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India
เข้าร่วมเมื่อ 24 ส.ค. 2012
अ-मोक्ष: जीवन की अन्तहीन यात्रा,
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วีดีโอ
शरणागति साधना से श्री कृष्ण नहीं मिलेते हैं
มุมมอง 189หลายเดือนก่อน
शरणागति साधना वाले परमात्मा के पास जाते हैं नियत कर्म करने वालों के पास परमात्मा आते हैं
महान् दार्शनिक श्री अरविन्द और अ-मोक्ष चिन्तन
มุมมอง 316หลายเดือนก่อน
श्री अरविन्द का उच्च मानव ही अ-मोक्ष साधक है।
जिज्ञासु बनें श्रद्धावान् नहीं
มุมมอง 292หลายเดือนก่อน
नवीन ज्ञान प्राप्त करने हेतु संशयी होना आवश्यक है बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान के प्रति क्षोभ आवश्यक है
पाप से स्वयं को रोकें
มุมมอง 3722 หลายเดือนก่อน
पाप का फल भोगना ही पड़ता है नियत कर्म पाप से बचाता है
पाप के प्रति सनातन सोच
มุมมอง 3752 หลายเดือนก่อน
नियत कर्म करने में हुए पाप पुण्य नियत कर्म करने वाले को प्रभावित नहीं करते हैं। पाप करने की प्रवृत्ति से बचें ।
ईश्वर धन्यवाद के भूखे नहीं हैं
มุมมอง 7212 หลายเดือนก่อน
ईश्वर को धन्यवाद दें या न दें किन्तु नियत कर्म करें
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान सम्पूर्ण
มุมมอง 2213 หลายเดือนก่อน
काल्पनिक विचारों के पर जीवन को समझने से बचना ही जीवन का यथार्थ बोध है
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पर अध्यक्षीय भाषण
มุมมอง 283 หลายเดือนก่อน
जीवन्तता ही जीवन का अर्थ बोध है
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पर प्रश्नोत्तर
มุมมอง 213 หลายเดือนก่อน
जो बात सत्यापनीय न हो वह काल्पनिक है। काल्पनिक यथार्थ नहीं हो सकता है।
मोक्ष के मूर्तरूप लेने की भ्रान्ति को हटाना ही जीवन का वास्तविक अर्थ बोध है
มุมมอง 853 หลายเดือนก่อน
मोक्ष के मूर्तरूप लेने की भ्रान्ति को हटाना ही जीवन का वास्तविक अर्थ बोध है
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पूर्व प्रस्तुति।
มุมมอง 593 หลายเดือนก่อน
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पूर्व प्रस्तुति।
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पूर्व प्रस्तुति
มุมมอง 393 หลายเดือนก่อน
जीवन का अर्थ बोध व्याख्यान पूर्व प्रस्तुति
जीवन का अर्थ बोध विषयक व्याख्यान समारोह के शुभाम्भ
มุมมอง 93 หลายเดือนก่อน
जीवन का अर्थ बोध विषयक व्याख्यान समारोह के शुभाम्भ
जीवन का यथार्थ बोध पर व्याख्यान के आरम्भिक क्षण
มุมมอง 1793 หลายเดือนก่อน
जीवन का यथार्थ बोध पर व्याख्यान के आरम्भिक क्षण
अ-मोक्ष : जीवन प्रक्रिया की अन्तहीनता
มุมมอง 1823 หลายเดือนก่อน
अ-मोक्ष : जीवन प्रक्रिया की अन्तहीनता
🙏🙏
Very Cute baby.💐
शुभ आशीर्वाद।
धन्यवाद सर प्रणाम।
Kitni cutee hai❤
जी, धन्यवाद।
वाह विट्टू वाह!
🙏🙏
सर जी आपके द्वारा की गयी इस सारगर्भित व्याख्या के लिए आपका बहुत बहुत आभार | सादर प्रणाम सर जी |
धन्यवाद मिश्र जी!
