253 Ch-22 ShivMahapuran Shatarudrasanhita Khand-2 Uttarardh by Dr. Samir Tripathi In Hindi
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- เผยแพร่เมื่อ 8 ก.ย. 2024
- भगवान् शिव के पिप्पलादावतार का वर्णन
Singer - Dr. Samir Tripathi
Music - Sudhesh Khare & Omiee
#medhajastro #shiva&I, #shivaandi
Playlist (श्री शिवमहापुराण) • Playlist
Playlist (श्री शिवमहापुराण - माहात्म्य) • Playlist
Playlist (श्रीशिवमहापुराण -प्रथमा विद्येश्वरसंहिता) • Playlist
महर्षि वेदव्यास-प्रणीत , श्रीशिवमहापुराण, प्रथम खण्ड - पूर्वार्ध
पुराण वाङ्मयमें श्रीशिवमहापुराण का अत्यन्त माहिमामय स्थान है ।
पुराणोंकी परिगणनामें वेदतुल्य, पवित्र और सभी लक्षणोंसे युक्त यह पुराण चौथा है ।
शिवके उपासक इस पुराणको शैवभागवत मानते हैं ।
इस ग्रन्थके आदि, मध्य और अन्तमें सर्वत्र भूतभावन भगवान् सदाशिवकी महिमाका प्रतिपादन किया गया है ।
वेद-वेदान्तमें विलसित परमतत्त्व परमात्माका इस पुराणमें शिव नामसे गान किया गया है ।
प्रतिपाद्य-विषयकी दृष्टिसे शिवमहापुराण अत्यन्त उपयोगी महापुराण है ।
इसमें भक्ति, ज्ञान, सदाचार, शौचाचार, उपासना, लोकव्यवहार तथा मानवजीवनके परम कल्याणकी अनेक उपयोगी बातें निरुपित हैं ।
शिवज्ञान, शैवीदीक्षा तथा शैवागमका एक अत्यन्त प्रौढ़ ग्रन्थ है ।
साधना एवं उपासना-सम्बन्धी अनेकानेक सरल विधियाँ इसमें निरुपित हैं ।
कथाओंका तो यह आकर ग्रन्थ है ।
इसकी कथाएँ अत्यन्त मनोरम, रोचक तथा हमारे लिये कल्याणकारी हैं ।
मुख्य रुप से इस पुराणमें देवोंके भी देव महादेव भगवान् साम्बसदाशिवके सकल, निष्कल स्वरुपका तात्त्विक विवेचन, उनके लीलावतारोंकी कथाएँ, द्वादश ज्योतिर्लिंगों का आख्यान, शिवरात्रि आदि व्रतोंकी कथाएँ, शिव भक्तों की कथाएँ, लिंगरहस्य, लिंगोपासना, पार्थिवलिंग, प्रणव, बिल्व, रुद्राक्ष और भस्म आदिके विषयमें विस्तारसे वर्णन है ।
यह पुराण उच्चकोटिके सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों तथा साधारण अस्तिकजनों-सभीके लिये परम मंगलमय एवं हितकारी है ।
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पुराणोंकी परिगणनामें वेदतुल्य, पवित्र और सभी लक्षणोंसे युक्त यह पुराण चौथा है ।
शिवके उपासक इस पुराणको शैवभागवत मानते हैं ।
इस ग्रन्थके आदि, मध्य और अन्तमें सर्वत्र भूतभावन भगवान् सदाशिवकी महिमाका प्रतिपादन किया गया है ।
वेद-वेदान्तमें विलसित परमतत्त्व परमात्माका इस पुराणमें शिव नामसे गान किया गया है ।
प्रतिपाद्य-विषयकी दृष्टिसे शिवमहापुराण अत्यन्त उपयोगी महापुराण है ।
इसमें भक्ति, ज्ञान, सदाचार, शौचाचार, उपासना, लोकव्यवहार तथा मानवजीवनके परम कल्याणकी अनेक उपयोगी बातें निरुपित हैं ।
शिवज्ञान, शैवीदीक्षा तथा शैवागमका एक अत्यन्त प्रौढ़ ग्रन्थ है ।
साधना एवं उपासना-सम्बन्धी अनेकानेक सरल विधियाँ इसमें निरुपित हैं ।
कथाओंका तो यह आकर ग्रन्थ है ।
इसकी कथाएँ अत्यन्त मनोरम, रोचक तथा हमारे लिये कल्याणकारी हैं ।
मुख्य रुप से इस पुराणमें देवोंके भी देव महादेव भगवान् साम्बसदाशिवके सकल, निष्कल स्वरुपका तात्त्विक विवेचन, उनके लीलावतारोंकी कथाएँ, द्वादश ज्योतिर्लिंगों का आख्यान, शिवरात्रि आदि व्रतोंकी कथाएँ, शिव भक्तों की कथाएँ, लिंगरहस्य, लिंगोपासना, पार्थिवलिंग, प्रणव, बिल्व, रुद्राक्ष और भस्म आदिके विषयमें विस्तारसे वर्णन है ।
यह पुराण उच्चकोटिके सिद्धों, आत्मकल्याणकामी साधकों तथा साधारण अस्तिकजनों-सभीके लिये परम मंगलमय एवं हितकारी है ।
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