सिस्टम जो बहरा है, नोटों का पहरा है, तू कैसे लड़ पाएगा, आदमी जो ठहरा है। सड़क पर जो चीखता, इंसाफ मांगता है, उसकी आवाज़ कागज दबा देता है। जो सच की मशाल लिए अदालत में आता है, वो वकीलों की दलीलों में फंस कर रह जाता है। सिस्टम का तराजू अब झुकता है पैसों पर, असली गुनहगार बैठा, हंसता है ऐशों पर। जो हक की लड़ाई में खड़ा रह जाता है, वो तारीखों के जंगल में भटक कर थक जाता है। सिस्टम के पहरेदार गूंगे बन जाते हैं, जहां सच बोलने पर पत्थर बन जाते हैं। काला कोट, सफेद झूठ साथ हो जाता है, सच्चाई की बात ही गुनाह हो जाता हैं। अतुल सुभाष के शब्दों में गूंजता है सवाल, क्या कभी जागेगा ये सोया हुआ हाल है? तू लड़, तू बढ़, तू बदल ये कायदा, सिस्टम जो बहरा है, उसे सुनाना फर्ज तेरा।
Nice sang
Video❤❤❤❤❤
बहुत सही लिखा 😢
सिस्टम जो बहरा है, नोटों का पहरा है,
तू कैसे लड़ पाएगा, आदमी जो ठहरा है।
सड़क पर जो चीखता, इंसाफ मांगता है,
उसकी आवाज़ कागज दबा देता है।
जो सच की मशाल लिए अदालत में आता है,
वो वकीलों की दलीलों में फंस कर रह जाता है।
सिस्टम का तराजू अब झुकता है पैसों पर,
असली गुनहगार बैठा, हंसता है ऐशों पर।
जो हक की लड़ाई में खड़ा रह जाता है,
वो तारीखों के जंगल में भटक कर थक जाता है।
सिस्टम के पहरेदार गूंगे बन जाते हैं,
जहां सच बोलने पर पत्थर बन जाते हैं।
काला कोट, सफेद झूठ साथ हो जाता है,
सच्चाई की बात ही गुनाह हो जाता हैं।
अतुल सुभाष के शब्दों में गूंजता है सवाल,
क्या कभी जागेगा ये सोया हुआ हाल है?
तू लड़, तू बढ़, तू बदल ये कायदा,
सिस्टम जो बहरा है, उसे सुनाना फर्ज तेरा।