इस स्वाध्याय से सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का जीवन शुक्ल लेश्या में व्यतीत हुआ और उन्होंने उत्कृष्ट समाधि मरण कर जीवन सार्थक किया। वर्तमान में वह देवगति में भगवन्तों के समवशरण, नंदीश्वर द्वीप व अन्य केवली भगवन्तों का सानिध्य प्राप्त कर रहे है। वें वहां से आयु पूर्ण होने के बाद कर्म भूमि में जन्म लेकर आठ वर्ष की आयु पश्चात दिगंबर मुनि बनकर आत्मकल्याण करते हुए केवल्य ज्ञान को प्राप्त कर जीवन सार्थक करेंगे। अतः सभी भव्य आत्माओं इस प्रवचन को सुनकर अपने कर्तव्यों को समझकर जीवन सार्थक प्रयास करना चाहिए।
शास्त्रों की बात जो साधु कहें वह सही है।बैल ने, कुत्ते ने मरनासन्न अवस्था में महामंत्र सुना ओर आत्मकल्याण कर लिया। ऐसे शास्त्रों में अनेकों उदाहरण है वह भी सच्चाई जान लो। कोई भी साधु अपने मन से कुछ नहीं बोल सकता। जो मन से कुछ भी बोल रहे है वें भाव लिंगी साधु नहीं है। उनके प्रवचन सुनना याने जिस प्रकार वें द्रव्य लिंग होने से पत्थर की नांव पर बैठकर समुद्र पार करना है।यह सच्चाई है।
इस स्वाध्याय से सभी को यह ज्ञात होना चाहिए कि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का जीवन शुक्ल लेश्या में व्यतीत हुआ और उन्होंने उत्कृष्ट समाधि मरण कर जीवन सार्थक किया। वर्तमान में वह देवगति में भगवन्तों के समवशरण, नंदीश्वर द्वीप व अन्य केवली भगवन्तों का सानिध्य प्राप्त कर रहे है। वें वहां से आयु पूर्ण होने के बाद कर्म भूमि में जन्म लेकर आठ वर्ष की आयु पश्चात दिगंबर मुनि बनकर आत्मकल्याण करते हुए केवल्य ज्ञान को प्राप्त कर जीवन सार्थक करेंगे। अतः सभी भव्य आत्माओं इस प्रवचन को सुनकर अपने कर्तव्यों को समझकर जीवन सार्थक प्रयास करना चाहिए।
Namokar Mantra sunte, Dhyan purvak Maran hone per aagam mein samadhi Maran Tak nahin Mana gaya hai, yah Aditya Sagar Ji ne theek hi kaha hai
शास्त्रों की बात जो साधु कहें वह सही है।बैल ने, कुत्ते ने मरनासन्न अवस्था में महामंत्र सुना ओर आत्मकल्याण कर लिया। ऐसे शास्त्रों में अनेकों उदाहरण है वह भी सच्चाई जान लो। कोई भी साधु अपने मन से कुछ नहीं बोल सकता। जो मन से कुछ भी बोल रहे है वें भाव लिंगी साधु नहीं है। उनके प्रवचन सुनना याने जिस प्रकार वें द्रव्य लिंग होने से पत्थर की नांव पर बैठकर समुद्र पार करना है।यह सच्चाई है।