#प्रेरणादायक

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ต.ค. 2024
  • पतायत साहू का जन्म ओडिशा के कालाहांडी जिले के नान्दोल गांव में हुआ था। पतायत साहू ने अपने घर के पीछे 1.5 एकड़ के ज़मीन में 3000 से भी ज्यादा चिकित्सकीय पौधे उगाए हैं। यह काम वे पिछले 40 साल से कर रहे हैं, पतायत साहू आर्गेनिक खेती पर जोर देते हैं। अपने प्लांट में वह कभी भी केमिकल उर्वरक का इस्तेमाल नहीं करते। पतायत साहू दिन में खेती करते हैं और रात में अपने औषधीय पौधे की मदद से वैद्य बन जाते हैं।
    देश में युगों-युगों से औषधीय उत्पादन और उपभोग हो रहा है। अभी तक हिमालय के पहाड़ी और बर्फीले इलाके ही औषधियों का भंडार माने जाते थे, लेकिन इनके बारे में जागरुकता बढ़ने से अब मैदानी इलाकों में इनकी खेती होने लगी है। औषधीय पौधों की खेती करने और उसके सरक्षण के लिए किये गए उत्कृष्ट कार्य के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2023 में कृषि के क्षेत्र में दिए गए विशेष योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा।
    पटायत साहू ने कालाहांडी स्थित अपने हर्ब गार्डन को बिना किसी कैमिकल रसायन या कीटनाशक के तैयार किया है। यहां हर औषधी को जैविक विधि से ही उगाया जाता है। 65 साल के किसान पटायत साहू खुद अपने ह्रब गार्डन का ख्याल रखते हैं।
    ज्यादातर लुंगी और कंधे पर स्थानीय गमछा लपेटे रहने वाले साहू ने औषधीय पौधों की 3000 से अधिक विभिन्न प्रजातियों का पोषण और विकास किया है।
    उनके दादाजी भी पारंपरिक चिकित्सक थे, इसलिए उनके मन में इन पौधों के प्रति प्रेम था। हालाँकि उनके माता-पिता चाहते थे कि वे पढ़ाई करें और कोई नियमित नौकरी करें, लेकिन साहू को स्कूल के बाद अपने दादाजी के साथ घंटों समय बिताना और पौधों के बारे में अधिक जानना अच्छा लगता था।
    "उस समय, लगभग 60 साल पहले, एलोपैथिक दवा बहुत लोकप्रिय नहीं थी। हमारे गांव में, हर किसी को इन पौधों, उनके उपयोग और गुणों के बारे में जानकारी थी। बचपन में यह मेरे लिए एक शौक से ज़्यादा था। लेकिन जब मैं बड़ा हुआ, तो मुझे पता चला कि औषधीय पौधे ही मेरी ज़िंदगी हैं," उन्होंने याद किया।
    अपनी शिक्षा पूरी करने के तुरंत बाद, उन्होंने अपने घर के पीछे अपने दादा के पास मौजूद पौधों की प्रजातियों से बगीचा बनाना शुरू कर दिया। लेकिन उनकी खोज उन्हें न केवल कालाहांडी के घने जंगलों में ले गई, बल्कि ओडिशा और कुछ अन्य राज्यों में भी ले गई। समय के साथ, उन्होंने अपने बगीचे को समृद्ध करने के लिए लगभग 3000 विभिन्न प्रजातियाँ वापस लायीं।
    अपना पूरा जीवन जड़ी-बूटी और हरियाली के बीच बिताने वाले पटायत साहू अपने गार्डन के हर पौधे को अपने घर का सदस्य मानते हैं। इनका पूरा समय अपने 1.5 एकड़ बगीचे में ही बीतता है। इस उम्र में भी पटायत साहू आपको मुंह जुबानी हर औषधी की डीटेल बता देंगे।
    सर्दी, बुखार, सिरदर्द और त्वचा संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए उनके घर के सामने लोगों की कतार बढ़ती ही जा रही थी। उन्होंने इलाज के लिए कभी फीस नहीं ली। इसके बजाय, उन्होंने अपने मरीजों की स्वेच्छा से दी जाने वाली सेवा स्वीकार कर ली।
    उनके परिवार ने उनका भरपूर सहयोग किया है।
    आज उनका बगीचा एक खजाना बन गया है। साहू के बगीचे में काखरू, मैदा, सर्पगंधा, सांबरसिंह, रसनाजड़ी, तिहुडी, भीन, अशोक, लोधरा, बिदंगा और शतावरी सहित कई तरह की वनस्पतियाँ हैं। इसके अलावा, उनके पास भृंगराज, पेंगू, पनीकुसुमा, राजपथ, नागवेल, देबानासन, जलादिंबिरी और ज्योतिष्मती की पाँच किस्में हैं।
    औषधीय पौधों के ज्ञान को संरक्षित करने और प्रचारित करने के लिए उत्सुक साहू ने दो पुस्तकें लिखी हैं। वे प्रकाशन के लिए प्रतीक्षारत हैं।
    पुस्तकों में उन सभी प्रजातियों के नाम, विवरण, गुण और उपयोग शामिल हैं जिन्हें उन्होंने उगाया है और जिनके बारे में वह जानते है।
    पतायत साहू द्वारा किये गए उत्किष्ठ कार्य के लिए हम उनके कार्यो की सरहाना करते है।
    धन्यवाद !
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