो जितने भी धार्मिक वेद पुराण व ग्रंथ एवं प्रथाएं है वे सभी मानव निर्मित है। इसे मनुष्यों द्वारा अपनी सुविधा व स्वार्थों के अनुसार नीर्मीत कीया गया हैं। इसीलिए इस प्रथा का श्रेय भी पूर्ण रूप से मनुष्य को जाना चाहिए। इसे देवी देवताओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
Loved this…as a Garhwali hailing from Delhi this podcast taught me a lot❤
ये पॉडकास्ट सिर्फ किस्सों और कहानियों पर आधारित है वास्तविकता क्या है किसी को भी ज्ञात नहीं है। 😂😂
तुम्हे पता नहीं इसलिए तुम बोल रहे हो खैर तुम छोड़ो
ये सब nonesense है। बलि प्रथा पाप और अनैतिक है। ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण मांसाहार ही है। देवी देवताओ के नाम पर एसा कुकृत्य शर्म की बात है।
Kothiyal ji AVN atwal Ji ko Sagar namaskar Garhwal Ki Sanskrit per aapane Jo vichar Rakhe bahut sarahniy hai jaise ki sthir Pani Mein kide pad Jaate Hain aur bahta Pani Ganga ki dhara se Mil Jata Hai aap Samay Samay Apne is channel ko chalate Rahen Sa dhanyvad
अष्ट बलि मैने अपने सामने देखी अठवाड़
फोकलोर की वैज्ञानिक व्याख्या अच्छी लगी
राज-जात राज-रानी की यात्रा का परिचायक है और राजतंत्र को वर्तमान में प्रतिष्ठित करने का दबंगों का दुराग्रह ही कहा जाएगा।
गोपेश्वर के कुछ गांव मोहल्ला में लोग अब भी बलि प्रथा चल रही है जैसे बकरा बलि प्रथा मुर्गा इत्यादि प्रथा आज भी प्रचलित है जय श्री राम राम जी ❤❤❤❤❤
Pl make a podcast as to how untouchability came into society, its historical facts, current situation and how it can be removed from the society.
चौसठ बलियां चौसठ योगिनियों के नाम पर दी जाती थीं।
आज की पुतला-बलि आदिम कालीन मानव-बलि का परिचायक है।
Hatya aur balidan Dono ka alag alag matlab hai isliye Bali ko pashu hatya se na jode🙏
बहुत ही अच्छा प्रयास आप इस प्रकार के ऐपिसोड बना कर हमें अपनी संस्कृति की जानकारी उपलब्ध कराने का बहुत ही बड़ा कार्य कर रहे हैं। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ🙏💕
देखिए धर्म और परंपरा को आपस मे मत जोड़िए। लोक परंपरा में उत्सव मनाना उसमें पशु बलि देना देश काल और परिस्थिति पर निर्भर करता है दूर बॉर्डर पर गए सैनिक पुत्र की रक्षा के लिए पहाड़ की माताऐं मनौती करती थी और पुत्र के घर आने पर बकरे की बलि देकर उस इष्ट देव को बलि अर्पित करती थी।
Nice
अपने जीभ के स्वाद के लिए पशु बलि दी जाती थी और जिम्मेदारी डाल दो ईश्वर के नाम पर फिर कोई सवाल जवाब भी नहीं करेगा
Tu bhais khata h kya ?
सारे देवता पशु प्रेमी होते हैं कल भैरव के साथ भी कुता चलता हैं, देवादिदेव महादेव को तो पशुपति कहा जाता हैं। तमोगुण से ऊपर उठने के लिए मनुष्य जन्म होता हैं, चेतना का विकास होने से मनुष्य मुक्त होता है वरना भूत, प्रेत, पिशाच बन कर , दोष, रोग में पीढ़ियों में प्रकट होता हैं या फिर पितर बन कर अपने पीढ़ी के शबकर्मों से मुक्ति की आशा करता हैं
100 baat ki ek bt non veg isonly for survival when we have lack of foof stuff but today we have many option for nutrition so now we dnt need to kill animal behalf of protein nutrition
@@vickyk2207 Bhaisaab agar bakre,murge ,ande nahi khayenge to phir log enhe palna band kar denge tab ye hai ki hai janglon me bhi dheere dheere bilupto ho jayenge
बलि प्रथा एकदम बंद होनी चाहिए ये सब ढोंग है कोई भी भगवान बलि नहीं लेता है
में नेपाल से हुँ बली प्रथा अभि भी है, बिषेशत: दुर्गा पूजा मे होता है, लेकिन अभि थोडा चेतना आइ कि भगवान के नाम पर बलि देना अच्छा नहि है।
Dear baramasa उत्तराखंड के history के राजा महाराजा उनके युध राज्य इंडो नेपाल उस तरह के podcast भी बनाये
I appreciate Hatwal Ji's insight on human psychology regarding bali pratha. But looking purely from the dharmic lens, I think, if we compare this with Native aboriginal's religion of any country like Tibet's Bon religion where they worshipped spirits and local deities then it would be regarded as a primitive form of worship and has no relation to God or supreme truth according to Sanatan Dharma. However, sanatan never exlcudes or disregards any form of worship so you might see these forms mentioned in the dharmic texts but that doesn't mean it encourages or justify it...its just written as a fact that shaminism or sacrifices were practiced. Sanatan or Budhhism is far superior and powerful as we may read from the stories of how buddhism was propagated to these primitive regions. For example, how Padamsambhav defeated the Bon religion in Tibet and spread Buddhism there. It's great to hear that Hatwal ji is raising the consciousness of pahadi people who have been practicing these in the name of tradition and culture. As far as veg vs non-veg, it's just a matter of geographical availability. But in today's globalised world where veg foods are easily and readily available, it has become a conscious choice to not resort to non-veg for one's food. Thanks for the interview and a great initiative🙏❤
बलि प्रथा के खिलाफ तो हमारे नेगी जी ने भी गाना गाया है
राधे राधे