सारगर्भित परिचर्चा सर
धन्यवाद,
सर सादर प्रणाम, नियत कर्म पर की गई चर्चा बहुत ही सारगर्भित है। जो ये चर्चा के दौरान बताया गया कि नियत कर्म करने वालों पर ईश्वर खुद प्रसन्न होते हैं।
धन्यवाद, शुभकामनाएं।
आप को सुनकर बहुत अच्छा लगा 💐👃 दूसरे Video की प्रतीक्षा में मैं 💐🙏🏽
धन्यवाद भैया! शीघ्र प्रसारण होगा।
मित्रों! मेरे चैनल को सब्सक्राइब न किये हों तो सब्सक्राइब करें।इस वीडियो पर अपने विचारों को रखें।
Video को सुना और जो समझ सका बहुत अच्छा लगा 👃।। जिसपर कमेंट करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ।। Video की परिचर्चा का कुछ अंश आप के पहले के लेख में मैं पढ़ चुका हूं जैसे की नियत कर्म करने का भी फल मिलता है और न करने का भी फल जरूर मिलता है 💐🙏🏽
धन्यवाद सर, प्रणाम। आपने बहुत ही सारगर्भित टिप्पणी किया है।
*"अ-मोक्ष: एक प्रस्तुति"* में प्रस्तुत दर्शन-ज्ञान और महर्षि अरविंद जी के द्वारा प्रस्तुत दर्शन-ज्ञान में कतिपय साम्यताओं को प्रदर्शित करती यह वार्ता अत्यंत ज्ञानपूर्ण ,रुचिकर एवं आल्हादकारी लगी! दोनों लोगों को हमारी तरफ से भी साधुवाद एवं शुभ कामनाएं 🙏🙏
धन्यवाद सर प्रणाम।
Bahut sundar varta 🎉
धन्यवाद,
बहुत सुंदर वार्ता सत्संग की तरह 🙏🏼
धन्यवाद,
शुभाशीष।
वाह वाह क्या बात है बहुत सुन्दर चर्चा आप दोनो के द्वारा किया गया। बहुत बहुत धन्यवाद
धन्यवाद बन्धु।
चरण स्पर्श
शुभाशीष।
Bahut sundar ❤❤
धन्यवाद,
💐🙏🏻🙏🏻
🙏🙏
कृपया वीडियो को देखकर अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराएं। चैनल को सब्सक्राइब न किये हों तो सब्सक्राइब करें और सब्सक्राइब किये हों तो अपने मित्रों से इसे सब्सक्राइब करने का अनुरोध करें।
बहुत सुंदर प्रस्तुति🎉
धन्यवाद आपका
धन्यवाद, प्रणाम। 🙏
🙏🙏
Nice
Thank you
*👌👌ज्ञानपूर्णं एवं सराहनीय वार्ता !धन्यवाद!!...* *"जिज्ञासु की ज्ञान-पिपासा की शांति का मार्ग तो तभी प्रशस्त होगा जब वह अपनी जिज्ञासाओं का प्रकटीकरण करेगा!"*...और *"जो भी उसकी जिज्ञासाओं का समाधान कर देने में सक्षम होगा उसके प्रति तो वह जिज्ञासु अपने आप ही श्रद्धावान बन जायेगा!"*... *"अतः जिज्ञासु का जिज्ञासावान होना प्राथमिक शर्त है!"*...और *जिज्ञासाओं की पिपासा को शांत करने वाले के प्रति उसका "श्रद्धावान होना तो तत्परिणामी स्थिति है"...*
धन्यवाद, प्रणाम।
Bahoot achha
अमूल्य योगदान
🙏🙏🙏
कृपया देखें सुनें लाइक करे और चैनल को सब्सक्राइब करें तथा अपने परिचितों को भी इसे देखने सुनने के लिए शेयर करें।
सारगर्भित ।।
धन्यवाद
अपनी संपूर्ण क्षमता से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए निरंतर प्रयासरत रहना मेरी दृष्टि में मनुष्य का पुण्य कर्म है l...... हमारे जीवन जीने का सिद्धांत ऐसा हो जिनसे सभी प्राणियों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो l..... हमें गीता की इस पंक्ति को याद रखनी चाहिए कि ' सर्व भूत हिते रता: ' अर्थात सभी प्राणियों के कल्याण में स्वयं को लगा देना चाहिए l अपने परिवेश और पर्यावरण को जीने लायक बनाए रखने से बड़ा पुण्य कर्म और क्या हो सकता है ? पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता का दुष्परिणाम भीषण गर्मी के रूप में आज हमारे सामने है l हमें आज मनुष्य और उसके परिवेश को जीने लायक बनाने पर अपनी सारी क्षमता को केंद्रित करना चाहिए l मेरी नजर में यह भी ईश्वर की आराधना है और एक प्रकार का पुण्य कार्य है l......🙏🙏
धन्यवाद, नियत कर्म करने वाले ही सर्वभूतहितेरता:, की श्रेणी में आते हैं।
Very nice Bhai sahab 🙏
धन्यवाद बन्धु!
पाप के विषय मे आप ने जो समझाया वह अद्भुत है।
धन्यवाद, शुभाशीष।
वाह! बहुत सुन्दर व्याख्या किया आप ने पाप के विषय मे।
धन्यवाद,
प्रशंसनीय पाप की विशद व्याख्या
धन्यवाद आदरणीया!
