Apni marzi se kaha apne safar ke hum thai By Jagjit Singh Writer Nida Fazali

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  • เผยแพร่เมื่อ 11 ก.ย. 2024
  • अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
    रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
    पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
    अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
    वक़्त के साथ है मिटी का सफ़र सदियों से
    किस को मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं
    चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
    सोचते रहते हैं किस राहगुज़र के हम हैं
    हम वहाँ हैं जहाँ कुछ भी नहीं रस्ता न दयार
    अपने ही खोए हुए शाम ओ सहर के हम हैं
    गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम
    हर क़लमकार की बे-नाम ख़बर के हम हैं
    निदा फ़ाज़ली

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