धन्यवाद,
धन्यवाद,
जीव मुख्य रूप से दो प्रकार के भौतिक शरीरों में हैं एक है चल दूसरे हैं स्थावर वनस्पतियों के रूप में जो दिख रहे हैं वे जीव स्थावर शरीरी हैं।
एक ही कार्य किस मनोभाव से किए जाने पर पाप की श्रेणी में आता है और वही कार्य किस मनोभाव से किए जाने पर पुण्य की श्रेणी में आता है,इस तथ्य का सरल,सुगम और सुबोध व्याख्या करती एक प्रशंसनीय विषद वार्ता ! साधुवाद!
धन्यवाद सर! बहुत ही सारगर्भित टिप्पणी किया है आपने। कोई कर्म किस भाव से हो रहा है?यह बहुत ही माइने रखता है।
जी हां! ...और आपका यह निष्कर्ष भी सहमति योग्य है कि उस पाप-पुण्य कृत कर्म का परिणाम भी जीवात्मा को देर-सबेर मिलता ही है..शुभ कामनाएं
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🙏🙏😊
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👌👌👍🙏
वार्ता अत्यंत सराहनीय लगी....इससे यह स्पष्ट होता है कि चूंकि शरीर नाशवान है और आत्मा अजर,अमर है जिसे बारंबार जन्मना पड़ता है,अतः शरीर द्वारा किए गए अच्छे - बुरे कर्मों का सुफल-कुफल पुनः मिलने वाले जन्म में अवश्य ही मिलता है...और वो भी व्याज समेत मिलता है...आपकी यह बात भी मान्य मालूम पड़ती है कि हमारी एक उपयोगिता है जिसकी पूर्ति हेतु हम विद्यमान हैं और नियंता द्वारा हमारे लिए जो कर्म नियत किए गए हैं उनको संपन्न करना ही हमारा अभिप्रेय होना चाहिए...यदि हम उन नियत्कर्मो को पूरी तन्मयता से संपन्न करते हैं तो हम उस कार्य से प्रोदभूत पाप के भागीदार नहीं होंगे...क्योंकि हमारा नियंता हमसे वही चाहता है और वो इसी बहाने उस पीड़ित को उसके दुष्कर्मों हेतु दंडित करना चाहता है...हम तो केवल एक माध्यम हैं...आपकी इस वार्ता में सबसे सराहनीय पक्ष यह है कि सामान्यतया जो हमें पाप - कर्म दिखता है, उसमें भी बहुत सी ऐसी स्थितियां बनती हैं जिनमे वो कर्म पाप की श्रेणी से अपने आप ही बाहर हो जाता है ...इसके लिए वार्ता में दिए गए तर्क समुचित एवं श्लाघनीय लगे हैं... शुभ कामनाएं लेख में
धन्यवाद सर! प्रणाम ।
Aapne bahut achi tarah se smjhya
धन्यवाद,
Ati sunder kaha aapne
धन्यवाद,
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है। कृपया बताएं कि ईश्वर किसी को पाप से मुक्ति नहीं दे सकते हैं?
इस पर एक परिचर्चा अवश्य होगी।
🙏🏻💐
पाप कब होता है? पाप से कैसे बचा जाए?
इस पर आगे विचार रखेंगे।
सुनकर बहुत अच्छा लगा ।।💐🙏🏽
धन्यवाद,इसे अपने मित्रों को शेयर करें।
यह संसार जीवहिजीव आधार है? यानी प्रत्येक जीव एक दूसरे पर आधारित है। अर्थात् ऋतम् , विकास और विनाश का संतुलन है। जब विकास होगा तो विनाश भी होगा और जब विनाश होगा तो विकास भी होगा ताकि "संतुलन" बना रहे। यह निरन्तर चलने वाली जीवन-प्रक्रिया, अन्तहीन है और रहेगी। इसका मुख्य आधार "कुछ करनी, कुछ कर्मगति, कछू पुर्वले पाप" अर्थात् आपको केवल और केवल कर्म करते रहना चाहिए। मानव और उसकी प्रकृति एवं प्रवृत्ति परिवर्तनशील है। इसीलिए कहा जाता है कि प्रकृति का नियम है परिवर्तन। यह परिवर्तन भी संतुलन के लिए ही होता है ताकि "ऋतम्" बना रहे! आपने अपने विचार सनातन सोच के परिप्रेक्ष्य में दिये हैं जो उचित एवं औचित्यपूर्ण ही नहीं है अपितु सराहनीय हैं। कृपया इस धार्मिक साहित्य पर आधारित सराहनीय सोच को और आगे बढ़ायें एवं प्रकृति को भी शामिल करें ताकि मानव कल्याण की भावना सुदृढ़ स्थान ले सके। KLK UPSECTT
धन्यवाद बन्धु हार्दिक आभार।